Nithalle Bahut Busy Hain
Author:
Sampat SaralPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Satire0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
लोभ-लाभ के गणित में उलझे लोगों के बीच सच को बयान करना आसान नहीं होता, क्योंकि वहाँ सच लोगों के सामने किसी आईने की तरह खड़ा हो जाता है और उन्हें उनकी असल शक्ल दिखाने लगता है। लेकिन एक सजग रचनाकार यही काम करता है। उसके लिए अपने समय की सचाइयों से मुँह मोड़ पाना न तो सम्भव है न उचित। दरअसल एक रचनाकार के रूप में उसकी सफलता ही इससे तय होती है कि वह सच के साथ खड़ा है कि नहीं। जाहिर है व्यक्तिगत दायरों में महदूद, खौफ़ खाए अधिकतर लोगों के विपरीत उसे निडर होना पड़ता है। तभी उसका लिखा हलचल पैदा करता है। सुपरिचित व्यंग्यकार सम्पत सरल की इस किताब से गुज़रते हुए आप इस सचाई से इनकार नहीं कर पाएँगे। वे एक सजग रचनाकार की इस भूमिका को आगे बढ़कर स्वीकार करते हैं। आम बोलचाल की भाषा और भंगिमाओं से अपने इस समय पर सीधा प्रहार करते हैं। इस पुस्तक की भूमिका में विजय बहादुर सिंह ने ठीक ही कहा है—यह कला उनसे पहले हरिशंकर परसाई, शरद जोशी और श्रीलाल शुक्ल जैसे लेखकों में थी पर मंचों पर जाकर अपने पाठकों को श्रोताओं के रूप में सामने बिठाकर आँखों में आँखें डालकर कहने की कला का आविष्कार तो शरद जोशी का है। सम्पत सरल इसी कला के आगे के अध्याय हैं।
ISBN: 9789360862428
Pages: 208
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: हरिशंकर परसाई हिन्दी के पहले रचनाकार हैं, जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के-फुल्के मनोरंजन की परम्परागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा है। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी पैदा नहीं करतीं, बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने-सामने खड़ा करती हैं, जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असम्भव है। लगातार खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यवर्गीय मन की सच्चाइयों को उन्होंने बहुत ही निकटता से पकड़ा है। सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन-मूल्यों की खिल्ली उड़ाते हुए उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान-सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा-शैली में खास किस्म का अपनापा है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सिर पर नहीं, सामने ही बैठा है।
Nadi Mein Khada Kavi
- Author Name:
Sharad Joshi
- Book Type:

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Description:
अस्सी की होने चली दादी ने विधवा होकर परिवार से पीठ कर खटिया पकड़ ली। परिवार उसे वापस अपने बीच खींचने में लगा। प्रेम, वैर, आपसी नोकझोंक में खदबदाता संयुक्त परिवार। दादी बज़िद कि अब नहीं उठूँगी।
फिर इन्हीं शब्दों की ध्वनि बदलकर हो जाती है अब तो नई ही उठूँगी। दादी उठती है। बिलकुल नई। नया बचपन, नई जवानी, सामाजिक वर्जनाओं-निषेधों से मुक्त, नए रिश्तों और नए तेवरों में पूर्ण स्वच्छन्द।
कथा लेखन की एक नई छटा है इस उपन्यास में। इसकी कथा, इसका कालक्रम, इसकी संवेदना, इसका कहन, सब अपने निराले अन्दाज़ में चलते हैं। हमारी चिर-परिचित हदों-सरहदों को नकारते लाँघते। जाना-पहचाना भी बिलकुल अनोखा और नया है यहाँ। इसका संसार परिचित भी है और जादुई भी, दोनों के अन्तर को मिटाता। काल भी यहाँ अपनी निरन्तरता में आता है। हर होना विगत के होनों को समेटे रहता है, और हर क्षण सुषुप्त सदियाँ। मसलन, वाघा बार्डर पर हर शाम होनेवाले आक्रामक हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी राष्ट्रवादी प्रदर्शन में ध्वनित होते हैं ‘क़त्लेआम के माज़ी से लौटे स्वर’, और संयुक्त परिवार के रोज़मर्रा में सिमटे रहते हैं काल के लम्बे साए।
और सरहदें भी हैं जिन्हें लाँघकर यह कृति अनूठी बन जाती है, जैसे स्त्री और पुरुष, युवक और बूढ़ा, तन व मन, प्यार और द्वेष, सोना और जागना, संयुक्त और एकल परिवार, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान, मानव और अन्य जीव-जन्तु (अकारण नहीं कि यह कहानी कई बार तितली या कौवे या तीतर या सड़क या पुश्तैनी दरवाज़े की आवाज़ में बयान होती है) या गद्य और काव्य : ‘धम्म से आँसू गिरते हैं जैसे पत्थर। बरसात की बूँद।’
Bevkufi Mein Samajhadari
- Author Name:
Mulla Nasaruddin
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Description:
मुल्ला नसीरुद्दीन एक दन्तकथा भी है, एक नायक भी और एक साधारण पात्र भी। लेकिन सबसे पहले एक साधारण मनुष्य जो साधारणता की तमाम ख़ूबियों-ख़ामियों के साथ बेवकूफ़ी और समझदारी के सब बँटवारों को छिन्न-भिन्न करते हुए हमें एक ऐसे साथी के रूप में मिलता है जो जीवन की हर स्थिति में हमारे साथ खड़ा हुआ है। सदियों से मुल्ला हमारे साथ हैं, वह गुदगुदाते हैं, चौंकाते हैं, शरारत करते हैं और शिक्षा भी देते हैं। ऐसा कोई नहीं जो मुल्ला की कमियों को पढ़ना-सुनना न चाहे। उल्लेखनीय यह है कि मुल्ला नसीरुद्दीन की कहानियाँ सिर्फ़ चुटकुले नहीं हैं, उनका एक सामाजिक परिप्रेक्ष्य है, एक वातावरण है, और सबसे ऊपर है मानव-व्यवहार की गहरी समझ और उसका अंकन।
इस पुस्तक के उनके कुछ ऐसे ही किस्सों को संकलित किया गया है जो न सिर्फ़ हमें ठहाका लगाने को बाध्य करते हैं, बल्कि विभिन्न जीवन-स्थितियों पर एक नई व्याख्या भी प्रस्तुत करते हैं।
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