Path
Author:
Rajesh MaheshwariPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Available
आत्मकथा सिर्फ़ ज़िन्दगी के क़िस्सों का बयान ही नहीं, वह अपने आपसे मिलने की एक ईमानदार कोशिश भी होती है। इस कोशिश में राजेश माहेश्वरी की यह कृति ‘पथ’ सचमुच पथ-प्रदर्शक का काम करती है।</p>
<p>जीवन मनुष्य के ख़ुद बनाए से बनता है, पैतृक सम्पदा कुछ दूर और देर तक ही साथ दे सकती है। राजेश जी इस कड़वे सच के स्वीकार के साथ अपने जीवन में वंचनाओं और प्रपंचों से जूझते हुए विवेक एवं परिश्रम के बलबूते ऐसी बुलन्दी अर्जित करते हैं जो असम्भव हरगिज़ नहीं लगती, बल्कि यह भरोसा जगाती है कि विपरीत परिस्थितियाँ हों तो अपने विवेक की पतवार को सकारात्मक सोच के साथ हर पल थामे रहने से सब सँभल जाता है।</p>
<p>ज़िन्दगी में अकसर ऐसे पल आते हैं, जब हम दोराहे पर खड़े होते हैं। ऐसे में ‘पथ’ के ये शब्द—‘जीवन में कठिनाइयों के आने पर चिन्ता नहीं करनी चाहिए। दुनिया में ऐसी कोई कठिनाई या समस्या नहीं है जिसका निदान सम्भव न हो’—एक दोस्त की तरह सम्बल देनेवाले हैं।</p>
<p>संघर्ष के पथ पर चलते हुए विश्वास की लौ को जगाए रखने की प्रेरणा से भरपूर है यह ‘पथ’।
ISBN: 9788183616683
Pages: 79
Avg Reading Time: 3 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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अरविन्द बंगाल की धरती की उपज थे, पर विचारधारा में वे तिलक, दयानन्द आदि के अधिक निकट प्रतीत होते हैं। बंगाल के विषय में स्वभावतः उनके मन में अनुराग था, पर वे जिस प्रकार का ‘मिशन’ लेकर आए थे, उसकी संसिद्धि शायद बंगाल में रहकर नहीं हो सकती थी। वे अनेक रूपों में बंगाली व्यक्तित्व के अतिरेकों से, अर्थात् स्वप्निल भावुकता आदि से बिलकुल अछूते थे। श्री अरविन्द का पांडिचेरी-गमन क्षेत्रीयता की संकुचित सीमाओं के ध्वंस का प्रतीक है।
वे देशकाल में बँधी खंडशः विभक्त मानवता के प्रतिनिधि बनने नहीं, बल्कि परस्पर सहयोग से पृथ्वी पर अवतरित होनेवाले दिव्य जीवन के निदेशक थे, इसलिए उनका प्रत्येक कार्य मनुष्य को विभाजित करनेवाली आसुरी शक्तियों के षड्यंत्र को असफल बनाने के उद्देश्य से परिचालित रहा। श्री अरविन्द ने राजनेता के रूप में ‘पूर्ण स्वराज्य’ की माँग की। श्री गांधी के दक्षिण अफ़्रीका से भारत आगमन के काफ़ी पहले ‘असहयोग आन्दोलन’ का सूत्रपात किया। कलकत्ते के नेशनल कॉलेज के प्रिंसिपल के रूप में एक नई शिक्षा-पद्धति की बात कही। ‘वन्देमातरम्’ और ‘कर्मयोगी’ के सम्पादक के रूप में भारतीय आत्मा को स्पष्ट करनेवाली नई पत्रकारिता का सूत्रपात किया। उग्रपन्थी विचारधारा को स्वीकार करते हुए भी विरोधी के प्रति सदाशय रहने का आग्रह किया। सत्य तो यह है कि स्वतंत्रता-पूर्व भारतीय राजनीति के सभी मूलभूत आदर्श, राष्ट्रीयता, स्वदेशी प्रेम, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, जनसंगठन और राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली का आग्रह जैसे तत्त्व, जो बाद में गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस के प्रेरणास्रोत बने, श्री अरविन्द के महान् व्यक्तित्व की देन हैं।
जवाहरलाल नेहरू ने ठीक ही लिखा है—“बंग-भंग के विरुद्ध उत्पन्न आन्दोलन ने अपने सभी सिद्धान्त और उद्देश्य श्री अरविन्द से प्राप्त किए और इसने महात्मा गांधी के नेतृत्व में होनेवाले महान आन्दोलनों के लिए आधार तैयार किया।”
Chor Ka Roznamcha
- Author Name:
Jean Genet
- Book Type:

- Description: ‘चोर का रोज़नामचा’ ज्याँ जेने की सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तकों में एक है। कथा और आत्मकथा के सटीक मिश्रण से तैयार इस पुस्तक में लेखक ने 1930 के दशक में अपनी यूरोप-यात्रा का वर्णन किया है। भूख, उपेक्षा, थकान और दुराचार को झेलते और चिथड़े पहने उन्होंने स्पेन, इटली, ऑस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड, जर्मनी आदि की यात्रा की और तत्कालीन जन-जीवन के एक उपेक्षित पहलू को अपनी भाषा में वाणी दी। उपन्यास की कथा विभिन्न अपराधियों, कलाकारों, दलालों और यहाँ तक कि एक जासूस के साथ भी लेखक के समलैंगिक सम्बन्धों के इर्द-गिर्द घूमती है। सभी उपकथाओं की सामान्य विषयवस्तु है एक आदर्श-विपर्यय जिसमें समर्पण का चरम रूप विश्वासघात है, क्षुद्र अपचार नायकत्व की पराकाष्ठा है और क़ैद का अर्थ आज़ादी है। उपन्यास में जेने समलैंगिकता, चोरी और विश्वासघात जैसे ‘गुणों’ से एक वैकल्पिक ‘साधुता’ का निर्माण करते हैं और इसके लिए वे ईसाई शब्दावली को इस्तेमाल करते हैं। हर चोरी वहाँ धार्मिक कर्मकांड की तरह होती है और उसके लिए उनकी तैयारी उसी तरह होती है जैसे संत प्रार्थना के लिए जाते हैं। जिन चीज़ों के लिए इस उपन्यास को विशेष रूप से जाना जाता है, वे हैं : गहन आत्मान्वेषण, रूढ़ नैतिक मूल्यों का अतिक्रमण और सामान्य समझ के अनुसार ‘नीच’ मानी जानेवाली स्थितियों के लिए एक सौन्दर्य शास्त्र गढ़ने का प्रयास। प्रस्तुत अनुवाद में कोशिश की गई है कि मूल की लय और कथ्य बरक़रार रहे।
Shailendra
- Author Name:
Indrajeet Singh
- Book Type:

- Description: जिस तरह कहानी लिखते लिखते प्रेमचंद कहानी का प्रयाय बन गये, उसी तरह शैलेंद्र गीत रचते रचते गीतों के प्रेमचंद बन गए। शैलेंद्र को इश्क़, इंक़लाब, और इंसानियत के कवि के रूप में जाना जाता है। नामवर सिंह के अनुसार "शैलेंद्र की कविताएँ सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई हैं। वे सही और सच्चे अर्थों में जनकवि थे।
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