Gyarahvin-A ke Ladke
Author:
Gaurav SolankiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
गौरव सोलंकी नैतिकता के रूढ़ खाँचों में अपनी गाड़ी खींचते-धकेलते लहूलुहान समाज को बहुत अलग ढंग से विचलित करते हैं। और, यह करते हुए उसी समाज में अपने और अपने हमउम्र युवाओं के होने के अर्थ को पकड़ने के लिए भाषा में कुछ नई गलियाँ निकालते हैं जो रास्तों की तरह नहीं, पड़ावों की तरह काम करती हैं। इन्हीं गलियों में निम्न-मध्यवर्गीय शहरी भारत की उदासियों की खिड़कियाँ खुलती हैं जिनसे झाँकते हुए गौरव थोड़ा गुदगुदाते हुए हमें अपने साथ घुमाते रहते हैं। वे कल्पना की कुछ नई ऊँचाइयों तक क़िस्सागोई को ले जाते हैं, और अक्सर सामाजिक अनुभव की उन कंदराओं में भी झाँकते हैं, जहाँ मुद्रित हिन्दी की नैतिक गुत्थियाँ अपने लेखकों को कम ही जाने देती हैं।</p>
<p>इस संग्रह में गौरव की छह कहानियाँ सम्मिलित हैं, लगभग हर कहानी ने सोशल मीडिया और अन्य मंचों पर एक ख़ास क़िस्म की हलचल पैदा की। किसी ने उन्हें अश्लील कहा, किसी ने अनैतिक, किसी ने नक़ली। लेकिन ये सभी आरोप शायद उस अपूर्व बेचैनी की प्रतिक्रिया थे, जो इन कहानियों को पढक़र होती है।</p>
<p>कहने का अन्दाज़ गौरव को सबसे अलग बनाता है, और देखने का ढंग अपने समकालीनों में सबसे विशेष। उदारीकृत भारत के छोटे शहरों और क़स्बों की नागरिक उदासी को यह युवा क़लम जितने कौशल से तस्वीरों में बदलती है, वह चमत्कृत करनेवाला है।
ISBN: 9789387462717
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
अपने समय और समाज, विशेषकर स्त्री समाज से जुड़े रचनाकारों की यों तो कहने के लिए बहुत बड़ी जमात है लेकिन स्त्री तथा स्त्री के तमाम धूप-छाँह को समझने का उनका अनुभव परिपक्व नहीं होता। पुरुष, स्त्री को हमेशा भोग या करुणा की नजर से देखता आया है। और यह सिर्फ स्त्रियों के बारे में ही नहीं पूरे काल और समाज के विश्लेषण के बारे में भी सच है। सतही मूल्यांकन करनेवाले लेखकों में जैसे एक होड़ लगी हुई है। ऐसी ही अराजक भीड़ के कारण वास्तविक साहित्य-सृजन का मार्ग अवरुद्ध-सा नजर आता है। मगर ऐसे काल-खंड में मैत्रेयी पुष्पा जैसी लेखिकाओं की उपस्थिति इस बात की आश्वस्ति है कि उन जैसे साहित्यकारों के कारण पाठकों को समाज की सच्चाइयों से परिचित होने का मौका मिलता है और समस्याओं से जूझने का दिशा-निर्देश भी। मैत्रेयी पुष्पा की कहानियों में बनावट नहीं मिलती और उनकी बुनावट में घटनाओं का ऐसा तीव्र प्रवाह मिलता है जो अन्त तक पाठकों को तल्लीन किये रहता है। उनका बुन्देलखंडी समाज कब सम्पूर्ण हिन्दीभाषी समाज में बदल जाता है, इसका पता ही नहीं चलता।
मैत्रेयी जी की कहानियाँ एक खास लीक पर चलने के बजाय जीवन की सभी ऋतुओं से युक्त होती हैं। उनकी कहानियों की विशेषता है कि उनमें निराशा में भी आशा का संयोजन होता है। स्त्रियाँ मैत्रेयी पुष्पा की कहानियों की बड़ी शक्ति हैं। वे उनके साहित्य में जहाँ भी हैं पूरी दबंगता और जीवन्तता से हैं। वे अपनी छाप छोड़ती हैं। उनकी कुछ ऐसी ही उल्लेखनीय कहानियों का यह संकलन ‘छाँह’ प्रस्तुत है ।
Sampurna Kahaniyan : Usha Priyamvada
- Author Name:
Usha Priyamvada
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Description:
उषा प्रियम्वदा की कहानियाँ जीवन के सहज विडम्बनाबोध की कहानियाँ हैं। घने कुहासे की तरह त्रास जब पाठक को अपने आगोश में लेता है तो सुध-बुध खोता पाठक ख़ुद को छोड़ देता है, उसकी धीमी लय पर डूबने-उतराने को। और, जब कहानी समाप्त होती है तो पाठक ख़ुद को एक सन्नाटे में पाता है—जहाँ दुनिया-जहान की तल्ख़ सच्चाइयाँ उसे कुरेद रही होती हैं; वह प्रश्नाकुल व बेचैन हो उठता है कि आख़िर ऐसा क्यों है—यह दुनिया ऐसी क्यों है?
यह सन्नाटा है जो बोलता है और डोलता भी है और अपने साथ डुलाता भी है पाठक को। फिर वह एक संशयात्मा की तरह जीवन स्थितियों को मुड़-मुडक़र देखने को बाध्य हो जाता है।
ऐसे समय में जब रचना के लिए भी विमर्श के कई ख़ाने बना दिए गए हैं, उषा प्रियम्वदा की कहानियाँ जीवन को उसकी समग्रता में लेती हैं। इन कहानियों की त्रासदी को स्त्री-पुरुष के ख़ानों में नहीं बाँटा जा सकता है। ये मनुष्यता की त्रासदी को प्रतिबिम्बित करती कहानियाँ हैं।
रघुवीर सहाय ने कभी कहा था—जब मैं कविता पढ़कर उठूँ तो सन्नाटा छा जाए। उषा जी की कहानियों की बाबत भी कुछ ऐसा ही कहा जा सकता है।
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