Nishane Par : Samay, Samaj Aur Rajniti
Author:
Santosh BhartiyaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Unavailable
जिस ज़माने में हमने पत्रकारिता शुरू की उसके पहले या उस दौर में भी पत्रकारिता के जो विषय होते थे, उनका अन्दाज़े-बयाँ साहित्यिक होता था। हमें बड़ी घुटन होती थी कि सच्चाई कहाँ है, देश कहाँ है और आप शब्दों में घूम रहे हैं, कविता में घूम रहे हैं और दुनिया कहाँ है? संतोष भारतीय, एस.पी. सिंह और उदयन शर्मा ने उस दौर में हिन्दी पत्रकारिता को उस साहित्यिक दरिया से निकाला और ‘रविवार’ के ज़रिए एक ऐसी जगह ले गए कि उसमें एक मैच्योरिटी जल्दी आ गई। उस ज़माने में हमने ज़मीन की पत्रकारिता की जिसका एक ख़ास रिवोल्यूशनरी प्रभाव हुआ और जिसका असर बहुत दूर तक गया। हमारा जो शुरुआती दौर था, वो समय विरोधाभासों का भी था। हमारी पत्रकारिता पर आपातकाल का जो प्रभाव पड़ा, उसकी भी बड़ी भूमिका थी क्योंकि हम भी एक लिबरेशन के साथ निकले थे। हम सब इतने पॉलिटिकल थे कि राजनीति में फँस गए, पर ख़ुशक़िस्मती है कि निकल भी गए। पत्रकारिता ने हमें दोस्त बनाया और राजनीति ने अलग किया। अब चूँकि हम वापस पत्रकारिता में आ गए हैं, इसलिए पुरानी दोस्ती का मौक़ा मिला है। हम लोग चार थे : मैं, एस.पी., संतोष और उदयन—जिनमें से दो अब हमारे बीच नहीं हैं। सचमुच लगता है कि अगर चारों रहते तो हिन्दी पत्रकारिता में उसका एक गहरा प्रभाव होता। आज मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी है कि संतोष की पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।
—एम.जे. अकबर
ISBN: 9788171199877
Pages: 288
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: साम्प्रदायिक दंगों को प्रशासन की एक बड़ी असफलता के रूप में लिया जाना चाहिए। हाल के वर्षों में इस विषय पर एक व्यापक समझ तैयार करने में पूर्व पुलिस अधिकारी व प्रतिष्ठित लेखक विभूति नारायण राय का यह अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण है। श्री राय ने यह अध्ययन नेशनल पुलिस अकादमी, हैदराबाद के लिए एक वर्ष के गहन परिश्रम के बाद पूरा किया था। दुर्भाग्य से, इसकी कुछ स्थापनाओं को छिपाने–दबाने की कोशिश भी की गई। इसको प्रकाश में लाने का श्रेय नेशनल अकेडमी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन, मसूरी को जाता है, जिसने इसे सबसे पहले प्रकाशित किया। मेरी राय है कि प्रशासन और पुलिस के तमाम अधिकारियों के लिए इस पुस्तक का पठन–पाठन अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। —पदम रोशा, पुलिस महानिदेशक (सेवानिवृत्त) साम्प्रदायिक दंगों के दौरान पुलिस–व्यवहार पर यह एक ठोस, विश्वसनीय और आधिकारिक अध्ययन है–––लेखक का यह कहना एकदम सही है कि पुलिस में काम करनेवाले लोग उसी समाज से आते हैं जिसमें साम्प्रदायिकता के विषाणु पनपते हैं, उनमें वे सब पूर्वग्रह, घृणा, सन्देह और भय होते हैं जो उनका समुदाय किसी दूसरे समुदाय के प्रति रखता है। पुलिस में भर्ती होने के बावजूद वे ख़ुद को अपने ‘सहधार्मिकों’ के ‘हम’ में शामिल रखते हैं और दूसरे समुदाय को ‘वे’ मानते रहते हैं। —ए.जी. नूरानी (‘फ़्रंटलाइन’ में) गृह मंत्रालय और पुलिस ब्यूरो ऑफ़ रिसर्च एंड डेवलपमेंट तथा अपने सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों के विस्तृत विश्लेषण पर आधारित यह शोध बताता है कि प्रत्येक दंगे के 80 प्रतिशत शिकार मुस्लिम होते हैं और जो लोग गिरफ़्तार किए जाते हैं, उनमें भी लगभग 90 प्रतिशत अल्पसंख्यक ही होते हैं। श्री राय के अनुसार, ‘‘यह तर्क–विरुद्ध है। अगर 80 प्रतिशत शिकार मुस्लिम हैं तो होना यह चाहिए कि गिरफ़्तार लोगों में 70 प्रतिशत हिन्दू हों। लेकिन ऐसा कभी होता नहीं है।’’ —सिबल चटर्जी (‘आउटलुक’ में)
Nagarikta Sanshodhan Adhiniyam (Tathya Evam Satya : Ek Bauddhik Vimarsh)
- Author Name:
Geeta Singh
- Book Type:

- Description: "भारत सदैव विश्व के सभी सताए हुए लोगों की शरणस्थली रहा, उसी के नागरिकों को उसी की भूमि पर अवसरवाद के इस खेल ने शरणार्थी बना दिया। आज हमें एक मजबूत इच्छाशक्ति वाली मानवतावादी सरकार मिली है, जो इन पीडि़तों एवं शोषितों को सहारा देने के लिए सर्वसम्मति से ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ को पारित करवाकर लाई, तो अवसरवादी तुच्छ राजनीति करने वाले लोग फिर देश को गुमराह करने में लग गए हैं। समाज में हर तबके के अंदर देश के कोने-कोने में आज सी.ए.ए., एन.पी.आर. एवं एन.आर.सी. पर लोगों के मन में जहर घोलकर तरह-तरह की भ्रांतियाँ बैठा दी गई हैं। उन्हीं भ्रमों के निवारण के लिए तथा इन सभी अधिनियमों के सत्य को सामने लाने के लिए सी.पी.डी.एच.ई. (यू.जी.सी.एच. आर.डी.सी) दिल्ली विश्वविद्यालय के तत्त्वावधान में एक विचार गोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसमें राष्ट्र के अग्रणी चिंतक डॉ. इंद्रेश कुमारजी के सान्निध्य एवं संरक्षण में बौद्धिक विमर्श हुआ, जिसमें देश भर के विविध विश्वविद्यालयों से आए विभिन्न चिंतकों, प्राध्यापकों एवं शिक्षाविदों ने गंभीर विचार-विमर्श किया। उस वैचारिक मंथन से प्राप्त ज्ञान-सुधा को जन-जन तक पहुँंचाने के लिए यह पुस्तक प्रकाशित की गई है। केरल के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान की प्रस्तावना ने इस विषय के महत्त्व को दृढ़ता और प्रामाणिकता से रेखांकित किया है। "
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