Vote Le, Dariya Mein Daal

Vote Le, Dariya Mein Daal

Authors(s):

Sharad Joshi

Language:

Hindi

Pages:

200

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

400 mins

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Book Description

शरद जोशी हिन्दी व्यंग्य के ‘आइकॉन’ हैं। व्यंग्य की तीव्रता को उन्होंने जिस भाषा और तेवर के साथ सम्भव किया, और जो मानक निर्मित किया, उनके बाद कोई भी व्यंग्यकार उसे पार नहीं कर सका। उनके व्यंग्य-लेख वर्तमान हालात पर भी आज के व्यंग्यकारों से ज़्यादा सार्थक, प्रासंगिक और बेधक लगते हैं। गहरे सामाजिक सरोकार, समाज और राजनीति की परिपक्व समझ, खुली दृष्टि और तीखे ‘ऑब्ज़र्वेशन’ ने उन्हें जो अलग जगह दी, वह हिन्दी में आज भी उन्हीं की है।</p> <p>इस पुस्तक में उनके राजनीतिकेन्द्रित लेखों को संकलित किया गया है, और उनमें भी ज़ोर चुनाव-विषयक टिप्पणियों पर है, इसीलिए इसका शीर्षक ‘वोट ले, दरिया में डाल’ पड़ा जो भारतीय लोकतंत्र पर एक टिप्पणी है।</p> <p>पुस्तक में शामिल पचास से अधिक इन आलेखों में, जैसे हमारे देश की राजनीति की एक-एक कमज़ोर कड़ी का पोस्टमार्टम किया गया है। चुनाव में खड़े आदमी की छवि से शुरू करके शरद  जोशी यहाँ ‘चुनाव गीतिका : सरलार्थ’ तक जाते हैं और लिखते हैं : ‘निशि व्यतीत हुई। ओ कज्जल-मलिन नयनोंवाली कामिनी, उठ। पोलिंग बूथों से राजनीति का कन्त तुझे टेर रहा है। चुनाव के कटे-कटे पोस्टरों से गृहों की दीवारें ऐसी प्रतीत हो रही हैं मानो किसी सुन्दरी के तन पर नख-क्षत हैं। प्रचार बन्द हो गया है। सभी जन मतदान हेतु केन्द्रों की ओर सत्वर गति से जा रहे हैं। ऐसे में हे गजगामिनी, तू गमन-विलम्बिनी होने की कलंकिनी मत बन।’ कहने की ज़रूरत नहीं कि भाषा का यह तत्सम ठाठ एक गहरे और सतह पर शान्त क्रोध की हुंकार है।</p> <p>आशा है, शरद जोशी के ये लेख पाठकों को पुनः प्रतिरोध व अस्वीकार की उसी तमतमाती दुनिया में ले चलेंगे।

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