Vidyapati
Author:
Shivprasad SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Ratings
Price: ₹ 480
₹
600
Available
विद्यापति सौन्दर्य और प्रेम के कवि थे। सौन्दर्य के बारे में उनकी क्या धारणा थी,<br />अथवा उनके सौन्दर्यबोध का क्या स्तर था—आदि प्रश्नों पर काफ़ी विस्तार से विचार किया गया है।<br />गीत-काव्य के बारे में, उसके रूप और आत्मा को दृष्टि में रखकर बिलकुल नए ढंग से विचार किया<br />गया है। अन्त में विद्यापति के अवहट्ट-काव्य का भी संक्षिप्त मूल्यांकन दे दिया गया है। क्योंकि<br />यह उनके कृतित्व का एक बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है।
ISBN: 9788194364849
Pages: 308
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
विचार का आईना शृंखला के अन्तर्गत ऐसे साहित्यकारों, चिन्तकों और राजनेताओं के ‘कला साहित्य संस्कृति’ केन्द्रित चिन्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। इसके पहले चरण में हम मोहनदास करमचन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, रामचन्द्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारपरक लेखन से एक ऐसा मुकम्मल संचयन प्रस्तुत कर रहे हैं जो हर लिहाज से संग्रहणीय है।
आधुनिक भारतीय मनीषा जिन व्यक्तित्त्वों में सर्वाधिक प्रखर रूप में प्रकट हुई उनमें रवीन्द्रनाथ ठाकुर अग्रणी हैं। साहित्य, संगीत, कला, शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में उनका अप्रतिम योगदान है। परम्परा से लगातार बहस और संवाद करते हुए वे ऐसे चिन्तक के रूप में सामने आते हैं जिनका लक्ष्य सम्पूर्ण मानवता है। वे पश्चिम और पूरब के बीच एक मनोहारी पुल की तरह रहे। गांधी समेत अपने समय की सभी बड़ी राजनैतिक और सांस्कृतिक हस्तियों से उनका सघन संवाद रहा। हमें उम्मीद है कि राष्ट्रवाद के आलोचक और सम्पूर्ण मानवता के उल्लास और विकास के हामी टैगोर के कला, साहित्य और संस्कृति सम्बन्धी प्रतिनिधि निबन्धों की यह किताब सभी पाठकों के लिए एक सुन्दर, समृद्ध और न भूलनेवाला अनुभव साबित होगी।
Jayasi : Ek Nai Drishti
- Author Name:
Raghuvansh
- Book Type:

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Description:
प्रस्तुत पुस्तक जायसी साहित्य के अध्ययन-चिन्तन में एक नई दृष्टि की शुरुआत करती है। धर्म, दर्शन और आचरण की मूल्यपरक रचना-प्रक्रिया मानवीय संस्कृति की आन्तरिक प्रकृति है—इस ज्ञान के साथ उन्होंने पाया है कि इसी की अभिव्यक्ति मनुष्य की कलाओं और साहित्य में होती है।
प्रस्तुत पुस्तक के विभिन्न प्रकरणों में जायसी के जीवन, दार्शनिक चिन्तन, उनकी आध्यात्मिक दृष्टि, साधना की भाव-भूमि, मानवीय जीवन के सारे परिवेश के साथ उसके मूल्य प्रक्रिया के विविध पक्षों को विवेचित करने में लेखक ने सर्वथा नई दृष्टि से काम लिया है।
जायसी साहित्य के अध्येताओं के लिए डॉ. रघुवंश की यह पुस्तक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और उपयोगी है।
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