Anam Yogi Ki Diary
Author:
Deepak YogiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
सत्य और असत्य क्या है, इसको बताया नहीं जा सकता। समय और परिस्थिति के अनुसार यह परिवर्तित होता रह सकता है। ईश्वर का अस्तित्व अनाम है, कोई धर्मशास्त्र या धर्मशास्त्री उसे नहीं जान सका। फिर भी यह खोज चलती रहती है। ऐसी ही एक खोज का नतीजा है यह पुस्तक। एक साधारण व्यक्ति को एक दिन सहसा अपने दैनंदिन जीवन की निरर्थकता का भान होता है और यह हिमालय की यात्रा को चल पड़ता है। मकसद है उस सम्पूर्ण की उपलब्धि जिसके लिए हर युग का मनुष्य अपनी सुख-सुविधाओं को छोड़कर भटका और जो युगों-युगों से हमारे आधे-अधूरे अस्तित्व को आकर्षित करता रहा। अपनी इस यात्रा के मोड़ों, बाधाओं, पड़ावों और उपलब्धियों का लेखा-जोखा लेखक ने अपनी इस डायरी में प्रस्तुत किया है। हिमालय की बर्फ़ीली चोटियों, घाटियों और कन्दराओं में बसे साधुओं-वैरागियों और इस क्षेत्र के जनजीवन के दृश्यों के साथ अपनी इस डायरी में लेखक ने अपने भीतर के ‘व्यक्ति’ से मुठभेड़ के ब्यौरे भी दर्ज किए हैं। एक भिन्न बोध की पुस्तक।
ISBN: 9788171197446
Pages: 136
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: उदय शंकर, जिन्हें नृत्य का देवता माना गया, यह पुस्तक उनके विषय में है। उनके जीवन, स्वभाव, नृत्यकला, उनकी उपलब्धियों और ख्याति को रेखांकित करने के लिए यहाँ विभिन्न स्रोतों से जुटाई गई सामग्री को संकलित किया गया है। पुस्तक का आरम्भ बिमल मुखोपाध्याय द्वारा खींचे गए चित्रों के, उनकी नृत्य-यात्रा के, प्रस्तुतीकरण से होता है। इस ऐतिहासिक और सुविस्तृत आलेख को शोधकर्ता लेखक शंकरलाल भट्टाचार्य ने लिखा है। बिमल मुखोपाध्याय एक असाधारण फ़ोटोग्राफ़र थे जो साइकिल लेकर विश्व-पर्यटन पर निकल गए थे, और अपने चित्रों के माध्यम से ही अपनी आजीविका अर्जित करते थे। उदय शंकर से भेंट होने के पश्चात् उनका क़ैमरा जैसे उनकी देह-गति पर ही केन्द्रित हो गया। यूरोप में हुए उनकी विभिन्न प्रस्तुतियों में लिए गए ये चित्र ही शंकरलाल जी के विवेचन के केन्द्र में हैं। यह निश्चय ही एक दुर्लभ प्रस्तुति है। दूसरा आलेख पं. रविशंकर द्वारा लिखित एक संस्मरण है जिसमें उन्होंने उदय शंकर के व्यक्तित्व को निज अनुभवों के प्रकाश में आलोकित किया है। यही बात अमला शंकर के संस्मरणात्मक आलेख के बारे में कही जा सकती है, जिसे उन्होंने उनकी जीवन-संगिनी और सहचरी नर्तकी के रूप में लिखा है। सत्यजित चौधुरी का विवेचन उदय शंकर द्वारा रचित फ़िल्म 'कल्पना' के विषय में है जिसका निर्माण 1998 में हुआ था। ढाई घंटे की इस नृत्य-केन्द्रित फ़िल्म को पहली भारतीय आधुनिक फ़िल्म कहा जाता है। “भारतीय प्रदर्शनकारी कलाओं के आधुनिक इतिहास में उदय शंकर का ऐतिहासिक और स्मरणीय अवदान रहा है। वे अपने समय की एक किंवदन्ती बन गए थे। उन पर सुलिखित और पर्याप्त सामग्री, दुर्भाग्य से, कम है। परम्परा की समझ और उसका पुनराविष्कार उनके नवाचार का अनिवार्य अंग था। इस नृत्यशिल्पी का जीवनालेख्य शंकरलाल भट्टाचार्य ने बहुत जतन से तैयार किया है और हमारे आग्रह पर उसका मूल बाङ्ला से हिन्दी में अनुवाद वरिष्ठ विद्वान्, साहित्यकलाप्रेमी और अनुवादक डॉ. रामशंकर द्विवेदी ने किया है। एक गौरवस्थानीय नृत्यशिल्पी पर यह दुर्लभ सामग्री रज़ा पुस्तक माला के अन्तर्गत प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है।” —अशोक वाजपेयी
James Watt
- Author Name:
Gopi Krishna Kunwar
- Book Type:

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Yaad ki Rahguzar
- Author Name:
Shaukat Kaifi
- Book Type:

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Description:
‘याद की रहगुज़र’ शौकत कैफ़ी की वह दास्तान है जिसमें उनके शौहर उर्दू के मशहूर शायर और नग़मानिगार कैफ़ी आज़मी और उनके बच्चों एक्ट्रेस शबाना आज़मी और कैमरामैन बाबा आज़मी के ख़ूबसूरत और दिलचस्प क़िस्से हैं। प्रगतिशील लेखक आन्दोलन से जुड़े हुए कवियों और लेखकों का ज़िक्र है। ऊँचे सामाजिक मूल्यों के लिए संघर्ष करनेवाले किरदार हैं।
शौकत कैफ़ी स्टेज और फ़िल्म की एक बहुत मझी हुई और बेमिसाल अभिनेत्री भी हैं। ‘याद की रहगुज़र’ में उन्होंने इप्टा और पृथ्वी थियेटर से जुड़े हुए अपने दिलों के बारे में कई अनोखी बातें लिखी हैं। ‘याद की रहगुज़र’ शौकत कैफ़ी के बहुरंगी अनुभवों का बयान है जिसमें जीवन के ठंडे और गरम मौसमों की तस्वीरें हैं। मानवमन का रोमांस है, हिम्मत और विजय की भावना है। बहुत सादा लेकिन अर्थपूर्ण यह लेखन पाठक के दिल और दिमाग़ में अतीत से प्रेम और भविष्य के प्रति आस्था जगाता है।
—असग़र वजाहत
H.D. Devegowda
- Author Name:
C. Naganna
- Book Type:

- Description: अगर कोई मन-वचन और कर्म से किसी महान और कठिनतम लक्ष्य को हासिल करने की ठान ले, तो संसार में कुछ भी असम्भव नहीं। संकल्प से सिद्धि तक के ऐसे ही सफर के महारथी हैं–हरदनहल्लि दोड्डेगौड़ा देवेगौड़ा, संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री के रूप में कर्नाटक की पहली और दक्षिण भारत की दूसरी देन। उन्होंने घोर अनिश्चितता के दौर में भारत का राजनीतिक, प्रशासनिक, सामरिक और आर्थिक नेतृत्व सँभाला, जब भारत को संसार के सबसे भ्रष्ट राष्ट्रों में चतुर्थ स्थान पर माना गया था। देश की अन्तरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा निरन्तर घटती जा रही थी। आन्तरिक चुनौतियाँ, पड़ोसी राष्ट्रों की असहिष्णुता, अकारण द्वेष और देश की शान्ति तथा स्थिरता को खतरे में डालनेवाली साजिशें भी बहुत बढ़ चुकी थीं। अन्तरदेशीय स्तर पर सभी राज्यों की आवश्यकताओं के अनुरूप उनके विकास का काम इतना अधिक पिछड़ गया था कि कुछ राज्यों में पृथकतावादी विद्रोही कार्यवाहियाँ भी बहुत बढ़ गई थीं। उन परिस्थितियों में नाकाम होने की लगभग सुनिश्चित आशंका के कारण कोई भी राजनेता देश का प्रधानमंत्री बनने का जोखिम उठाने के लिए दावेदारी या प्रयास नहीं कर रहा था। देश की दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के पास बहुमत का चमत्कारी आँकड़ा और दावेदारी का हौसला तक नहीं था। तब संयुक्त मोर्चा गठबन्धन के समस्त घटक दलों ने सर्वसम्मति से श्री देवेगौड़ा को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना। अत्यन्त सीमित समय, असीमित चुनौतियों तथा सरकार को गिराने के षड्यंत्रों के उस दौर में श्री देवेगौड़ा ने जिस चमत्कारी ढंग से, उपलब्धियाँ प्राप्त कीं और हर क्षेत्र में परिस्थितियों को सँभाला, इस पुस्तक में उसी लेखे-जोखे का रोचक और प्रामाणिक विवरण है।
Hum Hashmat : Vol. 3
- Author Name:
Krishna Sobti
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Description:
‘हम हशमत’ हमारे समकालीन जीवन-फलक पर एक लम्बे आख्यान का प्रतिबिम्ब है। इसमें हर चित्र घटना है और हर चेहरा कथानायक। ‘हशमत’ की जीवन्तता और भाषायी चित्रात्मकता उन्हें कालजयी मुखड़े के स्थापत्य में स्थित कर देती है।
प्रस्तुत है ‘हम हशमत’ का तीसरा खंड। समकालीनों के संस्मरणों के बहाने, इस शती पर फैला हिन्दी साहित्य समाज, यहाँ अपने वैचारिक और रचनात्मक विमर्श के साथ उजागर है।
हिन्दी के सुधी पाठकों और आलोचकों ने ‘हम हशमत’ को संस्मरण विधा में मील का पत्थर माना था; ‘हम हशमत’ की विशेषता है तटस्थता। कृष्णा सोबती के भीतर पुख़्तगी से जमे ‘हशमत’ की सोच और उसके तेवर विलक्षण रूप से एक साथ दिलचस्प और गम्भीर हैं। नज़रिया ऐसा कि एक समय को साथ-साथ जीने के रिश्ते को निकटता से देखे और परिचय की दूरी को पाठ की बुनत और बनावट में जज़्ब कर ले। ‘हशमत’ की औपचारिक निगाह में दोस्तों के लिए आदर है, जिज्ञासा है, जासूसी नहीं। यही निष्पक्षता नए-पुराने परिचय को घनत्व और लचक देती है और पाठ में साहित्यिक निकटता की दूरी को भी बरकरार रखती
है।अपनी ही आत्मविश्वासी आक्रामकता की रौ और अभ्यास में पुरुष-सत्ता द्वारा बनाए असहिष्णु साहित्य-समाज में एक पुरुष का अनुशासनीय बाना धरकर कृष्णा जी ने ‘हशमत’ की निगाह को वह ताक़त दी है जिसे सिर्फ़ पुरुष रहकर कोई मात्र पुरुष-अनुभव से सम्भव नहीं कर सकता, न ही कोई स्त्री, स्त्री की सीमाओं को फलाँगे बग़ैर साहित्य समाज की इस मानवीय गहनता को छू सकती है। ऐसा पाठ साहित्य और कलाओं में अर्द्धनारीश्वर की रचनात्मक सम्भावनाओं की ओर इंगित करता है।
‘हशमत’ के इस तीसरे खंड में शामिल हैं—सत्येन कुमार, जयदेव, निर्मल वर्मा, अशोक वाजपेयी, देवेन्द्र इस्सर, निर्मला जैन, विभूतिनारायण राय, रवीन्द्र कालिया, शम्भुनाथ, गिरधर राठी, आलोक मेहता और विष्णु खरे।
‘हम हशमत’ कृष्णा सोबती की क़लम की वह तुर्श और तीखी भंगिमा है, जो समय के पेचोख़म में सिर छुपाए बैठे मामूलीपन की आँख में सीधी जाकर लगती है।
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