Balabodhini
Author:
Vasudha Dalmiya, Sanjeev KumarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रवर्तक माने जाते हैं। खड़ी बोली हिन्दी को साहित्य के माध्यम के रूप में प्रसारित-प्रचारित करने तथा रचनात्मक स्तर पर इस्तेमाल करने के लिए, साथ ही, अपने समय की बहुसंख्य प्रतिभाओं को अपने विराट मित्रमंडली में शामिल और प्रोत्साहित करने के लिए भी उन्हें याद किया जाता है।
सुविदित है कि 1870 के दशक में उनकी प्रकाशन गतिविधियाँ बहुत तेज़ी से बढ़ी और वे उत्तर-पश्चिमी प्रान्तों में केन्द्रीय महत्त्व वाली एक शख़्सियत के रूप में उभरे। उनकी दो साहित्यिक पत्रिकाएँ—‘कविवचनसुधा’ (1868-85) औ‘हरिश्चन्द्र मैगज़ीन’, जिसका नाम बाद में ‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका’ (1873-85) कर दिया गया—उनके जीवनकाल में ही प्रसिद्धि हासिल कर चुकी थीं। इनके साथ-साथ 1874 से 1877 तक उन्होंने महिलाओं की पत्रिका ‘बालाबोधिनी’ भी सम्पादित की थी, जिसका हिन्दी की पहली स्त्री-पत्रिका होने के नाते साहित्यिक इतिहास में विशिष्ट महत्त्व है। पर यह एक विडम्बना है कि भारतेन्दु की सभी जीवनियों में अनिवार्य और सम्मानजनक नामोल्लेख के बावजूद इस पत्रिका की सामग्र अन्तर्वस्तु या ढब-ढाँचे को लेकर वहाँ या अन्यत्र भी कोई विवेचन नहीं मिलाता और न ही इसकी प्रतियाँ कहीं सुलभ हैं।
विभिन स्रोतों से इकट्ठा किए गए बालाबोधिनी के अंकों को पुस्तकाकार रूप में हिन्दी जगत् के सामने लाना इसीलिए महत्त्वपूर्ण है। यह सन्तोष की बात है कि अब भारतेन्दु पर या हिन्दी प्रदेश में स्त्री-प्रश्न पर काम करनेवालों के सामने इस प्रथम स्त्री-मासिक का नामोल्लेख भर करने की मजबूरी नहीं रहेगी।
ISBN: 9788126725786
Pages: 352
Avg Reading Time: 12 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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