Basaveshwara : Samata Ki Dhwani

Basaveshwara : Samata Ki Dhwani

Language:

Hindi

Pages:

160

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

320 mins

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Book Description

निर्बलों की सहायता करना ही सबलों का कर्तव्य है। उसी से सुखी समाज की स्थापना हो सकती है। सभी धर्मों के मूल में दया की भावना ही प्रमुख है। बसवेश्वर के एक वचन का यही भाव है—</p> <p> </p> <p>दया के बिना धर्म कहाँ?</p> <p>सभी प्राणियों के प्रति दया चाहिए</p> <p>दया ही धर्म का मूल है</p> <p>दया धर्म के पथ पर जो न चलता</p> <p>कूडलसंगमदेव को वह नहीं भाता।</p> <p> </p> <p>बसवेश्वर की वचन रचना का उद्देश्य ही सुखी समाज की स्थापना करना था। चोरी, असत्य, अप्रामाणिकता, दिखावा, आडम्बर एवं अहंरहित समाज की स्थापना बसव का परम उद्देश्य था, जो निम्न एक वचन से स्पष्ट होता है—</p> <p> </p> <p>चोरी न करो, हत्या न करो, झूठ मत बोलो</p> <p>क्रोध न करो, दूसरों से घृणा न करो,</p> <p>स्वप्रशंसा न करो, सम्मुख ताड़ना न करो,</p> <p>यही भीतरी शुद्धि है और यही बाहरी शुद्धि है,</p> <p>यही मात्र हमारे कूडलसंगमदेव को प्रसन्न करने का सही मार्ग है।</p> <p> </p> <p>हठ चाहिए शरण को पर-धन नहीं चाहने का, हठ चाहिए शरण को पर-सती नहीं चाहने का, हठ चाहिए शरण को अन्य देव को नहीं चाहने का, हठ चाहिए शरण को लिंग-जंगम को एक कहने का, हठ चाहिए शरण को प्रसाद को सत्य कहने का, हठहीन जनों से कूडलसंगमदेव कभी प्रसन्न नहीं होंगे॥

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