
Swarg Yatra : Ek Lok Se Doosare Lok
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
119
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
238 mins
Book Description
प्रकृति में पर्वत मुझे विशेष रूप से आकर्षित करते हैं। और सौभाग्य से हिमालय हमारे पास है! फिर और क्या चाहिए। यह कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक न जाने किस-किस नाम और रूप में फैला हुआ है। मध्य में स्थित हिमाचल प्रदेश में कुछ एक साल रहने का अवसर मिला था तो उस दौरान किन्नौर से लेकर लाहौल स्पीती, रोहतांग पास की यात्रा कर चुका हूँ। यहाँ लद्दाख़ के बारे में बहुत कुछ सुनने को मिला था। कुछ ऐसे तथ्यों की जानकारी हुई कि उत्सुकतावश वहाँ जाने की इच्छा हुई थी।</p> <p>लद्दाख़ वो क्षेत्र है जो आज भी दुर्गम है। आम भारतीय पर्यटक की कल्पना और चाहत से बाहर। मगर इस क्षेत्र में सदियों से विदेशी आ रहे हैं। ख़ासकर यह जानकर अचम्भा होता है कि यूरोप के कई विद्वान यहाँ तब से आ रहे हैं, जब यहाँ कोई भी साधन नहीं था। हज़ारों साल से यह पश्चिम एशिया से लेकर मध्य एशिया और आगे यारकंड व तिब्बत के बीच व्यापार का एक प्रमुख मार्ग रहा है। बौद्ध भिक्षु ईसा पूर्व इस क्षेत्र में आने लगे थे। और यही नहीं, इस क्षेत्र को उन्होंने बुद्धमय कर दिया था। सोचिए, एक ऐसा प्रदेश जो आज भी दूर दिखाई देता है वहाँ शताब्दियों से बौद्धधर्म विराजमान है। इन सब धार्मिक व बौद्धिकजनों के साथ-साथ व्यापारियों और सेनाओं का काफ़िला, कश्मीर से होता हुआ ही आता-जाता रहा। कश्मीर और लद्दाख़, हिमालय की दो विशिष्ट घाटियाँ हैं। दो पारम्परिक व समृद्ध सभ्यताएँ। प्राचीन संस्कृति और प्राकृतिक सौन्दर्य के दो अति महत्त्वपूर्ण केन्द्र, इतने नज़दीक!!! इसे प्रकृति और मानवीय इतिहास का संयोग ही कहेंगे।</p> <p>संक्षेप में कहूँ तो यह यात्रा प्रकृति के बीच क़दमताल करने जैसी थी। मुश्किलों से सामना हुआ, तो क्या!! प्रकृति भी तो अपने नग्न रूप में उपस्थित हुई। मूल रंग में। पूरे वैभव के साथ। विराट। मुश्किल इस बात की हुई है कि सौन्दर्य को देखते ही मन-मस्तिष्क स्थिर हो गया। उठ रहे विचारों का अहसास तो हुआ मगर व्यक्त कर पाना मुमकिन न हो सका। विस्तार इतना कि वर्णन सम्भव नहीं। असल में आँखें ही देख सकती हैं, कैमरे व्यर्थ हो जाते हैं।</p> <p>