Adhyatmik Guruon Ke Prerak Vichar
Author:
Swati GautamPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
अध्यात्म का अर्थ है—स्वयं का अध्ययन। धर्म का अर्थ है— कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्गुण और जो धारण करने योग्य है, जिसे सभी मनुष्यों को धारण करना चाहिए। धर्म-अध्यात्म हमें ऐसी शक्ति की ओर ले जाते हैं, जो हमारी आस्तिकता को मजबूत बनाती है। जो ईश्वर में विश्वास करे, वह आस्तिक होता है। वही आस्तिकता जब मजबूत होती है, तब व्यक्ति अध्यात्म की ओर बढ़ता है और एक ऐसी शक्ति में विश्वास करता है, जो ऊर्जा का केंद्र है, जो हमारे जीवन का केंद्रबिंदु है।
भारत आध्यात्मिक विभूतियों का केंद्र रहा है। चाहे रामकृष्ण परमहंस, दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, रमण महर्षि, अखंडानंद सरस्वती हों—मानवकल्याण के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करनेवाले इन दिव्य प्रेरणापुंजों ने मानव जीवनमूल्यों की स्थापना के लिए जो वाणीरत्न दिए, वे सबके लिए वरेण्य हैं, अनुकरणीय हैं। इन्हें जीवन में उतारकर हम एक सफल-सार्थक-समर्पित जीवन जी सकते हैं।
भारतीयता के ध्वजवाहक विश्वविख्यात आध्यात्मिक गुरुओं के प्रेरक वचनों का यह संकलन हमें जीवन के हर अवसर पर प्रेरणा देगा, हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाएगा।
ISBN: 9789390378715
Pages: 208
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Constitution, Culture and Nation
- Author Name:
Kalraj Mishra
- Book Type:

- Description: Through this book, I am handing over the articles which I had written from time to time on the issues related to the Constitution, Indian Culture, and the nation to the readers out there. The Constitution of the country that was written after the independence of the country has the echo of this very culture of the nation. The Indian Constitution is based on the values of equality and liberty to all irrespective of caste, religion, class, etc. This is our culture. The Constitution, the culture, and nation are actually intertwined. I believe that the nation becomes stronger only when its people are committed to following the values associated with the Constitution and culture. Even though we got freedom from the British in 1947, the real freedom of the country means writing our own destiny. It is also important to uphold freedom. Upholding freedom means committing to fulfilling one’s duties towards its nation and enjoying the rights written in our Constitution. I like to call the ‘Indian Constitution’ a ‘global document of human rights’. The reason being the perfect blend of rights and duties consisting the lofty values allied with life on which the development of humanity is founded.
Kanakdas Ka Kavya
- Author Name:
Kanakdas
- Book Type:

-
Description:
कनक द्वारा रचित कीर्तन अद्भुत हैं। पौराणिक कथा-सन्दर्भ के सहारे कृष्ण के दशावतार का पहेलीबद्ध ढंग से वर्णन करना कनक काव्य-शैली की विशेषता है। भगवान कृष्ण के चरित्र के आन्तरिक सम्बन्धों का गाँठदार वर्णन और घुमावदार रूप चित्रण-शैली कन्नड़ में मुंडिगे कहलाती है। कवि कनक मुंडिगे लेखन में सिद्धहस्त हैं। कनकदास द्वारा मुंडिगे-शैली का अत्यन्त सशक्त ढंग से प्रयोग और वर्णन से लगता है—यह शैली उनके लिए, जात के आधार पर पांडित्य का और काव्यज्ञान का अहंकार बघारनेवाले समकालीन पंडितों की टक्कर में, अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति-कुशलता को दर्शाने का ज़रिया मात्र थी। कनक की मुंडिगे के अनेक सुन्दर नमूने मिलते हैं। सम्पूर्ण भक्ति साहित्य में कनक के समान मुंडिगे रचयिता विरले ही हैं। अलंकारों के समृद्ध प्रयोग में कनक का सानी दूसरा नहीं।
विष्णु के दशावतार का वर्णन और अवतारी कृष्ण के नाना लीलाओं का वर्णन कनकदास ने बहुत ही रमकर एवं जमकर किया है। अपने आराध्य देव की स्तुति में कनक कहीं भी कोताही नहीं करते। लगता है, स्तुति के लिए अलग-अलग प्रसंगों की खोज में कनक लगे ही हुए हैं। अपने सगुण साकार सुन्दर और धीरशूर आराध्य देव के हर रूप का, हर कलाओं का वैभवमय वर्णन करते हैं। दास साहित्य के श्रेष्ठ कवि कनकदास भगवान की स्तुति में, रूप वर्णन में प्रेमी कृष्ण और प्रेमिका राधा के मध्य की रागात्मक और माधुर्य सम्बन्धों का आधार लेते हैं। प्रेमिका राधा, प्रोषितपतिका राधा, मिलनाकांक्षी राधा ऐसे अनेक रूपों के द्वारा कृष्ण के विविध अवतारों का मुंडिगे-शैली में वर्णन करते हैं। इन लीला-वर्णनों में स्तुति-निन्दा काव्य-रूढ़ि का भी अत्यन्त ही आत्मीय और अद्भुत प्रयोग कनक ने किया है। ‘कनकदास का काव्य’ पुस्तक में ऐसे ही कनक रचित सुन्दर कन्नड़ मुंडिगे का अनुवाद हिन्दी पाठकों के लिए प्रस्तुत किया गया है।
—प्रो. परिमला अंबेकर
Prarambhik Awadhi
- Author Name:
Vishwanath Tripathi
- Book Type:

-
Description:
जिन रचनाओं के आधार पर प्रस्तुत अध्ययन किया गया है, वे मोटे तौर पर 1000 ई. से लेकर 1600 ई. तक की हैं। राउरबेल का रचनाकाल 11वीं शती है। इसलिए यदि राउरबेल के प्रथम नखशिख की भाषा को, जिसमें अवधी के पूर्व रूपों की स्थिति मानी गई है, भाषा का प्रतिनिधि मान लिया जाए जिससे अवधी विकसित हुई तो अनुचित नहीं होगा।
इस पुस्तक में 'अवधी की निकटतम पूर्वजा भाषा’ नामक अध्याय में प्राकृत पैंगलम् के छन्दों, राउरबेल और उक्तिव्यक्तिप्रकरण में से ऐसे रूपों को ढूँढ़ने का प्रयास है जो अवधी में मिलते हैं या जिनका विकास उस भाषा में हुआ है। अगले अध्याय अर्थात् ‘प्रारम्भिक अवधी के अध्ययन की सामग्री’ में प्रकाशित और अप्रकाशित वे रचनाएँ विचार के केन्द्र में हैं जिनके आधार पर प्रारम्भिक अवधी का भाषा सम्बन्धी विवेचन किया गया है।
‘ध्वनि विचार’ के अन्तर्गत प्रारम्भिक अवधी के व्यंजनों और स्वरों को निर्धारित करने का प्रयत्न किया गया है। प्रारम्भिक अवधी की ध्वनियों को ठीक-ठीक निरूपित करने के लिए आज हमारे पास कोई प्रामाणिक साधन नहीं है। इसलिए इन पर प्राचीन वैयाकरणों तथा अन्य विद्वानों के मतों के प्रकाश में विचार किया गया है।
प्रारम्भिक अवधी की क्रियाओं का अध्ययन प्रस्तुत प्रबन्ध का सबसे महत्त्वपूर्ण अंश समझा जाना चाहिए, क्योंकि प्रारम्भिक अवधी में ऐसे कई क्रिया-रूपों का पता चला है जो परवर्ती अवधी में या तो बहुत कम प्रयुक्त हैं या अप्रयुक्त हैं। ‘उपसंहार’ के अन्तर्गत प्रारम्भिक अवधी की कुछ विशेषताओं को ध्यान में रखकर अवधी काव्यों की भाषा से उसका अन्तर स्पष्ट कर दिया गया है। आशा है, पाठक इस पुस्तक को सार्थक पाएँगे।
Samkaleen Kavita Ke Ayam
- Author Name:
P. Ravi
- Book Type:

-
Description:
समकालीन सोच एक ओर समग्रतावादी रुख़ ग्रहण कर सामाजिक परिवर्तन की बातों पर अपना ध्यान केन्द्रित रखती है तो दूसरी ओर वह व्यक्तिवादी-अस्तित्ववादी न होकर व्यक्ति की अस्मिता के प्रति पूरी तरह सजग रहती है, अस्तित्व के प्रति भी। वह महान क्रान्ति पर नहीं, छोटी-छोटी लड़ाइयों पर आस्था रखती है। इतिहास का अन्त, विचारधारा का अन्त, कविता का अन्त वाली बातों का विरोध भी करती है। इस तरह की बातों को वह नकारात्मक मानव विरोधी सोच कहकर टाल देती है। वैश्वीकरण, बाज़ारवाद, उपभोक्तावाद, साम्प्रदायिकता, अंधाधुंध विकास नीति इत्यादि का विरोध करती है, साथ ही साथ स्त्री, दलित, आदिवासी अस्मिता पर ज़ोर देती है।
समकालीन कविता लगभग इसका अनुसरण करती आ रही है। उसके कई मायने हैं और उन मायनों में एक तत्त्व प्रमुख है, वह है उसकी मानवीय संसक्ति। समकालीन कविता मानवता की तरफ़दारी करके अपने इतिहास का विकास करती आ रही है, मानवता का इतिहास रच रही है। असल में वह समकालीन जीवन की सामाजिक-सांस्कृतिक विमर्श ही प्रस्तुत करती है। पुराने समाज के समान आज के समाज में शोषक एवं शोषित हैं, लेकिन दोनों को अलग करना कठिन कार्य हो गया है। आज शोषक स्पष्ट दिखाई नहीं देता है, वह कई रूपों-भावों-गंधों-रंगों-रुचियों के रूप में समाज की प्रगति एवं तरफ़दारी का भ्रम फैलाकर अपना काम साधता है। समकालीन कविता इस मायिकता के प्रति मनुष्य एवं समाज को सजग करती है, प्रतिरोध करने की सख़्त ज़रूरत पर बल भी देती है। कहीं-कहीं वह प्रतिरोध के मार्ग की ओर संकेत भी करती है।
Faz Ki Shairy : Ek Juda Andaj Ka Jadu
- Author Name:
Chanchal Chauhan +1
- Book Type:

-
Description:
बीसवीं सदी के विश्व-कवियों में पाब्लो नेरुदा, नाज़िम हिकमत, ब्रेख़्त और महमूद दरवेश के साथ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का नाम अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। हिन्दुस्तान-पाकिस्तान और बांग्लादेश अर्थात् इस महाद्वीप के कवियों में रवीन्द्रनाथ टैगोर और इक़बाल के बाद फ़ैज़ को ही हम लोग याद करते हैं। फ़ैज़ आज़ादी, समाजवाद, सहज मानवीय ममता और गहरी प्रेमानुभूति के शायर के रूप में मशहूर रहे हैं। उनकी ग़ज़लें और नज़्में लोगों की स्मृतियों में बस गई हैं और उनकी ज़बान पर चढ़ी हुई हैं। फ़ैज़ की शायरी आम लोगों की मुसीबतों, संघर्षों और अटूट संकल्पों की ऐसी गाथा है जिसे उर्दू ही नहीं, हिन्दी के पाठक भी अपनी साहित्यिक विरासत का हिस्सा मानते हैं।
फ़ैज़ के क़लमकार और शायर के सम्पूर्ण रचनाकर्म पर हिन्दी में यह पहली आलोचनात्मक पुस्तक है। इस किताब में उनके समकालीन मुल्कराज आनन्द, सिब्ते हसन, सज्जाद ज़हीर, वज़ीर आगा के लेख तो हैं ही, उनके अलावा उर्दू के बड़े लेखकों में मुहम्मद हसन, शमीम हनफ़ी, अली मुहम्मद सिद्दीक़ी, जुबैर रिज़वी, शमीम फ़ैज़ी और अली अहमद फ़ातमी की आलोचनात्मक कृतियाँ इस पुस्तक में संकलित कर ली गई हैं। इस किताब की दूसरी बड़ी ख़ूबी यह है कि शमशेर बहादुर सिंह के बाद इसमें हिन्दी के अनेक महत्त्वपूर्ण रचनाकारों ने जन्मशताब्दी वर्ष में फ़ैज़ पर पहली बार लिखा है। मसलन केदारनाथ सिंह, अशोक वाजपेयी, असग़र वजाहत, राजेश जोशी, मंगलेश डबराल, मनमोहन, असद ज़ैदी, कृष्ण कल्पित, अरुण कमल, प्रणय कृष्ण, वैभव सिंह के लेखों के साथ तीनों सम्पादकों की अलग-अलग ढंग से लिखी आलोचनात्मक कृतियाँ इस किताब का विशेष आकर्षण हैं। दृश्य-श्रव्य कलाओं के मर्मज्ञ सुहैल हाशमी, इतिहासकार ज़हूर सिद्दीक़ी, युवा लेखिका अर्जुमंद आरा और पंजाबी के मशहूर लेखक सतिन्दर सिंह नूर के लेखों के कारण इस किताब में अनेक अनछुए प्रसंगों पर भी भरपूर चर्चा की गई है। इस पुस्तक को छह लेखकों-विद्धानों की टोली ने भरपूर मेहनत के साथ तैयार किया है। इनमें तीन सम्पादक हैं जिन्हें रेखा अवस्थी, जवरी मल्ल पारख और संजीव कुमार जैसे सहयोगी सम्पादकों के कठिन अध्यवसाय और परिश्रम की सहायता मिलती रही है। हिन्दी-उर्दू और पंजाबी भाषी लोग इस पुस्तक को अवश्य ही पसन्द करेंगे।
Navan Dashak : Naven Dashak Ki Hindi Kavita Par Ekagra
- Author Name:
Avinash Mishra
- Book Type:

-
Description:
युवा कवि-उपन्यासकार-आलोचक अविनाश मिश्र की यह पुस्तक उनके द्वारा नवें दशक के नौ कवियों पर किए गए व्यवस्थित चिन्तन की प्रस्तुति है। इन आलेखों में उन्होंने समकालीन आलोचना की स्वीकृत-प्रचलित परिपाटी से हटकर जिस तरह नवें दशक की कविता और उसके कवियों को समझा है, वह हिन्दी आलोचना में मौजूद एक बड़ी ख़ाली जगह को भी भरता है, और कविता के साथ आलोचना के भविष्य के प्रति भी आश्वस्त करता है।
उन्हीं के शब्दों में : नवाँ दशक नए तक पहुँचने की आँधीनुमा चाल का काल है। इस काल में बहुत कुछ अतीत का अंग होकर अप्रासंगिक होने के लिए अभिशप्त है। यहाँ एक स्थिति दूसरी स्थिति को बहुत तीव्रता से अपदस्थ कर रही है। यह सांस्कृतिक स्पन्दनों, मानवीय सम्बन्धों और पृथ्वी के नए सिरे से परिभाषित होने की घड़ी है। यह 'विचारधारा पर विचार' का समय है। यह वैश्वीकरण के तीव्र प्रवाह में अपनी जड़ें और प्राचीन रुचियाँ गँवाकर बाज़ार में गड्डमड्ड हो जाने का वर्तमान है। इस दौर का साहित्य मूलत: बाज़ार में रहकर बाज़ार-विरोध या अधिक तर्कयुक्त ढंग से कहें तो बाज़ारवाद-विरोध का साहित्य है।
इस महादृश्य में हिन्दी कविता ने अपने काम को बहुत फैला लिया। उसने अपने दायरे से बाहर देखना शुरू किया। उसने अपनी और अपने से गुज़र रहे जन की आँखें पीछे की ओर भी उत्पन्न कीं और इस प्रकार वास्तविक शत्रुओं की शिनाख़्त की। उसका काम कम से चलना बन्द हो गया। वह हाशियों तक फैलती चली गई। वह गति के साथ रही और यथार्थ के भी। वह सही अर्थों में समकालीन रही और उसने अपने ठीक पहले की कविता से बहुत अलग नज़र आने के कार्य भार को भी तरजीह दी।
अविनाश मिश्र ने इन आलेखों में इस निर्णायक कविता-समय को उसी समग्रता में पकड़ा है जिसकी ज़रूरत इस कार्यभार के लिए थी। पूर्व-कथन के रूप में एक लम्बा आलेख इस पुस्तक के लिए उन्होंने विशेष तौर पर लिखा है जिसमें बीसवीं सदी के अन्तिम वर्षों में सामने आए कवियों पर एक विहंगम दृष्टि डाली है। पुनः उन्हीं के शब्दों में हिन्दी आलोचना पर यह भी एक आक्षेप है कि वह प्राय: प्रतिष्ठित को प्रतिष्ठित और उपस्थित को उपेक्षित करती/रखती है। इस अर्थ में यह आलोचना-पुस्तक पूर्णत: उपस्थित को सम्बोधित है।
Etihasik Bhashavigyan Aur Hindi Bhasha
- Author Name:
Ramvilas Sharma
- Book Type:

-
Description:
रामविलास जी ने भाषा की ऐतिहासिक विकास-प्रक्रिया को समझने के लिए प्रचलित मान्यताओं को अस्वीकार किया और अपनी एक अलग पद्धति विकसित की।
वे मानते थे कि कोई भी भाषापरिवार एकान्त में विकसित नहीं होता, इसलिए उसका अध्ययन अन्य भाषापरिवारों के उद्भव और विकास से अलग नहीं होना चाहिए। वे चाहते थे कि प्राचीन लिखित भाषाओं की सामग्री का उपयोग करते समय जहाँ भी समकालीन उपभाषाओं, बोलियों आदि की सामग्री प्राप्त हो, उस पर भी ध्यान दिया जाए, इसी तरह आधुनिक भाषाओं पर काम करते हुए उनकी बोलियों के भाषा-तत्त्वों को भी सतत ध्यान में रखा जाए। भाषा की विकास-प्रक्रिया के विषय में उनकी मान्यता थी कि भाषा निरन्तर परिवर्तनशील और विकासमान है। विरोध और भिन्नता के बिना भाषा न गतिशील हो सकती है, न वह आगे बढ़ सकती है। इसलिए किसी भी भाषा के किसी भी स्तर पर, विरोधी प्रवृत्तियों और विरोधी तत्त्वों के सहअस्तित्व की सम्भावना के लिए हमें तैयार रहना चाहिए।
इन तथा कुछ और बातों, जो रामविलास जी की भाषावैज्ञानिक समझ का अनिवार्य अंग थीं, को ध्यान में रखते हुए ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के क्षेत्र में अनुसन्धान नहीं किया गया, अगर ऐसा किया जाता तो निश्चय ही कुछ नए निष्कर्ष हासिल होते। रामविलास जी ने विरोध का जोखिम उठाकर भी यह किया, जिसके प्रमाण इस पुस्तक में भी मिल सकते हैं।
Siya Ram Sharan Gupt : Rachana Avam Chintan
- Author Name:
Lalit Shukla
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Bharatiya Sahitya : Asha Aur Astha
- Author Name:
Dr. Arsu
- Book Type:

-
Description:
सांस्कृतिक और भाषाई एकता के उद्देश्य से सृजित एक विशिष्ट कृति। व्यापक भाषिक विविधता के बावजूद भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक चेतना मूलतः एक है। यह पुस्तक इस सार्वकालिक सत्य को नए ढंग से प्रमाणित करती है।
दो खंडों में विभाजित इस पुस्तक के पहले खंड ‘आशा’ में हिन्दी के उत्थान में अन्य भारतीय भाषाओं की भूमिका के साथ अन्य भाषाओं के साहित्य के माध्यम से उन प्रदेशों की भाषा, संस्कृति व इतिहास से परिचय कराया गया है और यह स्थापित किया गया है कि साहित्य का सन्देश एक ही होता है—मानवीय संस्कृति को जाग्रत कर मानव को संवेदना से परिपूर्ण बनाना।
इस खंड में उल्लिखित लेखकों तथा विश्व-शान्ति के सन्दर्भ में भारतीय साहित्य व दर्शन के विवेचन से परिचित कराने के साथ ही राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, तमिल के कवि सुब्रह्मण्य भारती और मलयालम के कवि वल्लत्तोल के काव्य और उनके विचारों से भी अवगत कराया गया है।
दूसरे खंड ‘आस्था’ में विभिन्न भाषाओं—असमिया, बांग्ला, डोगरी, अंग्रेज़ी, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मराठी, मणिपुरी, मलयालम, मैथिली, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, राजस्थानी, संस्कृत, सिन्धी, तमिल व उर्दू के शीर्षस्थ साहित्यकारों से भेंटवार्ताएँ दी गई हैं। इन भेंटवार्ताओं के माध्यम से हमें साहित्यकारों के व्यक्तित्व व कृतित्व से ही परिचय नहीं मिलता, बल्कि उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं तथा तत्कालीन समाज की राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक समस्याओं का भी पता चलता है।
Aadhunik Hindi Upanyaas : Vol. 1
- Author Name:
Bhisham Sahni
- Book Type:

-
Description:
प्रेमचन्द ने पहली बार इस सत्य को पहचाना कि उपन्यास सोद्देश्य होने चाहिए अर्थात् उपन्यास या कोई भी साहित्यिक विधा मनोरंजन के लिए नहीं होती वरन् वह मानव-जीवन को शक्ति और सुन्दरता प्रदान करनेवाली सोद्देश्य रचना होती है।
प्रेमचन्द में यथार्थ के जिन दो आयामों (सामाजिक और मनोवैज्ञानिक) का उद्घाटन हुआ, वे प्रेमचन्द के बाद अलग-अलग धाराओं में बँटकर तथा अपनी-अपनी धारा की अन्य अनेक सूक्ष्म बातों में संश्लिष्ट होकर बहुत तीव्र और विशिष्ट रूप में विकसित होते गए। एक ओर मनोविज्ञान की धारा बही, दूसरी ओर समाजवाद की।
प्रेमचन्दोत्तर सामाजिक उपन्यासों में मार्क्सवाद का स्वर प्रधान न भी रहा हो, किन्तु उसका प्रभाव निश्चय ही अन्तर्निहित रहा है। उसके प्रभाव के कारण ही निर्मम भाव से सामाजिक विसंगतियों को उद्घाटित किया गया। आंचलिक उपन्यासों की भी जन-चेतना उन्हें प्रेमचन्द से जोड़ती है, किन्तु अपने स्वरूप और दृष्टि में ये बहुत भिन्न हैं। इन्हें उपन्यास की एक नई विधा के रूप में ही स्वीकारना चाहिए।
यह आकस्मिक नहीं है कि स्वाधीनता प्राप्ति के बाद उपन्यास तो बहुत सारे लिखे गए किन्तु उपलब्धि के शिखरों को वे ही छू सके जो सामाजिक जीवन के अनुभवों के प्रति समर्पित रहे, जिनकी दृष्टि की आधुनिकता एक मुद्रा या तेवर की तरह टँगी नहीं रही, बल्कि सघन जीवन-यथार्थ के अनुभवों के बीच एक रचनात्मक शक्ति बनकर व्याप्त रही।
'आधुनिक हिन्दी उपन्यास' के सफ़र पर केन्द्रित यह पुस्तक 'गोदान' से लेकर आठवें दशक तक के महत्त्वपूर्ण उपन्यासों तक आती है। उल्लेखनीय है कि चालीस से अधिक जो उपन्यास इस चर्चा के केन्द्र में हैं; उनमें से अधिकांश हिन्दी के 'क्लासिक्स' के रूप में प्रतिष्ठित हुए। यह पुस्तक केवल समीक्षा-संकलन नहीं है; सन्दर्भित उपन्यासों के रचनाकारों के आत्मकथ्य इसे एक रचनात्मक आयाम भी देते हैं जिनसे हमें इन उपन्यासों की रचना-प्रक्रिया का पता चलता है।
Kabristan Mein Panchayat
- Author Name:
Kedarnath Singh
- Book Type:

-
Description:
‘कब्रिस्तान में पंचायत’ कवि केदारनाथ सिंह की एक गद्य कृति है—एक कवि के गद्य का एक विलक्षण नमूना—जिसमें उसकी सोच, अनुभव और उसके पूरे परिवेश की कुछ मार्मिक छवियाँ मिलेंगी और बेशक वे चिन्ताएँ भी जो सिर्फ़ एक लेखक की नहीं हैं। पुस्तक के नाम में जो व्यंग्यार्थ है, वह हमारे समय के गहरे उद्वेलन की ओर संकेत करता है और शायद इस बात की ओर भी कि इस अबोलेपन की हद तक बँटे हुए समय में परस्पर बातचीत के सिवा कोई रास्ता नहीं। यह अबोलापन इतना गहरा है और इतनी दूर तक फैला हुआ कि आज एक माँ और ‘उसके द्वारा रची गई उसकी अपनी ही सृष्टि’ के बीच एक लम्बी फाँक आ गई है। इस पुस्तक के ज़्यादातर आलेख इन्हीं फाँकों या दरारों के बोध से पैदा हुए हैं—फिर वह अक्का महादेवी की पीड़ा-भरी चुनौती हो या एक रहस्यमय दर्द से एक मामूली आदमी का मर जाना।
इन आलेखों में एक सुखद विविधता मिलेगी, जिसका फलक एक ओर वाक्यपदीयम् से कोलकाता की सड़क पर पड़ी घायल चिड़िया तक फैला है और दूसरी ओर विस्मृत दलित कवि देवेन्द्र कुमार से दलित कविता के पितामह तेलगू के महाकवि गुर्रम जाशुआ तक। दक्षिण के कुछ कालजयी रचनाकारों पर लिखी गई तलस्पर्शी टिप्पणियाँ इस पुस्तक को एक और विस्तार देती हैं और थोड़ी-सी अखिल भारतीयता भी।
पारदर्शी और कसी हुई भाषा में लिखे गए ये आलेख कुछ समय पूर्व दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ में क्रमिक रूप से छपे थे और वृहत्तर पाठक-समुदाय द्वारा पढ़े-सराहे गए थे। कुछ नई सामग्री के साथ उन आलेखों को एक जगह एक साथ पढ़ना एक अलग ढंग का अनुभव होगा और शायद एक आवयिक संग्रथन का सूचक भी।
Hindi Bhasha Aur Mahavir Prasad Dwivedi
- Author Name:
Madhu Gautam
- Book Type:

-
Description:
युग-निर्माता आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने अपने युग के लेखकों की भाषा में जो सुधार किए एवं उनकी रचनाओं का भाषा-विश्लेषण किया है, उनके योगदान का सम्यक् इस पुस्तक में मूल्यांकन किया गया है। लेखिका ने आलोच्य पुस्तक में महावीरप्रसाद द्विवेदी का मूल्यांकन भाषा-वैज्ञानिक पद्धति पर किया है, जिसके साथ उनका साहित्यिक अवदान भी स्पष्ट होता चला है। ‘सरस्वती’ पत्रिका में द्विवेदी जी के सम्पादन-कर्म का सम्यक् मूल्यांकन भी इस पुस्तक की अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता है।
द्विवेदी जी द्वारा प्रयुक्त शब्दकोश को भी प्रस्तुत किया गया है। जिन पाठकों को द्विवेदी जी के समस्त कार्यों का अवगाहन कर ‘सरस्वती’ के महत्त्व को जानने की जिज्ञासा हो, साथ ही नवजागरण से युक्त हिन्दी साहित्य के व्याकरणिक परिवर्तन को देखने की इच्छा हो उनके लिए यह पुस्तक अवश्य पठनीय एवं मनन योग्य है। महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के मूल्यांकन में यह पुस्तक नए आयाम खोलती है, जिसका आधार भाषाशास्त्र है।
Premchand
- Author Name:
Ramvilas Sharma
- Book Type:

-
Description:
‘प्रेमचन्द’ नामक यह पुस्तक डॉ. रामविलास शर्मा की पहली आलोचना-कृति है। कहा जा सकता है कि न सिर्फ़ पाठकों के लिए इसका ऐतिहासिक महत्त्व है, बल्कि स्वयं रामविलास जी के लिए भी यह एक महत्त्वपूर्ण कृति थी।
लेकिन इसकी ऐतिहासिकता के अनेक आयाम हैं, जिनमें से एक है प्रेमचन्द-साहित्य को लेकर 1935-40 के दौरान चले कई तरह के विवादों में सार्थक हस्तक्षेप। सन्दर्भतः इस पुस्तक ने उन लेखकों को भी जवाब दिया जो प्रेमचन्द-साहित्य के प्रगतिशील पक्ष को नकार रहे थे और उन प्रगतिशीलों को भी जो यूरोपीय लेखकों के प्रभाववश प्रेमचन्द की प्रगतिशील रचनादृष्टि को पिछड़ी बता रहे थे। इस संस्करण में एक लम्बी भूमिका जोड़कर डॉ. शर्मा ने गोर्की, टाल्स्टाय और दोस्तोएव्स्की के रचनाकर्म के सन्दर्भ में प्रेमचन्द-साहित्य की प्रगतिशील मूल्यवत्ता से जुड़ी अपनी मूल प्रस्थापनाओं को और भी सुदृढ़ किया है।
संक्षेप में, प्रेमचन्द-साहित्य को लेकर इस पुस्तक की विवेचना-दृष्टि को रामविलास जी के ही शब्दों में यूँ रखा जा सकता है : “समाज के विभिन्न स्तरों का व्यापक ज्ञान संसार के बहुत कम साहित्यिकों में मिलेगा। प्रेमचन्द के विचार बहुत स्पष्ट नहीं थे, परन्तु उनमें कलाकार की सचाई की कमी न थी।...आज के साहित्यिक के विचार बहुत कुछ स्पष्ट हो गए हैं; परन्तु उसके पास प्रेमचन्द का अनुभव नहीं, उनकी-सी सचाई भी कम है। प्रेमचन्द की कृतियों का हमारे लिए यह सन्देश है कि हम जनता में जाकर रहें और काम करें—रचनाओं में ‘जनता-जनता’ कम चिल्लाएँ। प्रेमचन्द ने साहित्य में कितना काम किया है और कहाँ से अपनी साहित्यिकता आरम्भ करने से लेखक प्रगतिशील बन सकता है, कम से कम इतना इस पुस्तक के पढ़ने से स्पष्ट हो जाना चाहिए।”
Vartman Natyashastra Ka Vishleshan
- Author Name:
Shiv Murat Singh
- Book Type:

-
Description:
नाट्यशास्व की रचना देव-भाषा संस्कृत या देव वाणी में हुई है, जिसकी महिमा से पार नहीं पाया जा सकता है।
नाट्योत्पत्ति, नाट्यशास्त्र क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं आता। इस विषय का घनिष्ठ सम्बन्ध नृशास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, शरीर विज्ञान, भाषा विज्ञान आदि से है। फिर नाट्योत्पत्ति सम्बन्धी जानकारी प्राप्त कर रूपक-संरचना समझने में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। यह मानवीय क्रिया है। इसका सम्बन्ध समाज-प्रकृति-परिवेश से है, प्रगति प्रक्रिया से है, समय और स्थान से है। भविष्य से सम्बन्धित विचारों और तदनुरूप आशाओं से रहित मनुष्य की कल्पना करना असम्भव है। मानव जाति हमेशा ही बेहतर भविष्य का स्वप्न देखती रही है। सामाजिक एवं आर्थिक विकास ही मानवजाति की मूल समस्या रही है। मनुष्य की गतिशीलता और उनके सक्रिय जीवन से भाषा की भाँति नाट्य का गहरा सम्बन्ध है। लेकिन ऐतिहासिक प्रगति या सामाजिक विकास के आधार को मान्यता न देकर धार्मिकता या दैवाधीनता को महत्त्व देकर इस नाट्यशास्त्र को बड़ा या विस्तृत आकार दिया गया है।
Bhasha Aur Sameeksha Ke Bindu
- Author Name:
Satyadev Mishra
- Book Type:

-
Description:
आधुनिक हिन्दी-समीक्षा के स्वरूप-विकास में पौर्वात्य से कहीं अधिक पाश्चात्य समीक्षा-दर्शन का अनुप्रभाव परिलक्षित हो रहा है। आज विश्वविद्यालयों और प्रतियोगी-परीक्षाओं में जिन समीक्षा-सिद्धान्तों, आलोचनात्मक प्रत्ययों, समीक्षा-आन्दोलनों की चर्चा का विषय बनाया जा रहा है, प्रश्नांकनों की कसौटी पर कसा जा रहा है, उनमें से अधिकांश पाश्चात्य भाषा-विमर्श, साहित्य-कला-दर्शन और अन्य साहित्येतर अनुशासनों से अनुस्यूत हैं। इन नवोन्मेषी सिद्धान्तों, वादों और समीक्षात्मक संकल्पनाओं, साहित्येतर अवधारणाओं का प्रामाणिक विमर्श इस ग्रन्थ में है।
प्रस्तुत कृति संगोष्ठियों में विमर्श के अधुनातन सन्दर्भों से सम्पृक्त है। विश्वास है कि शिक्षकों-शिक्षार्थियों, प्रतियोगियों और जिज्ञासुओं के लिए यह उपादेय सिद्ध होगी।
Samkaleenta Aur Sahitya
- Author Name:
Rajesh Joshi
- Book Type:

-
Description:
जब मैं बैंक में काम करता था, एक भिखारी था जो थोड़े अन्तराल से बैंक आता और रोकड़िया के काउंटर पर जाकर बहुत सारी चिल्लर अपनी थैली से उलट देता, फिर अपनी अंटी से, कभी अपनी आस्तीन से तुड़े-मुड़े नोट निकालकर एक छोटी-सी ढेरी लगा देता। कहता, इसे जमा कर लीजिए। उसके आने से मज़ा आता, आश्चर्य भी होता और एक क़िस्म की खीज भी होती—उन नोटों और गन्दी-सी चिल्लर को गिनने में। उस रोकड़िया जैसी ही स्थिति मेरी भी होती है जब समय-समय पर लिखी गई, छोटी-बड़ी टिप्पणियों को जमा कर उनकी किताब बनाने लगता हूँ। इस पूरी प्रक्रिया में लेकिन भिखारी भी मैं ही हूँ और रोकड़िया भी। सारी चिल्लर और नोट गिन लिए जाते तब पता लगता कि राशि कम नहीं हैं—कुल जमा काफ़ी अच्छा-ख़ासा है। ऐसा आश्चर्य कभी-कभी मुझे भी होता है। पृष्ठ गिनने लगता हूँ तो लगता है कि बहुत कुछ जमा हो गया है। सब कुछ चोखा नहीं है, कुछ खोटे सिक्के और फटे हुए नोट भी हैं।
इस दूसरी नोटबुक में इतना ही फ़र्क़ है कि इसमें गद्य की कुछ किताबों पर गाहे-बगाहे लिखी गई टिप्पणियों को भी शामिल किया गया है। पहली नोटबुक के फ़्लैप पर मैंने कहा था कि लिखने के सारे कौशल सिर्फ़ रचनाकार की क्षमताओं से ही पैदा नहीं होते हैं, कई बार वह अक्षमताओं से भी जन्म लेते हैं। ये नोट्स और टिप्पणियाँ मेरी क्षमताओं के बनिस्बत मेरी अक्षमताओं से ज़्यादा पैदा हुई हैं।
मुझे लगता था कि बाज़ार हिन्दी की कविता का कभी कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा क्योंकि न तो इस क्षेत्र में अधिक पैसा है, न ही कीर्ति के कोई बहुत बड़े अवसर ही हैं। पर मैं ग़लत था। बाज़ार एक प्रवृत्ति है। इसका ताल्लुक़ अवसर, पैसे या कीर्ति से नहीं है। हिन्दी साहित्य का वर्तमान परिदृश्य जिस तरह के घमासान और निरर्थक विवादों से भरा नज़र आ रहा है, वह बाज़ार के ही प्रभाव का परिणाम है। विगत तीन दशकों की कविता का जैसा मूल्यांकन होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है। ‘आलोचना’ से यह उम्मीद तब तक निरर्थक ही होगी जब तक कि कवि स्वयं इस दृश्य के मूल्यांकन की कोशिश नहीं करेंगे। यही हालत गद्य की भी है, विशेष रूप से कहानी और उपन्यास की। उसमें हल्ला अधिक है, सार्थक विमर्श और साफ़ बोलनेवाली आलोचना कम। आलोचना का एक बड़ा हिस्सा या तो उजड्डता और अहंकार से भरा है या ‘अहो रूपम् अहो ध्वनि’ के शोर से। एक कवि और कथाकार ही इसमें हस्तक्षेप कर सकता है। उसी की ज़रूरत है।
—राजेश जोशी
Bhartiya Dharmik Chetna Ke Ayam
- Author Name:
Ravinandan Singh
- Book Type:

-
Description:
दुनिया के सभी धर्म एक ही दिशा में संकेत करते हैं। पूजा-पद्धतियाँ, धर्म-ग्रन्थ, धार्मिक सिद्धान्त संकेत मात्र हैं, किन्तु हम इन संकेतों को ही धर्म समझ लेते हैं और धर्मों की आन्तरिक एकता को समझ नहीं पाते। पूरी मनुष्य जाति धर्म के इन संकेतों को लेकर विभाजित एवं संघर्षरत है। ये संकेत जिस ओर इशारा करते हैं, उस गन्तव्य तक हमारी दृष्टि ही नहीं जा पाती। ऊपर से देखने पर पूरी मनुष्यता ही धार्मिक दिखाई पड़ती है, किन्तु ऐसा वास्तविकता में नहीं है। अगर ऐसा होता तो दुनिया के सारे दुःख-सन्ताप मिट जाते। किन्तु बाहर धर्म के संकेतों में वृद्धि हो रही है और उसी अनुपात में मनुष्य अशान्त होता जा रहा है।
प्रस्तुत पुस्तक धर्म के संकेतों के माध्यम से भारत की सर्वांगीण चेतना को समझने की कोशिश करती है। प्रागैतिहासिक युग से अब तक भारत की धार्मिक चेतना को क्रमिक रूप से उद्घाटित करना ही पुस्तक का उद्देश्य है। इस विषय पर सामग्री बिखरी होने के कारण विद्यार्थी एवं शोधार्थियों को कठिनाई होती है। इस कठिनाई से निजात पाने की कोशिश में ही इस पुस्तक की रचना हुई है। भारतीय इतिहास के कालक्रमानुसार नवीनतम अनुसन्धानों एवं शोधों को सम्मिलित करते हुए पुस्तक को समृद्ध बनाया गया है। यह पुस्तक सिविल सेवा के प्रतियोगी छात्रों, विश्वविद्यालयों-महाविद्यालयों के भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के छात्रों तथा सामान्य जिज्ञासुओं के लिए अत्यन्त लाभप्रद एवं उपयोगी है।
Kabeer Mimansa
- Author Name:
Ramchandra Tiwari
- Book Type:

-
Description:
इस संस्करण में कबीर से सम्बन्धित निबन्ध—कबीर-वाणी की लिखित एवं मौखिक परम्परा तथा कबीर का व्यक्तित्व, ‘कबीर-वाणी के अध्ययन की परम्परा’, ‘प्रगतिवादी कबीर', ‘कबीर का आदर्श मानव और मानवतावाद’, ‘कबीर को कबीर ही रहने दें’, ‘कबीर : अन्तर्विरोधों के बावजूद’ शामिल किया गया है। यह कबीर से सम्बन्धित सभी पक्षों का समग्र मूल्यांकन करनेवाली कृति है।
प्रस्तुत कृति में कबीर के जीवन-वृत्त और कृतियों के प्रामाणिक परिचय के साथ ही उनके युग-विधायक बहुआयामी व्यक्तित्व को व्यंजित करने वाली सभी संघटक तत्त्वों का गम्भीर, सन्तुलित, सारग्राही, स्पष्ट एवं आग्रहयुक्त अध्ययन किया गया है। यह प्रयास उस महिमामय व्यक्तित्व के प्रति एक विनम्र प्रणति है।
आशा है, विद्वज्जनों के बीच यह कृति इसी रूप में स्वीकार्य होगी तथा पाठकों का मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होगी।
Rahul Sankrityayan : Jinhen Seemayen Nahin Rok Sakin
- Author Name:
Jagdish Prasad Baranwal 'Kund'
- Book Type:

-
Description:
अद्वितीय प्रतिभा के धनी महापंडित राहुल सांकृत्यायन की लेखनी से कोई भी ऐसी विधा अछूती नहीं रह गई थी, जिसका सम्बन्ध जन-जीवन से हो। एक साथ कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, आलोचक, भाषाशास्त्री, इतिहासकार, पुरातत्त्ववेत्ता, दार्शनिक, पर्यटक, समाज सुधारक, राजनेता, विज्ञान और भूगोलवेत्ता, गणितज्ञ, शिक्षक, कुशल वक्ता तथा जितने भी समाज के स्वीकार्य रूप हो सकते हैं, उनमें सब विद्यमान थे।
अपने विचार स्वातंत्र्य के लिए ज्ञात राहुल जी ने जो भी लिखा, साक्ष्य सहित और निर्भीकतापूर्वक लिखा बिना यह सोचे कि उनके विचारों से किसी की भावना आहत भी हो सकती है।
संघर्षों से भरा उनका जीवन अन्धविश्वास उन्मूलन और अमीरी-ग़रीबी के भेद से रहित समानधर्मा समाज की स्थापना के लिए समर्पित था। इस त्याग के लिए उन्हें विरोधियों की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा, जेल- जीवन और दंड-प्रहार की यातनाएँ भी सहनी पड़ी थीं।
वे कई भारतीय और विदेशी भाषाओं के ज्ञाता थे किन्तु उनका हिन्दी के प्रति प्रेम अटूट था।
जन-जन में यात्राओं के प्रति उत्साह भरनेवाले राहुल जी ने ऐसे-ऐसे दुर्गम स्थानों की यात्राएँ की हैं और उन्हें लिपिबद्ध किया है, जिनके बारे में सोचते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
Hindi Ka Gadhyaparv
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

-
Description:
नामवर सिंह न सीमित अर्थों में साहित्यकार थे और न आलोचक। वे हिन्दी में मानवतावादी, लोकतांत्रिक और समाजवादी विचारों की व्यापक स्वीकृति के लिए सतत संघर्षशील प्रगतिशील आन्दोलन के अग्रणी विचारक थे।
यह पुस्तक साक्ष्य है नामवर जी के लेखन-जीवन का—एक दस्तावेज़ी साक्ष्य। इसमें उनका पहला प्रकाशित निबन्ध है और अन्तिम निबन्ध ‘द्वा सुपर्णा...’ और ‘पुनर्नवता की प्रतिमूर्ति’ भी।
पूर्व प्रकाशित ख्यातिनाम और लोकप्रिय पुस्तकों के बावजूद इस तरह की पुस्तक का विशेष महत्त्व इसलिए भी है कि इस एक अकेली पुस्तक में नामवर जी की विकास-यात्रा के प्राय: सभी पड़ावों की झलक मौजूद है। निबन्धों के लेखन-काल की ही तरह उनके विषय भी विस्तृत क्षेत्र में फैले हैं। परन्तु इस पुस्तक के केन्द्र में है—आलोचना। वैश्विक पृष्ठभूमि वाले आलोचकों जॉर्ज लूकाच, लूसिएँ गोल्डमान और रेमंड विलियम्स से लेकर भारतीय परम्परा को पुनर्नवा करनेवाले गौरव नक्षत्रों—आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी और डॉ. रामविलास शर्मा पर लिखे गए निबन्ध यहाँ एक साथ मौजूद हैं। दीर्घ सक्रियता की अवधि में नामवर जी ने पुस्तक समीक्षाएँ प्राय: नहीं लिखीं। इस पुस्तक में अलग-अलग अवसरों पर लिखी गईं पाँच समीक्षाएँ भी मौजूद हैं।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Hurry! Limited-Time Coupon Code
Logout to Rachnaye
Offers
Best Deal
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat.
Enter OTP
OTP sent on
OTP expires in 02:00 Resend OTP
Awesome.
You are ready to proceed
Hello,
Complete Your Profile on The App For a Seamless Journey.