Yadon Se Racha Gaon
Author:
M.N. ShrinivasPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Society-social-sciences0 Reviews
Price: ₹ 48
₹
60
Unavailable
‘यादों से रचा गाँव’ अतीत के दुर्घटनाग्रस्त ब्यौरों को सामने लाने के रचनात्मक संकल्प का परिणाम है। एक हादसे में सारे काग़ज़ात जलकर राख हो जाने के बाद एम.एन. श्रीनिवास ने इस पुस्तक में पूरी तरह अपनी यादों के सहारे अपने क्षेत्रकार्य के अनुभवों की पुनर्रचना की है।</p>
<p>प्रस्तुत पुस्तक में यूँ तो दक्षिण भारत के एक बहुजातीय ग्राम का नृतत्त्वशास्त्रीय अध्ययन दिया गया है, लेकिन एक बदलते ग्राम का प्रौद्योगिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और अन्तर्जातीय सम्बन्धों का जिस प्रकार विवेचन किया गया है, वह पूरे भारत के गाँवों की स्थिति को दर्शाता है।</p>
<p>‘यादों से रचा गाँव’ में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों, धर्म, परिवार, और कृषि से सम्बन्धित मामलों का भी व्यापक विश्लेषण है। वस्तुत: प्रस्तुत पुस्तक एक ऐसी कृति है जिसे मूल आँकड़ों के समुद्र में गोता लगाकर गाँव की अपनी शब्दावली में रचा गया है।</p>
<p>श्रीनिवास जी ने इस पुस्तक में बहुजातीय भारतीय समुदाय के क्षेत्र-अध्ययन का जिस ढंग से वैज्ञानिक विश्लेषण किया है, वह न केवल मानवशास्त्रियों, बल्कि दूसरे सामान्य पाठकों के लिए भी उपयोगी है। इस कृति का प्रमुख आकर्षण इसकी रचनात्मक शैली है।
ISBN: 9788126701070
Pages: 206
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: ऋषियों की भूमि भारत, जहाँ वेद और उपनिषदों का प्रादुर्भाव हुआ। ऐसे शास्त्र, जिन्होंने न केवल मनुष्य को उसके जीवन के मुख्य उद्देश्य के बारे में अवगत कराया, बल्कि उसके साथ ही उन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मार्ग भी बताया और प्रशस्त किया। वेदांत मनुष्य के जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्य ‘स्वाआत्मानुभूति’ का राजमार्ग है। इस पुस्तक के प्रारंभिक तीन अध्यायों में वेदांत का प्रारंभिक परिचय कराने का प्रयास किया गया है और अंतिम तीन अध्यायों में जीवन प्रबंधन के वैदिक मॉडल पर चर्चा की गई है। इस पुस्तक के प्रथम अध्याय ‘वेदांत की रूपरेखा’ में वेदांत के सृजन का कारण और उसके उद्देश्यों को उल्लेखित किया गया है। दूसरे अध्याय ‘चार पुरुषार्थ’ में मनुष्य के जीवन के चार प्रमुख लक्ष्यों का उल्लेख है। तीसरे अध्याय ‘शास्त्र में भारतीय दर्शन’ में विभिन्न शास्त्रों का संक्षेप में वर्णन है, जो उन लक्ष्यों को प्राप्त करने का मार्ग सुझाते हैं। चौथे अध्याय ‘वर्ण व्यवस्था’ में उस मार्ग पर चलने की व्यक्तिगत तैयारी का मार्गदर्शन है। पाँचवाँ अध्याय ‘आश्रम व्यवस्था’ उन लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु वृहद् सामाजिक संरचना प्रस्तुत करता है। छठे अध्याय ‘सोलह संस्कार’ में मील के वे पत्थर हैं, जो हमें बताते हैं कि हम सही रास्ते पर चल रहे हैं।
Balatkar Aur Kanoon
- Author Name:
Ranjeet Verma
- Book Type:

- Description: ‘बलात्कार’ स्त्री के प्रति किया जानेवाला जघन्य अपराध है। इस अपराध के ज़्यादातर मामले दर्ज नहीं होते या दर्ज भी होते हैं तो साक्ष्य के अभाव में अपराधी छूट जाते हैं। यह पुस्तक विधि एवं न्याय के अतिरिक्त सामाजिक तौर पर इस अपराध के ख़िलाफ़ ज़मीन तैयार करती है। बलात्कार से लड़ना है तो सबसे पहले उसके पीछे काम कर रहे मनोविज्ञान से टकराना होगा यानी सवर्ण मानसिकता, पुरुष-सत्ता और वर्गीय सोच, इन तीनों को खुलकर चुनौती देनी होगी। विधि विशेषज्ञ रंजीत वर्मा की इस पुस्तक का उद्देश्य है समाज को इस अपराध के प्रति जागरूक बनाना, पीड़िता के बयान और सच्चाई की जाँच, चिकित्सकीय जाँच में देरी के ख़तरे, अदालतों के फ़ैसलों से टकराते समाज के फ़ैसले तथा अभियुक्त को उसके किए की सज़ा दिलाना। साथ ही पीड़िता को आर्थिक, सामाजिक और क़ानूनी मदद दिलवाना।
Abhishapt : Masoom Chehre
- Author Name:
Jaan Kunnappally
- Book Type:

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Description:
‘मनुष्य! कितना सुन्दर शब्द है!’—मैक्सिम गोर्की ने कहा था लेकिन सब जानते हैं कि सारे मनुष्य ‘सुन्दर’ शब्द से अलंकृत होने का सौभाग्य प्राप्त नहीं कर पाते। सुन्दरता की तीव्र इच्छा रखते हुए भी देश के हज़ारों मनुष्य असुन्दर जीवन जीने के लिए बाध्य होते हैं।
हमारे संविधान में सभी नागरिकों के लिए समान रूप से अधिकारों की सुरक्षा का प्रावधान है, लेकिन हज़ारों-लाखों नागरिक ऐसे हैं जो इस तथ्य से अवगत नहीं हैं। बड़ी संख्या में ऐसे दलित, पीड़ित, शोषित इनसान हैं जो मानव अधिकारों से बिलकुल वंचित हैं। ये निरन्न, निर्वस्त्र, निस्सहाय लोग भी मानव कहलाने योग्य हैं। उनके प्रति मानवोचित बर्ताव करना सभ्य समझे जानेवाले समाज का धर्म है। उपेक्षा और अवहेलना का पात्र बनकर सामाजिक जीवन के अँधेरे बन्द कमरों में ढकेले गए पशु समान जीवन बितानेवाले इन निरीहों को मानवता के महान आसन पर आसीन कराना अनिवार्य है।
इस महान उद्देश्य से प्रेरित होकर मलयालम के मशहूर पत्रकार जॉन कुन्नप्पल्लि ने सात मर्मस्पर्शी लेख लिखे। जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित कुछ ज्वलन्त समस्याओं का गहन अध्ययन तथा विशद विश्लेषण इनमें किया गया है। उन्होंने यथार्थ की ठोस धरती पर खड़े होकर तथ्यों का अनावरण किया है जिसमें असत्य या अतिशयोक्ति का रंग नहीं पोता गया।
इस तरह देखें तो मलयालम से हिन्दी में अनूदित यह पुस्तक सामयिक मुद्दों के सन्दर्भ में चिन्तन और विश्लेषण-दृष्टि के स्तर पर जो पृष्ठभूमि तैयार करती है, वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण और उपयोगी है। सुविज्ञ पाठकों के लिए एक संग्रहणीय पुस्तक है ‘अभिशप्त मासूम चेहरे’।
Mahabharatkalin Samaj
- Author Name:
Sukhmay Bhattacharya
- Book Type:

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Description:
मुझे यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई है कि श्रीमती पुष्पा जैन ने ‘महाभारतकालीन समाज’ का सुन्दर हिन्दी अनुवाद किया है। इस पुस्तक के लेखक श्री सुखमय जी भट्टाचार्य मेरे बहुत निकट के मित्र हैं। मैने स्वयं देखा है कि उन्होंने कितने परिश्रम से इस ग्रन्थ की रचना की थी, कितनी बार उन्हें ‘महाभारत’ का पारायण करना पड़ा है, कितनी बार उन्हें एक वक्तव्य का दूसरे वक्तव्य से संगति मिलान के लिए माथापच्ची करनी पड़ी है, यह सब मेरे सामने ही हुआ है। वे बड़े धीर स्वभाव के गम्भीर विद्वान हैं। जब तक किसी समस्या का समाधान तर्कसंगत और सन्तोषजनक ढंग से नहीं हो जाता, तब तक उन्हें चैन नहीं मिलता। बड़े धैर्य, अध्यवसाय और उत्साह के साथ उन्होंने इस कठिन कार्य को सम्पन्न किया है। कार्य सचमुच कठिन था।
‘महाभारत’ भारतीय चिन्तन का विशाल विश्वकोश है। पंडितों में यह भी जल्पना-कल्पना चलती रहती है कि इसका कौन-सा अंश पुराना है, कौन-सा अपेक्षाकृत नवीन। कई प्रकार की समाज व्यवस्था का पाया जाना विभिन्न कालों में लिखे गए अंशों के कारण भी हो सकता है। फिर इस ग्रन्थ में अनेक श्रेणी के लोगों के आचार-विचार की चर्चा है। सब प्रकार की बातों की संगति बैठना काफ़ी कठिन हो जाता है। पं. सुखमय भट्टाचार्य जी ने समस्त विचारों और व्यवहारों का निस्संग दृष्टि से संकलन किया है। पाठक को अपने निष्कर्ष पर पहुँचने की पूरी छूट है। फिर भी उन्होंने परिश्रमपूर्वक निकाले अपने निष्कर्षों से पाठक को वंचित भी नहीं रहने दिया, इसीलिए यह अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण है।
इस ग्रन्थ का हिन्दी में अनुवाद करके श्रीमती पुष्पा जैन ने उत्तम कार्य किया है। इस अनुवाद के लिए वे सभी सहृदय पाठकों की बधाई की अधिकारिणी हैं।
—हजारीप्रसाद द्विवेदी
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