Aamader Shantiniketan
Author:
ShivaniPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 100
₹
125
Unavailable
कथाकार और उपन्यासकार के रूप में शिवानी की लेखनी ने स्तरीयता और लोकप्रियता की खाई को पाटते हुए एक नई ज़मीन बनाई थी, जहाँ हर वर्ग और हर रुचि के पाठक सहज भाव से विचरण कर सकते थे। उन्होंने मानवीय संवेदना और सम्बन्धगत भावनाओं की इतने बारीक और महीन ढंग से पुनर्रचना की कि वे अपने समय में सबसे ज़्यादा पढ़े जानेवाले लेखकों में एक होकर रहीं। कहानी, उपन्यास के अलावा शिवानी ने संस्मरण और रेखाचित्र आदि विधाओं में भी बराबर लेखन किया। अपने सम्पर्क में आए व्यक्तियों को उन्होंने क़रीब से देखा, कभी लेखक की निगाह से तो कभी मनुष्य की निगाह से, और इस तरह उनके भरे-पूरे चित्रों को शब्दों में उकेरा और कलाकृति बना दिया। इस पुस्तक में ‘गुरुपल्ली’, ‘गुरुदेव की कर्मभूमि’, ‘शान्तिनिकेतन की गुरुपल्ली’, ‘आश्रम के पर्व’, ‘कुछ महत्त्पूर्ण उत्सव’, ‘आश्रम के विकास में गुरुदेव का योग’, ‘गांधीजी और गुरुदेव’, ‘अनेक विभूतियों का आगमन’, ‘श्रीनिकेतन का मेला’, ‘खेलकूद और मनोरंजन’, ‘आश्रमवासियों के लिए गुरुदेव के गीत’, ‘छात्रों का अतिथि-प्रेम’, ‘गुरुदेव की आत्मीयता’, ‘सादा पर कलापूर्ण रहन-सहन’, ‘गुरुर्ब्रह्मा’, ‘ओ रे गृहवासी’, ‘तुई जे पुरुष मानुष रे!’, ‘आश्रम पर काले बदल’ शीर्षक निबन्ध शामिल हैं, जिनका सम्बन्ध लेखिका के शान्तिनिकेतन प्रवास से है। आशा है, शिवानी के कथा-साहित्य के पाठकों को उनकी ये रचनाएँ भी पसन्द आएँगी!
ISBN: 9788183610803
Pages: 122
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: Autobiography हरिदास जीक आत्मकथा मे जाहि तरहक जीवन संघर्षक मार्मिक वर्णन भेल अछि तकरा लगातार पढ़ब मुश्किलअछि। कोसीक विभीषिका मे माय, पिता, भाइ, परिवार खतम भेलाक बादो अपन इच्छाशक्ति आ संकल्प सँ एक टा व्यक्ति आपदा सँ कोना बाहर निकलैत अछि तकर प्रमाण ई आत्मकथा थिक। हरिदास जिजीविषाक प्रतिमूर्ति बनि क' हमरा सोझाँ अबैत छथि। एक टा बीतराग व्यक्ति करोड़ोक संपत्ति केँ अनुराग भावना सँ त्याग क' अही लेल विवाह करैत छथि किएक त' हिनका परिवार मे पचासोक संख्या रहनि जे चारि-पाँच वर्षक भीतर मात्र किछुए व्यक्ति बचि जाइत अछि... मृत मायक छाती पर दूध पिबैत छओ मासक बच्ची... पुतोहु केँ जे ससुर आगि देलनि सेहो ओही राति मरि गेलाह आ भोरे हुनको ओही अछिया पर जरा देल गेलनि... मैथिली मे एक सँ एक नामवर व्यक्ति द्वारा आत्मकथा लिखल गेल अछि मुदा एहि आत्मकथा मे ओ ताकत छै जे एहि लेखक केँ नामवर बना देत। ओहने नामवर बना देत जेहन नामवर व्यक्तिक लिखल आत्मकथा होइत अछि। हरिदास गृहस्थ रहितो हृदय सँ संन्यासी रहथि तेँ अपना सताबैवला गार्जियनक बारे मे एको शब्द अमर्यादित नहि लिखैत छथि। ई आत्मकथा एक टा सामान्य लेखक केँ महान बनाबयवला महत्त्वपूर्ण कृति थिक। —डॉ भीमनाथ झा मिथिला मे सबाल्टर्न इतिहास लिखबाक परंपरा नहि रहल अछि मुदा हरिदास जीक आत्मकथा अही इतिहास सँ शुरू होइत अछि... एहि आत्मकथा मे जतेक कम शब्द मे पैघ बात कहल गेल अछि तकर टीका सैकड़ो शब्द मे कैल जा सकैत छै। हरिदास अपन जीवन-संघर्षक क्रम मे एक टा विरक्तक जीवन छोड़ि गृहस्थक जीवन चुनैत छथि। असल मे ई आत्मकथा विरक्ति पर अनुरक्तिक कथा थिक। ई आत्मकथा मैथिली मे बहुत समय धरि मन राखल जायत। —अशोक
Lokmanya Mayanand
- Author Name:
Deoshankar Navin
- Book Type:

- Description: मैथिलीक प्रसिद्ध आ चर्चित त्रिपुंड मे सँ एक मायानंद मिश्र अपन प्रचुर रचनात्मकताक बलें मैथिल पाठकक जीह पर सतत उच्चरित होइबला एक अनिवार्य नाम थिक। कथा हो वा उपन्यास, कविता हो वा गीत, आलोचना हो वा दर्शन, इतिहास हो वा चिन्तन, रेडियो हो वा मंच, सभठाम मायानंद अपन अखंड प्रतिभाक कारणें उच्चासन पर विराजमान छथि। एक दिस साहित्य आ दोसर दिस मैथिली आन्दोलन आ मंच लेल हुनक जीवन समर्पित छलनि। अपन जीवन काल मे ओ जतेक साहित्य सृजन कयलनि, ताहि सँ थोड़बो कम ओ मैथिली आन्दोलन आ मंच लेल नहि कयलनि। मैथिली आन्दोलन आ मंचक लाथें जन जागरण आ चेतना स्फुरण क' महत्तर कार्यक ओ सम्पादन कयलनि। ओ मैथिली मंचक सम्राट छलाह। हुनक उपस्थिति मात्र सँ मैथिली मंच गौरवान्वित होइत छल। हुनक जीवन आ बहुआयामी साहित्य पर लिखल 'लोकमान्य मायानंद' डा. देवशंकर नवीनक अमूल्य कृति थिक। एहि पोथी मे विस्तृत रूपें मायानंद मिश्रक जीवन आ साहित्य केँ अत्यंत गंभीरता, संलग्नता, सम्बद्धताक संग डा. नवीन विश्लेषित कयलनि अछि जे हुनक गहनता, दृष्टि सम्पन्नता आ गंभीरता केँ अखंड रूपें प्रतिष्ठापित करैत अछि। —केदार कानन
1857 Ki Kranti Aur Neemuch
- Author Name:
Dr. Surendra Shaktawat
- Book Type:

- Description: "डॉ. सुरेंद्र शक्तावत द्वारा लिखित ग्रंथ ‘1857 की क्रांति और नीमच’ क्षेत्रीय इतिहास का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में नीमच के क्रांतिकारियों की विशिष्ट भूमिका रही है। मध्य प्रदेश में सर्वप्रथम क्रांति का सूत्रपात नीमच की लाल माटी से 3 जून, 1857 को मोहम्मद अलीबेग ने किया था। ये क्रांतिवीर नीमच से विजय-पताका लेकर चित्तौड़, बनेड़ा, नसीराबाद, देवली होते हुए आगरा पहुँचे, जहाँ अंग्रेजों पर विजय प्राप्त की। नजफगढ़, दिल्ली में नीमच के क्रांतिकारियों ने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करते हुए अपने रक्त की अंतिम बूँद तक संघर्ष किया। मंदसौर के स्वयं घोषित सम्राट् शाहजादा फिरोज की सेनाओं की युद्धस्थली नीमच की लाल माटी रही है। उनके सैनिकों ने जीरन में अंग्रेजों के सिर काटे। नीमच में दो-दो बार अंग्रेजों को परास्त कर उन्हें भागने को विवश किया। महान् क्रांतिवीर तात्या टोपे नीमच को लक्ष्य में रखकर नीमच के चहुँओर सिंगोली, जावद, रामपुरा, प्रतापगढ़ में अंग्रेजों से युद्ध करते रहे। मारवाड़ के स्वाधीनता संग्राम के महानायक ठाकुर कुशाल सिंह आउवा का आत्मसमर्पण नीचम में हुआ। प्रस्तुत ग्रंथ में अंग्रेजों की क्रूरता का प्रतीक भूनिया खेड़ी का अग्निकांड, निबाहेड़ा के निर्दोष पटेल ताराचंद की हत्या व तात्या की फाँसी पर अंग्रेजी न्याय की सप्रमाण पोल खोलने का प्रयत्न लेखक ने किया तथा सिद्ध किया कि नीमच की क्रांति केवल सैन्य विद्रोह न होकर जनक्रांति थी, जिसमें स्थानीय जन-समुदाय की भी भागीदारी थी। —डॉ. विकास दवे (राज्यमंत्री) निदेशक : मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल "
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