Hindi Alochana Ka Punah Path
Author:
Kailash Nath PandeyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
हिन्दी आलोचना के इस पुन:पाठ में आलोचना को लेकर उठनेवाली भोली जिज्ञासाओं का अत्यन्त संवेदनशीलता से दिया गया उत्तर मौजूद है। हिन्दी में आलोचना के लिए ‘समालोचना’ और ‘समीक्षा’ शब्द चलते हैं। इसको लेकर कभी-कभी भ्रम की स्थिति होती है। किताब की शुरूआत ही इस भ्रम के निराकरण से हुई है। ‘आलोचना’, ‘समालोचना’ और ‘समीक्षा’ की व्युत्पत्ति और उनके बीच के बारीक अन्तर पर विचार किया गया है।</p>
<p>आलोचना और रचना का सम्बन्ध, आलोचक के दायित्व, आलोचक के कार्य, आलोचना की ज़रूरत या उपयोगिता, आलोचना के मान ही नहीं बल्कि आलोचक बनने के लिए आवश्यक योग्यता क्या होनी चाहिए, यह सब इस किताब में मिल जाएगा।</p>
<p>यह पुस्तक तीन पर्वों में प्रस्तुत है। पहले पर्व में आलोचना की अवधारणा, आधुनिक हिन्दी आलोचना की आरम्भिक स्थिति, आलोचना के विविध प्रकार से लेकर हिन्दी आलोचना की वर्तमान स्थिति का लेखा-जोखा मौजूद है। पुस्तक केवल आलोचक और आलोचना का महिमा-मंडन ही नहीं करती, बल्कि उस महिमा को बनाए और बचाए रखने के गुण-सूत्रों की खोज भी करती है। पुस्तक के द्वितीय पर्व में हिन्दी ओलाचना के शिखरों; यथा—रामचन्द्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ. नरेन्द्र, नन्ददुलारे वाजपेयी, रामविलास शर्मा और नामवर सिह आदि के अवदान का आकलन किया गया है। इसी प्रकार तीसरे पर्व में हिन्दी आलोचना के विविध सन्दर्भ जैसे आलोचना के सरोकार, नई सदी में हिन्दी आलोचना, आलोचना प्रक्रिया आदि पर विचार किया गया है।
ISBN: 9789388211758
Pages: 298
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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सशक्त अभिव्यक्ति के लिए समर्थ हिन्दी चाहिए।
इस नए ढंग के व्यवहार–कोश में पाठकों को अपनी हिन्दी निखारने के लिए हज़ारों शब्दों के बारे में बहुपक्षीय भाषा–सामग्री मिलेगी। इसमें वर्तनी की व्यवस्था मिलेगी, उच्चारण के संकेत–बिन्दु मिलेंगे, व्युत्पत्ति पर टिप्पणियाँ मिलेंगी, व्याकरण के तथ्य मिलेंगे, सूक्ष्म अर्थभेद मिलेंगे, पर्याय और विपर्याय मिलेंगे, संस्कृत का आशीर्वाद मिलेगा, उर्दू और अंग्रेज़ी का स्वाद मिलेगा, प्रयोग के उदाहरण मिलेंगे, शुद्ध–अशुद्ध का निर्णय मिलेगा।
पुस्तक की शैली ललित निबन्धात्मक है। इसमें कथ्य को समझाने और गुत्थियों को सुलझाने के दौरान कठिन और शुष्क अंशों को सरल और रसयुक्त बनाने के लिहाज़ से मुहावरों, लोकोक्तियों, लोकप्रिय गानों की लाइनों, कहानी–क़िस्सों, चुटकुलों और व्यंग्य का भी सहारा लिया गया है। नमूने देखिए, स्त्रीलिंग ‘दाद’ (प्रशंसा) सब को अच्छी लगती है, पर पुर्लिंग ‘दाद’ (चर्मरोग) केवल चर्मरोग के डॉक्टरों को अच्छा लगता है।…‘मैल, मैला, मलिन’ सब ‘मल’ के भाई–बन्धु हैं…(‘साइकिल’ को) ‘साईकील’ लिखनेवाले महानुभाव तो किसी हिन्दी–प्रेमी के निश्चित रूप से प्राण ले लेंगे—दुबले को दो असाढ़। ...अरबी का ‘नसीब’ भी ‘हिस्सा’ और ‘भाग्य’ दोनों है। उदाहरण—आपके नसीब में ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हैं। (जबकि मेरे नसीब में मेरी पत्नी हैं।)
यह पुस्तक हिन्दी के हर वर्ग और स्तर के पाठक के लिए उपयोगी है।
Aadi, Ant Aur Aarambh
- Author Name:
Nirmal Verma
- Book Type:

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Description:
‘भारत सिर्फ़ एक ‘नेशन स्टेट’ नहीं है। शताब्दियों से हमारे देश की सीमाएँ वे स्वागत-द्वार रही हैं जिनके भीतर आते ही उत्पीड़ित और त्रस्त जातियाँ अपने को सुरक्षित पाती रही हैं।’
यह लिखते हुए निर्मल वर्मा यह भी कहते हैं कि एक प्राचीन वट-वृक्ष की तरह भारतीय संस्कृति ने अपनी छाया तले अनेक समुदायों को ऐसा पवित्र स्पेस दिया जहाँ वे मुक्त हवा में साँस ले सकें।
क्या आजादी के बाद हमने एक राष्ट्र के रूप में अपनी इस विराटता को छीज जाने दिया?
ऐसे ही प्रश्नों पर मनन करते हुए इस पुस्तक के निबन्ध उस आत्म-उन्मूलन को भी रेखांकित करते हैं जिसके चलते आधुनिक मनुष्य अपने ही स्पेस में शरणार्थी जैसा हो चला है। अलग-अलग अवसरों पर लिखे गए इस पुस्तक के अधिकांश निबन्ध, भले ही उनके विषय कुछ भी हों, आत्म-उन्मूलन के इस ‘अन्धकार’ को कहीं-न-कहीं चिह्नित करते हैं।
भारतीय बुद्धिजीवी की भूमिका, धर्म और साम्प्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता और भारतीयता आदि विषयों के अलावा यहाँ संकलित निबन्ध हिन्दी भाषा और साहित्य से जुड़े कुछ प्रश्नों को भी अपने दायरे में लेते हैं।
चेकोस्लोवाकिया पर सोवियत सेना के आक्रमण और भारत के आपातकाल से जुड़े दो आलेख भी इस पुस्तक में शामिल हैं।
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