Shudron Ka Pracheen Itihas
Author:
Ramsharan SharmaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
‘शूद्रों का प्राचीन इतिहास’ प्रख्यात इतिहासकार प्रो. रामशरण शर्मा की अत्यन्त मूल्यवान कृति है। शूद्रों की स्थिति को लेकर इससे पूर्व जो कार्य हुआ है, उसमें तटस्थ और तलस्पर्शी दृष्टि का प्राय: अभाव दिखाई देता है। ऐसे कार्य में कहीं ‘शूद्र’ शब्द के दार्शनिक आधार की व्याख्या–भर मिलती है, तो कहीं धर्मसूत्रों में शूद्रों के स्थान की; कहीं शूद्रों के ग़ुलाम नहीं होने को सिद्ध किया गया है, तो कहीं उनके उच्चवर्गीय होने को। कुछ अध्ययनों में प्राचीन भारत के श्रमशील वर्ग से सम्बद्ध सूचनाओं का संकलन–भर हुआ है। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे अध्ययनों में विभिन्न परिस्थितियों में पैदा हुई उन पेचीदगियों की प्राय: उपेक्षा कर दी गई है, जिनके चलते शूद्र नामक श्रमजीवी वर्ग का निर्माण हुआ। कहना न होगा कि यह कृति उक्त तमाम एकांगिताओं अथवा प्राचीन भारतीय जीवन के पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित करने की प्रकृति से मुक्त है। लेखक के शब्दों में कहें तो, ‘‘प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना का उद्देश्य प्राचीन भारत में शूद्रों की स्थिति का विस्तृत विवेचन करना मात्र नहीं, बल्कि उसके ऐसे आधुनिक विवरणों का मूल्यांकन करना भी है जो या तो अपर्याप्त आँकड़ों के आधार पर अथवा सुधारवादी या सुधारविरोधी भावनाओं से प्रेरित होकर लिखे गए हैं।’’</p>
<p>संक्षेप में, प्रो. शर्मा की यह कृति ऋग्वैदिक काल से लेकर क़रीब 500 ई. तक हुए शूद्रों के विकास को सुसंबद्ध तरीक़े से सामने रखती है। शूद्र चूँकि श्रमिक वर्ग के थे, अत: यहाँ उनकी आर्थिक स्थिति और उच्च वर्ग के साथ उनके समाजार्थिक रिश्तों के स्वरूप की पड़ताल के साथ–साथ दासों और अछूतों की उत्पत्ति एवं स्थिति की भी विस्तार से चर्चा की गई है।
ISBN: 9789360869922
Pages: 338
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: भारत के नागरिकता अधिनियम में हुए संशोधन (नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019) को लेकर देश भर में बहस शुरू हो गई। इस संशोधन के द्वारा पाकिस्तान, अफगानिस्तान व बँगलादेश से भारत में आ चुके अल्पसंख्यक समुदाय के नागरिकों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। विरोध करनेवाले दो समूह हैं। पहला ऐसा समूह, जो विरोध में अपना राजनीतिक स्वार्थ देखता है। दूसरा ऐसा समूह, जो जानबूझकर या फिर अनजाने में संशोधन को लेकर भ्रम का शिकार हो गया है। वह इस संशोधन को नागरिकों के राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के साथ नत्थी करके देखता है, जबकि दोनों का आपस में कुछ लेना-देना नहीं है। आज सत्तर साल बाद नरेंद्र मोदी ने इस शरणार्थी हिंदू समाज, अफगानी हिंदू-सिख समाज और भारतीय नागरिकता के बीच नेहरू और उनकी पार्टी द्वारा खड़ी की गई दीवार को तोड़ दिया है। यह कांग्रेस द्वारा किए गए भारत विभाजन से उपजे पाप के एक दाग को धोने का ऐतिहासिक फैसला है, लेकिन इसे क्या कहा जाए, कि आज कांग्रेस और मुसलिम लीग मिलकर एक बार फिर पाप की उस दीवार को बचाने का प्रयास कर रही हैं। प्रस्तुत पुस्तक में इस समस्या का भारत विभाजन के परिप्रेक्ष्य में अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।
Chanda Ka Gond Rajya
- Author Name:
Prabhakar Gadre +1
- Book Type:

- Description: भारत के हृदय में स्थित विंध्याचल और सतपुड़ा की उपत्यकाएँ सघन वनों और पर्वत श्रेणियों के कारण प्राचीनकाल से ही दुर्गम रही हैं और भारत के इतिहास में इस क्षेत्र का उपयुक्त ऐतिहासिक विवरण मुश्किल से मिलता है। इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण इस पर उत्तर और दक्षिण की राजनीति का कम ही प्रभाव पड़ा। प्राचीनकाल में यहाँ मौर्यों, सातवाहनों, वाकाटकों, राष्ट्रकूटों, यादवों का आधिपत्य रहा। एक लम्बे अन्तराल के बाद खलजी और तुगलकों ने यादव सत्ता की चूलें हिला दीं। इसके बाद इस क्षेत्र में करीब दो सदियों तक कोई प्रबल सत्ता नहीं रही। दो सदियों के इस अंधकार युग के बाद चाँदा राज्य का उदय हुआ। इस कृति में चाँदा राज्य के उत्थान और पतन का वर्णन करने हेतु नवीनतम सामग्री का उपयोग किया गया है। इस सामग्री में समकालीन और लगभग समकालीन फारसी अखबारात और मराठी पत्रों का स्थान महत्त्वपूर्ण है। इस कृति की विशेषता यह भी है कि चाँदा के गोंड राज्य की वंशावली तथा जल-आपूर्ति व्यवस्था पर इसमें विशेष चर्चा की गयी है जो विभिन्न दृष्टिकोणों से इन विषयों पर प्रकाश डालने का प्रयास करती है। चूँकि मूल फारसी मराठी स्रोतों में तथा सनदों में इसे चाँदा राज्य कहा गया है अतः इस कृति में इसे चाँदा राज्य ही कहा गया है।
Corona Kaal Ki Dansh Kathayen
- Author Name:
Ajay Bokil
- Book Type:

- Description: This book has no description
Akbar Aur Tatkalin Bharat
- Author Name:
Irfan Habib
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Description:
प्रसिद्ध इतिहासकार इरफ़ान हबीब द्वारा सम्पादित यह पुस्तक ऐसे कई महत्त्वपूर्ण अध्ययनों को हमारे सामने रखती है, जिनमें अकबर, उसके साम्राज्य और तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक व आर्थिक वातावरण पर प्रकाश पड़ता है। मध्यकालीन भारतीय इतिहास के अधिकारी विद्वानों द्वारा लिखित इन गवेषणात्मक आलेखों से पाठक चार सदी पूर्व के भारत की राजनीति और सांस्कृतिक स्थिति की जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं।
अकबरकालीन प्रशासनिक व्यवस्था, राजनीतिक इतिहास, धार्मिक रीति तथा विचार, विज्ञान और तकनीकी की स्थिति, समाजार्थिक स्थितियाँ आदि कुछ विषय हैं जिनके बारे में ये निबन्ध हमें प्रामाणिक तथ्य उपलब्ध कराते हैं तथा मौजूदा अवधारणाओं का परिष्कार करते हुए तत्कालीन इतिहास के क्षेत्र में नई चुनौतियों और क्षेत्रों को चिह्नित करते हैं।
आज भारतीय जन-गण के लिए यह जानना भी बहुत ज़रूरी हो गया है कि एक राष्ट्र के रूप में हम एक संगठित राजनीतिक और सांस्कृतिक परम्परा के वारिस हैं। इस अर्थ में भी अकबर का राजनीतिक और सांस्कृतिक विज़न फ़ौरी तौर पर हमारे लिए अत्यन्त उपयोगी साबित हो सकता है।
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