Pratinidhi Kahaniyan : Swayam Prakash
Author:
Swayam PrakashPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
स्वयं प्रकाश की कहानियाँ भारतीय, विशेष रूप से हिन्दी मध्यवर्ग के जीवन की एक तस्वीर पेश करती हैं—मनुष्यता से लबरेज़ पर दब्बू और डरपोक मध्यवर्ग, छोटी-छोटी आकांक्षाओं के लिए भी संघर्षरत, अन्ततः उन्हें स्थगित करता मध्यवर्ग, स्वार्थों की अन्धी दौड़ में भागता-गिरता-पड़ता मध्यवर्ग, निम्नवर्गीय जनों से विराग रखता मध्यवर्ग। यूँ तो स्वयं प्रकाश का कथाफ़लक गाँव से शहर तक फैला है, परन्तु उसका केन्द्र मध्यवर्ग ही है। यह मध्यवर्ग स्वतंत्रता आन्दोलन के दौर का मध्यवर्ग नहीं है जिसमें निम्नवर्ग के प्रति एक सदाशयता और सहभाव मौजूद था। इसमें निम्नवर्ग के प्रति वितृष्णा और घृणा निर्णायक हद तक मौजूद है। इस मध्यवर्ग में एक छोटी संख्या, उन लोगों की भी है, जिनमें समाज को बदलने की इच्छा मौजूद है। ऐसे चरित्र स्वयं प्रकाश के यहाँ प्रमुखता से मौजूद हैं। स्वयं प्रकाश की गहरी सहानुभूति इनके साथ है। इसीलिए इनके प्रति एक तरह का आलोचनात्मक भाव भी मौजूद है। परिवर्तनकामी चेतना जब मध्यवर्गीय स्वार्थपरता, पर्सनाल्टी कल्ट, या थोथे आदर्शवाद से घिर जाती है, स्वयं प्रकाश इन चरित्रों के प्रति तीखे हो जाते हैं। उनकी कहानियों में भारतीय स्त्री के जीवन की गहरी आलोचनात्मक पड़ताल भी मौजूद है। वे स्त्री-चरित्रों को प्रायः एक टाइप की तरह नहीं, एक व्यक्ति की तरह अंकित करते हैं। ये स्त्री-चरित्र पुरुष-चरित्रों की तरह ही निजी विशिष्टताओं के मालिक हैं। उन पर सामाजिक संरचना के दबाव हैं, परन्तु वे उनके विरुद्ध जीते हुए अपनी तरह का संसार रचने को आतुर हैं।
स्वयं प्रकाश ने कहानीपन की रक्षा करते हुए, उसे रोचक बनाते हुए एक ज्ञानी की तरह नहीं एक क़िस्सागो की तरह अपनी कहानियाँ कही हैं।
ISBN: 9789389598070
Pages: 152
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: Description Awaited
Sudeshanaa
- Author Name:
Udyan Vajpeyi
- Book Type:

-
Description:
उदयन वाजपेयी की इन कहानियों में हम अतिगल्पधर्मिता के एक ऐसे तत्त्व को सक्रिय देखते हैं, जो हमारी भाषा में एक अनोखी गल्प-सृष्टि का शिलान्यास करता प्रतीत होता है। इन कहानियों का दूसरा तत्त्व इनमें विचार और अनुभूति के वे बारीक और उलझे हुए धागे हैं, जो इन कहानियों की अतिगल्पधर्मिता के बावजूद इन्हें परीकथा की अनुकृति होने से बचाते हुए एक लगभग अप्रचलित-सा कथा-रूप प्रदान करते हैं। हम कह सकते हैं कि ये कहानियाँ परीकथा की अनुकृति नहीं, उसकी पैरोडी हैं।
इन कहानियों का सबसे मुखर और केन्द्रीय, यद्यपि नितान्त अदृश्य चरित्र ‘समय’ है। वस्तुओं, चरित्रों और घटनाओं का अधिष्ठान या निरा एक आयाम होने से अधिक यहाँ यह समय स्वयं वस्तुओं, चरित्रों और घटनाओं के हाथों बनती-मिटती एक हस्ती हैं। ये कहानियाँ समय की रचना करती हैं और (इस तरह) मानो प्रस्तावित करती हैं कि समय का प्रत्येक रूप एक संकल्प-सापेक्ष रचना है।
इन कहानियों की प्रस्तावित-गल्प-सृष्टि हमारे यथार्थ कहे जानेवाले संसार से अनुकूलित होने या उसे अनुकूलित करने के बजाय उसे ‘देखने’ का एक ऐसा ‘लोकस’ उपलब्ध कराती है, जहाँ से स्वयं इस संसार का गल्प उजागर हो सके। दूसरे शब्दों में वे कथा और सृष्टि के बीच मान्य द्वैत का प्रतिकार करती हैं और ऐसा करते हुए वे अपनी विश्वसनीयता की क़ीमत चुकाती हैं। अविश्वसनीयता को ये कहानियाँ अलंकार के नहीं, रस के रूप में प्रस्तावित करती हैं।
और इस सबसे ऊपर इनमें गहरी रागात्मकता और संसक्ति है, जो इनके अन्तर्निहित बौद्धिक तनाव और मुबहम वातावरण को स्पन्दनशील और स्पृहणीय बनाती हैं।
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