Vaishnav Ki Phislan
Author:
Harishankar ParsaiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Satire0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
‘वैष्णव की फिसलन’ प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की श्रेष्ठ रचनाओं का संकलन है। इस संग्रह की व्यंग्य रचनाएँ यह स्थापित करने में कामयाब हैं कि जीवन की श्रेष्ठ आलोचना की संज्ञा व्यंग्य है। सहज ढंग से चुभती हुई भाषा में ये व्यंग्य रचनाएँ अपनी बात कहते हुए गहरी चोट कर जाती हैं। इस व्यंग्य-संग्रह की रचनाओं की सफलता के पीछे जो सबसे बड़ी चीज़ है वह है - लेखक की पैनी दृष्टि, जिससे छुपकर भी कुछ भी छुपा नहीं रह जाता और अव्यक्त भी व्यक्त होने लगता है। यह संग्रह चिन्ताओं का नहीं चिन्तन का संग्रह है, और यह लेखक की कुशलता ही है कि इसे वह विचार और संवेदना के सामंजस्य से कर पाया है। ‘वैष्णव की फिसलन’ में संकलित रचनाएँ हमारे आसपास की ज़िन्दगी को उघाड़कर इस प्रकार सामने रख देती हैं कि ऊपर से सीधी-सादी दिखनेवाली घटनाएँ और स्थितियाँ नए अर्थ देने लगती हैं, उनके अन्तर्निहित आशय उजागर हो उठते हैं। इस संग्रह की रचनाएँ आज के जीवन की विसंगतियों और विरूपताओं, अवरोधों और कुंठाओं पर चोट करती हैं और बताती हैं कि विसंगति के विरुद्ध क़लम कैसे तलवार का काम करती है।
ISBN: 9788126702640
Pages: 104
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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तमाम दरियाओं की गन्दगी देखकर पता लगता है कि लोग अब दरियाओं में नेकी तो नहीं डालते। कोई वक़्त रहा होगा, जब नेकी दरिया में डाली जाती थी। कोई वक़्त रहा होगा, जब साधु-सन्त प्रवचन करते थे, अब प्रवचनों की मार्केटिंग होती है। रामकथा की मार्केटिंग होती है। राम की मार्केटिंग होती है। राम के चाकर तुलसीदास ने लिखा था कि बड़ी मुश्किल से खाने का इन्तज़ाम हो पाता है, मस्जिद में सोना पड़ता है। अब राम के चाकर एक मस्जिद छोड़, पचास मस्जिद भर की जगह क़ब्ज़ा कर लें। राम की चाकरी और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की नौकरी के रिटर्न इधर समान हो गए हैं। राम की चाकरी में लगे सीनियर लोग भी मर्सिडीज में चल रहे हैं और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की नौकरी में लगे सीनियर लोग भी मर्सिडीज में चल रहे हैं। राम का कारोबार इधर बहुत रिटर्न वाला हो गया है। ग़ौर से देखने पर पता चलता है कि बाज़ार सिर्फ़ वहाँ नहीं है, जहाँ वह दिखाई पड़ता है। बाज़ार वहाँ भी है, जहाँ वह दिखाई नहीं पड़ता है।
बाज़ार के इस छद्म को पकड़ने की चुनौती ख़ासी जटिल है। यह किताब इस छद्म को समझने में महत्त्वपूर्ण मदद करती है। व्यंग्य के लपेटे से कुछ भी बाहर नहीं है, इस कथन की पुष्टि इस किताब में बार-बार होती है।
Alag
- Author Name:
Gyan Chaturvedi
- Book Type:

- Description: सामयिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक विसंगतियों और विडम्बनाओं पर तीखा प्रहार करते हुए व्यंग्य परम्परा को एक नई भाषा और शिल्प प्रदान करनेवाला विशिष्ट संकलन। लेखक यहाँ हमारे दैनिक जीवन और रोज़मर्रा की विडम्बनापूर्ण घटनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण कर न सिर्फ़ हमें झकझोरता है, बल्कि उन कारणों को भी परत-दर-परत खोलता है जो इनके मूल में हैं। इस संकलन का हर आलेख हास-परिहास करते हुए संवेदना के स्तर पर पाठकों से रिश्ता बनाकर उनके दु:ख, बेचैनी के साथ जुड़ता है और उन्हें आश्वस्त कर सोच का एक नया स्तर भी प्रदान करता है। पुस्तक में राजनीति के विभिन्न रंगों, सत्तालोलुपता और भ्रष्टाचार को बेनक़ाब किया गया है और आन्तरिक स्थितियों पर दृष्टिपात करते हुए चीज़ों को देखने की एक नई दृष्टि की ओर भी संकेत किया गया है। अपने व्यंग्य-उपन्यासों से हिन्दी व्यंग्य को एक नई ऊँचाई देनेवाले ज्ञान चतुर्वेदी की इन रचनाओं से हँसी उतनी नहीं आती, जितनी अपने आसापास की विडम्बनाएँ हमें कोंचती हैं। शायद यही व्यंग्यकार की सफलता भी है।
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