Pagdandiyon Ka Zamana
Author:
Harishankar ParsaiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Satire0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
Awating description for this book
ISBN: 9788126700370
Pages: 119
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Tulsidas Chandan Ghisain
- Author Name:
Harishankar Parsai
- Rating:
- Book Type:

-
Description:
हरिशंकर परसाई के लिए व्यंग्य साध्य नहीं, साधन था। यही बात उनको साधारण व्यंग्यकारों से अलग करती है। पाठक को हँसाना, उसका मनोरंजन करना उनका मक़सद नहीं था। उनका मक़सद उसे बदलना था। और यह काम समाज-सत्य पर प्रामाणिक पकड़, सच्ची सहानुभूति और स्पष्ट विश्व-दृष्टि के बिना सम्भव नहीं हो सकता। ख़ास तौर पर अगर आपका माध्यम व्यंग्य जैसी विधा हो। हरिशंकर परसाई के यहाँ ये सब ख़ूबियाँ मिलती हैं। उनकी दृष्टि की तीक्ष्णता और वैचारिक स्पष्टता उनको व्यंग्य-साहित्य का नहीं विचार-साहित्य का पुरोधा बनाती है।
तुलसीदास चन्दन घिसैं के आलेखों का केन्द्रीय स्वर मुख्यत: सत्ता और संस्कृति के सम्बन्ध हैं। इसमें हिन्दी साहित्य का समाज और सत्ता प्रतिष्ठानों से उसके सम्बन्धों के समीकरण बार-बार सामने आते हैं। पाक्षिक ‘सारिका’ में 84-85 के दौरान लिखे गए इन निबन्धों में परसाई जी ने उस दुर्लभ लेखकीय साहस का परिचय दिया है, जो न अपने समकालीनों को नाराज़ करने से हिचकता है और न अपने पूर्वजों से ठिठोली करने से जिसे कोई चीमड़ नैतिकता रोकती है।
गौरतलब यह कि इन आलेखों को पढ़ते हुए हमें बिलकुल यह नहीं लगता कि इन्हें आज से कोई तीन दशक पहले लिखा गया था। हम आज भी वैसे ही हैं और आज भी हमें एक परसाई की ज़रूरत है जो चुटकियों से ही सही पर हमारी खाल को मोटा होने से रोकता रहे।
Shikayat Mujhe Bhee Hai
- Author Name:
Harishankar Parsai
- Rating:
- Book Type:

- Description: शिकायत मुझे भी है' में हरिशंकर परसाई के लगभग दो दर्जन निबन्ध संगृहीत हैं और इनमें से हर निबन्ध आज की वास्तविकता के किसी न किसी पक्ष पर चुटीला व्यंग्य करता है। परसाई के लेखन की यह विशेषता है कि वे केवल विनोद या परिहास के लिए नहीं लिखते। उनका सारा लेखन सोद्देश्य है और सभी रचनाओं के पीछे एक साफ-सुलझी हुई वैज्ञानिक जीवन-दृष्टि है, जो समाज में फैले हुए भ्रष्टाचार, ढोंग, अवसरवादिता, अन्धविश्वास साम्प्रदायिकता आदि कुप्रवृत्तियों पर तेज रोशनी डालने के लिए हर समय सतर्क रहती है। कहने का ढंग चाहे जितना हल्का-फुल्का हो, किन्तु हर निबन्ध आज की जटिल परिस्थितियों को समझने के लिए एक अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है। इसलिए जो आज की सच्चाई को जानने में रुचि रखते हैं, उनके लिए यह पुस्तक संग्रहणीय है।
Lal Fita
- Author Name:
Hemant Dwivedi
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Roshani Ki Shinakht
- Author Name:
Gyan Chaturvedi
- Book Type:

- Description: नदी को आदमी की चिन्ता है और आदमी को विकास की। विज्ञान सोचने वाली मशीन बनाना चाहता कि मनुष्य को सहूलियत हो, लेकिन सत्ता सोच को नियंत्रित करनेवाला यंत्र चाहती है। अफ़सरी है जो अभी भी अपनी पुरातन पटरी पर चली जा रही है। पुलिस की तफ़्तीश है जो पीड़ित को अपराधी-सा अहसास करा रही है। ऐसी ही और अनेक उलटबाँसियाँ हैं जिन पर ज्ञान चतुर्वेदी के ये व्यंग्य बहुत साफ़, बहुत तीखे ढंग से उँगली रखते हैं। समाज, राजनीति, साहित्य-संस्कृति जहाँ भी कुछ उथला है, छूँछा है, बेईमान और इनसानियत के ख़िलाफ़ है उनकी नज़र से नहीं चूकता। ये व्यंग्य जो हैं उसकी अक्कासी-भर नहीं करते, बल्कि अपने आसपास के विद्रूप को देखने की दृष्टि भी देते हैं, कभी किसी रूपक में पिरोकर, कभी सीधी टिप्पणियों से। लेकिन यह व्यंग्य सब कुछ को स्याह नहीं दिखाता, जहाँ रोशनी है उसकी शिनाख़्त भी करता है। ‘रोशनी की शिनाख़्त’ व्यंग्य-संग्रह की भूमिका अपने आप में इस प्रस्तुति की उपलब्धि है जिसमें ज्ञान चतुर्वेदी वर्तमान हिन्दी व्यंग्य का अत्यन्त विचारोत्तेजक विश्लेषण करते हुए, देश के मौजूदा समय पर भी एक सार्थक टिप्पणी करते हैं।
Nithalle Ki Diary
- Author Name:
Harishankar Parsai
- Rating:
- Book Type:

- Description: हरिशंकर परसाई हिन्दी के अकेले ऐसे व्यंग्यकार रहे हैं जिन्होंने आनन्द को व्यंग्य का साध्य न बनने देने की सर्वाधिक सचेत कोशिश की। उनकी एक-एक पंक्ति एक सोद्देश्य टिप्पणी के रूप में अपना स्थान बनाती है। स्थितियों के भीतर छिपी विसंगतियों के प्रकटीकरण के लिए वे कई बार अतिरंजना का आश्रय लेते हैं, लेकिन, तब भी यथार्थ के ठोस सन्दर्भों की धमक हमें लगातार सुनाई पड़ती रहती है। लगातार हमें यह एहसास होता रहता है कि जो विद्रूप हमारे सामने प्रस्तुत किया जा रहा है, उस पर सिर्फ ‘दिल खोलकर’ हँसने की नहीं, थोड़ा गम्भीर होकर सोचने की हमसे अपेक्षा की जा रही है। यही परसाई के पाठ की विशिष्टता है। ‘निठल्ले की डायरी’ में भी उनके ऐसे ही व्यंग्य शामिल हैं। आडंबर, हिप्पोक्रेसी, दोमुँहापन और ढोंग यहाँ भी उनकी क़लम के निशाने पर हैं।
Ek Manzila Makan Mein Lift
- Author Name:
Sampat Saral
- Book Type:

-
Description:
वाह, क्या डिजिटल इंडिया हुआ है। ऊँची पहुँच वाले महानुभाव न सिर्फ एक करोड़ का लोन उनसठ मिनट में ले सकते हैं, बल्कि उनसठ करोड़ का लोन लेकर एक मिनट में विदेश तक फरार हो सकते हैं।
मेरे खयाल से हाथ मिलाने और हाथ जोड़ने की परम्परा का उद्भव और विकास उन भारतीय कारोबारियों ने किया है जिनका एकमात्र लक्ष्य बैंकों से उधार लेकर न चुकाना रहा है। उधार लेते वक्त हाथ मिलाया और चुकाने की बात आई तो हाथ जोड़ दिए।
जिस तरह एक के बाद एक बैंक घोटाले उजागर हो रहे हैं और भुगतना जनसामान्य को पड़ रहा है, लगता है, भारतीय बैंकों का अब एक ही काम रह गया है—‘आम लोगों का जमा, खास लोगों को थमा’।...
बैंकों के इसी ‘भरपाई-कर्म’ के तहत इन दिनों हमारा बैंक खाता भी क्या खूब खाता है। यदि कोई राहगीर किसी व्यक्ति से गन्तव्य का रास्ता पूछते वक्त यह भर और जानना चाहे कि भैया रास्ते में कोई बैंक-वैंक तो नहीं पड़ेगा तो वाक्य खत्म होने से पहले ही उसके मोबाइल फोन पर उसके खाते से पाँच रुपये कटने का सन्देश आ टपकता है। इन्क्वारी चार्ज।
—इसी पुस्तक से
Sharad Parikrama
- Author Name:
Sharad Joshi
- Book Type:

-
Description:
शरद जोशी के व्यंग्य का क्षेत्र बहुत व्यापक और विविधवर्णी रहा है। लेखन उनकी आजीविका का भी साधन था। एक सम्पूर्ण लेखक का जीवन जीते हुए उन्होंने अपने दैनंदिन की लगभग हर घटना, हर ख़बर को अपने व्यंग्यकार की निगाह से ही देखा। उनके विषयों में प्रमुख यद्यपि समकालीन राजनीति और नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार ही रहा, लेकिन क्षरणशील समाज की भी ज़्यादातर नैतिक दुविधाओं को उन्होंने अपना विषय बनाया।
मुक्तिबोध ने कहीं कहा था कि सच्चा लेखक सबसे पहले अपना दुश्मन होता है, अपने कठघरे में जो लेखक ख़ुद को खड़ा नहीं कर सकता, वह दूसरों को भी नहीं कर सकता। शरद जोशी भी जब मौक़ा आता है, ख़ुद भी अपने व्यंग्य के सामने खड़े हो उसकी धार का सामना करते हैं। अपने अनेक निबन्धों में उन्होंने अपनी मध्यवर्गीय सीमाओं, चिन्ताओं और हास्यास्पदताओं का मज़ाक़ बनाया है।
सच्चे व्यंग्यकार की तरह उन्होंने अपने लेखन में न सिर्फ़ जीवन की समीक्षा की, बल्कि व्यंग्य की ज़मीन पर जमे रहते हुए कहानी और लघु-कथाओं आदि विधाओं में भी प्रयोग किए। कवि-मंचों पर उनकी गद्यात्मक उपस्थिति तो अपने ढंग का प्रयोग थी ही।
‘परिक्रमा’ उनका पहला व्यंग्य-संग्रह है जिसका प्रकाशन 1958 में हुआ था। इस नज़रिए से इसका अध्ययन विशेष महत्त्व रखता है।
Chacha Chakkan
- Author Name:
Subhadra Kumari Chauhan
- Book Type:

- Description: Description Awaited
Chhalkat Jaye Gyan Ghat
- Author Name:
K. D. Singh
- Book Type:

- Description: जब ढोल की बात चल ही पड़ी है, तो एक और खास बात है जिस पर आपको गौर करना चाहिए। ... और वह यह है कि, जो ढोल जितनी गहन, गम्भीर आवाज करता है, वह अन्दर से उतना ही खोखला होता है। ढोल की आवाज, उसके आकार-प्रकार पर कम, उसके खोखलेपन पर ज्यादा निर्भर करती है। ढोल की एक पोल भी होती है, जो कभी-कभी खुल जाती है। परम्परागत ढोल की तो पोल खुलते ही वह बजना बन्द हो जाता है और घर के किसी कोने पर सन्यास लेकर पड़ा रहता है, जब तक कि उसे उसकी पोल के साथ पुनः कस न दिया जाय। लेकिन आधुनिक पीढ़ी के ढोल तो, पोल खुलने के बाद भी उतनी ही गम्भीर रिदम के साथ पूरी बेशर्मी से बजते रहते हैं... और मजे की बात यह है कि लोग उसे सुनते भी रहते हैं... पूरी तन्मयता के साथ। बजनेवाले ढोल, अगर आपके नजदीक बज रहे हों, तो वे आपको कर्कश लग सकते हैं... लेकिन ज्यों-ज्यों ढोल और आपके बीच की दूरी बढ़ती जाती है, उनकी आवाज अपेक्षाकृत मधुर होती जाती है, और विश्वसनीय भी।
Awara Bheed Ke Khatare
- Author Name:
Harishankar Parsai
- Book Type:

-
Description:
‘आवार भीड़ के खतरे’ पुस्तक हिन्दी के अन्यतम व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के निधन के बाद उनके असंकलित और कुछेक अप्रकाशित व्यंग्य-निबन्धों का एकमात्र संकलन है। अपनी कलम से जीवन ही जीवन छलकानेवाले इस लेखक की मृत्यु खुद में एक महत्त्वहीन-सी घटना बन गई लगती है। शायद ही हिन्दी साहित्य की किसी अन्य हस्ती ने साहित्य और समाज में जड़ जमाने की कोशिश करती मरणोन्मुखता पर इतनी सतत, इतनी करारी चोट की हो !
इस संग्रह के व्यंग्य-निबन्धों के रचनाकाल का और उनकी विषय-वस्तु का भी दायरा काफी लम्बा-चौड़ा है। राजनीतिक विषयों पर केन्द्रित निबन्ध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि, उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है। वैसे राजनीतिक व्यंग्य इस संकलन में अपेक्षाकृत कम हैं–सामाजिक और साहित्यिक प्रश्नों पर केन्द्रीकरण ज्यादा है।
हँसने और संजीदा होने की परसाई की यह आखिरी महफिल उनकी बाकी सारी महफिलों की तरह ही आपके लिए यादगार रहेगी।
Sanpon Ki Sabha
- Author Name:
Anoop Mani Tripathi
- Book Type:

- Description: अनूप मणि त्रिपाठी की व्यंग्य रचनाओं को पढ़ने के पहले मुझे लगता था कि हर व्यंग्य का स्वाद एक जैसा होता है। उनके इस संग्रह को आद्योपांत पढ़ने के बाद समझ में आया कि खुद उनकी हर रचना का स्वाद अलग है। राजनीति के विद्रूप, निष्ठुरता और नंगई को जिस तरह गले से पकड़कर वे अनावृत करते और उस पर चोट करते हैं वह अद्वितीय है। उनका व्यंग्य औरों से इस मामले में अलग और मूल्यवान है कि वह पाठक की समझ पर लानत ही नहीं भेजता, उसे समझदार भी बनाता है। जनता का ध्यान कैसे असली और ज्वलन्त मुद्दों से भटकाकर नकली और काल्पनिक मुद्दों में उलझाया जाता है इसके एक से एक नमूने आपको कदम कदम पर मिलते हैं। 'बहती लाशों की कहानियाँ' पढ़कर लगता है व्यंग्य नहीं पढ़ रहे, कोई हॉरर फिल्म देख रहे हैं। भाषा की विदग्धता का उदाहरण देने से इसलिए बच रहा हूँ कि आख़िर कितने उदाहरण देंगे। फिर भी बानगी के लिए एक उदाहरण दे रहा हूँ। शीर्षक है—‘साँपों की सभा’। ‘वह धारा प्रवाह बोलता रहा, ‘बस हमें सपने और भय दोनों साथ-साथ दिखाने होंगे! अच्छे-अच्छे शब्दों के चयन पर ध्यान केन्द्रित करना होगा!’ उसने चूहे की डेड बॉडी पर एक नजर मारी। फिर बोला, ‘देखिए! कैसे हमारे रंग में यह रँगने के लिए तैयार हो गया!’ वह आगे बोला, ‘जहर भरिए, खूब भरिए, मगर उपदेश की शक्ल में...आप देखेंगे कि उपदेश स्वतः उन्माद में बदलता जाएगा...बस फैलकर हर जगह हमें अपना काम लगातार करते रहना है। क्या समझे!’ एक बूढ़ा साँप जोश में बोला, ‘समझ गए! हमें लोकतंत्र को लोकतांत्रिक ढंग से खत्म करना है...’ दरअसल इन रचनाओं की शैलीगत व्याप्ति इतनी अधिक है कि इन्हें केवल व्यंग्य के खाँचे में रखना इनकी मारक क्षमता को कम करके आँकना होगा। यह कोई और विधा है जिसकी तिलमिलाहट अन्दर तक कँपकँपी पैदा कर देती है और जिसे उपयुक्त नाम दिया जाना अभी बाकी है। हाँ, जब तक इसका उपयुक्त नामकरण न हो जाए तब तक व्यंग्य से काम चलाना पड़ेगा। इन रचनाओं से गुजरने के बाद मेरा मानना है कि अनूप मणि त्रिपाठी आज की मारक व्यंग्य विधा के सर्वाधिक सशक्त हस्ताक्षर हैं। —शिवमूर्ति
Desh Sewa Ka Dhandha
- Author Name:
Vishnu Nagar
- Rating:
- Book Type:

- Description: विष्णु नागर ने एक कवि के अलावा ख़ुद को एक व्यंग्यकार के रूप में भी प्रतिष्ठित किया है। उन्होंने अपने समय को कविता, कहानी, निबन्ध, लेख, व्यंग्य आदि अनेक विधाओं में पकड़ने की कोशिश की है। दरअसल व्यंग्य उनका इतना सहज भाव है कि वह इन सभी विधाओं में बिखरा पड़ा है जिनमें उन्होंने रचनाएँ की हैं। अपने समय की तीखी राजनीतिक-सामाजिक विडम्बनाओं को उन्होंने इस पुस्तक में शामिल सभी व्यंग्यों के माध्यम से पकड़ा है। इनके व्यंग्य की यह विशेषता है कि इनमें एक निर्भीक भाव है। विष्णु नागर शब्दों का खेल करके व्यंग्य या हास्य पैदा करने की कोशिश नहीं करते। वह अपनी बात को स्पष्टता से कहते हैं, शायद इसी कारण ये व्यंग्य अपने समकालीन व्यंग्यकारों के व्यंग्यों से अलग नज़र आते हैं। इनमें कविता की कोमलता और करुणा भी है और कहानी का आख्यान भी। निबन्ध का लालित्य भी है और लेख की विचारशीलता भी। इनमें भाषा का विलक्षण रचाव और सधाव देखने को मिलता है। व्यंग्यकार किसी भी राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक स्थिति को उसके विभिन्न आयामों में देखने की सतर्क सजग कोशिश करता है इसलिए ये व्यंग्य समकालीन स्थिति पर होकर भी महज़ समसामयिक बनकर नहीं रह गए हैं। इनमें अपने समय के क्रूर तथा नंगे यथार्थ का इतिहास और भूगोल दोनों मिलेंगे। ये व्यंग्य तत्कालीन राजनीतिक स्थितियों के बारे में होकर भी चूँकि कोरे राजनीतिक-सामाजिक नहीं हैं, इसलिए राजनीतिक-सामाजिक यथार्थ का बाहरी स्वरूप किंचित् बदलने के बावजूद हम पाते हैं कि कुल मिलाकर यथार्थ अपने मूल आशय में वैसा ही आज भी है जैसा कि वह इन व्यंग्यों में दिखता है। विष्णु नागर उन व्यंग्यकारों में हैं जिन्होंने हरिशंकर परसाई, रघुवीर सहाय, बर्टोल्ट ब्रेख़्त आदि से सीखा है और उसे अपने ढंग से एक बिलकुल नया स्वरूप देने की कोशिश की है।
Urdu-Hindi Hashya-Vyangya
- Author Name:
Ravindranath Tyagi
- Rating:
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी व्यंग्यकारों में सुपरिचित रवीन्द्रनाथ त्यागी द्वारा संकलित-सम्पादित यह कृति उर्दू और हिन्दी के क़रीब चौबीस चुनिन्दा लेखकों की हास्य-व्यंग्य रचनाएँ प्रस्तुत करती है।
यह पुस्तक कुछ लोगों की इस धारणा को झुठलाती है कि श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य की परम्परा उर्दू में तो है, हिन्दी में नहीं; अथवा यदि है तो भी स्तरीय नहीं है। वस्तुतः हिन्दी-उर्दू व्यंग्य लेखन पर इस तरह विचार करना ग़लत है, क्योंकि सम्पादक के ही शब्दों में कहें तो “कम-से-कम अब यह स्थिति ज़रूर आ गई है, जब लिपि को छोड़कर उर्दू और हिन्दी, दोनों भाषाओं में और कोई अन्तर नहीं रहा।” इसलिए यदि उर्दू के पतरस बुखारी से लेकर कृष्ण चंदर तक तथा हिन्दी के अन्नपूर्णानन्द से लेकर लतीफ़ घोंघी तक की व्यंग्य रचनाओं को यहाँ देखा जाएगा तो अपने समय की धड़कनें उनमें समान रूप से सुनी जा सकेंगी।
वर्तमान जीवन के विविध क्षेत्रों में निहित जड़ीभूत संस्कारों और विद्रूपताओं पर ये रचनाएँ कसकर प्रहार करती हैं। इस प्रक्रिया में अनेकानेक दुर्लभ व्यंग्य-स्थितियाँ, धारदार भाषा-शैली, शिल्पगत अनूठे प्रयोग तथा यथार्थ को पारदर्शी बनाती हुई वैचारिकता संकलित निबन्धों को सहज ही अविस्मरणीय बना देती है। दूसरे शब्दों में हम हँसी-हँसी में ही सोच के गम्भीर बिन्दुओं का स्पर्श करने लगते हैं।
Khamosh! Nange Hamam Mein Hain
- Author Name:
Gyan Chaturvedi
- Book Type:

-
Description:
परसाई, शरद जोशी, रवीन्द्रनाथ त्यागी और श्रीलाल शुक्ल की पीढ़ी के बाद यदि हिन्दी-विश्व को कोई एक व्यंग्यकार सर्वाधिक आश्वस्त करता है तो वह ज्ञान चतुर्वेदी हैं। वे क्या ‘नया लिख रहे हैं’—इसको लेकर जितनी उत्सुकता उनके पाठकों को रहती है, उतनी ही आलोचकों को भी। विशेष तौर पर, राजकमल द्वारा ही प्रकाशित अपने दो उपन्यासों—‘नरक यात्रा’ और ‘बारामासी’ के बाद तो ज्ञान चतुर्वेदी इस पीढ़ी के व्यंग्यकारों के बीच सर्वाधिक पठनीय, प्रतिभावान, लीक तोड़नेवाले और हिन्दी-व्यंग्य को वहाँ से नई ऊँचाइयों पर ले जानेवाले माने जा रहे हैं, जहाँ परसाई ने उसे पहुँचाया था।
ज्ञान चतुर्वेदी में परसाई जैसा प्रखर चिन्तन, शरद जोशी जैसा विट, त्यागी जैसी हास्य-क्षमता तथा श्रीलाल शुक्ल जैसी विलक्षण भाषा का अद्भुत मेल है, जो उन्हें हिन्दी-व्यंग्य के इतिहास में अलग ही खड़ा करता है। ज्ञान को आप जितना पढ़ते हैं, उतना ही उनके लेखन के विषय-वैविध्य, शैली की प्रयोगधर्मिता और भाषा की धूप-छाँव से चमत्कृत होते हैं। वे जितने सहज कौशल से छोटी-छोटी व्यंग्य-कथाएँ और व्यंग्य-टिप्पणियाँ रचते हैं, उतने ही जतन से लम्बी व्यंग्य रचनाएँ भी बुनते हैं। ‘नरक यात्रा’ और ‘बारामासी’ जैसे बड़े उपन्यासों में उनके व्यंग्य-तेवर देखते ही बनते हैं। ज्ञान चतुर्वेदी विशुद्ध व्यंग्य लिखने में उतने ही सिद्धहस्त हैं, जितना ‘निर्मल हास्य’ रचने में।
वास्तव में ज्ञान की रचनाओं में हास्य और व्यंग्य का ऐसा नपा-तुला तालमेल मिलता है, जहाँ ‘दोनों ही’ एक-दूसरे की ताक़त बन जाते हैं। और तब हिन्दी की यह ‘बहस’ ज्ञान को पढ़ते हुए बड़ी बेमानी मालूम होने लगती है कि हास्य के (तथाकथित) घालमेल से व्यंग्य का पैनापन कितना कम हो जाता है? सही मायनों में तो ज्ञान चतुर्वेदी के लेखन से गुज़रना एक ‘सम्पूर्ण व्यंग्य-रचना’ के तेवरों से परिचय पाने के अद्वितीय अनुभव से गुज़रना है।
Lateefe
- Author Name:
Anuradha Sharma
- Book Type:

- Description: शाइरों और अदीबों की हाज़िरजवाबी, तंज और मजाहिया गुफ़्तगू में भी शाइरी और इल्म की गहरी बातें छिपी होती हैं| ये चीज़ें किसी भाषा के अदब का अनौपचारिक विस्तार ही नहीं होतीं, उस साहित्य और समाज की आत्मा में झाँकने का एक खूबसूरत झरोखा हैं| इस किताब में शामिल लतीफ़ों से लगभग दो सौ सालों के महान शाइरों, संपादको, सियासी शख्शियतों और पत्रकारों का किरदार उभरता है| साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप का बौद्धिक परिदृश्य बनता दिखाई पड़ता है|
Ghav Karen Gambhir
- Author Name:
Sharad Joshi
- Book Type:

-
Description:
‘घाव करें गम्भीर’ शरद जोशी की व्यंग्यधर्मिता का एक अद्भुत आयाम है। एक उक्ति है ‘जहाँ काम आवै सुई, काह करै तरवारि।’ शरद जोशी लम्बे व्यंग्यालेख लिखने में जितने सिद्धहस्त हैं, उतनी ही निपुणता उन्हें ‘संक्षिप्त व्यंग्य’ लिखने में प्राप्त है। प्रस्तुत संग्रह में आकार की दृष्टि से ‘लघु व्यंग्य’ और ‘लघु कहानियाँ’ संगृहीत हैं। यह लेखक का शब्द संयम ही है कि उसने ‘गागर में सागर’ भरने का चमत्कार कर दिखाया है।
शरद जोशी के सरोकार प्रशस्त हैं। इन व्यंग्यों और लघु कहानियों में शिल्प की तीक्ष्णता सरोकारों को और पैना कर देती है। ‘जिसके हम मामा हैं’ में वे लिखते हैं, ‘आप प्रजातंत्र की गंगा में डुबकी लगाते हैं। बाहर निकलने पर देखते हैं कि वह शख़्स जो कल आपके चरण छूता था, आपका वोट लेकर ग़ायब हो गया। वोटों की पूरी पेटी लेकर भाग गया।’
‘घाव करें गम्भीर’ के व्यंग्य की धार दुहरी है। पाठक जहाँ परिवेश की विसंगतियों के प्रति सचेत होता है, वहीं अपने अन्तर्विरोधों के प्रति उसमें सजगता जाग्रत होती है। छोटे-छोटे अनुभव, लोककथाओं सरीखा स्वाद, व्यंजनाओं का समारोह और शिल्प की नवीनता प्रस्तुत पुस्तक की रेखांकित करने योग्य विशेषताएँ हैं।
शरद जोशी के असंख्य पाठकों के लिए एक उपहार है यह।
Bharat Ek Bazar Hai
- Author Name:
Vishnu Nagar
- Rating:
- Book Type:

- Description: विष्णु नागर का व्यंग्य अपने समय के अन्य व्यंग्यकारों से इस मायने में अलग है कि वे अपनी बात की नोक को तीखा करने के लिए उस लाघव का सहारा नहीं लेते जिसके कारण व्यंग्य-रचना कई बार अनेकानेक पाठकों के लिए अबूझ और कभी-कभी आहतकारी भी हो जाती है। वे अपने सामने उपस्थित स्थिति-परिस्थिति की व्यंग्यात्मकता और विडम्बना को हर सम्भव कोण से खोलकर पाठक के सामने रख देते हैं; और कोशिश करते हैं कि प्रदत्त समस्या में मौजूद व्यंग्य के हर स्तर को रेखांकित करें। ‘भारत एक बाज़ार है’ शीर्षक प्रस्तुत संग्रह भी उनके व्यंग्य-शिल्प की इस मूल प्रतिज्ञा को आगे लेकर जाता है कि व्यंग्य का उद्देश्य कोरी गुदगुदी या हास्य उत्पन्न करना नहीं, बल्कि पाठक के मन में अपनी और अपने समाज की जीवन-स्थितियों के विरेचनकारी साक्षात्कार के द्वारा मोहभंग और परिवर्तन की भूमिका बनाना है। इस पुस्तक में संकलित व्यंग्य रचनाओं का दायरा राजनीति, समाज, धर्म, प्रशासन, मध्यवर्गीय आकांक्षाओं की विकृतियों से लेकर बाज़ारीकरण, देश की अर्थव्यवस्था और शेयर बाज़ार तक फैला हुआ है। ये व्यंग्य-निबन्ध हमें अपने समकालीन सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के उन सभी करुण पक्षों से रू-ब-रू कराते हैं, जिनका अपरिवर्तनीयता से जूझने का माध्यम अभी हमारे पास सिर्फ़ व्यंग्य है। उम्मीद है, विष्णु नागर की यह पुस्तक पाठकों की अपनी जद्दोजहद में सहायता की भूमिका निबाहेगी।
Khattar Kaka
- Author Name:
Harimohan Jha
- Book Type:

- Description: धर्म और इतिहास, पुराण के अस्वस्थ, लोकविरोधी प्रसंगों की दिलचस्प लेकिन कड़ी आलोचना प्रस्तुत करनेवाली, बहुमुखी प्रतिभा के धनी हरिमोहन झा की बहुप्रशंसित, उल्लेखनीय व्यंग्यकृति है—‘खट्टर काका’। आज से लगभग पचास वर्ष पूर्व खट्टर काका मैथिली भाषा में प्रकट हुए। जन्म लेते ही वह प्रसिद्ध हो उठे। मिथिला के घर-घर में उनका नाम चर्चित हो गया। जब उनकी कुछ विनोद-वार्त्ताएँ ‘कहानी’, ‘धर्मयुग’ आदि में छपीं तो हिन्दी पाठकों को भी एक नया स्वाद मिला। गुजराती पाठकों ने भी उनकी चाशनी चखी। वह इतने बहुचर्चित और लोकप्रिय हुए कि दूर-दूर से चिट्ठियाँ आने लगीं—“यह खट्टर काका कौन हैं, कहाँ रहते हैं, उनकी और-और वार्त्ताएँ कहाँ मिलेंगी?” खट्टर काका मस्त जीव हैं। ठंडाई छानते हैं और आनन्द-विनोद की वर्षा करते हैं। कबीरदास की तरह खट्टर काका उलटी गंगा बहा देते हैं। उनकी बातें एक-से-एक अनूठी, निराली और चौंकानेवाली होती हैं। जैसे—“ब्रह्मचारी को वेद नहीं पढ़ना चाहिए। सती-सावित्री के उपाख्यान कन्याओं के हाथ नहीं देना चाहिए। पुराण बहू-बेटियों के योग्य नहीं हैं। दुर्गा की कथा स्त्रैणों की रची हुई है। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को फुसला दिया है। दर्शनशास्त्र की रचना रस्सी देखकर हुई। असली ब्राह्मण विदेश में हैं। मूर्खता के प्रधान कारण हैं पंडितगण! दही-चिउड़ा-चीनी सांख्य के त्रिगुण हैं। स्वर्ग जाने से धर्म भ्रष्ट हो जाता है...।” खट्टर काका हँसी-हँसी में भी जो उलटा-सीधा बोल जाते हैं, उसे प्रमाणित किए बिना नहीं छोड़ते। श्रोता को अपने तर्क-जाल में उलझाकर उसे भूल-भुलैया में डाल देना उनका प्रिय कौतुक है। वह तसवीर का रुख़ तो यों पलट देते हैं कि सारे परिप्रेक्ष्य ही बदल जाते हैं। रामायण, महाभारत, गीता, वेद, वेदान्त, पुराण—सभी उलट जाते हैं। बड़े-बड़े दिग्गज चरित्र बौने-विद्रूप बन जाते हैं। सिद्धान्तवादी सनकी सिद्ध होते हैं, और जीवमुक्त मिट्टी के लोंदे। देवतागण गोबर-गणेश प्रतीत होते हैं। धर्मराज अधर्मराज, और सत्यनारायण असत्यनारायण भासित होते हैं। आदर्शों के चित्र कार्टून जैसे दृष्टिगोचर होते हैं...। वह ऐसा चश्मा लगा देते हैं कि दुनिया ही उलटी नज़र आती है। स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर प्रकाशित हिन्दी पाठकों के लिए एक अनुपम कृति—‘खट्टर काका’।
Vote Le, Dariya Mein Daal
- Author Name:
Sharad Joshi
- Book Type:

-
Description:
शरद जोशी हिन्दी व्यंग्य के ‘आइकॉन’ हैं। व्यंग्य की तीव्रता को उन्होंने जिस भाषा और तेवर के साथ सम्भव किया, और जो मानक निर्मित किया, उनके बाद कोई भी व्यंग्यकार उसे पार नहीं कर सका। उनके व्यंग्य-लेख वर्तमान हालात पर भी आज के व्यंग्यकारों से ज़्यादा सार्थक, प्रासंगिक और बेधक लगते हैं। गहरे सामाजिक सरोकार, समाज और राजनीति की परिपक्व समझ, खुली दृष्टि और तीखे ‘ऑब्ज़र्वेशन’ ने उन्हें जो अलग जगह दी, वह हिन्दी में आज भी उन्हीं की है।
इस पुस्तक में उनके राजनीतिकेन्द्रित लेखों को संकलित किया गया है, और उनमें भी ज़ोर चुनाव-विषयक टिप्पणियों पर है, इसीलिए इसका शीर्षक ‘वोट ले, दरिया में डाल’ पड़ा जो भारतीय लोकतंत्र पर एक टिप्पणी है।
पुस्तक में शामिल पचास से अधिक इन आलेखों में, जैसे हमारे देश की राजनीति की एक-एक कमज़ोर कड़ी का पोस्टमार्टम किया गया है। चुनाव में खड़े आदमी की छवि से शुरू करके शरद जोशी यहाँ ‘चुनाव गीतिका : सरलार्थ’ तक जाते हैं और लिखते हैं : ‘निशि व्यतीत हुई। ओ कज्जल-मलिन नयनोंवाली कामिनी, उठ। पोलिंग बूथों से राजनीति का कन्त तुझे टेर रहा है। चुनाव के कटे-कटे पोस्टरों से गृहों की दीवारें ऐसी प्रतीत हो रही हैं मानो किसी सुन्दरी के तन पर नख-क्षत हैं। प्रचार बन्द हो गया है। सभी जन मतदान हेतु केन्द्रों की ओर सत्वर गति से जा रहे हैं। ऐसे में हे गजगामिनी, तू गमन-विलम्बिनी होने की कलंकिनी मत बन।’ कहने की ज़रूरत नहीं कि भाषा का यह तत्सम ठाठ एक गहरे और सतह पर शान्त क्रोध की हुंकार है।
आशा है, शरद जोशी के ये लेख पाठकों को पुनः प्रतिरोध व अस्वीकार की उसी तमतमाती दुनिया में ले चलेंगे।
Aur... Sharad Joshi
- Author Name:
Sharad Joshi
- Book Type:

-
Description:
शरद जोशी जिस समय लिख रहे थे, भारतीय राजनीति समाजवाद की आदर्श ऊँचाइयों और व्यावहारिक राजनीति की स्वार्थी आत्म-प्रेरणाओं के बीच कोई ऐसा रास्ता तलाशने में लगी थी जिससे वह जनता की हितैषी दिखती हुई व्यवस्था और तंत्र को अपने दलगत और व्यक्तिगत हितों के लिए बिना किसी कटघरे में आए इस्तेमाल करती रह सके। लम्बे संघर्ष के बाद प्राप्त आज़ादी बहैसियत एक नैतिक प्रेरणा अपनी चमक खोने लगी थी। शासन, प्रशासन और नौकरशाही लोभ और लाभ की अपनी फौरी और निजी ज़रूरतों के सामने वृहत्तर समाज और देश की अवहेलना करने का साहस जुटाने लगी थी। सड़कें उधड़ने लगी थीं, और लोगों के घरों के सामने महँगी कारों को खड़ा करने के लिए गलियाँ घेरी जाने लगी थीं।
शरद जोशी ने भारतीय व्यक्ति के मूल सामाजिक चरित्र के विराट को परे सरकाकर आधुनिक व्यावहारिकता के बहाने अपनी निम्नतर कुंठाओं को पालने-पोसने वाले भारतीय व्यक्ति के उद्भव की आहत काफ़ी पहले सुन ली थी। उन्होंने देख लिया था जीप पर सवार होकर खेतों में जो नई इल्लियाँ पहुँचनेवाली हैं, वे सिर्फ़ फ़सलों को नहीं समूची राष्ट्र-भूमि को खोखला करनेवाली हैं।
आज जब हम राजनीतिक और सामाजिक नैतिकता की अपनी बंजर भूमि को विकास नाम के एक खोखले बाँस पर टाँगे एक भूमंडलीकृत संसार के बीचोबीच खड़े हैं, हमें इस पुस्तक में अंकित उन चेतावनियों को एक बार फिर से सुनना चाहिए जो शरद जोशी ने अपनी व्यंग्योक्तियों में व्यक्त की थीं।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...