Fengshui
Author:
Kabir SanjayPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
कबीर संजय की कहानियाँ अछूते अनुभवों, विषयों और ब्योरों का खजाना हैं, ऐसा उनके पहले संग्रह ‘सुरखाब के पंख’ को पढ़ते हुए महसूस हुआ था। यह नया संग्रह उस अहसास को दुबारा पुष्ट करता है। उनकी कहानियाँ आपको आपकी ही परिचित दुनिया में किसी नए दरवाजे से दाखिल कराती हैं और अक्सर ऐसे धूल-अँटे कोनों तक ले जाती हैं जो कहानी विधा के लिए अड्डेबाजी के पसन्दीदा ठिकाने नहीं रहे। गरज कि उनके विषय और ब्योरे विचित्र होने के अर्थ में नहीं, उपेक्षित होने के अर्थ में अछूते हैं। अक्सर वे कहानीकार को अपने बचपन और कैशोर्य की स्मृतियों में भटकते हुए हाथ लगते हैं और वह जब उन्हें साफ-सुथरा करके आपके सामने पेश करते हैं तो आप वैसी ही उत्तेजना अनुभव करते हैं जैसी अपनी किसी खोई हुई अनमोल वस्तु के मिल जाने पर होनी चाहिए। इस संग्रह की एक कहानी ‘थप्पड़’ में वाचक कहता है, ‘बचपन में ज्यादा कुछ कहा नहीं। बस हर वक्त चुप ही रहा। इसलिए अब मन कहता है कि हर वक्त कुछ न कुछ कहता रहूँ। अगर थोड़ा ज्यादा भी हो जाए तो आप लोग बुरा नहीं मानेंगे, इसका मुझे भरोसा है।’ अगर यह वाचक की ही नहीं, कबीर संजय की भी अपनी बात है, तो कहना चाहिए कि भरोसा लाज़िमी है। उन्हें कहानी कहना आता है और वे जैसी अकृत्रिम, अतिरेकों से रहित, रवाँ जुबान में कहानी कहते हैं, उन्हें कौन नहीं सुनना चाहेगा!</p>
<p>—संजीव कुमार
ISBN: 9788196218447
Pages: 160
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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किरकिरी ‘राग मारवा’ के बाद ममता सिंह का दूसरा कथा-संग्रह है, जिसमें संकलित कहानियाँ प्रपंच में लिथड़े इस हिंसक समय में मानवीय संवेदनाओं के उत्स की तलाश करती हैं। ये कहानियाँ उन तमाम क्षणों को भी कलात्मकता के साथ दर्ज़ करती हैं, जिनमें मनुष्य अपने जीवन-राग को बचाए रखने के लिए बिना किसी बड़बोलेपन के संघर्ष करता है। निरन्तर संवेदनशील और आत्म-सजग बने रहने के लिए कोशिशें करते हर उम्र और हर वर्ग के स्त्री-पुरुष इन कहानियों में अपनी नैसर्गिकता के साथ उपस्थित हैं।
‘हथेली पर पिघलता चाँद’ कहानी के अल्ताफ़ वानी की पीड़ा और उनका जीवन-संघर्ष केवल कश्मीरी मुसलमान की पीड़ा या संघर्ष नहीं रहता, बल्कि कथा के रचाव में वह इस तरह विन्यस्त है कि स्थान और काल का अतिक्रमण करता है। दादी और अभिधा की कहानी ‘तुझी मी वाट पाहते’ स्मृतियों और वर्तमान के बीच आवाजाही का कलात्मक रचाव है। यह कहानी कोंकण के भूगोल में कुछ मार्मिक दृश्य रचती है और आँखों में आग-पानी एक साथ घुल-मिल जाते हैं। समुद्र की ताक़तवर लहरों की छाती चीरकर तैरनेवाली ‘स्कूबा डाइविंग’ की मछुआरिन लड़की अपनी हिम्मत और अपने आत्मविश्वास के बल पर आगे आने वाली पीढ़ी की लड़कियों के लिए पथ निर्मित करती है। प्राची की कथा ‘बंकर’ का यथार्थ अभी अतीत भी नहीं बन पाया है। यूक्रेन-रूस युद्ध की पृष्ठभूमि में मानवीय सम्वेदना की पड़ताल करती इस कथा का यथार्थ अभी कच्चा है, पर लेखिका ने अपने कथा-कहन के कौशल से इसे रोचक और संप्रेषणीय बनाया है।
ममता सिंह की कथा-भाषा सहज है। भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के साथ-साथ यथार्थ के अंतर्द्वंद्वों की अभिव्यक्ति में सक्षम ममता की भाषा में दृश्यात्मकता भी है। इस संकलन की कहानियों को पढ़ते हुए पाठक की कल्पनाशीलता का विस्तार होता है और जीवन के मर्म से साक्षात्कार भी। ये कहानियाँ पाठक को जीवन के प्रति जिज्ञासु बनाती हैं।
—हृषीकेश सुलभ
Antarman
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Mulakaat
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Sanjay Sahay
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Description:
नई कहानी के पारम्परिक ढाँचे को लगभग तोड़कर उदय प्रकाश, संजीव और शिवमूर्ति जैसे कथाकारों ने जो नई ज़मीन बनाई, उसे नब्बे के दशक में जिन कथाकारों ने विस्तार और गहराई देने का काम किया, उनमें संजय सहाय भी एक रहे। 1994 में ‘हंस’ में प्रकाशित अपनी कहानी ‘शेषान्त’ के साथ उन्होंने हिन्दी कथा-साहित्य में जैसे एक नई लकीर खींच दी थी। बेशक, उन्होंने कहानियाँ कम लिखीं। लेकिन जब भी लिखीं, पाठकों को एक नया आस्वाद, एक नया अनुभव दिया। अब लगभग दो दशक बाद उनका यह नया कहानी-संग्रह ‘मुलाक़ात’ नए सिरे से याद दिलाता है कि ज़िन्दगी की तरह कहानी में भी कितनी परतें हो सकती हैं। यह दरअसल शिल्प का कमाल नहीं, संवेदना की पकड़ है जो कथाकार को यह देखने की क्षमता देती है कि एक मुठभेड़ के भीतर कितनी मुठभेड़ें चलती रहती हैं, कि जब हम दूसरे को मारने निकलते हैं तो पहले कितना ख़ुद को मारते हैं, कि जीवन कितना निरीह और फिर भी कितना मूल्यवान हो सकता है, कि एक पछतावा उम्र-भर किसी का इस तरह पीछा कर सकता है कि वह अपनी देह के खोल से निकलकर उस शख़्स को खोजना चाहे जिसके साथ बचपन में कभी उसने अन्याय किया था, कि उसे एहसास हो कि यह अन्याय व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक था और इस वजह से कहीं ज़्यादा मार्मिक और मारक हो गया था।
ये कहानियाँ आपको तनाव से भर सकती हैं, आपको स्तब्ध कर सकती हैं और आपको इस तनाव से मुक्ति भी दिला सकती हैं, इस स्तब्धता से उबार भी सकती हैं। क़िस्सागोई की तरलता और जीवन के स्पन्दन से भरी इन कहानियों को पढ़ना एक विलक्षण अनुभव है जो आपको कुछ और बना देता है।
—प्रियदर्शन
Sukul Ki Bibi
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Suryakant Tripathi 'Nirala'
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प्रस्तुत संग्रह में निराला की चार कहानियाँ संगृहीत हैं और चारों का रंग अलग-अलग है। ‘क्या देखा’ में अगर हीरा नामक महिला की व्यथा-कथा है, तो ‘कला की रूपरेखा’ में एक सत्य घटना के माध्यम से यह प्रतिपादित किया गया है कि कला जीवन से निरपेक्ष नहीं हो सकती, पहचाननेवाली आँख हो तो जीवन में ही कला का अस्तित्व दिखाई देगा। ‘सुकुल की बीवी’ निराला के विद्रोही तेवर की कहानी है। एक मुसलमान पिता और हिन्दू माँ की सन्तान पुरखराज का विवाह सुकुल जी से कराने में निराला सहायक बनते हैं। उस समय के समाज में यह अकल्पनीय था। चौथी कहानी ‘श्रीमती गजानंद शास्त्रिणी’ में व्यंग्य का स्वर है। श्रीमती गजानंद शास्त्रिणी छायावाद के विरोध में उपदेशात्मक लेख लिखकर लोकप्रियता अर्जित करती हैं। उनकी सफलता अवसरवाद की सफलता है।
कुल मिलाकर यह छोटा-सा संग्रह कहानी के क्षेत्र में निराला की विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता है, और आशा है कि नए रूप-रंग में प्रकाशित यह संस्करण पाठकों को प्रीतिकर लगेगा।
Vishwa Ki Charchit Kahaniyan
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Sushant Supriy
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