Shaadi Himaqat Hai
Author:
Shauqat ThanviPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Satire0 Reviews
Price: ₹ 119.2
₹
149
Available
इस किताब में शौकत थानवी की चुनिन्दा मज़ाहिया तहरीरें शामिल हैं जिसमें न केवल आपको हँसाने और गुदगुदाने का सामान है बल्कि उर्दू की मिज़ाह-निगारी से आपका तआरुफ़ भी कराती हैं।
ISBN: 9789391080815
Pages: 94
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: ‘वैष्णव की फिसलन’ प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की श्रेष्ठ रचनाओं का संकलन है। इस संग्रह की व्यंग्य रचनाएँ यह स्थापित करने में कामयाब हैं कि जीवन की श्रेष्ठ आलोचना की संज्ञा व्यंग्य है। सहज ढंग से चुभती हुई भाषा में ये व्यंग्य रचनाएँ अपनी बात कहते हुए गहरी चोट कर जाती हैं। इस व्यंग्य-संग्रह की रचनाओं की सफलता के पीछे जो सबसे बड़ी चीज़ है वह है - लेखक की पैनी दृष्टि, जिससे छुपकर भी कुछ भी छुपा नहीं रह जाता और अव्यक्त भी व्यक्त होने लगता है। यह संग्रह चिन्ताओं का नहीं चिन्तन का संग्रह है, और यह लेखक की कुशलता ही है कि इसे वह विचार और संवेदना के सामंजस्य से कर पाया है। ‘वैष्णव की फिसलन’ में संकलित रचनाएँ हमारे आसपास की ज़िन्दगी को उघाड़कर इस प्रकार सामने रख देती हैं कि ऊपर से सीधी-सादी दिखनेवाली घटनाएँ और स्थितियाँ नए अर्थ देने लगती हैं, उनके अन्तर्निहित आशय उजागर हो उठते हैं। इस संग्रह की रचनाएँ आज के जीवन की विसंगतियों और विरूपताओं, अवरोधों और कुंठाओं पर चोट करती हैं और बताती हैं कि विसंगति के विरुद्ध क़लम कैसे तलवार का काम करती है।
Vote Le, Dariya Mein Daal
- Author Name:
Sharad Joshi
- Book Type:

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Description:
शरद जोशी हिन्दी व्यंग्य के ‘आइकॉन’ हैं। व्यंग्य की तीव्रता को उन्होंने जिस भाषा और तेवर के साथ सम्भव किया, और जो मानक निर्मित किया, उनके बाद कोई भी व्यंग्यकार उसे पार नहीं कर सका। उनके व्यंग्य-लेख वर्तमान हालात पर भी आज के व्यंग्यकारों से ज़्यादा सार्थक, प्रासंगिक और बेधक लगते हैं। गहरे सामाजिक सरोकार, समाज और राजनीति की परिपक्व समझ, खुली दृष्टि और तीखे ‘ऑब्ज़र्वेशन’ ने उन्हें जो अलग जगह दी, वह हिन्दी में आज भी उन्हीं की है।
इस पुस्तक में उनके राजनीतिकेन्द्रित लेखों को संकलित किया गया है, और उनमें भी ज़ोर चुनाव-विषयक टिप्पणियों पर है, इसीलिए इसका शीर्षक ‘वोट ले, दरिया में डाल’ पड़ा जो भारतीय लोकतंत्र पर एक टिप्पणी है।
पुस्तक में शामिल पचास से अधिक इन आलेखों में, जैसे हमारे देश की राजनीति की एक-एक कमज़ोर कड़ी का पोस्टमार्टम किया गया है। चुनाव में खड़े आदमी की छवि से शुरू करके शरद जोशी यहाँ ‘चुनाव गीतिका : सरलार्थ’ तक जाते हैं और लिखते हैं : ‘निशि व्यतीत हुई। ओ कज्जल-मलिन नयनोंवाली कामिनी, उठ। पोलिंग बूथों से राजनीति का कन्त तुझे टेर रहा है। चुनाव के कटे-कटे पोस्टरों से गृहों की दीवारें ऐसी प्रतीत हो रही हैं मानो किसी सुन्दरी के तन पर नख-क्षत हैं। प्रचार बन्द हो गया है। सभी जन मतदान हेतु केन्द्रों की ओर सत्वर गति से जा रहे हैं। ऐसे में हे गजगामिनी, तू गमन-विलम्बिनी होने की कलंकिनी मत बन।’ कहने की ज़रूरत नहीं कि भाषा का यह तत्सम ठाठ एक गहरे और सतह पर शान्त क्रोध की हुंकार है।
आशा है, शरद जोशी के ये लेख पाठकों को पुनः प्रतिरोध व अस्वीकार की उसी तमतमाती दुनिया में ले चलेंगे।
Kuchh Jamin Par Kuchh Hava Mein
- Author Name:
Shrilal Shukla
- Book Type:

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Description:
हिन्दी व्यंग्य-विधा को जिन रचनाकारों ने सार्थकता सौंपी है, श्रीलाल शुक्ल उनकी पहली पंक्ति में गण्य हैं। हिन्दी जगत में उन्हें यह सम्मान ‘राग दरबारी’ और ‘पहला पड़ाव’ जैसे विशिष्ट उपन्यासों के कारण तो प्राप्त है ही, अपने व्यंग्यात्मक निबन्धों के लिए भी है। ‘यहाँ से वहाँ’, ‘अंगद का पाँव’ और ‘उमराव नगर में कुछ दिन’ उनकी पूर्व प्रकाशित व्यंग्य-कृतियाँ हैं और इस क्रम में यह उनकी एक अन्य महत्त्वपूर्ण कृति है।
इन निबन्धों में श्रीलाल शुक्ल की रचना-दृष्टि विभिन्न वस्तु-सत्यों को उकेरती दिखाई देती है। इनमें से पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित निबन्धों के लिए ‘ज़मीन पर’ और रेडियो तथा दूरदर्शन से प्रसारित निबन्धों के लिए ‘हवा में’ कहकर भी उन्होंने जिस व्यंग्यार्थ की व्यंजना की है, उसकी ज़द में सर्वप्रथम वे स्वयं भी आ खड़े हुए हैं। इसमें उनके व्यंग्य की ईमानदारी भी है और अन्दाज़ भी। सामाजिक विसंगतियों, विडम्बनाओं और समकालीन जीवन की विकृतियों की बेलाग शल्य-चिकित्सा में उनका गहरा विश्वास है।
साहित्य, कला, संस्कृति, धर्म, इतिहास और राजनीति—किसी की भी रुग्णता उनके सोद्देश्य व्यंग्योपचार का विषय हो सकती है। इसके अतिरिक्त यह संग्रह कुछ वरिष्ठ रचनाकारों को उनकी समग्र सृजनशीलता के सन्दर्भ में समझने का भी अवसर जुटाता है। कहना न होगा कि श्रीलाल शुक्ल की यह व्यंग्य कृति हिन्दी व्यंग्य को कुछ और समृद्ध करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
Bharat Ek Bazar Hai
- Author Name:
Vishnu Nagar
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- Book Type:

- Description: विष्णु नागर का व्यंग्य अपने समय के अन्य व्यंग्यकारों से इस मायने में अलग है कि वे अपनी बात की नोक को तीखा करने के लिए उस लाघव का सहारा नहीं लेते जिसके कारण व्यंग्य-रचना कई बार अनेकानेक पाठकों के लिए अबूझ और कभी-कभी आहतकारी भी हो जाती है। वे अपने सामने उपस्थित स्थिति-परिस्थिति की व्यंग्यात्मकता और विडम्बना को हर सम्भव कोण से खोलकर पाठक के सामने रख देते हैं; और कोशिश करते हैं कि प्रदत्त समस्या में मौजूद व्यंग्य के हर स्तर को रेखांकित करें। ‘भारत एक बाज़ार है’ शीर्षक प्रस्तुत संग्रह भी उनके व्यंग्य-शिल्प की इस मूल प्रतिज्ञा को आगे लेकर जाता है कि व्यंग्य का उद्देश्य कोरी गुदगुदी या हास्य उत्पन्न करना नहीं, बल्कि पाठक के मन में अपनी और अपने समाज की जीवन-स्थितियों के विरेचनकारी साक्षात्कार के द्वारा मोहभंग और परिवर्तन की भूमिका बनाना है। इस पुस्तक में संकलित व्यंग्य रचनाओं का दायरा राजनीति, समाज, धर्म, प्रशासन, मध्यवर्गीय आकांक्षाओं की विकृतियों से लेकर बाज़ारीकरण, देश की अर्थव्यवस्था और शेयर बाज़ार तक फैला हुआ है। ये व्यंग्य-निबन्ध हमें अपने समकालीन सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के उन सभी करुण पक्षों से रू-ब-रू कराते हैं, जिनका अपरिवर्तनीयता से जूझने का माध्यम अभी हमारे पास सिर्फ़ व्यंग्य है। उम्मीद है, विष्णु नागर की यह पुस्तक पाठकों की अपनी जद्दोजहद में सहायता की भूमिका निबाहेगी।
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