Madhyayugeen Premakhyan
Author:
Shyam Manohar PandeyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Unavailable
श्याम मनोहर पाण्डेय की महत्त्वपूर्ण कृति है—‘मध्ययुगीन-प्रेमाख्यान’। जिस समय इस पुस्तक का प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ था, उस समय दाऊद कृत ‘चंदायन’, कुतुबन कृत ‘मृगावती’, ‘कदमराव पदम’ तथा कतिपय अन्य सूफ़ी प्रेमाख्यान प्रकाशित नहीं थे। असूफ़ी प्रेमाख्यानों में दयाल कवि कृत ‘शशिमाला कथा’, पुहुकर कृत ‘रसरतन’ आदि ग्रन्थ अप्रकाशित थे। प्रस्तुत संस्करण में इन सबका उपयोग कर लिया गया है। अवधी के विकास में सूफ़ियों ने क्या योगदान किया है, इस सम्बन्ध में इस संस्करण में अधिक विस्तार से विचार किया गया है। पुस्तक के अन्त में एक विशद् ग्रन्थ-सूची भी जोड़ दी गई है, जिससे सूफ़ी तथा असूफ़ी साहित्य के अनुसन्धानकर्ताओं को सुविधा हो सके।</p>
<p>आचार्य परशुराम चतुर्वेदी के शब्दों में, “डॉ. पाण्डेय ने अपने अनुसन्धान का काम बड़े परिश्रम के साथ किया है और उसे उपयुक्त रूप प्रदान करने की सफल चेष्टा भी की है। उन्होंने उसके महत्त्वपूर्ण विषय का अध्ययन करते समय यथासम्भव मूल फ़ारसी ग्रन्थों का उपयोग किया है तथा भरसक इस बात की भी चेष्टा की गई है कि कोई बात भ्रमात्मक न रह जाए। जहाँ तक पता है, इस विषय पर अभी तक कोई शोध-कार्य नहीं किया गया था और न इतने सम्यक् रूप में विचार करके उसका परिणाम प्रस्तुत किया गया था। यह पुस्तक इस दृष्टि से एक नवीन प्रयास है और इसके साथ-साथ अपने ढंग से एक आदर्श उपस्थित करती है।” <br />डॉ. पाण्डेय ने समस्त मूल स्रोतों का मन्थन करके जो निष्कर्ष निकाले हैं, वे महत्त्वपूर्ण हैं। इन निष्कर्षों के सहारे सूफ़ी एवं असूफ़ी प्रेमाख्यानों के अध्ययन के सम्बन्ध में रुचि-सम्पन्न पाठकों को एक नया एवं अधिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण मिलता है।</p>
<p>जैसा कि डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल का कथन है, “डॉ. पाण्डेय का यह शोध-ग्रन्थ प्रथम कोटि का है। इसमें डॉ. पाण्डेय ने अन्य सम्बन्धित सामग्री के साथ संस्कृत एवं फ़ारसी में प्राप्त सामग्री का भी पूरी तरह उपयोग किया है। फलतः उनके निष्कर्ष बड़े मूल्यवान हैं। निश्चित रूप से यह हिन्दी साहित्य को डॉ. पाण्डेय की महत्त्वपूर्ण देन हैं।”
ISBN: 9788180311628
Pages: 355
Avg Reading Time: 12 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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A History of Kashmiri Literature
- Author Name:
Trilokinath Raina
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- Description: Kashmiri literature, with poetry as its chief mode of expression, is said to have started with Lal Ded and Sheikh-ul-Alam. Over the last sixty years, it has expanded into various genres such as essays, criticism, history, drama, and fiction. Kashmiri literature now holds a significant place in Indian Letters. This book chronicles the history of Kashmiri literature from its beginnings to the present.
Prayojanmoolak Hindi : Sanrachana Evam Anuprayog
- Author Name:
Ram Prakash
- Book Type:

- Description: शताब्दियों से ‘राष्ट्रभाषा’ के रूप में प्रतिष्ठित और लोक-व्यवहार में प्रचलित ‘हिन्दी’ पिछले कई दशकों से ‘राजभाषा’ के संवैधानिक दायरे में भी विकासोन्मुख है। ‘राष्ट्रभाषा’ की मूल प्रकृति तथा ‘राजभाषा’ की संवैधानिक स्थिति को अलगानेवाली प्रमुख रेखाएँ आज भी शिक्षित समाज के बहुत बड़े वर्ग के लिए अस्पष्ट-सी हैं। इसके लिए जहाँ हिन्दी भाषा के उद्भव से लेकर ‘मानक’ भाषा तथा ‘राष्ट्रभाषा’ स्वरूप धारण करने तक की सुदीर्घ विकास-परम्परा का सर्वेक्षण आवश्यक है, वहीं 14 सितम्बर, 1949 ई. से लेकर आज तक के समस्त संवैधानिक प्रावधानों, नियमों-अधिनियमों एवं शासकीय आदेशों और संसदीय संकल्पों आदि का सम्यक् अनुशीलन भी वांछनीय है। इस अनुशीलन-प्रक्रिया के दौरान तत्सम्बन्धी समस्याओं तथा उनके व्यावहारिक समाधान के समायोजन का उपक्रम भी अपेक्षित है। आज इन अपेक्षाओं के दायरे और भी विस्तृत हो गए हैं क्योंकि हिन्दी अब लोक-व्यवहार की सीमाओं से आगे बढ़कर, विभिन्न शैक्षणिक, प्रशासनिक, व्यावसायिक तथा कार्यालयी स्तरों पर भी अपनी प्रयोजनमूलकता प्रतिपादित करने के दायित्व-निर्वाह की ओर अग्रसर है। इस दायित्व-निर्वाह का निकष है—उसके संरचना-सामर्थ्य का अनुप्रयोगात्मक कार्यान्वयन। इस दिशा में विभिन्न स्तरों पर विविध प्रयास चल रहे हैं, किन्तु उनमें एकरूपता, पारस्परिक एकसूत्रता तथा समन्वयशीलता का अभाव होने से, अनेक समस्याएँ गत्यावरोध का कारण बन रही हैं। इन्हीं समस्याओं के निवारण हेतु हिन्दी के प्रयोजनमूलक संरचना-सूत्रों के समुचित संयोजन तथा उनकी अनुप्रयोगात्मक सम्भावनाओं के समन्वित-सुसंग्रथित रेखांकन का विनम्र प्रयास इस पुस्तक का लक्ष्य है।
Vichar Ka Dar
- Author Name:
Krishna Kumar
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Description:
हिन्दी गद्य का स्वरूप साठ के दशक में बदलना शुरू हो चुका था। सत्तर के दशक में यह बदलाव कई विधाओं में प्रकट हुआ। लोकतांत्रिक चेतना के फैलाव से पैदा हुए तनावों के अलावा शिक्षा और संचार के आधुनिक माध्यमों का विस्तार गद्य को जिज्ञासा और समझ की नई ज़मीनें तोड़ने के लिए तैयार कर रहा था। इस विकास को कुंठित करनेवाली ताक़तें—अंग्रेज़ी की चौधराई, राज्याश्रित हिन्दी की राजनीति और उत्तर के समाज में फैली सामन्ती प्रवृत्तियाँ भी—पोषण पा रही थीं; विचार का डर हमें इन ताक़तों को समझने में मदद दे सकता है।
इस पुस्तक में संकलित पद्य पिछले दो दशकों में प्रकाशित कृष्ण कुमार की वैचारिक रचनाशीलता की बानगी तो देता ही है, इस समूचे दौर की गतिशील प्रवृत्तियों का बिम्ब भी प्रस्तुत करता है। विषयों की दृष्टि से ये लेख, निबन्ध और संस्मरण हिन्दी समाज के सरोकारों का पैमाना कहे जा सकते हैं। अर्थ और राजनीति से लेकर साहित्य, संचार और मनोरंजन के तेज़ी से बदलते हुए ढाँचों के बीच तकनीक, भाषा, फ़िल्म-संगीत, स्त्री, साम्प्रदायिक हिंसा और पत्रकारिता जैसे सन्दर्भों की जाँच इस कृति को एक नई तरह का, बहुत फैला हुआ पाठक समुदाय देती है।
Aadyabimb Aur Sahityalochan
- Author Name:
Krishna Murari Mishra
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Description:
प्रोफ़ेसर कृष्णमुरारि मिश्र आधुनिक हिन्दी आलोचना के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। हिन्दी में आद्यबिम्बात्मक आलोचना के प्रवर्तन का श्रेय उन्हें प्राप्त है। साहित्यिक कृतियों की संरचनात्मक गहनताओं की व्याख्या और वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन के लिए उन्हें विशेष ख्याति मिली है। ‘आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन’ शीर्षक उनका प्रस्तुत ग्रन्थ इस आलोचना के सिद्धान्त और सम्प्रयोग से सम्बद्ध है। ग्रन्थ में तीन शीर्षक ग्रंथित हैं—'आद्यबिम्ब', 'आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : आधार' तथा ' आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : स्वरूप'।
'आद्यबिम्ब' शीर्षक के अन्तर्गत आद्यबिम्ब की युगीय धारणा का सैद्धान्तिक विवेचन है। इसमें फ़्रायड और युग की धारणाओं के मूलभूत अन्तर का हिन्दी में पहली बार उद्घाटन है। साथ ही आद्यबिम्ब की युगीय धारणा का सारभूत आख्यान है जिसमें यौगपत्य के अल्पज्ञात वैज्ञानिक सिद्धान्त की भी चर्चा है। 'आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : आधार' शीर्षक से मुख्यतया युग के कला-चिन्तन का विवेचन है। आद्यबिम्बात्मक आलोचना की सैद्धान्तिकी के इस विवेचन से सिद्ध है कि युग का कला-चिन्तन हमारे भारतीय साहित्य-चिन्तन के लिए विजातीय नहीं है। वह भारतीय साहित्यशास्त्र के कालसिद्ध निकषों का पोषक है। युग की कलाविषयक धारणाएँ रससिद्धान्त और ध्वनिसिद्धान्त के बहुत निकट हैं। भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य-हेतु के रूप में प्रतिभा के जिस स्वरूप की स्थापना की गई है, वह सामूहिक अचेतन की युगीय धारणा के निकट है। सर्जक के व्यक्तित्व की असाधारणता को भारतीय आचार्यों के समान युग ने भी मुक्त कंठ से स्वीकार किया है। भारतीय आचार्यों के समान युग ने भी काव्य की लोकमंगलकारिणी शक्ति पर बल दिया है। उन्होंने सर्जक, भावक और समाज के सन्दर्भ में काव्य के माध्यम से जिस आत्मोपलब्धि का उल्लेख किया है, उसमें आनन्द और लोकमंगल दोनों का समावेश है। 'आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : स्वरूप' शीर्षक के अन्तर्गत हिन्दी की आद्यबिम्बात्मक आलोचना के स्वरूप की सम्यक् विवृत्ति है।
आशा है, यह ग्रन्थ भी उनके पूर्व प्रकाशित ग्रन्थों की तरह हिन्दी में समादृत होगा।
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