Kavi Ki Manohar Kahaniyan
Author:
Yashwant VyasPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Satire0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
भाषा का क्या अनूठा खेल है, प्रयोग की क्या मोहक ताजगी! </p>
<p style="padding-left: 80px;"> <strong>—</strong><strong>विश्वनाथ त्रिपाठी</strong></p>
<p>यशवंत का मास्टर-पीस है। कुछ अंश तो इस क़दर ईर्ष्या पैदा करनेवाले हैं कि काश ये हमने लिखे होते। </p>
<p style="padding-left: 80px;"> <strong>—</strong><strong>ज्ञान चतुर्वेदी</strong></p>
<p>ये भीतर उतर जानेवाली अद्भुत काव्यकथाएँ हैं। क्या गजब है कि इनका कवि गहन पाखंड को भी विचार की तरह पेलता है। </p>
<p style="padding-left: 80px;"> <strong>—</strong><strong>सुधीश पचौरी</strong></p>
<p>मोती कितने गहरे जाकर मिलते हैं, यह जानना हो तो हर एक को यह किताब जरूर पढ़ना चाहिए।</p>
<p style="padding-left: 80px;"> <strong>—</strong><strong>प्रेम जनमेजय</strong></p>
<p>ये हमारी जनरेशन की भाषा है। इसके हैशटैग से पिस्तौल चलती है। असली-नक़ली की लाइन क्लियर, तबीयत साफ़ हो जाती है। </p>
<p style="padding-left: 80px;"><strong>—</strong><strong>ट्विटर से</strong></p>
<p>गुनाह इतने शायराना कभी न थे। </p>
<p style="padding-left: 80px;"><strong>—</strong><strong>इंस्टाग्राम से</strong></p>
<p>कवि की मनोहर कहानियाँ रिबूट होकर और भी कातिल हो गई हैं। </p>
<p style="padding-left: 80px;"><strong>—खटाक कमेंट बॉक्स से</strong>
ISBN: 9788119092062
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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मलय के लिए न तो सिनेमा के पात्र अछूते हैं न काव्य शास्त्र की अभिव्यक्तियाँ। सब्लाइम को रेडिकुलस बनाने के अपने अद्वितीय हुनर से वह जन्नत को दोज़ख़ से इस तरह मिलाते हैं कि पाठक को सैर के वास्ते थोड़ी नहीं, बहुत सारी फ़िजां हासिल हो जाती है।
—कान्ति कुमार जैन
कुछ लोग शस्त्र से चिकित्सा करते हैं तो कुछ शब्द से, मलय जैन को साहित्य का शल्य चिकित्सक कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। वे अपने शब्दों के माध्यम से मनुष्य के चित्त में व्याप्त विकारों को समझकर बहुत कुशलता के साथ उनका निदान करते हैं। उनकी रचनाएँ मात्र सरस ही नहीं है बल्कि वे पाठक को सार्थक जीवन के लिए प्रेरित भी करती हैं। बेहद मारक, अदभुत कथाशिल्प है उनका। —आशुतोष राणा
White House Mein Ramleela
- Author Name:
Alok Puranik
- Book Type:

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Description:
आलोक पुराणिक ने अपनी रचनाओं से व्यंग्य विधा को एक नया शिल्प और सौन्दर्य प्रदान कर विशिष्ट पहचान दी है। ‘व्हाइट हाउस में रामलीला’ उनका महत्त्वपूर्ण संग्रह है। इस व्यंग्य-संग्रह में उनकी आकार में छोटी दिखनेवाली टिप्पणियाँ विचार का एक
बड़ा कैनवस रचती हैं। आम आदमी की रोज़मर्रा की पीड़ा से लेकर व विश्व फ़लक पर होनेवाली घटनाओं तक सबको उन्होंने इसमें समेटा है।
आज की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व आर्थिक विडम्बनाओं का परत-दर-परत खोलते हुए व्यंग्यकार ने उन कारणों की ओर भी संकेत किया है जो इन स्थितियों के मूल में हैं।
कुछ लेखों में धार्मिक आडम्बरों और ढोंगों पर भी व्यंग्य किया गया है जो लोगों की भावनाओं का लाभ उठाकर अपनी जेब भरते हैं।
समसामयिक जीवन और समाज के विभिन्न पक्षों पर तीखी निगाह से दृष्टिपात करते ये व्यंग्य-लेख निश्चय ही पाठकों को लम्बे समय तक याद रहेंगे।
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