Ramuva-Kaluva-Budhiya Aur Rashtrawad
Author:
Ram MilanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Society-social-sciences0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Available
‘रमुआ-कलुआ-बुधिया और राष्ट्रवाद’ पुस्तक एक गम्भीर विषय है। रमुआ-कलुआ-बुधिया दरअसल सिर्फ़ नाम न होकर आम-जनमानस का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हें कभी जाति के नाम पर कभी धर्म के नाम पर तो कभी राष्ट्रवाद के नाम पर छला जाता है।</p>
<p>भारत के परिप्रेक्ष्य में आज जब भुखमरी, बेरोज़गारी एवं आर्थिक विफलता जैसे गम्भीर मुख्य मुद्दों को छद्म राष्ट्रवाद के सहारे कुचल देने का प्रायोजित षड्यंत्र चल रहा हो तो यह पुस्तक राष्ट्रवाद के विमर्श में आम जनमानस की आकांक्षाओ का प्रतिनिधित्व करती दिखाई पड़ती है।</p>
<p>देश में अफ़ीमचियों से भी अधिक ख़तरनाक छद्म राष्ट्रवादी आज गली-नुक्कड़ और चौराहों पर आसानी से देखे जा सकते हैं, या टेलीविज़न चैनलों और अख़बार के पन्नों पर तो इनकी भरमार है।</p>
<p>राष्ट्रवाद का आधार तर्क और वैचारिकता ही है। मनुष्य और पशु में मात्र ‘विचारों’ का अन्तर होता है। आज के परिवेश में जहाँ एक तरफ़ ‘विचारों’ की हत्या की जा रही हो तो ऐसी पुस्तक पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।</p>
<p>राष्ट्रवाद की परिकल्पना जाति, धर्म, मज़हब, सम्प्रदाय, लिंग, भाषा, संस्कृति, क्षेत्र, उपनिवेश, राजनीति जैसे संकीर्ण दायरों को तोड़ते हुए सार्वभौमिक राष्ट्रवाद के सन्निकट दिखाई पड़ती है जिसके केन्द्र में निश्चित तौर पर रमुआ-कलुआ-बुधिया अर्थात् आम-जनमानस ही हैं।</p>
<p>सामाजिक विमर्श में रुचि रखनेवाले अध्येताओं, छात्रों एवं विद्वानों के लिए यह पुस्तक उपयोगी हो सकेगी।</p>
<p>सुबचन राम</p>
<p>प्रधान आयकर आयुक्त</p>
<p>भारत सरकार
ISBN: 9788194364825
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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वीरकाव्य–प्रणेताओं को चरित कवि कहा गया है। क्योंकि उनके काव्य का उद्देश्य अपने चरितनायक के जीवन के विभिन्न पक्षों का यशोगान ही है।
सामान्यत: ‘रीतियुग के कवि’ से तात्पर्य रीतिमुक्त एवं रीतिभुक्त कवियों से है, क्योंकि साहित्य की दृष्टि से उन्हें ही आलोच्यकाल का प्रतिनिधि कवि माना गया है।
कवि भावलोक का प्राणी होता है। युग–जीवन उसके सृजन में प्रतिबिम्बित अवश्य होता है, किन्तु उसके चित्र को सम्यक् एवं पूर्णरूप से देखने के लिए काव्येतर स्रोतों से विवेच्य काल की सामाजिक परिस्थितियों का ज्ञान अपेक्षित है। इस दृष्टिकोण से पहले अध्याय में काव्येतर स्रोतों से तत्कालीन समाज की प्रतिमा निर्मित करने का प्रयास किया गया है। दूसरे अध्याय से काव्य–स्रोतों के आधार पर तत्कालीन समाज का अध्ययन आरम्भ होता है जिसमें समाज की सामान्य रचना को लिया गया है। इसमें समाज के भौतिक एवं धार्मिक विभाग, हिन्दुओं की वर्णाश्रम व्यवस्थाएँ और पारिवारिक रचना अन्तर्भुक्त हैं। तीसरे अध्याय में तत्कालीन समाज के राजनीतिक एवं आर्थिक जीवन को देखने का प्रयत्न किया गया है। चौथे अध्याय में रहन–सहन के अन्तर्गत मानव जीवन की मूल आवश्यकताएँ, असन–वसन–आवास, और मनुष्य के सहज सौन्दर्यबोध से परिचालित शृंगार–प्रसाधन और अलंकरण के उपविभाग हैं। पाँचवें अध्याय में लोकजीवन के उल्लास एवं आह्लाद को वाणी देनेवाले संस्कार–पर्वादि का विवेचन किया गया है। छठे अध्याय में रीतिकालीन काव्य में चित्रित समाज के नारी–सम्बन्धी दृष्टिकोण की विवेचना की गई है। सातवें अध्याय में आलोच्यकाल के उन विश्वासों एवं प्रत्ययों का अध्ययन किया गया है जो हिन्दू जाति को एक अलग व्यक्तित्व और विवेच्य युग को अलग सत्ता प्रदान करते हैं। इसे जीवन–दृष्टि के नाम से अभिहित किया गया है, जिसके अन्तर्गत सम्बन्धित युग की विभिन्न प्रवृत्तियों, धर्म एवं धर्माभास, विश्वासों एवं अज्ञात आधारवाले विश्वासों, कर्मफलवाद, भाग्यवाद व पुनर्जन्म एवं सांस्कृतिक समन्वय आदि हैं।
सात अध्यायों में विभाजित शशिप्रभा प्रसाद की महत्त्वपूर्ण आलोच्य कृति है ‘रीतिकालीन भारतीय समाज’। अध्येताओं, शोध–छात्रों एवं पुस्तकालयों के लिए अत्यन्त उपयोगी पुस्तक।
Parivartan Aur Vikas Ke Sanskritik Ayaam
- Author Name:
Puran Chandra Joshi
- Book Type:

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Description:
समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और सांस्कृतिक क्षेत्र के मर्मज्ञ विद्वान प्रो. पूरनचन्द्र जोशी की यह कृति भारतीय सामाजिक परिवर्तन और विकास के सन्दर्भ में कुछ बुनियादी सवालों और समस्याओं पर किए गए चिन्तन का नतीजा है। चार भागों में संयोजित इस कृति में कुल पन्द्रह निबन्ध हैं, जो एक ओर आधुनिक आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन को सांस्कृतिक आयामों पर और दूसरी ओर सांस्कृतिक जगत की उभरती समस्याओं के आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं पर नया प्रकाश डालते हैं।
हिन्दी पाठकों के लिए यह कृति विभिन्न दृष्टियों से मौलिक और नए ढंग का प्रयास है। एक ओर तो यह सांस्कृतिक सवालों को अर्थ, समाज और राजनीति के सवालों से जोड़कर संस्कृतिकर्मियों तथा अर्थ एवं समाजशास्त्रियों के बीच सेतुबन्धन के लिए नए विचार, अवधारणाएँ और मूलदृष्टि विचारार्थ प्रस्तुत करती है और दूसरी ओर उभरते हुए नए यथार्थ से विचार एवं व्यवहार—दोनों स्तरों पर जूझने में असमर्थ पुरानी बौद्धिक प्रणालियों, स्थापित मूलदृष्टियों और व्यवहारों की निर्मम विवेचना का भी आग्रह करती है। दूसरे शब्दों में, यह पुस्तक-संस्कृति, अर्थ और राजनीति को अलग-अलग कर खंडित रूप में नहीं, बल्कि इन तीनों के भीतरी सम्बन्धों और अन्तर्विरोधों के आधार पर समग्र रूप में समझने का आग्रह करती है।
प्रो. जोशी के अनुसार स्वातंत्र्योत्तर भारत में जो एक दोहरे समाज का उदय हुआ है, उसका मुख्य परिणाम है नवधनाढ्य वर्ग का उभार, जो पुराने सामन्ती वर्ग से समझौता कर सभी क्षेत्रों में प्रभुतावान होता जा रहा है और जिसका सामाजिक दर्शन, मानसिकता एवं व्यवहार गांधी और नेहरू-युग के मूल्य-मान्यताओं के पूर्णतया विरुद्ध हैं। वह पश्चिम के निर्बन्ध भोगवाद, विलासवाद और व्यक्तिवाद के साथ निरन्तर एकमेक होता जा रहा है। फलस्वरूप उसके और बहुजन समाज के बीच अलगाव ही नहीं, तनाव और संघर्ष भी विस्फोटक रूप ले रहे हैं। प्रो. जोशी सवाल उठाते हैं कि भारतीय समाज में बढ़ रहा यह तनाव और संघर्ष उसके अपकर्ष का कारण बनेगा या इसी में एक नए पुनर्जागरण की सम्भावनाएँ निहित हैं? वस्तुत: प्रो. जोशी की यह कृति पाठकों से इन प्रश्नों से वैचारिक स्तर पर ही नहीं, व्यावहारिक स्तर पर भी जूझने का आग्रह करती है।
Shiksha, Samaj Aur Bhavishya
- Author Name:
Shyamacharan Dube
- Book Type:

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Description:
राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के शिक्षा एवं समाज–वैज्ञानिक प्रो. श्यामाचरण दुबे की इस पुस्तक में शिक्षा, परम्परा और विकास के अन्तर्सम्बन्धों पर चौदह महत्त्वपूर्ण निबन्ध शामिल हैं। इनमें तीसरी दुनिया के शैक्षिक परिदृश्य का समाजशास्त्रीय दृष्टि से सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है।
प्रो. दुबे की यह पुस्तक वैकल्पिक भविष्य के निर्माण में शिक्षा की भूमिका पर जो स्थापनाएँ प्रस्तुत करती हैं, वे निश्चय ही मौलिक और प्रभावशाली हैं। इसके अतिरिक्त यह कृति भारतीय शिक्षा–व्यवस्था पर भी लेखक की पैनी नज़र से परिचित कराती है। इस सन्दर्भ में सुधार की दिशा में जो दिशा–निर्देश दिए गए हैं, उनकी प्रासंगिकता भी निर्विवाद है।
कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रो. दुबे की यह कृति सम्बद्ध विषय का पूरी गम्भीरता और गहराई से विश्लेषण करती है।
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