Mitti Ki Sugandh

Mitti Ki Sugandh

Language:

Hindi

Pages:

195

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

390 mins

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Book Description

<span style="font-weight: 400;">इस संकलन की लगभग सभी कहानियाँ प्रवासी भारतीयों के जीवन-संघर्ष</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">अनुभव और ऊहापोह की कहानियाँ हैं</span><span style="font-weight: 400;">; </span><span style="font-weight: 400;">लेकिन भारत की मिट्टी की सुगंध हर कहानी में रची-बसी है</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">चाहे वह लत हो</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">तमाशा खत्म हो या काल सुंदरी। घर का ठूँठ  की चन्नी विभाजन</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">टूटन और बिखराव की पीड़ा के चलते तमाम सुख-सुविधाओं के बावजूद ठूँठ होकर रह जाती है। पराया देश का नायक रंग और नस्ल भेद के दमघोंटू वातावरण में जी रहा है। अभिशप्त का नायक प्रवासी जीवन से तालमेल न बिठा पाने के संकट से ग्रस्त है तो सुबह की स्याही लंदन की स्याह और संकीर्ण मानसिकता का परिचय कराती है। पुराना घर</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">नए वासी में पश्चिमी संस्कृति में अपनी पहचान के गुम हो जाने का दर्द है तो सर्द रात का सन्नाटा में अपनों से छले जाने की पीड़ा। आदमखोर उपभोक्ता संस्कृति की स्वार्थांधता की परतें खोलती है तो फिर कभी सही... भौतिक मूल्यों और मानव-मन की भटकन का विश्लेषण करती है। इस बार कहानी...</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">बुधवार की छुट्टी</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">बेघर</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">एक मुलाकात और चाँदनी भी प्रवासी मन की पीड़ाओं का सघन ब्यौरा देने वाली कहानियाँ हैं। अपने देश से बाहर रहते हुए अपने देश की मिट्टी से जुड़ने की ललक से भरे रचनाकारों की ये कहानियाँ निश्चय ही हिंदी के कथा-जगत् में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं।</span>

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