Vivah Sanskar : Swaroop Evam Vikas
Author:
Tapi Dharma RaoPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Society-social-sciences0 Reviews
Price: ₹ 32
₹
40
Available
तेलगू के ख्यात लेखक तापी धर्माराव के लेखन का आधार इतिहास व किंवदन्तियों का वैज्ञानिक अन्वेषण है। प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर उन्होंने सामाजिक यथार्थ की पुस्तकें लिखी हैं। स्थापित रूढ़ मान्यताओं के पैरवीकारों को थोड़ी आपत्ति अवश्य हो सकती है, लेकिन इन मुद्दों पर विचार करने के लेखकीय आग्रह को वे टाल नहीं सकते।</p>
<p>यह पुस्तक विवाह संस्कार के स्वरूप और विकास का बख़ूबी मनोविश्लेषण करती है। नर तथा नारी के सम्बन्धों के समाज पर पड़े प्रभाव के कारण बहुतेरी कुप्रथाएँ भी प्रचलित हो जाती हैं और उचित जानकारी के अभाव में यह यथावत् रहती हैं। यदि समाज के सम्मुख इन कुप्रथाओं को उजागर किया जाए तो इसके नैतिक स्वरूप में परिवर्तन सम्भव है। समस्याओं की यथावत् पहचान कर उन्हें स्पष्ट कर दिया जाए तो स्वयमेव उनके नैतिक स्वरूप में अन्तर आ जाता है। ऐसा ही सार्थक प्रयास तापी धर्माराव ने अपनी इस समाज–मनोविज्ञान की पुस्तक में किया है।
ISBN: 9788171196142
Pages: 119
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: ‘विमुक्त जनजातियाँ : बदलाव के पहलू’ पुस्तक दसारी, डोम्मार, नक्काल, सुगाली, येरुकुला और यनाडी 'अपराधी' जनजातियों के उद्गम और विकास के सम्बन्ध में एक शोधपरक अनुसन्धान का परिणाम है। 1904 और 1914 के बीच पाँच प्रमुख अपराधी जनजाति बस्तियाँ गुंटूर के सीतानगरम और स्टुअर्टपुरम, नेल्लोर के कप्पाराला टिप्पा, कुरनूल के सिद्धपुरम और मेहबूबनगर जिले के लिंगाला में बनाई गई थीं। इन बस्तियों पर अपराधी जनजाति कानून के अन्तर्गत पुलिस और मिशनरियों का कठोर नियंत्रण था और इन समुदायों को लगभग दासता में रहना पड़ता था। इन बस्तियों की स्थापना से अब तक विमुक्त जनजातियों के विविध पहलुओं पर इस पुस्तक के निबन्ध व्यापक शोध और वस्तुगत निरीक्षण पर आधारित हैं। अभिलेखागारों में संचित सामग्री के सतर्क विश्लेषण के माध्यम से किया गया यह अध्ययन जनगण के रूपान्तरण, बस्तियों के स्वरूप, भू-आवंटन, वित्तीय प्रबन्धन, स्वास्थ्य, शिक्षा और आन्ध्र प्रदेश में विविध जनजाति समुदायों की वर्तमान स्थिति को सामने लाता है।
Jati : Badalte Pariprekshya
- Author Name:
Surinder Singh Jodhka
- Book Type:

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Description:
आज के दौर में जाति की बात करने का क्या औचित्य है? क्या चुनावी राजनीति के अलावा जाति का कोई मतलब रह गया है? इसमें क्या बदला है और क्या बचा हुआ है? क्या जाति आधारित कोटा और आरक्षण से समाज में दरारें चौड़ी हुई हैं या इससे दरार को पाटने में मदद मिली है? आधुनिक समय में श्रम बाजारों में, सामाजिक जिन्दगी में, और लोकप्रिय संस्कृति में जाति कैसे काम करती है?
यह छोटी सी किताब जाति की समकालीन अभिव्यक्तियों के साथ-साथ सामाजिक विज्ञान लेखन और लोकप्रिय चर्चा में जाति पर बदलते दृष्टिकोण का एक आकर्षक विवरण पेश करती है। यह भारत में जाति की वास्तविकता से सम्बन्धित कई विषयों और मुद्दों को शामिल करती है- पारंपरिक धारणाएँ, सत्ता की राजनीति में एक संवैधानिक तत्व, रोजमर्रा की जिन्दगी में अवमानना और तिरस्कार, जाति की अभिव्यक्ति और ‘नीचे से’ आन्दोलनों द्वारा और ‘ऊपर से’ नीतियों द्वारा इसका विरोध। भारतीय सामाजिक जीवन के इस सर्वव्यापी पहलू में रुचि रखनेवाले विद्वानों, छात्रों, कार्यकर्ताओं, नीति निर्माताओं और सामान्य पाठकों के लिए यह सुगम और विचारोत्तेजक पुस्तक काफी पठनीय है।
Andhavishwas Unmoolan : Vol. 2 : Aachar
- Author Name:
Narendra Dabholkar
- Book Type:

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Description:
अंधविश्वास उन्मूलन और डॉ. नरेंद्र दाभोलकर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। निरन्तर 25 वर्षों की मेहनत का फल है यह। अंधविश्वास उन्मूलन का कार्य महाराष्ट्र में विचार, उच्चार, आचार, संघर्ष, सिद्धान्त जैसे पंचसूत्र से होता आ रहा है। भारतवर्ष में ऐसा कार्य कम ही नज़र आता है।
'अंधविश्वास उन्मूलन : आचार' पुस्तक में धर्म के नाम पर कर्मकांड और पाखंडों के ख़िलाफ़ आन्दोलन, जन-जागृति कार्यक्रम और भंडाफोड़ जैसे प्रयासों का ब्योरा है।
पुस्तक में भूत से साक्षात्कार कराने का पर्दाफाश, ओझाओं की पोल खोलती घटनाएँ, मंदिर में जाग्रत देवता और गणेश देवता के दूध पीने के चमत्कार के विवरण पठनीय तो हैं ही, उनसे देखने, सोचने और समझने की पुख्ता ज़मीन भी उजागर होती है। निस्सन्देह अपने विषयों के नवीन विश्लेषण से यह पुस्तक पाठकों में अहम भूमिका निभाने जैसी है।
अंधविश्वास के तिमिर से विवेक और विज्ञान के तेज की ओर ले जानेवाली यह पुस्तक परम्परा का तिमिर-भेद भी है और विज्ञान का लक्ष्य भी।
Vimukt Janjatiyon Ki Vikas-Yatra : Niti Evam Vyavhar
- Author Name:
Malli Gandhi
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- Description: सिद्धपुरम और स्टुअर्टपुरम की बस्तियों के अध्ययन पर आधारित यह पुस्तक आन्ध्र प्रदेश की पूर्व-अपराधी और विमुक्त जनजातियों से सम्बद्ध साहित्य में एक स्वागत योग्य इजाफा है। भारतीय जनजातियों को लेकर प्रामाणिक अध्ययन बहुत कम हुए हैं, आन्ध्र प्रदेश की विमुक्त जनजातियों पर और भी कम। पूर्व-अपराधी जनजातियों पर तो कोई अच्छा काम मिलता ही नहीं है। इन जनजातियों की कुल पाँच बस्तियाँ है जिनमें से दो की देखरेख साल्वेशन आर्मी करती है। उन्हीं में से एक का नाम स्टुअर्टपुरम है जो आन्ध्र प्रदेश के वर्तमान जिले गुंटूर के तहत आती है और जिसका नाम मद्रास सरकार के तत्कालीन सचिव मि. स्टुअर्ट के नाम पर पड़ा है। इस बस्ती से कई नामी-गिरामी डकैतों के आने के चलते कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का ध्यान इसकी तरफ गया और उन्होंने बहुत लगन और समर्पण के भाव से अपना समय और ऊर्जा इस बस्ती के आपराधिक माहौल को बदलने के लिए खर्च किये। इनमें एथीस्ट सेंटर, विजयवाड़ा के लवानम और हेमलता लवानम के नाम प्रमुख हैं। इनके और सरकार के सतत प्रयासों के परिणामस्वरूप आज यहाँ रहनेवालों के जीवन में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है। मल्ली गांधी ने राष्ट्रीय तथा तमिलनाडु व आन्ध्र प्रदेश के अभिलेखागारों से कुछ दुर्लभ दस्तावेजों के साथ इस पुस्तक के लिए द्वितीयक स्रोतों के सर्वेक्षणों का भी उपयोग किया है। इसके अलावा जो चीज इस पुस्तक को और महत्त्वपूर्ण बनाती है, वह हैं वे मौखिक साक्ष्य जिन्हें जुटाने में लेखक ने कड़ा परिश्रम किया और जिनके कारण इस पुस्तक को और भी प्रामाणिक रूप मिला।
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