Andhshraddha Ki Gutthi
Author:
Narendra DabholkarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Religion-spirituality0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
विश्वास और अंधविश्वास में अंतर समझते समय मूल दिक्कत यह आती है कि एक समय में जिस विश्वास को सराहा जाता था वही दूसरे समय में अंधविश्वास बन जाता है। समाज का एक हिस्सा जिसे अंधविश्वास मानता है, वही किसी दूसरे समूह को पवित्र लगता है। सती प्रथा और मेलों में दी जानेवाली बलि ऐसी ही परंपराएँ थीं। एक सदी पूर्व का यह विश्वास आज नृशंस अंधविश्वास की श्रेणी में आ गया है।</p>
<p>इसीलिए श्रद्धाओं की जाँच करनी पड़ती है। विज्ञान के विकास का इतिहास ऐसी ही श्रद्धाओं की जाँच करने का इतिहास है। कोपर्निकस, गैलिलियो ने इन श्रद्धाओं को जाँचा, और जो पाया, उसे व्यक्त करने पर यातना भी सही। क्या समाज सुधार का इतिहास भी ऐसा ही नहीं है? इस पर गौर करें तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि श्रद्धा की जाँच करना और जिन्हें वह श्रद्धा सामाजिक जीवन के लिए अनिष्ट व अनुचित लगती है, उन्हें उन श्रद्धाओं के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष के लिए संगठित करने की आजादी आज की बड़ी जरूरत है।</p>
<p>अंधविश्वास उन्मूलन के बारे में सुधीजन एक सलाह और देते हैं कि असहमति जताओ लेकिन विरोध मत करो। लेकिन सामाजिक परिवर्तन के लिए असहमति तक सीमित रहना संभव नहीं है। उसके लिए सक्रिय आंदोलन की जरूरत होती है। सचेत संघर्ष की जरूरत होती है। इस पुस्तक में ऐसे ही संघर्षों का विवरण डॉ. नरेंद्र दाभोलकर ने अपने शब्दों में दिया है। ‘बोलता पत्थर’, ‘लंगर का चमत्कार’, ‘कमर अली दरवेश की पुकार’, ‘अनुराधा देवी की बंद मुट्ठी’ और अन्य ऐसी ही अंधविश्वास-पूर्ण गतिविधियों के विरुद्ध डॉ. नरेंद्र दाभोलकर और उनके संगठन के ये आंदोलन निस्संदेह पठनीय है।
ISBN: 9788119835829
Pages: 232
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: ‘गोरख विजय' नाथपंथ के महान योगी गुरु गोरखनाथ से सम्बन्धित पुरातन बाग्रा काव्य ग्रन्थ ‘गोर्ख विजय’ का हिन्दी अनुवाद और समीक्षात्मक पर्यालोचन प्रस्तुत करनेवाली कृति है। गोरखनाथ ने अपने साधनामय जीवन और कल्याणमय दर्शन से तत्कालीन जन-समाज को अत्यन्त प्रभावित-प्रेरित किया था। उन्होंने द्वैताद्वैत-विलक्षण अद्वैतवाद का समर्थन किया लेकिन संसार को मिथ्या मानने से इनकार किया। उन्होंने मोक्ष का साधन योग को माना और योग को अष्टांग न मानकर षडंग माना। वस्तुतः यम-नियम को उन्होंने, साधक हो या सामान्य-जन, मनुष्य मात्र का कर्तव्य और दायित्व बताया जिनमें परिपक्वता के बाद ही आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि की सिद्धि सम्भव है। ऐसी अनेकानेक बातों को जानने-समझने के लिए ‘गोरख विजय’ एक अत्यन्य उपयोगी ग्रन्थ है। प्रस्तुत पुस्तक का एक और उल्लेखनीय पक्ष यह है कि इसमें बंगाल के लोक समाज में प्रचलित गोरखनाथ सम्बन्धी कई लोकगाथाएँ और कुछ अन्य प्रासंगिक सामग्री भी दी गई हैं जिनसे गोरखपंथी साधना के नये आयाम खुलते हैं। वस्तुतः साधक हो या साहित्यिक, विद्वान हो या सामान्य पाठक, गोरखनाथ में दिलचस्पी रखनेवाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह पुस्तक अवश्य पठनीय है।
SOCH BADI KAMYABI BADI
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Dale Carnegie
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- Description: दुनिया के सबसे महानतम स्वयं-सहायता गुरुओं में से एक से उत्कृष्टता के सबक 2 ऐसा कॅरियर चुनें, जो आपको सबसे ज्यादा अनुकूल हो। 2 पब्लिक स्पीकिंग के गुण सीखें, जो आपको एक प्रभावी कम्यूनिकेटर बनाएगा। 2 काम की चार अच्छी आदतों को अपनाकर तनाव और थकान को दूर करें। 2 अपने जीवन में वित्तीय योजना के ग्यारह मौलिक सिद्धांतों को लागू करें। अत्यंत सफल लेखक और प्रेरक वक्ता डेल कारनेगी ने दुनिया भर में लाखों लोगों को अपने जीवन और कॅरियर में सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा दी। डेल कारनेगी की शिक्षा के जरूरी सिद्धांतों का संग्रह ‘सोच बड़ी, कामयाबी बड़ी’ एक ऐसी मूल्यवान पुस्तक है, जो आपके व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में आपकी मदद करेगी। प्रत्येक सिद्धांत को सफल कारोबारियों और कॉरपोरेट जगत् की हस्तियों के साथ ही इतिहास की महान् राजनीतिक विभूतियों की जीवन-घटनाओं वाक्यों और कहानियों से समझाया गया है। इसमें डेल कारनेगी तथा उन विचारकों और कामयाब लोगों की प्रेरक उक्तियों का एक संग्रह भी है, जिनकी वह सबसे अधिक प्रशंसा करते थे, जैसे कि रॉल्फ वाल्डो इमर्सन, थॉमस ए एडिसन, हेनरी फोर्ड और कई अन्य प्रसिद्ध व्यक्ति।
Soorsagar Saar Satik
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Dr. Dhirendra Verma
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Description:
सूरदास हिन्दी साहित्य के सूर्य माने जाते हैं, किन्तु इस महाकवि की प्रसिद्ध कृति ‘सूरसागर’ का पठन-पाठन का रसास्वादन उतना नहीं हो पा रहा है जितना होना चाहिए। इसके अनेक कारण हैं। एक तो यह ग्रन्थ बहुत बड़ा है, दूसरे इसमें अनेक स्तरों की सामग्री मिश्रित रूप में पाई जाती है।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए ‘सूरसागर’ के लगभग 5000 पदों में से 831 अत्यन्त उत्कृष्ट पदों का चयन इस पुस्तक में किया गया है। विनय तथा भक्ति के पदों के उपरान्त कृष्णचरित सम्बन्धी पद, गोकुल लीला, वृन्दावन लीला, राधा-कृष्ण, मथुरा गमन, उद्धव-सन्देश और द्वारिका चरित तथा कृष्ण-जन्म से लेकर राधा-कृष्ण के अन्तिम मिलन तक के
सम्पूर्ण कृष्णचरित क्रमबद्ध वर्णन प्रस्तुत ग्रन्थ में किया गया है। इस प्रकार का प्रयास पहली बार प्रस्तुत है।
आशा है, अध्येता इस ग्रन्थ से पूरा लाभ उठा सकेंगे।
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