Padmavat Ka Anushilan
Author:
Indra Chandra NarangPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
पदमावत ने हमारे इतिहास वाड्मय को अत्यधिक प्रभावित किया है। पदमावत का अध्ययन उसके ऐतिहासिक आधार को टटोलते हुए किया गया है। पद्मावत का अनुशीलन पदमावत के ऐतिहासिक आधार', प्रकाशित होने पर संक्षिप्त संस्करण प्रकाशित करने की जरूरत महसूस हुई, जिससे जिन पाठकों को पूरी पदमावत पढ़ने का अवकाश नहीं है, वे भी इस अमर काव्य का रसास्वादन कर सकें। प्रस्तुत संग्रह उसी प्रयास का फल है। पदमावत का यह संक्षिप्त संग्रह प्रस्तुत करने में प्रयत्न किया गया है कि-</p>
<p> </p>
<p>क. पदमावत के कथानक का सूत्र अटूट बना रहे.</p>
<p>ख. काव्य की दृष्टि से उत्कृष्ट सभी अंशों कासमावेश हो जाय,</p>
<p>ग. पदमावत के सभी पात्रों का चरित्र स्पष्ट हो जाय।</p>
<p>ठेठ अवधी भाषा के माधुर्य और भावों की गम्भीरता की दृष्टि से यह काव्य निराला है। इसके पठन-पाठन का मार्ग कठिनाइयों के कारण अब तक बन्द-सा रहा। एक तो इसकी भाषा पुरानी और ठेठ अवधी, दूसरे भाव भी गूढ़, अतः किसी शुद्ध अच्छे संस्करण के बिना इसके अध्ययन का प्रयास मुश्किल था। पदमावत का अनुशीलन पुस्तक इसी ओर एक प्रयास मात्र है।
ISBN: 9788180318382
Pages: 466
Avg Reading Time: 16 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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कोई रचनाकार, रचनाकार होने की सारी शर्तों को पूरा करता हुआ अपने समय और साहित्य के लिए कैसे और क्यों महत्त्वपूर्ण हो जाता है, मुक्तिबोध इन सवालों के अकेले जवाब हैं। एक सर्जक के रूप में वे जितने बड़े कवि हैं, समीक्षक के नाते उतने ही बड़े चिन्तक भी।
‘कामायनी : एक पुनर्विचार’ तथा ‘समीक्षा की समस्याएँ’ नामक कृतियों के क्रम में ‘नयी कविता का आत्मसंघर्ष’ मुक्तिबोध की बहुचर्चित आलोचना-कृति है, जिसका यह नया संस्करण पाठकों के सामने परिवर्तित रूप में प्रस्तुत है। छायावादोत्तर हिन्दी कविता के तात्त्विक और रूपगत विवेचन में इस कृति का विशेष महत्त्व रहा है। इसमें मुख्य निबन्ध शामिल हैं, जिनमें नयी कविता के सामने उपस्थित तत्कालीन चुनौतियों, ख़तरों और युगीन वास्तविकताओं के सन्दर्भ में उसकी द्वन्द्वात्मकता का गहन विश्लेषण किया गया है। कविता को मुक्तिबोध सांस्कृतिक प्रक्रिया मानते हैं और कवि को एक संस्कृतिकर्मी का दर्जा देते हुए यह आग्रह करते हैं कि अनुभव-वृद्धि के साथ-साथ उसे सौन्दर्याभिरुचि के विस्तार और उसके पुनःसंस्कार के प्रति भी जागरूक रहना चाहिए। उनकी मान्यता है कि आज के कवि की संवेदन-शक्ति में विश्लेषण-प्रवृत्ति की भी आवश्यकता है, क्योंकि कविता आज अपने परिवेश के साथ सर्वाधिक द्वन्द्व-स्थिति में है।
नई कविता के आत्मद्वन्द्व या आत्मसंघर्ष को मुक्तिबोध ने त्रिविध संघर्ष कहा है, अर्थात—1. तत्त्व के लिए संघर्ष, 2. अभिव्यक्ति को सक्षम बनाने के लिए संघर्ष और 3. दृष्टि-विकास का संघर्ष। इनका विश्लेषण करते हुए वे लिखते हैं—‘प्रथम का सम्बन्ध मानव-वास्तविकता के अधिकाधिक सक्षम उद्घाटन-अवलोकन से है। दूसरे का सम्बन्ध चित्रण-दृष्टि के विकास से है, वास्तविकताओं की व्याख्याओं से है।’ वस्तुतः समकालीन मानव-जीवन और युग-यथार्थ के मूल मार्मिक पक्षों के रचनात्मक उद्घाटन तथा आत्मग्रस्त काव्य-मूल्यों के बजाय आत्मविस्तारपरक काव्यधारा की पक्षधरता में यह कृति अकाट्य तर्क की तरह मान्य है।
Ek Kavi Ki Note Book
- Author Name:
Rajesh Joshi
- Book Type:

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Description:
कला या लिखने की सारी तरकीबें कलाकार या रचनाकार की सृजनात्मक क्षमताओं
और कौशल से ही हमेशा पैदा नहीं होतीं, कई रचनाकार ऐसे होते हैं जो हमेशा लिखने से बचने की
कोशिश करते रहते हैं। रचना जब भी उनकी खोपड़ी पर सवार हो जाती है या लिखने की बाध्यता
उनके सामने आ खड़ी होती है, वे इससे बचने के लिए बहाने खोजने लगते हैं। यह एक त्रासदायक
स्थिति है। इसमें बचने और लिखने का एक विकट द्वन्द्व चलता रहता है। गद्य लिखना मेहनत का
काम है। व्यवस्थित गद्य लिखना तो और भी ज़्यादा। उसके लिए जैसा व्यवस्थित अध्ययन और
जमकर बैठने की तैयारी एक लेखक की होनी चाहिए, वह मेरी कभी नहीं रही। मैं हमेशा ही एक बैक
बेंचर छात्र रहा हर जगह, जो क्लासरूम में बैठने के बजाय कैंटीन में बैठकर गप्पों में अपना समय
बिताना पसन्द करता रहा। इसलिए जो भी और जब भी लिखा टुकड़ों-टुकड़ों में लिखा। उन्हें डायरियाँ
भी कहना मुनासिब नहीं। डायरियों में एक व्यवस्था होती है। सुविधा के लिए ज़्यादा से ज़्यादा इन्हें
नोट्स कहा जा सकता है। कुछ भी पढ़ते या सोचते हुए छोटी-छोटी पर्चियों पर या कॉपी के सफ़ों पर
बनी, वह भी उसे छोटे-छोटे नोट्स की शक्ल में ही लिखा। इस किताब में कवियों या कविता पर
केन्द्रित जो टिप्पणियाँ हैं या कविता की किताबों पर समीक्षात्मक टिप्पणियाँ, सब कुल मिलाकर
नोट्स ही हैं। यह एक ऐसी तरकीब है जिसे निबन्ध न लिख पाने की अपनी अक्षमता के चलते मैंने
अपनी काहिली और सुविधा के लिए ईजाद किया। इसलिए इसे आलोचना या समीक्षा जैसा काम तो
क़तई नहीं कहा जा सकता।
नोट्स में एक बेतरतीबी है। एक अव्यवस्था है। मुझे लगता है कि रचना के भीतर अर्जित की गई
स्वतंत्रता के अधिक क़रीब पहुँचने में यह कोशिश ज़्यादा कारगर है। हिन्दी कविता के लिए मुझे
अक्सर एक रूपक गढ़ने की इच्छा होती है कि इसकी काया मुक्तिबोध, शमशेर, नागार्जुन, केदारनाथ
अग्रवाल और त्रिलोचन के पाँच तत्त्वों से बनी है और इसके प्राणतत्त्व निराला हैं। हर रूपक की तरह
लेकिन यह रूपक भी अपर्याप्त है पर इससे हिन्दी कविता के नाक-नक्श कुछ हद तक तो पहचाने ही
जा सकते हैं। आठवें दशक की कविता को सामने रखकर अपने से पहले की कविता को टटोलने की
कोशिश में नोट्स का यह पुलिन्दा तैयार हो गया है।
यह एक कवि की नोटबुक है। इसलिए इसमें व्यवस्था कम, बहक ज़्यादा है।
Muktibodh : Sarjak Aur Vicharak
- Author Name:
Sewaram Tripathi
- Book Type:

- Description: तर नेहरू-युग में जैसे-जैसे भारतीय लोकतंत्र जनहितों से निरपेक्ष होता गया है, वैसे-वैसे साहित्य मुखर रूप से लोकतंत्र के भीतर काम कर रही जन-विरोधी शक्तियों के कठोर आलोचक के रूप में सामने आया है। इसी क्रम में मुक्तिबोध की रचनाएँ और विचार हिन्दी में केन्द्रीय होते गए हैं। पारम्परिक रसवादी और रोमैंटिक आग्रहों के सामानान्तर आधुनिक साहित्य ने विचार और बौद्धिकता को केन्द्रीय महत्त्व दिया है। इस संघर्ष में मुक्तिबोध के रचनात्मक और वैचारिक प्रयासों की महती भूमिका है। प्रो. सेवाराम त्रिपाठी की पुस्तक ‘मुक्तिबोध : सर्जक और विचारक', मुक्तिबोध का विवेचन-मूल्यांकन समग्रता से करती है। मुक्तिबोध की रचनात्मकता कविता, कहानी, उपन्यास, निबन्ध, आलोचना और पत्रकारिता तक फैली हुई है। इस पुस्तक का महत्त्व यह है कि वह मुक्तिबोध का अध्ययन करने के लिए सभी विधाओं को समेटती है। स्वाभाविक ही है कि ऐसे में लेखक ने मुक्तिबोध के सभी पक्षों पर विस्तृत विचार किया है। सेवाराम त्रिपाठी ने प्रस्तुत पुस्तक में मुक्तिबोध की सर्जना में विचारधारा की भूमिका की पड़ताल की है। मुक्तिबोध हिन्दी रचनाशीलता में एक मुकम्मल और सुसंगत मार्क्सवादी थे। इसका गहरा प्रभाव विशेष रूप से कविता और आलोचना जैसी विधाओं पर पड़ा है। यह प्रभाव सामान्य न होकर जटिल है। लेखक ने पुस्तक में मुक्तिबोध में उपस्थित रचना और विचारधारा की अन्तःक्रिया पर गहन और सूक्ष्म विवेचन किया है। प्रस्तुत संस्करण पुस्तक का दूसरा संस्करण है। इसमें ‘मुक्तिबोध : पुनश्च' शीर्षक से चार नए आलेख जोड़ दिए गए हैं। इन आलेखों में मूल अध्यायों में छूट गई कुछ महत्त्वपूर्ण बातें स्थान पा सकी हैं। पुस्तक न सिर्फ़ गम्भीर अध्येताओं की ज़रूरतों को पूरा करती है, बल्कि सामान्य विद्यार्थियों के लिए भी उपादेय ह
Kahani Ki Arthanveshi Alochana
- Author Name:
Pandeya Shashibhushan 'Shitanshu'
- Book Type:

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Description:
हिन्दी कथालोचना के लगभग सौ वर्षों के इतिहास में यह आलोचनाकृति एक अन्यतम शिखर उपलब्धि है। यह सुपरिचित कहानियों की दुनिया के अब तक कराए गए प्रत्यक्ष से सर्वथा विलग उसकी अन्दरूनी छिपी दुनिया को पहली बार ‘रिवील’ करती है।
इस कृति से कहानी की आलोचना की एक समीचीन नयी सरणि आविष्कृत और प्रतिष्ठित हुई है।
इस पुस्तक में पहली बार ‘कफन’ में आधुनिकता बनाम उत्तर-आधुनिकता, कर्म-संस्कृति बनाम उपभोक्ता-संस्कृति, ‘पूस की रात’ में प्रकृति बनाम संस्कृति और ‘वर्ग-चेतना’, की विमुखता बनाम सजगता, ‘मंत्र-2’ में बाहरी बनाम आन्तरिक सर्प, ‘ईदगाह’ में मूर्त बनाम अमूर्त ईदगाह, ‘वापसी’ में कालपरक बनाम स्थलपरक, विधेयात्मक बनाम निषेधात्मक वापसी, ‘वारेन हेस्टिंग्स का साँड’ में पशु साँड बनाम हेस्टिंग्स रूपी साँड, ‘और अन्त में प्रार्थना’ में हैजा का संक्रमण बनाम भ्रष्टाचार का संक्रमण, ‘रुको इंतज़ार हुसैन’ में इंतजार हुसैन बनाम जवाहरलाल तथा ‘कब तक’ में परिवार से देश तक में यथास्थितीकरण से मुक्ति की छटपटाहट का यहाँ पहली बार सर्जनात्मक उद्घाटन किया गया है।
इन सबको जानने, समझने हेतु सभी पाठकों के लिए यह कृति पठनीय, विचारणीय और संग्रहणीय है।
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