ADBHUTA GALPA
Author:
Dr.Sanjay RoutPublisher:
ISL PUBLICATIONSLanguage:
OdiaCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 170
₹
200
Available
In this book, Dr.Sanjay Rout tells his wonderful stories. The book is filled with many inspiring and heart touching experiences that makes you feel like you are there witnessing them in real life.
ISBN: 1230004580782
Pages: 178
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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कथा की क्लासिकल, पर भाषा और शैली अभी और आज की। पात्र वही पुराने, पर उन्हें देखने, आँकने, टाँकने का अन्दाज़ ‘कृष्णबलदेवी’। घटनाएँ वही पुरानी, पर उन्हें बयान करते हुए उन्हें समकालिक जीवन-छवियों से जोड़ने का सपना नया। अगर कहानीकार का सरोकार, कहानी के सन्देश, पाठ या शिक्षा से कम और ख़ुद कहानी से ज़्यादा है, तो यह वैद जी जैसे कहानीकार के लिए निहायत स्वाभाविक बात है, जिसकी बुनियादी दिलचस्पी का सबब कहानी ही है : कहानी का निहितार्थ नहीं।
कृष्ण बलदेव वैद हमारे समय के ऐसे इने-गिने मूल्यवान और महत्त्वपूर्ण लेखकों में अग्रगण्य हैं, कथा कहने और अपनी शर्तों पर कहने की जिनकी उमंग न थकी है, न चुकी। कथित आलोचकों के सामने झुकी तो वह ज़रा भी नहीं है। प्रयोग और नएपन के प्रति उनका स्वाभाविक उल्लास और अनुराग हिन्दी की याद रखने लायक़ घटना हैं, वह इसलिए भी कि हर दफ़ा अपने ही ढब-ढंग का कुछ अलग, कुछ नया रचना, उनकी लेखकीय फ़ितरत में कुछ उसी तरह शरीक है जैसे इधर कम से कमतर होते जा रहे ‘प्रयोगशील’ हिन्दी गल्प में ख़ुद कृष्ण बलदेव वैद।
‘कथासरित्सागर’ की कुछ प्रसिद्ध कहानियों का यह रोचक ‘विचलन’ एक दफ़ा फिर वैद जी के नवाचारी मन-मस्तिष्क की रोमांचक उड़ान का असन्दिग्ध साक्ष्य है।
Janakpriya Evam Anya Kahaniya
- Author Name:
Manoj Kumar Sharma
- Book Type:

- Description: कवि-हृदय मनोज कुमार शर्मा का कहानी-संग्रह ‘जनकप्रिया एवं अन्य कहानियाँ’ जीवन के विविध अनुभवों को प्रांजल भाषा में अभिव्यक्त करता है। लेखक के पास संवेदनाओं की सशक्त पूँजी है। यह संवेदना आधुनिक महानगरीय मन और परम्परागत लोकचित्त की साझा निर्मिति है। यही कारण है कि मनोज कुमार शर्मा की कई कहानियाँ लोक-स्वभाव का अनुगमन करते हुए लोकलय में लिखी गई हैं। इसे परम्परा को संरक्षित करने की ‘कथात्मक कोशिश’ भी कह सकते हैं। मनोज कुमार शर्मा समकालीन ज़िन्दगी की विसंगतियों को बहुत सलीके से छू लेते हैं। उन्हें इस बड़बोले समय में शब्द संयम के प्रति सचेत कहानीकार कहा जा सकता है। उन्होंने कुछ नए मुहावरों को रूपायित भी किया है, जैसे ‘मैं वैसे क्रोध तो राजस्थान की वर्षा की तरह कम ही करता हूँ परन्तु उस दिन तो बस चेरापूँजी...।’ ऐसे प्रयोगों से पठनीयता में वृद्धि होने के साथ शैली में एक सुखद चमक भी आ जाती है। समग्रतः प्रस्तुत कहानी-संग्रह भावों और विचारों में उल्लेखनीय और महत्त्वपूर्ण है।
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