Vikas O Arthatantra
Author:
Narendra JhaPublisher:
Antika Prakashan Pvt. Ltd.Language:
MaithiliCategory:
Society-social-sciences0 Ratings
Price: ₹ 615
₹
750
Available
Social Economic
ISBN: 9789391925390
Pages: 304
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: जे.एफ. ब्राउन द्वारा लिखी बहुचर्चित पुस्तक ‘द साइकोडायनैमिक्स ऑफ एबनॉर्मल बिहेवियर’ का पहला संस्करण 1940 में प्रकाशित हुआ था। तब से अब तक यह पुस्तक विशिष्ट बनी हुई है। एक बुनियादी पाठ्य पुस्तक के रूप में इसे कालजयी कृति का महत्त्व प्राप्त है। ‘असामान्य व्यवहार की मनोगतिकी’ इसी पुस्तक का हिन्दी अनुवाद है। विषय की अधिकारी विद्वान डॉ. शोभना शाह ने अनुवाद करते हुए पारिभाषिक शब्दावली, तकनीकी विवरण और जटिल विवेचन की बहुलता के बाद भी सुगमता, स्पष्टता एवं सम्प्रेषणीयता का ध्यान रखा है। अनुवादक डॉ. शोभना शाह पुस्तक के महत्त्व को इन शब्दों में रेखांकित करती हैं, ‘‘यह पुस्तक फ्रायड के मनोविश्लेषण सिद्धान्त के आधार पर मानव मन की सूक्ष्म परतों को खोलती है और मानव विकास की विविध मनोगत्यात्मक अवस्थाओं की व्याख्या बड़े सरल और सुग्राही शब्दों में करती है। इस दृष्टि से यह एक अद्वितीय कृति है। ‘यद्यपि इस पुस्तक के बाद अनेक पुस्तकें लिखी गईं परन्तु इस पुस्तक का अपना विशिष्ट स्थान है। इसमें विविध असामान्यताओं की आधारभूत व्याख्या बड़े विश्वसनीय तरीके से सरल शब्दों में की गई है। इसे संभवतया असामान्य मानव व्यवहार पर बाद में लिखे गए साहित्य की दिशा-निर्देशक कहा जा सकता है। अनेक रूपों में एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक।
Balatkar Aur Kanoon
- Author Name:
Ranjeet Verma
- Book Type:

- Description: ‘बलात्कार’ स्त्री के प्रति किया जानेवाला जघन्य अपराध है। इस अपराध के ज़्यादातर मामले दर्ज नहीं होते या दर्ज भी होते हैं तो साक्ष्य के अभाव में अपराधी छूट जाते हैं। यह पुस्तक विधि एवं न्याय के अतिरिक्त सामाजिक तौर पर इस अपराध के ख़िलाफ़ ज़मीन तैयार करती है। बलात्कार से लड़ना है तो सबसे पहले उसके पीछे काम कर रहे मनोविज्ञान से टकराना होगा यानी सवर्ण मानसिकता, पुरुष-सत्ता और वर्गीय सोच, इन तीनों को खुलकर चुनौती देनी होगी। विधि विशेषज्ञ रंजीत वर्मा की इस पुस्तक का उद्देश्य है समाज को इस अपराध के प्रति जागरूक बनाना, पीड़िता के बयान और सच्चाई की जाँच, चिकित्सकीय जाँच में देरी के ख़तरे, अदालतों के फ़ैसलों से टकराते समाज के फ़ैसले तथा अभियुक्त को उसके किए की सज़ा दिलाना। साथ ही पीड़िता को आर्थिक, सामाजिक और क़ानूनी मदद दिलवाना।
Manav Aur Sanskriti
- Author Name:
Shyamacharan Dube
- Book Type:

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Description:
मानवीय अध्ययनों में ‘नृतत्त्व’ अथवा ‘मानवशास्त्र’ का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस विषय का विकास बड़ी तीव्र गति से हुआ है और अब तो यह अनेक स्वयंपूर्ण उपभागों में विभाजित होता जा रहा है। प्रस्तुत पुस्तक नृतत्त्व की उस शाखा की परिचयात्मक रूपरेखा है जो मानवीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों का अध्ययन करती है।
मानव और संस्कृति में विद्वान लेखक ने सांस्कृतिक नृतत्त्व के सर्वमान्य तथ्यों को भारतीय पृष्ठभूमि में प्रस्तुत करने का यत्न किया है। इस सीमित उद्देश्य के कारण, जहाँ तक हो सका है, समकालीन सैद्धान्तिक वाद-विवादों के प्रति तटस्थता का दृष्टिकोण अपनाया गया है।
हिन्दी के माध्यम से आधुनिक वैज्ञानिक विषयों पर लिखने में अनेक कठिनाइयाँ हैं। प्रामाणिक पारिभाषिक शब्दावली का अभाव उनमें सबसे अधिक उल्लेखनीय है। इस पुस्तक में प्रचलित हिन्दी शब्दों के साथ अन्तरराष्ट्रीय शब्दावली का उपयोग स्वतंत्रतापूर्वक किया गया है।
‘मानव और संस्कृति में’ सात खंडों में विषय के उद्घाटन के बाद मानव का प्रकृति, समाज, अदृश्य जगत, कला और संस्कृति से सम्बन्ध दर्शाया गया है। अन्त में भारत के आदिवासियों के समाज-संगठन पर प्रकाश डाला गया है और उसकी समस्याओं पर विचार किया गया है।
पुस्तक अद्यतन जानकारी से पूर्ण है और लेखक ने अब तक की खोजों के आधार पर जो कुछ लिखा है, वह साधिकार लिखा है।
Parivartan Aur Vikas Ke Sanskritik Ayaam
- Author Name:
Puran Chandra Joshi
- Book Type:

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Description:
समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और सांस्कृतिक क्षेत्र के मर्मज्ञ विद्वान प्रो. पूरनचन्द्र जोशी की यह कृति भारतीय सामाजिक परिवर्तन और विकास के सन्दर्भ में कुछ बुनियादी सवालों और समस्याओं पर किए गए चिन्तन का नतीजा है। चार भागों में संयोजित इस कृति में कुल पन्द्रह निबन्ध हैं, जो एक ओर आधुनिक आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन को सांस्कृतिक आयामों पर और दूसरी ओर सांस्कृतिक जगत की उभरती समस्याओं के आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं पर नया प्रकाश डालते हैं।
हिन्दी पाठकों के लिए यह कृति विभिन्न दृष्टियों से मौलिक और नए ढंग का प्रयास है। एक ओर तो यह सांस्कृतिक सवालों को अर्थ, समाज और राजनीति के सवालों से जोड़कर संस्कृतिकर्मियों तथा अर्थ एवं समाजशास्त्रियों के बीच सेतुबन्धन के लिए नए विचार, अवधारणाएँ और मूलदृष्टि विचारार्थ प्रस्तुत करती है और दूसरी ओर उभरते हुए नए यथार्थ से विचार एवं व्यवहार—दोनों स्तरों पर जूझने में असमर्थ पुरानी बौद्धिक प्रणालियों, स्थापित मूलदृष्टियों और व्यवहारों की निर्मम विवेचना का भी आग्रह करती है। दूसरे शब्दों में, यह पुस्तक-संस्कृति, अर्थ और राजनीति को अलग-अलग कर खंडित रूप में नहीं, बल्कि इन तीनों के भीतरी सम्बन्धों और अन्तर्विरोधों के आधार पर समग्र रूप में समझने का आग्रह करती है।
प्रो. जोशी के अनुसार स्वातंत्र्योत्तर भारत में जो एक दोहरे समाज का उदय हुआ है, उसका मुख्य परिणाम है नवधनाढ्य वर्ग का उभार, जो पुराने सामन्ती वर्ग से समझौता कर सभी क्षेत्रों में प्रभुतावान होता जा रहा है और जिसका सामाजिक दर्शन, मानसिकता एवं व्यवहार गांधी और नेहरू-युग के मूल्य-मान्यताओं के पूर्णतया विरुद्ध हैं। वह पश्चिम के निर्बन्ध भोगवाद, विलासवाद और व्यक्तिवाद के साथ निरन्तर एकमेक होता जा रहा है। फलस्वरूप उसके और बहुजन समाज के बीच अलगाव ही नहीं, तनाव और संघर्ष भी विस्फोटक रूप ले रहे हैं। प्रो. जोशी सवाल उठाते हैं कि भारतीय समाज में बढ़ रहा यह तनाव और संघर्ष उसके अपकर्ष का कारण बनेगा या इसी में एक नए पुनर्जागरण की सम्भावनाएँ निहित हैं? वस्तुत: प्रो. जोशी की यह कृति पाठकों से इन प्रश्नों से वैचारिक स्तर पर ही नहीं, व्यावहारिक स्तर पर भी जूझने का आग्रह करती है।
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