Vikalang Shraddha Ka Daur
Author:
Harishankar ParsaiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Satire0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
<span style="font-weight: 400;">हरिशंकर परसाई ने अपनी एक पुस्तक के लेखकीय वक्तव्य में कहा था</span><span style="font-weight: 400;">–‘</span><span style="font-weight: 400;">व्यंग्य</span><span style="font-weight: 400;">’ </span><span style="font-weight: 400;">अब </span><span style="font-weight: 400;">‘</span><span style="font-weight: 400;">शूद्र</span><span style="font-weight: 400;">’ </span><span style="font-weight: 400;">से </span><span style="font-weight: 400;">‘</span><span style="font-weight: 400;">क्षत्रिय</span><span style="font-weight: 400;">’ </span><span style="font-weight: 400;">मान लिया गया है। विचारणीय है कि वह शूद्र से क्षत्रिय हुआ है</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">ब्राह्मण नहीं</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">क्योंकि ब्राह्मण </span><span style="font-weight: 400;">‘</span><span style="font-weight: 400;">कीर्तन</span><span style="font-weight: 400;">’ </span><span style="font-weight: 400;">करता है।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">निस्सन्देह व्यंग्य कीर्तन करना नहीं जानता</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">पर कीर्तन को और कीर्तन करनेवालों को खूब पहचानता है। कैसे-कैसे अवसर</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">कैसे-कैसे वाद्य और कैसी-कैसी तानें</span><span style="font-weight: 400;">–</span><span style="font-weight: 400;">जरा-सा ध्यान देंगे तो अचीन्हा नहीं रहेगा विकलांग श्रद्धा का (यह) दौर।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">विकलांग श्रद्धा का दौर के व्यंग्य अपनी कथात्मक सहजता और पैनेपन में अविस्मरणीय हैं</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">ऐसे कि एक बार पढक़र इनका मौखिक पाठ किया जा सके। आए दिन आसपास घट रही सामान्य-सी घटनाओं से असामान्य समय-सन्दर्भों और व्यापक मानव-मूल्यों की उद्भावना न सिर्फ रचनाकार को मूल्यवान बनाती है बल्कि व्यंग्य-विधा को भी नई ऊँचाइयाँ सौंपती है। इस दृष्टि से प्रस्तुत कृति का महत्त्व और भी ज्यादा है।</span>
ISBN: 9788126701179
Pages: 147
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: शिकायत मुझे भी है' में हरिशंकर परसाई के लगभग दो दर्जन निबन्ध संगृहीत हैं और इनमें से हर निबन्ध आज की वास्तविकता के किसी न किसी पक्ष पर चुटीला व्यंग्य करता है। परसाई के लेखन की यह विशेषता है कि वे केवल विनोद या परिहास के लिए नहीं लिखते। उनका सारा लेखन सोद्देश्य है और सभी रचनाओं के पीछे एक साफ-सुलझी हुई वैज्ञानिक जीवन-दृष्टि है, जो समाज में फैले हुए भ्रष्टाचार, ढोंग, अवसरवादिता, अन्धविश्वास साम्प्रदायिकता आदि कुप्रवृत्तियों पर तेज रोशनी डालने के लिए हर समय सतर्क रहती है। कहने का ढंग चाहे जितना हल्का-फुल्का हो, किन्तु हर निबन्ध आज की जटिल परिस्थितियों को समझने के लिए एक अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है। इसलिए जो आज की सच्चाई को जानने में रुचि रखते हैं, उनके लिए यह पुस्तक संग्रहणीय है।
Ghoonghat Ke Pat Khol
- Author Name:
Ashwini Kumar Dubey
- Book Type:

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Description:
‘घूँघट के पट खोल’ व्यंग्य-रचनाओं का संकलन है जो जीवन तथा समाज के अलग-अलग पहलुओं को विषय बनाकर लिखे गए हैं। हास्य के साथ-साथ विचार के लिए प्रेरित करनेवाले व्यंग्य-निबन्ध मौजूदा समय की वास्तविकताओं को भी एक अलग अन्दाज़ में देखते हैं।
मिसाल के तौर पर पहला ही व्यंग्य प्रेमचन्द के मशहूर पात्रों अलगू चौधरी और जुम्मन शेख को आज के ग्रामीण परिदृश्य में ले आता है, जहाँ आज़ादी के बाद लोकतांत्रिक राजनीति का एक स्थानीय संस्करण पनपा है। इसमें अलगू और जुम्मन की अलग-अलग पार्टियाँ हैं जिनमें एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ चलती रहती है।
नाई की दुकान में ‘विमान अपहरण की योजना’ का हास्य, ‘फ़ाइलें बतर्ज नायिका-भेद’ में सरकारी दफ़्तरों की लाल फीताशाही का व्यंग्यात्मक विश्लेषण, किसी शहरी कान्वेंटी की किशोर द्वारा लिखा गया ‘एक निबन्ध गाँव पर’—ऐसी कई चुटीली रचनाएँ इस पुस्तक में संकलित हैं जो आपको हँसाते-हँसाते सोचने पर मजबूर कर देंगी। इश्क़-मुहब्बत से लेकर संस्कृति, शिक्षा प्रणाली, परीक्षाएँ, साहित्य, सिनेमा तक लगभग हर विषय पर लेखक ने इसमें व्यंग्य-प्रहार किए हैं।
लोककला उत्सवों की विसंगतियों पर ये पंक्तियाँ देखें : ‘जो कलाकार हैं वे अपने उदर-पोषण के लिए सड़क किनारे गिट्टी फोड़ रहे हैं। अफ़सरों से लदी सरकारी जीत उन पर धूल उड़ाती हुई ‘लोक-कला’ खोज रही है।’
Lal Fita
- Author Name:
Hemant Dwivedi
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- Description: Awating description for this book
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