Aadi Shankracharya : Jeewan Aur Darshan
Author:
Jairam MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
v data-content-type="html" data-appearance="default" data-element="main"><p>आठवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में जैन धर्म, बौद्ध धर्म तथा अन्य अनेक सम्प्रदायों और मत-मतान्तरों का बोलबाला था। जैन धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म अधिक शक्तिशाली सिद्ध हुआ। जैन धर्म को खुलकर चुनौती दी। जैन धर्म भी वैदिक धर्म का कम विरोधी नहीं था। बौद्ध और जैन धर्मों के अतिरिक्त सातवीं-आठवीं शताब्दी में अन्य धार्मिक सम्प्रदाय भी प्रचलित हो गए थे। उनमें भागवत, कपिल, लोकायतिक (चार्वाक), काणाडी, पौराणिक, ऐश्वर, कारणिक, कारंधमिन (धातुवादी), सप्ततान्त्व (मीमांसक), शाब्दिक (वैयाकरण), पांचेरात्रिक प्रमुख थे। ये सभी सम्प्रदाय वेद-विरोधक और श्रुति-निन्दक थे। ऐसी विषम और भयावह स्थिति में धार्मिक जगत में किसी ऐसे उत्कट त्यागी, निस्पृह, वीतराग, धुरंधर विद्वान, तपोनिष्ठ, उदार, सर्वगुण-संपन्न अवतारी पुरुष की महान आवश्यकता थी जो धर्म की विशृंखलित कड़ियों को एकाकार करके उसे सुदृढ़ बनाता और धर्म का वास्तविक स्वरूप सबके सम्मुख प्रस्तुत करता। मध्वाचार्य ने शंकराचार्य के अवतार का वर्णन विस्तार के साथ किया है। उसका सारांश इस प्रकार है—"भगवती भूदेवी और समस्त देवताओं ने जगत-सृष्टा ब्रह्मा के साथ कैलाश पर्वत पर जाकर पिनाकपाणी आशुतोष भगवान शंकर की आर्त्त वाणी में करबद्ध स्तुति की। तब भगवान शंकर उन लोगों के सम्मुख अत्यन्त तेजस्वी रूप में प्रकट हुए और उन्हें इस प्रकार आश्वासन दिया—‘हे देवगण, मैं समस्त घटनाओं से भली-भाँति विज्ञ हूँ। अतः मैं मनुष्य का रूप धारण कर आप लोगों की मनोकामना पूर्ण करूँगा। दुष्टाचार विनाश के लिए तथा धर्म के स्थापन के लिए, ब्रह्मसूत्र के तात्पर्य निर्णायक भाष्य की रचना कर, अज्ञानमूलक द्वैतरूपी अन्धकार को दूर करने के लिए मध्यकालीन सूर्य की भाँति चार शिष्यों के साथ चार भुजाओं से युक्त विष्णु के समान इस भूतल पर यतियों में श्रेष्ठ शंकर नाम से अवतरित होऊँगा। मेरे समान ही आप लोग भी मनुष्य-शरीर धारण कर मेरे कार्य में हाथ बँटाइए।’ इतना कहकर और देवताओं को अन्य आवश्यक निर्देश देकर भगवान शंकर अन्तर्धान हो गए!" आचार्य शंकर का भारतीय दार्शनिकों में अप्रतिम स्थान है। पाश्चात्य दार्शनिक भी उन्हें श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं और उनकी प्रतिभा के सम्मुख नतमस्तक हैं। उनके बाल्यकाल से देहलीला सँवरण तक की घटनाएँ चमत्कारिक एवं दैवी शक्ति से परिपूर्ण हैं। इसलिए उन्हें भगवान आशुतोष शंकर का अवतार माना जाता है। उन्होंने वैदिक धर्म का पुनरुद्धार किया और उसके वास्तविक स्वरूप को सही अर्थ में समझाने की चेष्टा की। इस महान प्रयास में उन्हें तत्कालीन धर्मों और सम्प्रदायों से लोहा लेना पड़ा। शैवों, शाक्तों, वैष्णवों, बौद्धों, जैनों एवं कापालिकों आदि से शास्त्रार्थ करना पड़ा। अपनी असाधारण प्रतिभा और अकाट्य तर्कों द्वारा उन्हें पराजित किया। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण में चार शंकराचार्य को अभिषिक्त कर भारतीय वैदिक संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन का उत्तरदायित्व उन्हें सौंपा। उन्होंने शैवों, शाक्तों एवं वैष्णवों को एक सूत्र में बाँधा। इससे वैदिक धर्म अत्यन्त शक्तिशाली हो गया। मात्र बत्तीस वर्ष की अल्पायु में उन्होंने अद्वितीय आश्चर्यजनक कार्य किए।</p></
ISBN: 9788180312359
Pages: 275
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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इस पुस्तक में हिन्दी के शीर्षस्थ कथाकार अमरकान्त के संस्मरणों, आलेखों तथा साक्षात्कारों को संकलित किया गया है जो अत्यन्त दिलचस्प एवं महत्त्वपूर्ण हैं। इन रचनाओं में एक बड़े लेखक की परिवेश तथा सृजन-सम्बन्धी परिस्थितियों और संघर्ष-कथा के साथ, उन अग्रजों एवं साथी लेखकों को आदर और आत्मीयता के साथ याद किया गया है जिनसे उन्हें प्रेरणा, प्रोत्साहन और स्नेह मिला।
यहाँ प्रगतिशील आन्दोलन तथा नई कहानी आन्दोलन की वे घटनाएँ, बहसें और विवाद भी हैं, जिनसे कभी साहित्य जगत् हिल गया था। परन्तु अमरकान्त जी ने इन आन्दोलनों की विशेषताओं और उपलब्धियों के साथ, उनके अन्तर्विरोधों तथा दुर्बलताओं का तर्क-सम्मत विश्लेषण भी प्रस्तुत किया है और परिवर्तित समय में कहानी तथा प्रगतिशील लेखन की नई भूमिका को भी रेखांकित किया है।
इन रचनाओं के बीच कहानी लेखन की ओर प्रेरित करनेवाले अमरकान्त जी के शिक्षक बाबू राजेश प्रसाद तथा डॉ. रामविलास शर्मा हैं। इनके साथ भैरवप्रसाद गुप्त, प्रकाशचन्द्र गुप्त, शमशेर, मोहन राकेश, अमृत राय, रांगेय राघव, नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर, शेखर जोशी आदि के अनूठे संस्मरण भी हैं। निश्चय ही प्रत्येक हिन्दी लेखक तथा साहित्य-प्रेमी पाठक के लिए यह जानना ज़रूरी है कि साहित्य-इतिहास के इन प्रतिष्ठित रचनाकारों के सम्बन्ध में अमरकान्त क्या सोचते हैं।
मूल्यांकन की नई दृष्टि, हिन्दी के कथा-परिदृश्य पर डाली गई रोशनी और जीवन्त कथा-शैली के कारण यह संकलन जहाँ साहित्यिक कृति के रूप में उत्कृष्ट है, वहीं ऐतिहासिक दस्तावेज़ की तरह मूल्यवान भी।
Antim Sataren
- Author Name:
Anita Rakesh
- Book Type:

- Description: कथाकार मोहन राकेश के साथ बिताए अपने समय को लेकर अनीता राकेश के संस्मरणों की दो पुस्तकें हिन्दी पाठकों की प्रिय पुस्तकों में पहले से शामिल हैं—'चन्द सतरें और' तथा 'सतरें और सतरें'। उसी शृंखला में यह उनकी अगली पुस्तक है जिसे उन्होंने 'अन्तिम सतरें' नाम दिया है। इस पुस्तक में उन्होंने जितना अपने बीते समय का अवलोकन किया है, उतने ही चित्र अपने वर्तमान से भी प्रस्तुत किए हैं। बीते दिनों की यादों में जहाँ राकेश के साथ हुई कुछ झड़पें उन्हें याद आती हैं, वहीं राकेश की माताजी के साथ गुजरे अपने सबसे पूर्ण, सबसे आर्द्र क्षणों को भी वे याद करती हैं। बहैसियत लेखक राकेश जब अपने पति और पिता रूप के साथ लगभग नाइंसाफ़ी पर उतर आते, तब उन्हें अपने सिर पर अम्मा का ही साया मिलता, राकेश जब अपने कमरे का दरवाज़ा बन्द कर इनसानी रिश्तों की पेचीदगियों को सुलझाने की लेखकीय कोशिशें कर रहे होते, अनीता जी अम्मा के स्नेह के उसी साये तले रहतीं, खातीं-पीतीं, सोतीं, बीमार होतीं और फिर ठीक होतीं। इस समय वे अपने एक बेटे के साथ दिल्ली में रहती हैं। इस पुस्तक में राकेश और अम्मा के अलावा सबसे ज्यादा जगह उसी को मिली है। यह पुस्तक राकेश के व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं से हमें परिचित कराती है, लेकिन उससे ज़्यादा इस समय में जबकि साहित्य और पुस्तकों का बाज़ार बाक़ी बाज़ारों से मुक़ाबला करने के लिए तरह-तरह की मुद्राओं से लगभग खिजा रहा है, लेखकों और लेखकों के आश्रितों की स्थिति पर हमें सोचने पर विवश करती है।
Madam Sir
- Author Name:
Manjari Jaruhar
- Book Type:

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Description:
जीवन में अचानक आ पहुँचे एक मोड़ ने जब माता-पिता द्वारा निर्धारित की गई गृहिणी की भूमिका को ख़ारिज कर दिया, तब असामान्य मुश्किलों को पार करते हुए मंजरी देश की प्रतिष्ठित पुलिस सेवा में आनेवाली बिहार की पहली महिला बनीं।
‘मैडम सर’ उनकी पहली किताब है जिसकी पृष्ठभूमि में भागलपुर में अभियुक्तों को अंधा बनाने, 1984 के सिख-विरोधी दंगे, बिहार में लालू प्रसाद का शासनकाल जैसे महत्त्वपूर्ण प्रसंग हैं। वस्तुत: यह किताब एक महिला की नज़र से की गई भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की एक आंतरिक पड़ताल है।
यह किताब सुरक्षित वातावरण में पली एक लड़की के भारतीय पुलिस सेवा की सबसे अगली कतार तक पहुँचने का मर्मस्पर्शी विवरण है। यह एक ऐसी स्त्री द्वारा साहस, दृढ़ता और नेतृत्वकला का सबक़ है जिसने सहकर्मियों का अविश्वास और उपहास सहते हुए भी नए-नए रास्ते खोजे और सफलता पाई। यह कहानी आपको अपने सपने पूरे करने की प्रेरणा और असंभव ऊँचाइयाँ छूने की हिम्मत देगी।
The Three Muscat Years
- Author Name:
Dr. K. M. Harikrishnan
- Rating:
- Book Type:

- Description: In this book of adventure, a greenhorn Army doctor chronicles his discovery of a foreign land, newfound love, and new peoples. Three Muscat years and a series of matchless experiences help him cope with personal loss, understanding of fellow human beings, and self-discovery along the way. How does a young man come face-to-face with deep-rooted traditions and overpowering emotions experienced never before? Read on to find out from this heartwarming, brutally honest account.
Hamari Gaurav Gathayen
- Author Name:
Madan Gopal Sinhal
- Book Type:

- Description: "सुविख्यात साहित्यकार श्री मदनगोपाल सिंहल एक सिद्धहस्त एवं कर्मठ व्यक्ति हैं। उन्होंने समाज को अपनी अनेकों प्रसिद्ध पुस्तकों के माध्यम से राष्ट्रीय प्रेरणा दी है। मुझे श्री सिंहलजी की नवीनतम कृति ‘हमारी गौरव गाथाएँ’ देखने का अवसर मिला। मैं रुग्ण हूँ तथा अस्वस्थ होने के कारण मुझ पर अधिक पढ़ने पर भी प्रतिबंध है, किंतु जब मैंने ‘हमारी गौरव गाथाएँ’ पुस्तक की स्वर्णिम गाथाओं को पढ़ना प्रारंभ किया तो बीच में न छोड़ सका। भारत के इतिहास की एक-एक पंक्ति में हमारा स्वर्णिम अतीत छिपा हुआ है। हमारे इतिहास में समस्त विश्व को प्रेरणा देने की महान् सामर्थ्य विद्यमान है। जगद्गुरु भारत से ही समस्त विश्व के कोने-कोने में ज्ञान, बलिदान एवं शौर्य की ज्योतिर्मय किरणें पहुँच पाई हैं। श्री सिंहलजी ने भारत के इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों की कुछ गाथाओं को इस पुस्तक में सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। 1857 वीरांगना लक्ष्मीबाई, क्रांतिकारी बालक एवं ‘हिंदू एशिया’ जैसी महान् पुस्तकों के रचयिता श्री सिंहलजी की यह नवीन कृति भी आदर पाने योग्य है। अपनी सभ्यता-संस्कृति की उपेक्षा करके पाश्चात्य-संस्कृति पर गर्व करनेवाले तथाकथित भारतीयों को यह गाथाएँ प्रेरणा प्रदान करेंगी, ऐसी मुझे पूर्ण आशा है। —वि.दा. सावरकर
Bhagwan Budh : Jeewan Aur Darshan
- Author Name:
Damodar Dharmanand Kosambi
- Book Type:

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इस ग्रन्थ के मूल लेखक धर्मानन्द कोसम्बी पालि भाषा और साहित्य के प्रकांड पंडित थे। बौद्ध धर्म-सम्बन्धी तमाम मौलिक साहित्य का गहरा अध्ययन करके वे अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के विद्वान बने। लेकिन उनका सारा प्रयास केवल विद्वत्ता पाने के लिए नहीं था। वे बुद्ध भगवान के अनन्य भक्त थे। इसीलिए उन्होंने जो कुछ पाया, जो कुछ किया और साहित्य-प्रवृत्ति द्वारा जो कुछ दिया, वह सब का सब ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ था।
धर्मानन्द कोसम्बी द्वारा लिखित यह चरित्र शायद पहला ही चरित्र ग्रन्थ है, जो किसी भारतीय व्यक्ति ने मूल पालि बौद्ध ग्रन्थ ‘त्रिपिटिक’ तथा अन्य आधार-ग्रन्थों का चिकित्सापूर्ण दोहन करके, उसी के आधार पर लिखा हो। इस प्राचीन मसाले में भी जितना हिस्सा बुद्धि-ग्राह्य था उतना ही उन्होंने लिया। पौराणिक चमत्कार, असम्भाव्य वस्तु सब छोड़ दी, और जो कुछ भी लिखा, उसके लिए जगह-जगह मूल प्रमाण भी दिए। इस तरह बौद्ध-साहित्य में उनके काल की सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक जो कुछ भी जानकारी मिल सकती थी, उससे लाभ उठाकर इस ग्रन्थ में बुद्ध भगवान के काल की परिस्थिति पर नया प्रकाश डाला गया है। भगवान बुद्ध के बारे में प्रामाणिक जानकारी देनेवाली महत्त्वपूर्ण कृति।
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