Sanpon Ki Sabha
Author:
Anoop Mani TripathiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Satire0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
अनूप मणि त्रिपाठी की व्यंग्य रचनाओं को पढ़ने के पहले मुझे लगता था कि हर व्यंग्य का स्वाद एक जैसा होता है। उनके इस संग्रह को आद्योपांत पढ़ने के बाद समझ में आया कि खुद उनकी हर रचना का स्वाद अलग है। राजनीति के विद्रूप, निष्ठुरता और नंगई को जिस तरह गले से पकड़कर वे अनावृत करते और उस पर चोट करते हैं वह अद्वितीय है। उनका व्यंग्य औरों से इस मामले में अलग और मूल्यवान है कि वह पाठक की समझ पर लानत ही नहीं भेजता, उसे समझदार भी बनाता है। जनता का ध्यान कैसे असली और ज्वलन्त मुद्दों से भटकाकर नकली और काल्पनिक मुद्दों में उलझाया जाता है इसके एक से एक नमूने आपको कदम कदम पर मिलते हैं। 'बहती लाशों की कहानियाँ' पढ़कर लगता है व्यंग्य नहीं पढ़ रहे, कोई हॉरर फिल्म देख रहे हैं। भाषा की विदग्धता का उदाहरण देने से इसलिए बच रहा हूँ कि आख़िर कितने उदाहरण देंगे। फिर भी बानगी के लिए एक उदाहरण दे रहा हूँ। शीर्षक है—‘साँपों की सभा’।
‘वह धारा प्रवाह बोलता रहा, ‘बस हमें सपने और भय दोनों साथ-साथ दिखाने होंगे! अच्छे-अच्छे शब्दों के चयन पर ध्यान केन्द्रित करना होगा!’ उसने चूहे की डेड बॉडी पर एक नजर मारी। फिर बोला, ‘देखिए! कैसे हमारे रंग में यह रँगने के लिए तैयार हो गया!’ वह आगे बोला, ‘जहर भरिए, खूब भरिए, मगर उपदेश की शक्ल में...आप देखेंगे कि उपदेश स्वतः उन्माद में बदलता जाएगा...बस फैलकर हर जगह हमें अपना काम लगातार करते रहना है। क्या समझे!’ एक बूढ़ा साँप जोश में बोला, ‘समझ गए! हमें लोकतंत्र को लोकतांत्रिक ढंग से खत्म करना है...’
दरअसल इन रचनाओं की शैलीगत व्याप्ति इतनी अधिक है कि इन्हें केवल व्यंग्य के खाँचे में रखना इनकी मारक क्षमता को कम करके आँकना होगा। यह कोई और विधा है जिसकी तिलमिलाहट अन्दर तक कँपकँपी पैदा कर देती है और जिसे उपयुक्त नाम दिया जाना अभी बाकी है। हाँ, जब तक इसका उपयुक्त नामकरण न हो जाए तब तक व्यंग्य से काम चलाना पड़ेगा। इन रचनाओं से गुजरने के बाद मेरा मानना है कि अनूप मणि त्रिपाठी आज की मारक व्यंग्य विधा के सर्वाधिक सशक्त हस्ताक्षर हैं।
—शिवमूर्ति
ISBN: 9789348229281
Pages: 152
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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पीयूष पांडे का व्यंग्य-लेखन एकदम नई तरह का इसलिए नहीं है कि ये ख़ुद
नए हैं, बल्कि इसलिए नया है कि इनकी चेतना एकदम आधुनिक है। एकदम छोटे बच्चे भी पर्याप्त बूढ़े हो सकते हैं चेतना के स्तर पर। और एकदम बूढ़े भी बच्चे हो सकते हैं चेतना के स्तर पर। पीयूष पांडे ने व्यंग्य के विषय तलाशे नहीं हैं, विषय उनके आसपास टहल रहे हैं। एसएमएस, फेसबुक, मजनूँ से लेकर पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था तक के विषय उनके व्यंग्य लेखन में हैं। विषयों की तलाश व्यंग्यकारों को परेशान करती है। पर पीयूष पांडे उस परेशानी से जूझते नहीं दिखते। जो भी विषय है, उस पर अपनी दृष्टि से लिखो, व्यंग्य हो जाएगा, वह इस सिद्धान्त पर अमल करते हुए दिखते हैं। पर पीयूष पांडे के व्यंग्य की ख़ास बात यह है कि वह व्यंग्य लेखों का इस्तेमाल सिर्फ़ हँसाने के लिए नहीं करते। इधर, व्यंग्यकारों की बहुत बड़ी फ़ौज इस तरह के सिद्धान्त पर काम कर रही है कि किसी भी गद्य में हँसने के चार-छह मौक़े धर दो, व्यंग्य हो जाएगा। व्यंग्यकारों का एक बड़ा वर्ग इसके उलट यह भी मानता है कि व्यंग्य को हँसने-हँसाने का काम तो करना ही नहीं चाहिए।
पीयूष एक सीधे रास्ते पर चलते हैं। स्थितियों को जैसी हैं, वैसी हैं, उन्हें पेश कर देते हैं। उनमें हँसी का स्कोप है, तो हँस लीजिए। पर बेवजह हँसाने की कोशिश नहीं है। मोबाइल, फेसबुक जैसी आसपास इतनी आधुनिक चीज़ें हैं कि ख़ास तौर पर शिक्षित युवा इनसे मुक्त नहीं रह सकते। कई तरह की स्थितियाँ व्यंग्य बन रही हैं। एक तरह से देखें, तो पीयूष पांडे की यह किताब नए बनते व्यंग्य का आईना है। बदलती परिस्थितियों का आईना है, जो कि व्यंग्य को होना चाहिए। पीयूष ख़ुद मीडिया से जुड़े हुए हैं, इसलिए मीडिया की आन्तरिक परिस्थितियों को बख़ूबी समझते हैं। इस पुस्तक में मीडिया पर कुछ शानदार व्यंग्य लेख हैं। मीडिया कैसी मदारीगिरी में बिजी है, यह बात इस पुस्तक में बार-बार सामने आती है।
वास्तविक दुनिया में वर्चुअल दुनिया यानी आभासी दुनिया किस तरह से प्रवेश करती है, इस पुस्तक में बार-बार दिखाई देता है। कुल मिलाकर कहें, तो यह नए ज़माने के व्यंग्य की किताब है। जो कई तरह के नए मानकों का निर्माण करेगी। व्यंग्य के नए और पुराने छात्रों को इस किताब को पढ़ना चाहिए, ऐसी मेरी रिकमंडेशन है। इसे पढ़ना सब लोग रिजोल्यूशन बनाएँगे, ये मेरी शुभकामना है।
—आलोक पुराणिक
Sarkari Karya Mein Badha
- Author Name:
Vibhanshu Keshav
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Description:
देश की रक्षा के उपायों से मेरी उलझन बढ़ती जा रही थी। सहायक सुलझाता जा रहा था—भाई साहब हैं राष्ट्र के सेवक। उनके नीचे और भी कई राष्ट्रसेवक नियुक्त हैं। भाई साहब उन्हीं से राष्ट्र को बचा रहे हैं। वे भी भाई साहब से माँग करते हैं कि जैसे आप राष्ट्र की चिन्ता कर रहे हैं, वैसे ही हमें भी करने का अवसर दिया जाए। एक नौकरशाह कहता है—दस प्रतिशत राष्ट्र मैं भी पेट में सुरक्षित रखना चाहता हूँ। एक इंजीनियर कहता है—पाँच प्रतिशत मैं भी सुरक्षित रखना चाहता हूँ। एक ठेकेदार कहता है—दो प्रतिशत मैं भी सुरक्षित रखना चाहता हूँ। ये सब सुरक्षा के नाम पर राष्ट्र को खा जाने की साजिश कर रहे हैं। पर भाई साहब ऐसा होने नहीं देंगे। राष्ट्र को बचाने के लिए उन्होंने राष्ट्र को अपने पेट में रख लिया है। राष्ट्र की चिन्ता पर अब सिर्फ भाई साहब का ‘कॉपीराइट’ रहेगा। उनकी पारखी नजर में जो खरा उतरेगा, उन्हें जो ईमानदार लगेगा, उसे चिन्ता का कुछ प्रतिशत सुरक्षित रखने के लिए देंगे।
— ‘राष्ट्र चिन्ता का कॉपीराइट’ शीर्षक व्यंग्य से
Khamosh! Nange Hamam Mein Hain
- Author Name:
Gyan Chaturvedi
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Description:
परसाई, शरद जोशी, रवीन्द्रनाथ त्यागी और श्रीलाल शुक्ल की पीढ़ी के बाद यदि हिन्दी-विश्व को कोई एक व्यंग्यकार सर्वाधिक आश्वस्त करता है तो वह ज्ञान चतुर्वेदी हैं। वे क्या ‘नया लिख रहे हैं’—इसको लेकर जितनी उत्सुकता उनके पाठकों को रहती है, उतनी ही आलोचकों को भी। विशेष तौर पर, राजकमल द्वारा ही प्रकाशित अपने दो उपन्यासों—‘नरक यात्रा’ और ‘बारामासी’ के बाद तो ज्ञान चतुर्वेदी इस पीढ़ी के व्यंग्यकारों के बीच सर्वाधिक पठनीय, प्रतिभावान, लीक तोड़नेवाले और हिन्दी-व्यंग्य को वहाँ से नई ऊँचाइयों पर ले जानेवाले माने जा रहे हैं, जहाँ परसाई ने उसे पहुँचाया था।
ज्ञान चतुर्वेदी में परसाई जैसा प्रखर चिन्तन, शरद जोशी जैसा विट, त्यागी जैसी हास्य-क्षमता तथा श्रीलाल शुक्ल जैसी विलक्षण भाषा का अद्भुत मेल है, जो उन्हें हिन्दी-व्यंग्य के इतिहास में अलग ही खड़ा करता है। ज्ञान को आप जितना पढ़ते हैं, उतना ही उनके लेखन के विषय-वैविध्य, शैली की प्रयोगधर्मिता और भाषा की धूप-छाँव से चमत्कृत होते हैं। वे जितने सहज कौशल से छोटी-छोटी व्यंग्य-कथाएँ और व्यंग्य-टिप्पणियाँ रचते हैं, उतने ही जतन से लम्बी व्यंग्य रचनाएँ भी बुनते हैं। ‘नरक यात्रा’ और ‘बारामासी’ जैसे बड़े उपन्यासों में उनके व्यंग्य-तेवर देखते ही बनते हैं। ज्ञान चतुर्वेदी विशुद्ध व्यंग्य लिखने में उतने ही सिद्धहस्त हैं, जितना ‘निर्मल हास्य’ रचने में।
वास्तव में ज्ञान की रचनाओं में हास्य और व्यंग्य का ऐसा नपा-तुला तालमेल मिलता है, जहाँ ‘दोनों ही’ एक-दूसरे की ताक़त बन जाते हैं। और तब हिन्दी की यह ‘बहस’ ज्ञान को पढ़ते हुए बड़ी बेमानी मालूम होने लगती है कि हास्य के (तथाकथित) घालमेल से व्यंग्य का पैनापन कितना कम हो जाता है? सही मायनों में तो ज्ञान चतुर्वेदी के लेखन से गुज़रना एक ‘सम्पूर्ण व्यंग्य-रचना’ के तेवरों से परिचय पाने के अद्वितीय अनुभव से गुज़रना है।
Lateefe
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- Description: शाइरों और अदीबों की हाज़िरजवाबी, तंज और मजाहिया गुफ़्तगू में भी शाइरी और इल्म की गहरी बातें छिपी होती हैं| ये चीज़ें किसी भाषा के अदब का अनौपचारिक विस्तार ही नहीं होतीं, उस साहित्य और समाज की आत्मा में झाँकने का एक खूबसूरत झरोखा हैं| इस किताब में शामिल लतीफ़ों से लगभग दो सौ सालों के महान शाइरों, संपादको, सियासी शख्शियतों और पत्रकारों का किरदार उभरता है| साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप का बौद्धिक परिदृश्य बनता दिखाई पड़ता है|
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