Aher
Author:
SanjeevPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Contemporary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 128
₹
160
Available
वरिष्ठ कथाकार संजीव का यह उपन्यास सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश की एक ऐसी गुत्थी हमारे सामने खोलता है, जो जितनी हैरतअंगेज़ है उतनी ही भयावह भी। मनुष्य ने लाखों साल पहले पेट की भूख शान्त करने के लिए शिकार अर्थात् अहेर करना शुरू किया था। लेकिन सभ्यता-संस्कृति के विकास के साथ-साथ उसने न सिर्फ़ तरह-तरह के साधन और कौशल अर्जित किए, बल्कि तमाम तरह की भूख भी इकट्ठा की—कुछ इस क़दर कि उनकी पूर्ति के लिए आज मनुष्य-समाज स्वयं अहेर और अहेरी—शिकार और शिकारी—में बँट चुका है। यह उपन्यास दिखलाता है कि अहेरी बने लोग अपने हिंस्र चेहरे पर संस्कृति, परम्परा, आस्था, विरासत और मर्यादा के मुखौटे चढ़ाए फिर रहे हैं। उनकी असल चिन्ता अपने वर्चस्व को बनाए रखने और अपने हितों को सुरक्षित रखने की है। इस गहन बनैले वक़्त में क्या कोई बदलाव सम्भव है? इसका जवाब उपन्यास के उन किरदारों से मिलता है जो अहेर के थोथे अभियान से अपने गाँव को मुक्त कराने की पहल करते हैं और जल्द ही अकेले पड़ जाते हैं। उन्हें जान देनी पड़ती है। लेकिन उनकी असफलता उनके परिवर्तनकामी स्वप्न का अन्त नहीं है। एक बेहतर मानवीय समाज के निर्माण को अपने लेखन का उद्देश्य माननेवाले संजीव, इस उपन्यास में उस त्रासदी को भी बख़ूबी रेखांकित करते हैं, जिसमें अहेरी बने घूम रहे लोग ख़ुद भी अहेर बन रहे हैं—अपनी ही व्यर्थ हो चुकी मान्यताओं का, वक़्त से बाहर की जा चुकी परम्पराओं का। विरल ग्रामीण परिवेश में विन्यस्त एक असाधारण कथा को समेटे इस उपन्यास की अत्यधिक पठनीयता को रेखांकित करने के लिए किसी ‘जादुई’ अलंकार की आवश्यकता नहीं है।
ISBN: 9789389598094
Pages: 160
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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