Vigyan Fantasi Kathayen
Author:
Prakash ManuPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 136
₹
170
Unavailable
"किस्से कहानियों की तरह विज्ञान की दुनिया भी कम अचरज से भरी नहीं है।
विज्ञान फंतासी कथाएँ प्रकाश मनु की विज्ञान कथाओं का ताजा संग्रह है, जिसमें वैज्ञानिक तथ्यों के साथ ही खेल और कल्पना का भी वितान तना हुआ है और हर क्षण कुछ नया घटित हो रहा है, जो परीकथाओं की दुनिया से कहीं अधिक चित्ताकर्षक और जादुई है। मनुजी की विज्ञान कथाओं में कहीं उड़ते हुए रोबोटनुमा पेड़ की कल्पना है तो कहीं मन को नियंत्रित करनेवाले हाइटेक सुपर कंप्यूटर की। कहीं कोई रोबोट गिलगिल सेवन चौकीदार बनकर अपने रहस्यपूर्ण कारनामे से सबको अचंभित कर डालता है तो कहीं वह अनोखी चिडि़या शिंगाई फू शुम्मा के रूप में एक छोटे बच्चे को लंबी अंतरिक्ष यात्रा पर ले चलता है। ‘मंगल ग्रह की लाल चिडि़या’ और ‘चंद्रलोक की अदृश्य दुनिया’ सरीखी कहानियाँ चाँद और मंगल ग्रह पर मनुष्य अस्तित्व की संभावना की कुछ अधिक कल्पनाशीलता के साथ पड़ताल करती हैं। ‘गोपी की फिरोजी टोपी’ और ‘पप्पू की रिमझिम छतरी’ में कंप्यूटर और लेजर किरणों की दुनिया का एक आश्चर्यलोक है, जो आज भले ही खेल की तरह लग रहा हो, पर कल हकीकत में बदल सकता है। पुस्तक में ‘दुनिया का सबसे अनोखा सुपर हाइटेक चोर’ जैसी रोमांचक कहानियाँ हैं तो ‘प्रोफेसर जोशी बादलों के देश में’ जैसी अद्भुत कथाएँ भी, जो परीकथाओं के समांतर उड़ती हुई अपनी राह बनाती हैं।"
ISBN: 9789384344290
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: 1965 भारत-पाक युद्ध की अनकही कहानी 1965 का युद्ध वर्ष 1947 में हुए विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच पहला पूर्ण युद्ध था। भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री वाई.बी. चह्वाण ने 22 दिन तक चले इस युद्ध का विवरण स्वयं अपनी डायरी में दर्ज किया था। इस पुस्तक में बताई गई अंदरूनी बातों से पता चलता है— • पाकिस्तानी हमले के समय का पता करने में भारत का खुफिया विभाग बिलकुल विफल रहा। • कैसे और क्यों चह्वाण ने प्रधानमंत्री को सूचित किए बिना ही वायुसेना को हमला करने का आदेश दे दिया। • कैसे एक डिवीजन कमांडर को अभियान से अलग कर दिया गया। • कैसे एक सेना कमांडर ने अपनी ‘रेजीमेंट के महान् गौरव’ के लिए 300 से अधिक लोगों को कुरबान कर दिया। • भारतीय सेना ने लाहौर के अंदर कूच क्यों नहीं किया? • कैसे प्रधानमंत्री ने अपना धैर्य बनाए रखा और युद्ध के समय एक महान् नेता बनकर उभरे। • क्या यह युद्ध निरर्थक था, भारत ने युद्ध के मोर्चे पर जो कुछ जीता था, क्या वह सब ताशकंद में गँवा दिया था? और अंत में, राजनीतिक नेतृत्व ने कैसे रक्षा बलों के नेतृत्व के साथ फिर से अपने समुचित संबंध बहाल कर लिये और 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय पैदा हुई कड़वाहट को मिटा दिया। यह पुस्तक वायुसेना के सम्मान में लिखी गई है, जिसे स्वतंत्रता के बाद पहली बार युद्ध में लगाया गया था। यह उन बख्तरबंद रेजीमेंटों को भी श्रद्धांजलि है, जो इस युद्ध में बड़ी वीरता से लड़ीं और पैटन टैंकों के सर्वश्रेष्ठ होने के मिथक को तोड़ दिया।
Bharat Ke Shashak
- Author Name:
Rammanohar Lohia
- Book Type:

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Description:
राममनोहर लोहिया द्वारा गोवा हाईकोर्ट के चीफ़ जज को लिखे एक ख़त को ‘हरिजन सेवक’ के अक्टूबर, ’46 के एक अंक में पुनर्प्रकाशित करते हुए गांधी ने लिखा था कि ‘डॉ. लोहिया कोई मामूली आदमी नहीं’। यह तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य में लोहिया की महत्ता को रेखांकित करता है। लोहिया उन दिनों गोवा में आज़ादी की पैरवी कर रहे थे और गिरफ़्तार भी हुए थे।
इस पुस्तक में लोहिया के वे आलेख संकलित किए गए हैं जो उन्होंने समय-समय पर राजनीति, समाज, संस्कृति और भाषा आदि विषयों पर विचार करते हुए लिखे। भाषा और शब्दावली के लिहाज से उनका लेखन एक ऐसे व्यक्ति का लेखन है जिसके विचार उसके व्यवहार से पुष्ट होकर आते हैं और इसलिए अत्यन्त स्पष्ट रूप में व्यक्त होते हैं।
यहाँ संकलित लेखों में सबसे ध्यानाकर्षक हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की एकता की इच्छा को लेकर लिखे गए उनके लेख हैं जो उन्होंने बँटवारे के मात्र तीन-चार साल बाद लिखे थे। उनकी कामना थी कि अगर दोनों देशों के लोग थोड़ी भी विद्या-बुद्धि से काम करते चले गए तो दस-पाँच बरस में फिर से एक होकर रहेंगे। लेकिन दुखद है कि यह विद्या-बुद्धि प्रयोग में नहीं लाई जा सकी। इस सकारात्मक दृष्टि की हमें आज और ज़्यादा ज़रूरत है।
इसके अलावा भारत में शासक-परम्परा, समाजवाद, गांधीवाद और समाजवाद, जाति, स्त्री-पुरुष समानता, मातृभाषा की स्थिति, छुआछूत और मन्दिर प्रवेश जैसे विषयों पर भी आप यहाँ (उनके विचार) पढ़ सकेंगे। यह पुस्तक चिन्तक लोहिया के समग्र का एक प्रतिनिधि संकलन है।
Aaj Ke Aiene Mein Rashtravad
- Author Name:
Ravikant
- Book Type:

- Description: जब सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और थोथी देशभक्ति के जुमले उछालकर जेएनयू को बदनाम किया जा रहा था, तब वहाँ छात्रों और अध्यापकों द्वारा राष्ट्रवाद को लेकर बहस शुरू की गई। खुले में होनेवाली ये बहस राष्ट्रवाद पर कक्षाओं में तब्दील होती गई, जिनमें जेएनयू के प्राध्यापकों के अलावा अनेक रचनाकारों और जन-आन्दोलनकारियों ने राष्ट्रवाद पर व्याख्यान दिए। इन व्याख्यानों में राष्ट्रवाद के स्वरूप, इतिहास और समकालीन सन्दर्भों के साथ उसके ख़तरे भी बताए-समझाए गए। राष्ट्रवाद कोई निश्चित भौगोलिक अवधारणा नहीं है। कोई काल्पनिक समुदाय भी नहीं। यह आपसदारी की एक भावना है, एक अनुभूति जो हमें राष्ट्र के विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों से जोड़ती है। भारत में राष्ट्रवाद स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान विकसित हुआ। इसके मूल में साम्राज्यवाद-विरोधी भावना थी। लेकिन इसके सामने धार्मिक राष्ट्रवाद के ख़तरे भी शुरू से थे। इसीलिए टैगोर समूचे विश्व में राष्ट्रवाद की आलोचना कर रहे थे तो गांधी, अम्बेडकर और नेहरू धार्मिक राष्ट्रवाद को ख़ारिज कर रहे थे। कहने का तात्पर्य यह कि राष्ट्रवाद सतत् विचारणीय मुद्दा है। कोई अन्तिम अवधारणा नहीं। यह किताब राष्ट्रवाद के नाम पर प्रतिष्ठित की जा रही हिंसा और नफ़रत के मुक़ाबिल एक रचनात्मक प्रतिरोध है। इसमें जेएनयू में हुए तेरह व्याख्यानों को शामिल किया गया है। साथ ही योगेन्द्र यादव द्वारा पुणे और अनिल सद्गोपाल द्वारा भोपाल में दिए गए व्याख्यान भी इसमें शामिल हैं।
Congress-Mukt Bharat
- Author Name:
Amit Bagaria
- Book Type:

- Description: अब 80 महीने से भी अधिक का समय बीत चुका है, जब भारतीय राजनीति की ‘वयोवृद्ध पार्टी’, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 2014 के चुनावों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी/एनडीए के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था। पाँच साल बाद 2019 में मोदी ने अपने नेतृत्व में बीजेपी/एनडीए को उससे भी बड़ी जीत दिलाई, भले ही कांग्रेस को इस बार कुछ अधिक सीटें मिलीं। अगस्त 2019 में ‘इंडिया टुडे’ के सर्वे में 57.5 प्रतिशत लोगों ने कहा कि कांग्रेस अपने अंत की ओर बढ़ रही है, 71.4 प्रतिशत ने कहा कि भारतीय मतदाताओं ने निर्णायक रूप से वंशवादी राजनीति को खारिज कर दिया है, और मात्र 32.6 प्रतिशत ने कहा कि सिर्फ एक गांधी ही पार्टी को पुनर्जीवित कर सकता है। जनवरी 2020 में कराए गए ऐसे ही सर्वे में 68.2 प्रतिशत लोगों ने कहा कि कांग्रेस अपने सबसे बड़े नेतृत्व संकट से गुजर रही है। अगस्त 2020 में 55.3 प्रतिशत लोगों ने कहा कि कांग्रेस अपने अंत के करीब है। लेकिन अब तक भी 135 साल पुरानी पार्टी के पुनर्जीवित होने के संकेत नहीं दिखते। 7 अगस्त, 2020 को 23 वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के अध्यक्ष पद समेत विभिन्न संगठनों के चुनाव कराए जाने की माँग के साथ ही नेहरू-गांधी परिवार के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इतने महीने बाद भी पार्टी में नेतृत्व के संकट को दूर करने की दिशा में कोई ठोस कदम उठता नहीं दिखता। ‘बागियों’ और ‘परिवार के तथाकथित वफादारों’ के बीच की दरार कांग्रेस पार्टी को लगातार डरा रही है।
Europe Ke Itihas Ki Prabhavi Shaktiyan
- Author Name:
Raghuvansh
- Book Type:

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Description:
हमारा विश्व आज जिन स्थितियों से गुज़र रहा है, वे सारी स्थितियाँ केवल आर्थिक और राजनीतिक ही नहीं, वरन् सांस्कृतिक चिन्ता का विषय भी हैं। भले ही यह कहा जा रहा हो या मान लिया गया हो कि सोवियत रूस के पतन के बाद, विश्व अब द्वि-ध्रुवीय नहीं रह गया है, किन्तु अपने वर्तमान को समझने और विभिन्न भटकावों के बीच से सही मार्ग खोजने के लिए उन प्रभाव-शक्तियों का अवलोकन-प्रत्यावलोकन करना आवश्यक है, जिनका एक सुदीर्घ इतिहास है।
विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं से लेकर आज तक मानव-सभ्यता के विकास के जो भी चरण रहे हैं, उनमें कहाँ-कहाँ कौन-कौन-सी प्रभाव-शक्तियाँ परस्पर सहयोग की भूमिका में रहीं, और कौन-कौन प्रतिस्पर्द्धा या प्रतियोगिता की भूमिका में रहीं, यह हम समझते चलें तो सम्भव है, भविष्य के लिए अपना सही मार्ग चुनने में हमारी सहायता करनेवाली प्रेरणाएँ हमें अपने वर्तमान में मिल सकें।
विभिन्न समाजों की अपनी-अपनी संस्कृतियों की परिधि में, राजसत्ताओं-धर्मतंत्रों ने (और आगे चलकर विकसित होनेवाली लोकतंत्रात्मक सत्ताओं ने भी) किन-किन तत्त्वों या वर्गों को प्रश्रय दिया और प्रश्रय-प्राप्त तत्त्वों या वर्गों ने समाज को कितनी गति दी या कितने अवरोध उपस्थित किए, यह सब लक्षित करने के मूल में इस लेखक का उद्देश्य यह रहा है कि मानवीय मूल्यों के ह्रास और विकास, दोनों के वस्तुगत पक्ष सामने लाए जा सकें जिससे मनुष्य—व्यक्ति और समाज—दोनों रूपों में अपने दायित्व और अपने स्वातंत्र्य के अविच्छिन्न सम्बन्धों को आत्मसात् कर सके।
—भूमिका से
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