Sharad Parikrama
Author:
Sharad JoshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Satire0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
शरद जोशी के व्यंग्य का क्षेत्र बहुत व्यापक और विविधवर्णी रहा है। लेखन उनकी आजीविका का भी साधन था। एक सम्पूर्ण लेखक का जीवन जीते हुए उन्होंने अपने दैनंदिन की लगभग हर घटना, हर ख़बर को अपने व्यंग्यकार की निगाह से ही देखा। उनके विषयों में प्रमुख यद्यपि समकालीन राजनीति और नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार ही रहा, लेकिन क्षरणशील समाज की भी ज़्यादातर नैतिक दुविधाओं को उन्होंने अपना विषय बनाया।</p>
<p>मुक्तिबोध ने कहीं कहा था कि सच्चा लेखक सबसे पहले अपना दुश्मन होता है, अपने कठघरे में जो लेखक ख़ुद को खड़ा नहीं कर सकता, वह दूसरों को भी नहीं कर सकता। शरद जोशी भी जब मौक़ा आता है, ख़ुद भी अपने व्यंग्य के सामने खड़े हो उसकी धार का सामना करते हैं। अपने अनेक निबन्धों में उन्होंने अपनी मध्यवर्गीय सीमाओं, चिन्ताओं और हास्यास्पदताओं का मज़ाक़ बनाया है।</p>
<p>सच्चे व्यंग्यकार की तरह उन्होंने अपने लेखन में न सिर्फ़ जीवन की समीक्षा की, बल्कि व्यंग्य की ज़मीन पर जमे रहते हुए कहानी और लघु-कथाओं आदि विधाओं में भी प्रयोग किए। कवि-मंचों पर उनकी गद्यात्मक उपस्थिति तो अपने ढंग का प्रयोग थी ही।</p>
<p>‘परिक्रमा’ उनका पहला व्यंग्य-संग्रह है जिसका प्रकाशन 1958 में हुआ था। इस नज़रिए से इसका अध्ययन विशेष महत्त्व रखता है।
ISBN: 9789387462564
Pages: 392
Avg Reading Time: 13 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: हरिशंकर परसाई ने अपनी एक पुस्तक के लेखकीय वक्तव्य में कहा था–‘व्यंग्य’ अब ‘शूद्र’ से ‘क्षत्रिय’ मान लिया गया है। विचारणीय है कि वह शूद्र से क्षत्रिय हुआ है, ब्राह्मण नहीं, क्योंकि ब्राह्मण ‘कीर्तन’ करता है। निस्सन्देह व्यंग्य कीर्तन करना नहीं जानता, पर कीर्तन को और कीर्तन करनेवालों को खूब पहचानता है। कैसे-कैसे अवसर, कैसे-कैसे वाद्य और कैसी-कैसी तानें–जरा-सा ध्यान देंगे तो अचीन्हा नहीं रहेगा विकलांग श्रद्धा का (यह) दौर। विकलांग श्रद्धा का दौर के व्यंग्य अपनी कथात्मक सहजता और पैनेपन में अविस्मरणीय हैं, ऐसे कि एक बार पढक़र इनका मौखिक पाठ किया जा सके। आए दिन आसपास घट रही सामान्य-सी घटनाओं से असामान्य समय-सन्दर्भों और व्यापक मानव-मूल्यों की उद्भावना न सिर्फ रचनाकार को मूल्यवान बनाती है बल्कि व्यंग्य-विधा को भी नई ऊँचाइयाँ सौंपती है। इस दृष्टि से प्रस्तुत कृति का महत्त्व और भी ज्यादा है।
Bharat Ek Bazar Hai
- Author Name:
Vishnu Nagar
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- Description: विष्णु नागर का व्यंग्य अपने समय के अन्य व्यंग्यकारों से इस मायने में अलग है कि वे अपनी बात की नोक को तीखा करने के लिए उस लाघव का सहारा नहीं लेते जिसके कारण व्यंग्य-रचना कई बार अनेकानेक पाठकों के लिए अबूझ और कभी-कभी आहतकारी भी हो जाती है। वे अपने सामने उपस्थित स्थिति-परिस्थिति की व्यंग्यात्मकता और विडम्बना को हर सम्भव कोण से खोलकर पाठक के सामने रख देते हैं; और कोशिश करते हैं कि प्रदत्त समस्या में मौजूद व्यंग्य के हर स्तर को रेखांकित करें। ‘भारत एक बाज़ार है’ शीर्षक प्रस्तुत संग्रह भी उनके व्यंग्य-शिल्प की इस मूल प्रतिज्ञा को आगे लेकर जाता है कि व्यंग्य का उद्देश्य कोरी गुदगुदी या हास्य उत्पन्न करना नहीं, बल्कि पाठक के मन में अपनी और अपने समाज की जीवन-स्थितियों के विरेचनकारी साक्षात्कार के द्वारा मोहभंग और परिवर्तन की भूमिका बनाना है। इस पुस्तक में संकलित व्यंग्य रचनाओं का दायरा राजनीति, समाज, धर्म, प्रशासन, मध्यवर्गीय आकांक्षाओं की विकृतियों से लेकर बाज़ारीकरण, देश की अर्थव्यवस्था और शेयर बाज़ार तक फैला हुआ है। ये व्यंग्य-निबन्ध हमें अपने समकालीन सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के उन सभी करुण पक्षों से रू-ब-रू कराते हैं, जिनका अपरिवर्तनीयता से जूझने का माध्यम अभी हमारे पास सिर्फ़ व्यंग्य है। उम्मीद है, विष्णु नागर की यह पुस्तक पाठकों की अपनी जद्दोजहद में सहायता की भूमिका निबाहेगी।
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