Kursi Pahiyonwali
Author:
Naseema HurjukPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
‘कुर्सी पहियोंवाली’ एक ऐसी विकलांग महिला के जीवन की अन्तरंग कथा है, जिसने अपनी उम्र के आरम्भिक सोलह साल एक स्वस्थ और सामान्य व्यक्ति की तरह बिताए और उसके बाद पक्षाघात से सहसा व्हीलचेयर उसका सम्बल बनी। किसी भी विकलांग व्यक्ति के भीतर इतनी जिजीविषा हो, ऐसा विरले ही दिखाई देता है। आरम्भिक बदहवासी के दौर में आत्महत्या तक कर लेने का विचार था, फिर उससे उबरने की कोशिश और उत्कर्ष! यह एकदम नए सिरे से उठने जैसी परिवर्तनकामी कथा है, जो अपनी विकलांगता की व्यथा को दूसरे विकलांग जन की पीड़ा में परिवर्तित करती है। यह कहानी एक ज़िन्दा स्त्री के संघर्ष की है। नौकरशाहों का विकलांगों के प्रति होनेवाला व्यवहार विश्वास की सीमा से परे अव्यावहारिक एवं अमानवीय रहा है। इसके बरअक्स, नसीमा एक प्रसिद्ध कार्यकर्ता बनकर उभरती हैं। एक बड़ा क़द और रोशनी बनकर सामने आती हैं। वह विकलांगों के लिए आशा की किरण हैं। पहियेवाली कुर्सी पर बैठकर भी वह हम जैसे स्वस्थ जनों को अस्वस्थ, बेचैन कराने की क्षमता रखती हैं।
यह पुस्तक पहले मराठी भाषा में छपी, उसके बाद इसका अनुवाद अंग्रेज़ी, गुजराती, कन्नड़ तथा तेलगू भाषा में हुआ और उपर्युक्त भाषाओं के पाठकों ने इसे बेहद पसन्द किया। हमें विश्वास है, हिन्दी में भी नसीमा की यह कहानी वही अनुभव दोहराएगी।
नसीमा हुरजूक की यह कहानी सिर्फ़ उनके अकेले की नहीं, बल्कि भारत के अनगिनत विकलांग जन का सच बयान करती है। इस क्रम में नसीमा एक बेहद अलग और निराला व्यक्तित्व हैं। उन्होंने विकलांगता के बावजूद न केवल अपने जीने की राह बनाई, बल्कि वह अपने चरम उत्कर्ष तक पहुँचीं। उन्होंने दूसरे विकलांग लोगों के सामने एक मिसाल रखी और उन सबको पाठ पढ़ाया।
—जावेद आबिदी; निदेशक, ‘डिसेबल्ड राइट्स ग्रुप’
मैं अपने जीवन में नसीमा जैसी किसी महिला से पहले कभी नहीं मिला। उन्होंने अपने तथा दूसरों के जीवन के उत्कर्ष की राह में अपनी विकलांगता को पूरी तरह बेमानी कर दिया। उन्होंने विकलांगता को एकदम नई नज़र से देखा और मंत्र दिया, ‘...कि तुममें कोई कमी नहीं है, बस, तुम दूसरों से अलग हो...’ सचमुच, यह बहुत ही प्रेरक और अनुकरणीय पुस्तक है।
—अनन्त दीक्षित; सम्पादक ‘दैनिक लोकमत’, पुणे
ISBN: 9789388753944
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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इस पुस्तक में हिन्दी के शीर्षस्थ कथाकार अमरकान्त के संस्मरणों, आलेखों तथा साक्षात्कारों को संकलित किया गया है जो अत्यन्त दिलचस्प एवं महत्त्वपूर्ण हैं। इन रचनाओं में एक बड़े लेखक की परिवेश तथा सृजन-सम्बन्धी परिस्थितियों और संघर्ष-कथा के साथ, उन अग्रजों एवं साथी लेखकों को आदर और आत्मीयता के साथ याद किया गया है जिनसे उन्हें प्रेरणा, प्रोत्साहन और स्नेह मिला।
यहाँ प्रगतिशील आन्दोलन तथा नई कहानी आन्दोलन की वे घटनाएँ, बहसें और विवाद भी हैं, जिनसे कभी साहित्य जगत् हिल गया था। परन्तु अमरकान्त जी ने इन आन्दोलनों की विशेषताओं और उपलब्धियों के साथ, उनके अन्तर्विरोधों तथा दुर्बलताओं का तर्क-सम्मत विश्लेषण भी प्रस्तुत किया है और परिवर्तित समय में कहानी तथा प्रगतिशील लेखन की नई भूमिका को भी रेखांकित किया है।
इन रचनाओं के बीच कहानी लेखन की ओर प्रेरित करनेवाले अमरकान्त जी के शिक्षक बाबू राजेश प्रसाद तथा डॉ. रामविलास शर्मा हैं। इनके साथ भैरवप्रसाद गुप्त, प्रकाशचन्द्र गुप्त, शमशेर, मोहन राकेश, अमृत राय, रांगेय राघव, नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर, शेखर जोशी आदि के अनूठे संस्मरण भी हैं। निश्चय ही प्रत्येक हिन्दी लेखक तथा साहित्य-प्रेमी पाठक के लिए यह जानना ज़रूरी है कि साहित्य-इतिहास के इन प्रतिष्ठित रचनाकारों के सम्बन्ध में अमरकान्त क्या सोचते हैं।
मूल्यांकन की नई दृष्टि, हिन्दी के कथा-परिदृश्य पर डाली गई रोशनी और जीवन्त कथा-शैली के कारण यह संकलन जहाँ साहित्यिक कृति के रूप में उत्कृष्ट है, वहीं ऐतिहासिक दस्तावेज़ की तरह मूल्यवान भी।
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