Ramanand Sagar Ke Jeevan Ki Akath Kahani
Author:
Prem SagarPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Unavailable
25 जनवरी, 1987 को ‘रामायण’ के पहले एपिसोड के प्रसारण के साथ ही भारतीय टेलीविजन हमेशा-हमेशा के लिए बदल गया। कुछ ही सप्ताह में पूरा देश इस सीरीज के आकर्षण में बँध गया। ‘रामायण’ के प्रसारण के दौरान सड़कें सूनी हो जाती थीं। सीरियल के समय पर न तो शादियाँ रखी जाती थीं, न राजनीतिक रैलियाँ। आज, तीन दशक बाद भी ऐसा कुछ नहीं जो उसका मुकाबला कर सके।
इस अद्भुत घटना के सूत्रधार और बॉम्बे के सफल फिल्म निर्माता रामानंद सागर टेलीविजन की बेहिसाब क्षमता को पहचानने वाले कुछ प्रारंभिक लोगों में शामिल थे। पहली बार उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा राज कपूर की ‘बरसात’ (1949) के लेखक के रूप में मनवाया था। सन् 1961 से 1970 के दौरान सागर ने लगातार छह सिल्वर जुबली हिट्स लिखीं, प्रोड्यूस और डायरेक्ट कीं—‘घूँघट’, ‘जिंदगी’, ‘आरजू’, ‘आँखें’, ‘गीत’ और ‘ललकार’।
‘रामानंद सागर के जीवन की अकथ कहानी’, उनके पुत्र, प्रेम सागर की लिखी पुस्तक है, जो एक पुरस्कृत सिनेमेटोग्राफर हैं। यह पुस्तक एक दूरदर्शी के जीवन पर गहराई से नजर डालती है। इसमें 1917 में कश्मीर में सागर के जन्म और फिर 1947 में जब पाकिस्तानी कबाइलियों ने राज्य पर हमला किया तो किसी प्रकार वहाँ से बचकर निकलने से लेकर उनके बॉम्बे आने और उनके गौरवशाली कॅरियर का वर्णन है, जिसके सिर पर कामयाबी के ताज के रूप में ‘रामायण’ धारावाहिक की ऐतिहासिक सफलता सजी है।
ISBN: 9789390378418
Pages: 348
Avg Reading Time: 12 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Mera Pariwar
- Author Name:
Mahadevi Verma
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक में महादेवी वर्मा जी ने कुछ विशिष्ट मानवेतर प्राणियों के प्रति अपनी जिस सहज, सौहाद्र और एकांत आत्मीयता की अभिव्यंजना का जो अपूर्व कला-कौशल अपने इन चित्रों में व्यक्त किया है, वह केवल उनकी अपनी ही कला की विशिष्टता की दृष्टि से नहीं वरन् संसार-साहित्य की इस कोटि की कला के समग्र क्षेत्र में भी बेमिसाल और बेजोड़ हैं। ये कृतियाँ मानवीय भावज्ञता, संवेदना और कलात्मक प्रतिभा के अपूर्व निदर्शन की दृष्टि से शाब्दिक अर्थ में अपूर्व ओर अद्भुत कलात्मक चमत्कार के नमूने हैं।
S.D. Burman: The Prince Musician
- Author Name:
Balaji Vittal +1
- Book Type:

- Description: SD, or Sachin Dev Burman, is arguably the most mysterious figure in Indian film history, credited with shaping the grammar of Hindi film music. As a young heir of the Tripura royal family, he ventured into cinema and popular music amidst challenging times. His unconventional career choices and marriage to a 'commoner' led to family ostracism, and despite formal training, he faced rejection. This detailed biography honors his artistry and investigates what made his music exceptional. It goes beyond listing hits, revealing little-known stories behind classics like 'Mera sundar sapna beet gaya' (Do Bhai, 1948), 'Thandi hawaein' (Naujawan, 1951), and others. The book offers insights into SD's life, work, and understanding of Hindi cinema. Though he was an outsider with limited Hindi and Urdu, he introduced Sahir Ludhianvi to the world and recognized Kishore Kumar's talent. His adaptability to modern sounds, belief in Lata Mangeshkar's virtuosity, close ties with Dev Anand, and controversies over nepotism and plagiarism highlight his complex persona. S.D. Burman: The Prince-Musician provides unique insights into one of India's greatest composers and a vital chapter in cinematic history, making it essential for every film music enthusiast.
HAMARE ATALJI
- Author Name:
Prabhat Jha
- Book Type:

- Description: "पिछले सात दशक की राजनीति में भारत में एक व्यक्तित्व उभरा और देश ने उसे सहज स्वीकार किया। जिस तरह इतिहास घटता है, रचा नहीं जाता; उसी तरह नेता प्रकृति प्रदत्त प्रसाद होता है, वह बनाया नहीं जाता बल्कि पैदा होता है। प्रकृति की ऐसी ही एक रचना का नाम है पं. अटल बिहारी वाजपेयी। अटलजी के जीवन पर, विचार पर, कार्यपद्धति पर, विपक्ष के नेता के रूप में, भारत के जननेता के रूप में, विदेश नीति पर, संसदीय जीवन पर, उनकी वक्तृत्व कला पर, उनके कवित्व रूपी व्यक्तित्व पर, उनके रसभरे जीवन पर, उनकी वासंती भावभंगिमा पर, जनमानस के मानस पर अमिट छाप, उनके कर्तृत्व पर एक नहीं अनेक लोग शोध कर रहे हैं। आज जो राजनीतिज्ञ देश में हैं, उनमें अगर किसी भी दल के किसी भी नेता से किसी भी समय अगर सामान्य सा सवाल किया जाए कि उन्हें अटलजी कैसे लगते हैं? तो सर्वदलीय भाव से एक ही उत्तर आएगा—‘उन जैसा कोई नहीं!’ इस पुस्तक में अटलजी की मस्ती हमारी और आपकी सुस्ती को सहज भगा देगी। इन अनछुए पहलू में प्रेरणा, प्रयोग, प्रकाश, परिणाम, परिश्रम, परमानंद, प्रमोद, प्रकल्प, प्रकृति, प्रश्न, प्रवास और साथ ही साथ जीवन कैसे जिया जाता है, कितने प्रकार से जीया जाता है? आनंद को भी आनंद से आनंदित करने के लिए कितने प्रकार के आनंद की आवश्यकता होती है, इस संस्मरणों में उसका भी आनंद लिया जा सकता है। अटलजी के संपूर्ण जीवन का दिग्दर्शन कराती प्रेरणाप्रद पुस्तक ‘हमारे अटलजी’।"
Aaine Ke Samne
- Author Name:
Atia Dawood
- Book Type:

-
Description:
अतिया दाउद पाकिस्तान की मशहूर लेखिका एवं एक्टिविस्ट हैं और यह किताब ‘आईने के सामने’ उनकी आपबीती है।
सच है कि ज़िन्दगी गुज़ारने से ज़्यादा तकलीफ़देह गुज़री हुई ज़िन्दगी को दोहराना होता है। स्वयं अतिया के शब्दों में—‘‘वो सब लिखते ही उसके बारे में सोचने में ख़ुद अपने जिस्म से निकलकर माज़ी के उस मंज़र में आकर ठहर जाती थी।...हर अज़ीयतनाक मंज़र इसी तरह से मुझ पर बीता फिर से...और मैं फूट-फूटकर रोई हूँ, तड़पी हूँ, जुदाई की आग में जली हूँ।’’
यह किताब गाँव की उस छोटी-सी बच्ची की कहानी है जो फ़क़ीरों और भिखारियों की मदद करने के लिए धूप में धूल के पीछे भागती है और जिसे उस मासूम उम्र में ही सुनना पड़ता है—‘‘मेरी मासूम यतीम बेटी, अपने बाप की शक्ल आख़िरी बार देख लो।’’ जो कम उम्र में ही अपनी माँ की ममता से भी महरूम हो जाती है लेकिन ज़िन्दगी चलती रहती है और कहानी जारी रहती है। यह किताब उस औरत की कहानी है जो पारम्परिक, दकियानूसी और ख़स्ताहाल समाज में जन्म लेती है और क़दम-क़दम पर ठोकरें खाती हुई गिरती-सँभलती अपनी मर्ज़ी से अपनी ज़िन्दगी जीने का फ़ैसला लेती है।
बचपन की मस्ती, खेल, भाई-बहन, ख़ानदान, शिक्षा-दीक्षा, नौकरी, मोहब्बत और निकाह, अदबी संगत, एक्टिविस्टिक गतिविधियाँ और डब्ल्यू.ए.एफ़. से वाबस्तगी आदि की कई संवेदनशील यादें इस किताब में क़लमबंद हैं। दरअसल यादों का एक बड़ा क़ब्रिस्तान है यहाँ और बहुत सन्नाटा है, गूँजता हुआ। यादों की क़ब्रें हद्देनज़र तक फैली हुई हैं और अतिया की झोली में ढेर सारे फूल हैं और यह वाजिब चिंता भी कि कट्टरपंथियों के वहशी दौर में एक बच्ची को आसानी से अपना जीवन जीने का हौसला रखनेवाली औरत बनने के लिए कितना दर्द सहना पड़ेगा एवं कितना दौड़ना पड़ेगा और यह दुआ भी कि ये लड़की, काश, कभी मंज़र से ओझल हो।
Naye Daur Ki Ore
- Author Name:
Kishore Biyani
- Book Type:

- Description: नए दौर की ओर’ भारतीय ग्राहक तथा फ्यूचर ग्रुप, बिग बाजार एवं पैंटलून्स की किशोर बियानी के अपने शब्दों में लिखी कहानी है। एक मध्यवर्गीय परिवार में जनमे किशोर बियानी ने ‘स्टोन वॉश’ कपड़े को रिटेल व्यापारियों को बेचने से अपने व्यापारिक जीवन की शुरुआत की। कुछ ही वर्षों में पैंटलून्स, बिग बाजार, फूड बाजार, सेंट्रल और अन्य कई रिटेल मॉडल शुरू कर उन्होंने भारतीय रिटेल व्यापार को एक नया आयाम और नई दिशा दी। किशोर बियानी की कोशिश रही कि वे मुंबई के निवेशक से लेकर मेरठ के किसान तक की जेब में रखे हर नए पैसे को अपने रिटेल व्यापार की तरफ आकर्षित कर सकें। बियानी शॉपिंग मॉल बनाने एवं उपभोक्ता ब्रांड्स बनाने से बीमा बेचने तक, हर उस क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं जहाँ उपभोक्ता है और पैसा खर्च करता है। ‘नए दौर की ओर’ में सिर्फ उनके शब्द ही नहीं हैं, बल्कि इस उतार-चढ़ाव की यात्रा में उनके मित्र, सहयोगी, पार्टनर, परिवार के सदस्यों की राय एवं संस्मरण शामिल हैं। ‘रिटेल के राजा’ के रूप में प्रसिद्ध किशोर बियानी अनेक पुरस्कारों एवं सम्मानों से विभूषित हुए हैं। पैंटलून्स को अमेरिका के नेशनल रिटेल फेडरेशन ने ‘अंतरराष्ट्रीय रिटेलर-2007’ से सम्मानित किया है। ‘नए दौर की ओर’ दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास एवं अदम्य इच्छाशक्ति से सपने सच करने की कहानी है और ‘नियमों को बदलो—मूल्यों को बनाए रखो’ मंत्र का सजीव चित्रण है।
Dard Jo Saha Maine
- Author Name:
Aasha Apraad
- Book Type:

-
Description:
‘दर्द जो सहा मैंने...’ आशा आपराद की आत्मकथा है। ‘एक भारतीय मुस्लिम परिवार’ में जन्मी ऐसी स्त्री की गाथा जिसने बचपन से स्वयं को संघर्षों के बीच पाया। संघर्षों से जूझते हुए किस प्रकार आशा ने शिक्षा प्राप्त की, परिवार का पालन-पोषण किया, अपने घर का सपना साकार किया—यह सब इस पुस्तक के शब्द-शब्द में व्यंजित
है।अपनी माँ से लेखिका को जो कष्ट मिले, उनका विवरण पढ़कर किसी का भी मन विचलित हो सकता है। लेकिन पिता का स्नेह इस तपते रेतीले सफ़र में मरुद्यान की भाँति रहा। इस आत्मकथा में आशा आपराद ने जीवन की गहराई में जाकर और भी अनेक रिश्ते-नातों का वर्णन किया है।
सुख-दुःख, मिलन-बिछोह और अभाव-उपलब्धि के धागों से बुनी एक अविस्मरणीय आत्मकथा है ‘दर्द जो सहा मैंने...’
‘मनोगत’ में आशा आपराद ने लिखा है : “मेरी किताब सिर्फ़ ‘मेरी’ नहीं, यह तो प्रातिनिधिक स्वरूप की है, ऐसा मैं मानती हूँ। हमारा देश तो स्वतंत्र हुआ लेकिन यहाँ का इंसान ‘ग़ुलामी’ में जी रहा है। अगर यह सच न होता तो आज भी औरतों को, पिछड़े वर्ग को, ग़रीब वर्ग को अधिकार और न्याय के लिए बरसों तक झगड़ना पड़ता क्या! आज भी स्त्रियों पर अनन्त अत्याचार होते हैं। दहेज के लिए आज भी कितनों को जलना पड़ता है। बेटी पैदा होने से पहले ही उसे गर्भ में ‘मरने का’ तंत्र विकसित हो गया है। मैं चाहती हूँ, जो स्त्री-पुरुष ग़ुलामी का दर्द, अन्याय सह रहे हैं, शोषित हैं, अत्याचार में झुलस रहे हैं, उन सबको अत्याचार के विरोध में लड़ने की, मुक़ाबला करने की शक्ति प्राप्त हो, बल प्राप्त हो।”
निश्चित रूप से यह आत्मकथा प्रत्येक पाठक को प्रेरणा प्रदान करेगी।
मराठी से हिन्दी में अनुवाद स्वयं आशा आपराद ने किया है। जो अपने मराठी आस्वाद के चलते एक अद् भुत पाठकीय अनुभव प्रदान करता है।
Hashimpura 22 May
- Author Name:
Vibhuti Narayan Rai
- Book Type:

-
Description:
साल 1987; दिन 22 मई; समय तक़रीबन आधी रात। ग़ाज़ियाबाद से सिर्फ़ पन्द्रह-बीस किलोमीटर दूर मकनपुर गाँव की नहर के किनारे आज़ाद भारत का सबसे भयावह हिरासती हत्याकांड हुआ था। पी.ए.सी. ने मेरठ के हाशिमपुरा मुहल्ले से उठाकर कई दर्जन मुसलमानों को यहाँ नहर की पटरी पर लाकर मार दिया था। विभूति नारायण राय उस समय गाजियाबाद के पुलिस कप्तान थे।
यह पुस्तक लेखक द्वारा उसी समय लिए गए एक संकल्प का नतीजा है, जब वे धर्मनिरपेक्ष भारत की विकास-भूमि पर अपने लेखकीय और प्रशासनिक जीवन के सबसे जघन्य दृश्य के सम्मुख थे। साम्प्रदायिक दंगों की धार्मिक-प्रशासनिक संरचना पर गहरी निगाह रखनेवाले, और ‘शहर में कर्फ़्यू’ जैसे अत्यन्त संवेदनशील उपन्यास के लेखक विभूति जी ने इस घटना को भारतीय सत्ता-तंत्र और भारतवासियों के परस्पर सम्बन्धों के लिहाज़ से एक निर्णायक और उद्घाटनकारी घटना माना और इस पर प्रामाणिक तथ्यों के साथ लिखने का फ़ैसला लिया जिसका नतीजा यह पुस्तक है।
यह सिर्फ़ उस घटना का विवरण भर नहीं है, उसके कारणों और उसके बाद चले मुक़दमे और उसके फ़ैसले के नतीजों को जानने की कोशिश भी है। इसमें दु:ख है, चिन्ता है, आशंका है, और उस ख़तरे को पहचानने की इच्छा भी है जो इस तरह की घटनाओं के चलते हमारे समाज और देश की सामूहिकता के सामने आ सकता है—घृणा, अविश्वास और हिंसा का चहुँमुखी प्रसार।
उम्मीद करते हैं कि इस किताब को पढ़ने के बाद हम एक सभ्य नागरिक समाज के रूप में अपने आस-पास पसरते इस ख़तरे के प्रति सतर्क होंगे और इसे रोकने का संकल्प लेंगे, जिसके कारण हाशिमपुरा जैसे कांड वैधता पाते हैं।
Ek Oonchi Udaan
- Author Name:
Seetha +1
- Book Type:

- Description: द एस्कॉर्ट्स ग्रुप भारत के जाने-माने औद्योगिक घरानों में से एक है। इसने अपने पचहत्तर वर्षों के इतिहास में कई दुरूह असफलताओं का सामना किया। सन् 1944 में एच.पी. नंदा ने लाहौर में एस्कॉर्ट्स की स्थापना की, जिसे विभाजन का शिकार होना पड़ा। यह फिर से अपने पैरों पर खड़ी हुई, दिल्ली के निकट फरीदाबाद में अपना निर्माण बेस तैयार किया। आनेवाले वर्षों में यह फोर्ड, जे.सी.बी. और यामहा जैसे शीर्षस्थ वैश्विक खिलाडि़यों से जुड़ी। 80 के दशक में इसकी ‘राजदूत बाइक्स’ ने हलचल मचा दी थी, परंतु वही दशक ब्रिटेन के टाइकून स्वराज पॉल की ओर से टेकओवर करने की साजिश का भी साक्षी रहा, जो कंपनी के जीवन में किसी स्तब्धकारी प्रसंग से कम न था। 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद राजन नंदा ने अनेक पहलों के साथ व्यवसाय की बागडोर सँभाली। वे एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट और टेलीफोनी बिजनेस के साथ सेवा क्षेत्र में आगे आए। परंतु कुछ गलत कदम उठाने के कारण ग्रुप को इन क्षेत्रों से बाहर आना पड़ा। एक समय पर वित्तीय संकट इतना अधिक हो गया था कि बिजली के बिलों का भुगतान न हो पाने के कारण कार्यालय की बिजली काट दी गई थी। तब से अब तक कंपनी ने निखिल नंदा के नेतृत्व में उल्लेखनीय प्रदर्शन कर शानदार वापसी की है। एग्री-मशीनरी, निर्माण और रेलवे उपकरण के क्षेत्रों में भारी सफलता के साथ एस्कॉर्ट्स ने 2019 में अपने उच्चतम लाभ दर्ज किए, जो 400 करोड़ का कर चुकाने के बाद हुए थे। अब यह इनोवेशन विद्युत् विकास, ऑटोनोमस और हाइब्रिड टैक्टर्स व ट्रैक्सी (किसानों के लिए उबर) जैसी सेवाओं का नेतृत्व कर रही है। ‘एक ऊँची उड़ान’ नामक पुस्तक बताती है कि यह सब कैसे संभव हुआ। श्रेष्ठ व्यावसायिक अभ्यास अपनाए गए, सही लोगों को उचित भूमिका दी गई, डीलरों, सप्लायरों और ग्राहक-किसानों के साथ संबंधों पर कार्य किया गया। यह व्यवसाय प्रबंधन का आँखें खोल देनेवाला एक ऐसा दस्तावेज है, जिसमें इस क्षेत्र से जुड़े लोगों, पेशेवरों व प्रबंधन छात्रों के लिए कई सबक छिपे हैं, ताकि वे समझ सकें कि कैसे सबकी चहेती विशिष्ट भारतीय कंपनी को पुनर्जीवित कर इसे सफलता की एक ऊँची उड़ान दी गई।
Rahul Bajaj : An Extraordinary Life
- Author Name:
Gita Piramal
- Rating:
- Book Type:

- Description: Integrity and character matter. Without them, no amount of ability can get you anywhere. In addition, you need courage–courage to make difficult decisions and courage to oppose something if your conscience tells you that you are right’–Rahul Bajaj Rahul Bajaj is a billionaire businessman, the chairman emeritus of the Bajaj Group and a former member of Parliament. This book is not just the story of Rahul Bajaj but the story of India. The author takes us through the country’s transformation from the time Rahul Bajaj’s mother was imprisoned during the freedom struggle to the prism of his eventful life. Based on unrestricted interviews, the book is full of anecdotes, business learnings and political asides. It is, at its core, a moving human story.
Banda Singh Bahadur
- Author Name:
Maj Gen Suraj Bhatia
- Book Type:

- Description: "बंदा बहादुर ने अपना प्रारंभिक जीवन एक वैरागी के रूप में बिताया। यह लगभग सत्रह वर्ष चला। अधिकांश समय उन्होंने दक्षिण भारत में गोदावरी नदी पर स्थित नंदेड़ नामक नगर में अपने आश्रम में तपश्चर्या करते बिताया। उन्होंने हिंदू शास्त्रों तथा योग एवं प्राणायाम विद्याओं का गहन अध्ययन किया। कुछ लोग मानते हैं कि वे तंत्र विद्या के भी ज्ञाता थे। गुरु गोविंद सिंह ने उन्हें गले से लगाया, उन्हें अमृत छकाकर सिख बनाया, उनका नाम बंदा सिंह बहादुर रखा और उन्हें पंजाब से मुगल राज्य की जड़ें उखाड़ फेंकने की जिम्मेदारी सौंपी। इसके बाद उन्होंने पंजाब में मुगलों के शहर, गढ़ और किले आक्रमण करके अपने अधीन करने का कार्यक्रम शुरू किया। बंदा ने ऐलान किया कि वे जमींदारों को हटाकर सभी जमीन खेतिहर गरीब किसानों में बाँटेंगे। महमूद गजनी और मुहम्मद गौरी के दिनों के बाद इतनी सदियाँ बीत जाने के बाद पहली बार उत्तर भारत में किसी गैर-मुसलमानी शक्ति ने एक बड़े और बेशकीमती भू-भाग पर अपना आधिपत्य जमाया। अंततः मुगलों ने बंदा बहादुर को पकड़कर बेडि़यों में डाल लोहे के पिंजड़े में बंद कर दिया गया। हथकडि़यों और पाँव की साँकलों में बंदा को महीनों तक जेल में बंद रख, मुसलमान जल्लादों के हाथों जो अमानवीय यातनाएँ दी गईं, वे अनुमान और कल्पना से परे हैं। वीर, क्रांतिकारी, हुतात्मा, धर्मपारायण, राष्ट्रनिष्ठ वीर बंदा सिंह बहादुर की जाँबाजी और पराक्रम का गौरवगान करती यह पुस्तक हर राष्ट्राभिमानी के लिए पढ़नी आवश्यक है। "
Manto : Ek Badnam Lekhak
- Author Name:
Vinod Bhatt
- Book Type:

- Description: उर्दू साहित्य में मंटो ही सबसे ज़्यादा बदनाम लेखक है। सबसे बड़ा गुनाह यह कि वह समय से पिचहत्तर साल पहले पैदा हुआ। साथ ही उसने समय से पहले मरकर हिसाब बराबर कर दिया। उस समय उसने जो कुछ लिखा, वह अगर आज लिखा होता तो उसकी एक भी कहानी पर अश्लीलता का मुक़दमा नहीं चला होता। उसमें भरपूर आत्मविश्वास था। वो जो कुछ भी लिखता, जैसे सुप्रीम कोर्ट का आख़िरी फ़ैसला। कोई चुनौती दे तो वो सुना देता। उसकी कहानियों में वेश्याओं के दलाल पात्रों के वर्णन के बारे में किसी ने मंटो से कहा— ‘रेडियो के दलाल जैसे आप बनाते हैं, वैसे नहीं होते।’ मंटो ने तीक्ष्ण दृष्टि से देखते हुए कहा—‘वो दलाल खुशिया मैं हूँ।’...और यह जानकर हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार देवेन्द्र सत्यार्थी ने निःश्वास छोड़ते हुए कहा—‘काश मैं खुशिया होता...।’ मंटो की निजी पसन्द-नापसन्द अत्यन्त तीव्र होती थी। मृत व्यक्ति की बस तारीफ़ ही की जानी चाहिए, मंटो ऐसा नहीं मानता था। उसका एक विचार-प्रेरक कथन है—ऐसी दुनिया, ऐसे समाज पर मैं हज़ार-हज़ार लानत भेजता हूँ, जहाँ ऐसी प्रथा है कि मरने के बाद हर व्यक्ति का चरित्र और उसका व्यक्तित्व लांड्री में भेजा जाए, जहाँ से धुलकर, साफ़-सुथरा होकर वह बाहर आता है और उसे फ़रिश्तों की क़तार में खूँटी पर टाँग दिया जाता है।
Rahul Vangmaya Jeevani Aur Sansmaran Part-2 (4 Vols)
- Author Name:
Rahul Sankrityayan
- Book Type:

- Description: राहुल जी ने जो जीवनियाँ लिखीं, उनमें से अधिकांश के चरित नायक उनके घनिष्ठ रहे हैं। इस नाते वे उन चरित नायकों के जीवन के क्रमिक विकास, उनके बचपन, शिक्षा, व्यक्तिगत विशेषताओं, सामाजिक-राजनीतिक सम्बन्धों आदि का तथ्यपरक विवेचन प्रस्तुत कर सके हैं। दूसरी ओर ऐसे जननायकों की जीवनियाँ हैं, जिनके विचारों और चारित्रिक विशेषताओं से प्रभावित होकर, उनके विषय में विशेष रूप से पढ़-पढ़कर उन्होंने लिखा। इस भाग में संकलित ‘स्तालिन’ साम्यवादी व्यवस्था को आर्थिक रूप से मज़बूत करने और उसे फासिस्टवाद के घातक संकट से पार कराने का महत्त्वपूर्ण कार्य करनेवाले व्यक्ति स्तालिन की जीवन-कथा है। स्तालिन का जीवन पुराने युग के विनाश और नए युग के विकास की कहानी है। सर्वहारा के दृढ़ वर्ग-संघर्ष, सर्वहारा की वर्गीय पार्टी के गठन, पार्टी के नेतृत्व में सर्वहारा वर्ग, किसानों तथा अन्य मेहनतकश जनता की एकता, रूस में पूँजीवाद और साम्राज्यवाद के अन्त, खेती के सामूहिकीकरण आदि स्तालिन के जीवन के महत्त्वपूर्ण कार्यों के साथ ही रूस की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थितियों का सजीव अंकन राहुल जी ने इस कृति में किया है। ‘माओ-चे-तुंग’ चीन के राष्ट्रनायक, जनवादी चीनी गणतंत्र के संस्थापक एवं जननेता की जीवनी है। माओ ने 'लांग मार्च’ करके, अनेक कष्ट सहन करके अन्त में चीन को निरंकुश शासक के अत्याचारों से मुक्त कराया। इस चरित-नायक के देश-प्रेम, क्रान्तिकारी जीवन-दर्शन, त्याग एवं बलिदान को राहुल जी ने घटनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। माओ-चे-तुंग के जन्म, उनके बचपन, तरुणाई में ही राजनीतिक सक्रियता, चीन की क्रान्तिकारी सेना में प्रवेश, मंचू राजवंश के विरुद्ध विद्रोह, कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना का अत्यन्त सटीक वर्णन इस पुस्तक में हुआ है।
Lokraja Shahu Chhatrapati
- Author Name:
Ramesh Jadhav
- Book Type:

-
Description:
राजर्षि शाहू छत्रपति (1874-1922) कोल्हापुर रियासत के अधिपति थे। अपने अल्पकाल के राज्यशासन में प्रगतिशील सुधारों से आप ‘लोकराजा’ बने। मराठा इतिहास के विशेषज्ञ डॉ. रमेश जाधव ने अपने अनुसन्धान को आधार बनाकर इन्हीं लोकराजा का चरित्र लिखा।
‘लोकराजा शाहू छत्रपति’ ग्रन्थ राजर्षि शाहू छत्रपति के जीवन, कार्य एवं विचारों की जीवन्त व प्रामाणिक कथा अभिव्यक्त करता है। महाराष्ट्र में बीसवीं सदी के प्रारम्भ में अछूतोद्धार, नारी शिक्षा, निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, अन्तरजातीय विवाह, कृषि सुधार, सहकारिता, छात्रावासों की निर्मिति से विभिन्न समुदायों के मध्य समन्वय, कला-क्रीड़ा-संस्कृति उपक्रमों को बढ़ावा इत्यादि प्रजाहितैषी कार्यों से राजर्षि शाहू छत्रपति भारतवर्ष के लिए अनुकरणीय बने। उत्तर प्रदेश में उनकी स्मृति में ज़िला एवं विश्वविद्यालय का निर्माण, संसद भवन में उनकी प्रतिमा की स्थापना उनके सामाजिक कार्यों की महत्ता को रेखांकित करते हैं।
सामाजिक न्याय को सर्वोच्च जीवनमूल्य माननेवाले ‘लोकराजा शाहू छत्रपति’ के इस जीवन चरित को जीवनी लेखन के क्षेत्र में पर्याप्त प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है। मराठी से हिन्दी में अनुवाद करते हुए प्रो. शरद कणबरकर ने संवेदना और भाषिक संरचना का विशेष ध्यान रखा है। इस जीवनी को पढ़ना व्यापक सामाजिकता में प्रवेश करना है।
SBI Ki Shikhar Gatha
- Author Name:
Rajesh Chakrabarti
- Book Type:

- Description: "SBI की शिखर गाथा यह कहानी है सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक की, जो दरशाती है कि परिवर्तन अभी भी हो सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी भरोसा किए जाने और ललकारे जाने पर, प्रोत्साहनों एवं बोनस आदि के बिना भी, किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की सफलता की यह कहानी दरशाती है कि सार्वजनिक उपक्रमों को न विशेष प्रोत्साहन की जरूरत है और न अनावश्यक आलोचना की। इन्हें झिड़कने या इन पर दया दिखलाने की भी कोई जरूरत नहीं है। एस.बी.आई. के कायापलट की कहानी इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि मानव की कर्मठता एवं दृढ़निष्ठा व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से क्या कुछ हासिल कर सकती है। कुछ कर दिखाने का जोश पैदा करने में धन की कोई महत्ता नहीं है। नेतृत्व का अर्थ है आशावादी होना, सकारात्मक सपने बुनना; और सबसे अहम बात कि टीम चाहे जितनी बड़ी हो, टीम के सदस्यों को गर्व और अपनी पहचान का एहसास कराना। जो अपने-अपने संगठनों में क्रांतिकारी सकारात्मक परिवर्तन लाने का इरादा रखते हैं, जिन संगठनों को व्यावसायिक जगत् में कभी गौरवशाली स्थान प्राप्त था, पर जो आज कड़ी प्रतिस्पर्धा एवं परिवर्तनों के मकड़जाल में घिर गए हैं, उन संगठनों का नेतृत्व स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से सबक लेकर अपनी प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने का जोश जगा सकता है। विपरीत परिस्थितियों में यथोचित परिवर्तन कर सफलता के शिखर छूने की कहानी है यह पुस्तक, जो प्रबंधकों और कर्मियों को समान रूप से प्रेरित करेगी। "
Swaminathan : Ek Jeewani
- Author Name:
Jitendra Srivastava
- Book Type:

-
Description:
अप्रतिम व्यक्ति और चित्रकार जगदीश स्वामीनाथन को यह दुनिया छोड़े हुए कोई पच्चीस वर्ष होने को आए, पर दुनिया ने उनको नहीं छोड़ा है। छोड़ेगी भी नहीं। उनका व्यक्तित्व और कामकाज है ही ऐसा कि जब-जब भारतीय कला की बात होगी, बीसवीं शती की कला की विशेष रूप से, वे याद किए जाएँगे। स्वामीनाथन ने बड़ी गम्भीरता से, साहस से, कई मोर्चों पर लड़ाई लड़ी है, इस बात की कि कला-रचना के साथ-साथ, कला-चिन्तन, कला-विमर्श, बेहद महत्त्व के हैं, कि बिना प्रश्नांकनों, विचारों, और बहसों के हम वह रचनात्मक वातावरण बना ही नहीं पाएँगे, जिसमें 'रचना' मात्र के प्रति उत्तेजना हो, अनुसन्धानी भाव हो, और हो वह दृष्टि जो बहुत कुछ को सम्यक् ढंग से परख सकती हो। एक कलाकार और कला चिन्तक तथा अत्यन्त जि़न्दादिल, सरस, व्यंग्य-विनोदी, हँसी-ठट्ठा करनेवाले, सबके बीच जानेवाले, सबके साथ रहनेवाले, सबका साथ चाहनेवाले व्यक्ति की जीवनी लिखने में, स्वामी के इन दोनों रूपों को साधने में, एक बड़ी चुनौती पेश आनी ही थी—क्योंकि दोनों एक-दूसरे में गुँथे हुए भी तो हैं। और उन्हें आसपास रखना ही था—दोनों रूपों को। तो, यथासमय, यथास्थान, उनके इन दोनों रूपों को विन्यस्त किया गया है। और उनके जीवन के ज़रूरी तथ्यों के साथ, उनके विचारों के फलित-प्रतिफलित होने की कथा भी कही गई है। यह स्वामी की पहली जीवनी तो है ही, उन पर आनेवाली पहली पुस्तक भी है। जीवनी को किसी क्रमागत रूप में नहीं लिखा गया—वैसा करना असम्भव भी था, स्वामी के अपने व्यक्तित्व और अपनी ही जीवन शैली के कारण—वे शायद उस रूप में जीवनी का लिखा जाना पसन्द भी न करते। सो, एक 'औपन्यासिक' ढंग से, कथा कहनेवाले अन्दाज़ में, उनके जीवन की बहुत-सी बातें कभी सीधे, कभी 'फ़्लैश बैक' में, कभी जो जहाँ उचित लगे जगह बना ले, वाली शैली में दर्ज हुई हैं। उम्मीद है, जीवनी सुधी पाठकों को रुचिकर लगेगी, और उपयोगी भी।
—प्रस्तावना से
''जगदीश स्वामीनाथन मूलत: तमिलभाषी होते हुए भी उत्तर भारत में पले-बसे एक मूर्धन्य भारतीय चित्रकार थे जिन्होंने चित्र बनाए, हिन्दी में कविताएँ लिखीं, अंग्रेज़ी में कलालोचना लिखी। वे अपने समय के लगभग सबसे प्रश्नवाची कला-चिन्तक थे जिन्होंने कला के बारे में मूल प्रश्न उठाए और सामयिक प्रश्न भी। भारत भवन में उन्होंने 'रूपंकर' कला-संग्रहालय की स्थापना और संचालन किया और समकालीनता को रेडिकल ढंग से पुनर्भाषित किया जिसमें सिर्फ़ शहराती ही समकालीन नहीं थे बल्कि लोक और आदिवासी कलाकार भी उतने ही समकालीन ठहराए गए। स्वामीनाथन का जीवन और कला एक-दूसरे से इस क़दर मिले-जुले थे कि एक को दूसरे के बिना समझा नहीं जा सकता। कवि-कलाप्रेमी प्रयाग शुक्ल ने रज़ा फ़ाउंडेशन के एक विशेष प्रोजेक्ट के अन्तर्गत यह जीवनी लिखी है जिसे प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है।"
—अशोक वाजपेयी
Mrityu Mere Dwar Par
- Author Name:
Khushwant Singh
- Book Type:

- Description: पुस्तक अंग्रेज़ी के मशहूर लेखक खुशवन्त सिंह की पुस्तक ‘डेथ एट माई डोरस्टेप : ओबिट्युअरीज़’ का अनुवाद है जिसमें उन्होंने कई महान हस्तियों को श्रद्धांजलि देते हुए मृत्यु के विषय में अपना नज़रिया व्यक्त किया है। पुस्तक के पहले खंड में उन्होंने दलाई लामा एवं आचार्य रजनीश के मृत्यु के बारे में विचारों को रखा है और बुढ़ापा, मृत्यु का अनुभव, मृत्यु के पश्चात् जीवन और मृतकों से ज्ञान के बारे में काफ़ी दिलचस्प अन्दाज़ में लिखा है। पुस्तक के दूसरे खंड में कई हस्तियों की मृत्यु के पश्चात् लिखी गई श्रद्धांजलियाँ जिनमें जेड.ए. भुट्टो, संजय गांधी, माउंटबेटन, रजनी पटेल, धीरेन भगत, प्रभा दत्त, हरदयाल, मुल्कराज आनन्द, नीरद बाबू, बलवन्त गार्गी, फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’, आर.के. नारायण, प्रोतिमा बेदी, नरगिस दत्त, अमृता शेरगिल, भीष्म साहनी सहित अपनी दादी माँ, राज-विला के छज्जू राम और अपने कुत्ते सिम्बा के अलावा अपने ऊपर भी समाधि लेख लिखा है। इस पुस्तक को पढ़ते हुए खुशवन्त सिंह के चुटीले और खिलंदड़े अन्दाज़ की झलक मिलेगी और उनकी तटस्थता पाठकों को बेहद प्रभावित करेग
Komal Gandhar
- Author Name:
Vilayat Khan
- Book Type:

-
Description:
उस्ताद विलायत ख़ाँ अप्रतिम सितार वादक थे। उनके बजाने-गाने की कई कथाएँ भी किंवदन्तियों की तरह प्रचलित हैं। वह ओज, सरसता, सूक्ष्मतम ध्वनि तरंगों और माधुर्य के धनी थे। जिन्होंने उनको सुना है—आमने-सामने बैठकर—वे तो उनके ‘बजाने की छवि’ को भी याद करते हैं, सिर्फ़ उनके सुरों को ही नहीं। यहाँ हम लेखक और संगीतविद् शंकरलाल भट्टाचार्य द्वारा मूल रूप से बांग्ला भाषा में उस्ताद विलायत ख़ाँ की आत्मकथा के तैयार किए गए वार्तालेख के साथ उन पर एकाग्र तीन आलेखों को सुपरिचित आलोचक और अनुवादक रामशंकर द्विवेदी के अनुवाद में प्रस्तुत कर रहे हैं। पहले दो आलेख, क्रमश: दो संगीत-पारखियों नीलाक्ष दत्त और आशीष चट्टोपाध्याय के हैं, तीसरा बांग्ला के विख्यात कवि जय गोस्वामी का है। तीनों आलेख अपने-अपने ढंग से विलायत ख़ाँ के सितार के गुणों को तो उभारते ही हैं, उनके व्यक्तित्व की भी एक झलक प्रस्तुत करते हैं। नीलाक्ष दत्त के आलेख में तो स्वयं विलायत ख़ाँ के सितार की बनावट-बुनावट, और उसे बजाने की तकनीक की भी चर्चा है। इन आलेखों में उन कई सामान्य श्रोताओं की भी एक मर्मभरी उपस्थिति है, जो मानो उनके सितार के पीछे 'पागल' ही तो थे।
सामान्य श्रोताओं से लेकर गुणी संगीत पारखियों, समीक्षकों, लेखकों-कवियों-कलाकारों, बुद्धिजीवियों तक में संगीत के प्रति यह जो अनुराग रहा है, वह इस आत्मकथा को पढ़कर भी जाना जा सकता है। कहना न होगा कि ‘कोमल गांधार' पठनीय ही नहीं, बल्कि संग्रहणीय पुस्तक भी है।
“उस्ताद विलायत ख़ाँ भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक विभूति थे। उनकी दो सौ अट्ठाइस पृष्ठों में फैली आत्मकथा के साथ-साथ इस पुस्तक में परिशिष्ट के रूप में नीलाभ दत्त, आशीष भट्टाचार्य और प्रसिद्ध बांग्ला कवि जय गोस्वामी द्वारा उन पर लिखे निबन्ध भी शामिल किए गए हैं। यह मूल्यवान उपक्रम प्रयत्नपूर्वक किया है संगीतविद् शंकरलाल भट्टाचार्य ने। हिन्दी में एक महान संगीतकार से सम्बन्धित ऐसी दुर्लभ सामग्री को लाने की ज़िम्मेदारी पूरी की है वरिष्ठ विद्वान, रसिक और अनुवादक डॉ. रामशंकर द्विवेदी ने। आत्मकथा, निबन्ध, लेखन और अनुवाद सभी सृजन और संगीत के गहरे और निश्छल प्रेमवश किए गए हैं। रज़ा पुस्तक माला 'कोमल गांधार' को बहुत प्रसन्नता और कृतज्ञता के साथ प्रस्तुत कर रही है।"
—अशोक वाजपेयी
UP FROM SLAVERY
- Author Name:
Booker T. Washington
- Book Type:

- Description: "Up from Slavery is the 1901 autobiography of American educator Booker T. Washington (1856-1915). The book describes his experience of working to rise up from being enslaved as a child during the Civil War, the obstacles he overcame to get an education at the new Hampton Institute, and his work establishing vocational schools like the Tuskegee Institute in Alabama to help black people and other persecuted people of colour learn useful, marketable skills and work to pull themselves, as a race, up by the bootstraps. He reflects on the generosity of teachers and philanthropists who helped educate black and Native Americans. He describes his efforts to instill manners, breeding, health, and dignity in students."
Dhara Ke Vipreet
- Author Name:
Govind Mishra
- Book Type:

-
Description:
साहित्य के शीर्षस्थ सम्मानों से विभूषित और कई चर्चित-बहुपठित उपन्यासों-कहानियों के सर्जक गोविन्द मिश्र यहाँ प्रथम पुरुष में अपने पाठकों यानी हम सबसे सम्बोधित हैं। ‘धारा के विपरीत' उनकी आत्मकथा है। एक पारदर्शी और सहज मनुष्य की आत्मकथा जिसने अपनी संवेदना, मानवीय मूल्यों की तरफ़दारी और अपने आसपास फैले सुख-दुख को शब्द-बद्ध करने के लिए लेखक होना चुना।
पेशे से आयकर विभाग में उच्च पदों पर रहने वाले गोविन्द मिश्र का बचपन और किशोरावस्था सुख-सुविधा के अत्यल्प साधनों के बावजूद उदारता, अपनेपन और सामाजिक सौहार्द के जिस वातावरण में बीता, अपनी प्राकृतिक संवेदनशीलता और उचित-अनुचित के सहजबोध ने जो अनुभव उन्हें उस दौरान दिये, वे उनकी रचनात्मकता का स्थायी आधार बने। इस आत्मकथा में वे अपने जीवन से जुड़े लोगों का ज़िक्र करते हुए अपनी उन कृतियों का भी जिक्र करते चलते हैं जिनका विषय वे लोग रहे। और इनमें बचपन ही नहीं उनके वयस्क और पेशेवर जीवन में आये लोग और घटनाएँ भी हैं! प्राथमिक अनुभवों ने ही उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया, किसी विचार, खेमे या आग्रह ने नहीं!
आज़ादी से तकरीबन एक दहाई पहले जन्मे गोविन्द जी ने अपने भीतर एक साधारण भारतीय मनुष्य को हर हाल में बचाए रखा! वह मनुष्य जो अपनी मुठभेड़ों में रोज़ कुछ बड़ा होता है। लोगों की असलियतों से मिले विस्मय को संपदा की तरह सहेजकर रखता है और किसी कड़वाहट से ख़ुद को विषैला नहीं होने देता। साधारण की इस मौजूदगी को वे साहित्य सर्जना की पहली शर्त मानते भी हैं जो इस आत्मकथा में भी उपस्थित है। ‘सच बता दो तो वह कितने कलुष धो डालता है। सच में वजन होता है।’ एक जगह वे कहते हैं।
यह एक कल्मषरहित जीवन का निर्भार वृत्तांत है जो अपने उद्गम से समुद्र की ओर तीव्र गति से जाती नदी की तरह बहता है और उत्तरोत्तर सान्द्र होता जाता है। इसमें लेखक अपनी रचनाओं के बारे में, अफ़सर अपनी चुनौतियों के बारे में, प्रेमी अपने प्रेम के बारे में, पुरुष उन स्त्रियों के बारे में जिनका स्त्रीत्व उसे बरबस मोह लेता है, पति और पिता अपने परिवार के बारे में, दोस्त अपने दोस्तों के बारे में, साहित्यकार अपने साहित्यिक परिवेश की ख़ूबियों-खामियों के बारे में और मनुष्य अपनी मनुष्यता के बारे में अकुंठ भाव से सबकुछ बताता चलता है। और उस समय के बारे में भी जो अपनी तमाम तकनीकी, बौद्धिक और आर्थिक समृद्धि के बावजूद ठीक उसी जगह पर संकरा और कम पड़ जाता है, जहाँ उसे बड़ा और उदात्त होना चाहिए।
Satya Ke Mere Prayog
- Author Name:
Mohandas Karamchand Gandhi
- Book Type:

-
Description:
विश्व के स्वप्नदर्शी और युगांतरकारी नेताओं में सर्वाधिक चर्चित और देश-काल की सीमाओं को लांघकर एक प्रतीक बन जानेवाले महात्मा गांधी की यह आत्मकथा न किसी परिचय की मुहताज है और न किसी प्रशंसा की। अनेक भाषाओं और देशों के असंख्य पाठकों के मन में राजनीति, समाज और नैतिकता से जुड़े सवालों को जगाने, विचलित करनेवाली इस पुस्तक का यह मूल गुजराती से अनूदित प्रामाणिक पाठ है।
समाज और राजनीति की धारा में गांधी जी ने असहयोग और अहिंसा जैसे व्यावहारिक औज़ारों से एक मानवीय हस्तक्षेप किया, वहीं अपने निजी जीवन को उन्होंने सत्य, संयम और आत्मबल की लगभग एक प्रयोगशाला की तरह जिया। नैतिकता उनके लिए सिर्फ़ समाजोन्मुख, बाहरी मूल्य नहीं, उनके लिए वह अपने अन्त:करण के पारदर्शी आइने में एक ऐसे नग्न प्रश्न के रूप में खड़ी थी, जिसका जवाब व्यक्ति को अपने सामने, अपने को ही देना होता है। अपने स्व की कसौटी ही जिसकी एकमात्र कसौटी होती है। यह पुस्तक गांधी जी के इसी अविराम नैतिक आत्मनिरीक्षण की विवरणिका है।
इस चर्चित पुस्तक की पुनर्प्रस्तुति यह बात ध्यान में रखते हुए की जा रही है कि महान कृतियों का अनुवाद बार-बार होते रहना चाहिए। इस अनुवाद में प्रयास किया गया है कि गांधी जी की इस सर्वाधिक पढ़ी जानेवाली कृति को आज का पाठक उस भाषा-संवेदना की रोशनी में पढ़ सके जो आज़ादी के बाद हमारी चेतना का हिस्सा बनी है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...