Suno Jogi Aur Anya Kavitayein
Author:
Sandhya NavoditaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
संध्या नवोदिता की जोगी वाली कविताएँ जब पहली बार फ़ेसबुक पर पढ़ीं, तभी चौंक गई थी। कौन है यह जो अन्तस की ऐसी गहराई से ऐसी कविताएँ लिखती है जो पूरे ब्रह्मांड को घेर लेती हैं? मैंने इस अनजान कवि की ‘जोगी’ शीर्षक से एक फ़ाइल बना ली और कविताएँ उसमें रखने लगी—यह सोचकर कि फिर उतरना ही होगा इनमें फ़ुरसत से। और जब उतरी तो पाया कि ज़िन्दगी के पार्क का तीन अरब किलोमीटर का चक्कर लगवाती हैं ये कविताएँ—पृथ्वी के आलिंगन में सूरज के चारों ओर। इन कविताओं में प्रेम की उदासी और दुःख का पहाड़ा ऐसा हृदयविदारक है कि मेरे जैसा अ-रूमानी पाठक भी सन्तप्त हो उठता है। जाने कैसी सच्चाई है, कैसी गहराई है इस भाषा में, जो रोज़मर्रा के जीवन की मामूली चीज़ों से होती सुपर मून तक वामन डग भरती विस्तार पा लेती है।</p>
<p>इन कविताओं में कवि का आत्म अपने को विस्तारित करता हुआ समूची धरती का आत्म बन जाता है। इसलिए सहज ही संध्या वह सब कुछ अपनी कविताओं में कह जाती हैं जो बहुत श्रम के बाद भी अनकहा ही रह जाता है। बराबर मनुष्य की गरिमा के साथ प्रेम और साहचर्य को जीती ये कविताएँ प्रकृति के साथ भी एक अटूट साहचर्य की कामना रखती हैं। प्रेम, प्रकृति और प्रतिरोध यहाँ इस तरह से घुल-मिलकर आते हैं कि अलग से उनकी पहचान कर पाना या एक दूसरे से विलगाकर देख पाना सम्भव नहीं बचता।</p>
<p>यह सब उस भाषा में है जिसे हम रोज़ बरत रहे हैं। कहीं कोई बनावट या कविताई का आग्रह नहीं दिखता। शायद अनुभव और अभिव्यक्ति की यह निर्दोष जुगलबंदी है कि हम उसके ख़यालों की सीढ़ियाँ नाप पाते हैं। कुछ कविताओं को पढ़ ऐसा होता है कि मैं अगर उनपर कुछ लिखना चाहूँ, तो वे शब्द नहीं मिलते जो उस कविता के साथ न्याय कर सकें। मेरी भाषा मौन हो जाती है। लौट आने के आह्वान में खोए हुए की प्रतीति और पुकार अविस्मरणीय बन जाती है। संध्या की कविताएँ ऐसी ही कविताएँ हैं।</p>
<p>—अलका सरावगी
ISBN: 9788119996346
Pages: 160
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Kavitayen : Vol. 2
- Author Name:
Sarveshwardayal Saxena
- Book Type:

-
Description:
नई कविता की लोक–सम्पृक्ति के प्रतिनिधि कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की ‘कुआनो नदी’ और ‘जंगल का दर्द’ से पूर्ववर्ती सम्पूर्ण काव्य–साधना का पहला खंड ‘कविताएँ–1’ कविताओं का यह दूसरा खंड है। इसमें पूर्व प्रकाशित कवि के दो संग्रहों (‘एक सूनी नाव’ और ‘गर्म हवाएँ’) की कविताएँ सम्मिलित हैं। इन कविताओं में कवि के निजी जीवन और समसामयिक सामाजिक, राजनीतिक जीवन की त्रासदी परस्पर गुम्फित है। ये कविताएँ राजनीति से भागती नहीं क्योंकि वह आज के जीवन का हिस्सा हैं लेकिन राजनीतिक मतवाद से उनका अलगाव अवश्य है। दरअसल, सर्वेश्वर के तर्इं इनसान से बड़ा कुछ भी नहीं है—न ईश्वर, न प्रकृति—सबका क़द उनके यहाँ एक
है।सर्वेश्वर की कविताएँ भाषा से दुर्व्यवहार करनेवाले कवियों की इधर बढ़ती हुई भीड़ के लिए एक सबक भी है। वे अपनी निजी दुनिया में ले जाकर, सामाजिक ‘सच्चाई’ से सूक्ष्म सम्पर्क करती हुर्इं, पाठक के मन में भाषा के प्रति एक धड़कता हुआ रिश्ता बनाती हैं। ‘एक सूनी नाव’ और ‘गर्म हवाएँ’—ये शीर्षक ही सर्वेश्वर की काव्य–यात्रा के बदलाव को सूचित करते हैं। पर सर्वेश्वर की कविता में जो ‘ग़ुस्सा’ धीरे–धीरे अपेक्षाकृत अधिक मुखर हुआ है, उसके पीछे भाषा पर पड़नेवाले दबाव की स्थिति से एक गहरा रचनात्मक मुक़ाबला है। कविता में निषेधी भाषा की तीव्र उपस्थिति कुछ करने और बदलने की इच्छा से अनुप्रेरित है—सिर्फ़ ग़ुस्से से ही नहीं।
Jo Apna Haal Hai
- Author Name:
Sardar Anwar
- Book Type:

- Description: जो अपना हाल है सब अपनी हरकतों से है! दुआ किसी की नहीं बद् दुआ किसी की नहीं!!
Apurna Aur Anya Kavitayein
- Author Name:
K. Satchidanandan
- Book Type:

- Description: अपूर्ण और अन्य कविताएँ के. सच्चिदानन्दन की कविताओं के हिन्दी अनुवाद का एक महत्त्वपूर्ण संकलन है। इसके पहले उनकी कविताओं के दो हिन्दी संकलन ‘के. सच्चिदानन्दन की कविताएँ’ और ‘वह जिसे सब याद था’ प्रकाशित हो चुके हैं। प्रस्तुत संकलन में मुख्यत: वे कविताएँ संगृहीत हैं जो यात्रानुभवों और प्रेम से सम्बद्ध हैं। एक लम्बी कविता ‘अपूर्ण’ इन दो विषयों को अनुस्यूत करती हैं : यह कविता स्टॉकहोम, दिल्ली और पेरिस में लिखी गई थी। 'उत्तरकांड' चीन पर लिखी कविताओं की शृंखला है—और यह ध्यान पर एकाग्र है। अध्यात्म, प्रेम, प्रकृति, राजनीति और कविताएँ सभी कविता के पाठ में शामिल हैं। ‘उत्कल’ और ‘हम्पी में शामें’—केवल स्थान विशेष का विवरण मात्र नहीं, बल्कि स्मृति और कल्पना से संघनित हैं। कवि की प्रेम कविताओं में जहाँ असाधारण तीव्रता है वहाँ समय की निरन्तर उपस्थिति को लक्ष्य किया जा सकता है। —संग्रह की अधिकांश कविताएँ हमारे समय के आक्रोश, बिखराव और विद्रोह को व्यक्त करती हैं। ये कविताएँ अपनी कल्पना-शक्ति, प्रखर अनुभूति, ध्यानपरकता और व्यंग्य-भाव के लिए जानी जाएँगी।
Yaden Basant ki
- Author Name:
Leeladhar Mandloi
- Book Type:

- Description: यादें बसंत की खुशबूएँ हैं|
Maujood
- Author Name:
Rahat Indori
- Book Type:

-
Description:
राहत साहब मेरे बड़े पुराने दोस्त हैं, लगभग चालीस बरस से मेरी और उनकी दोस्ती क़ायम है। वो एक बड़े शायर और एक सच्चे इनसान हैं। सच्चा इनसान उसे कहता हूँ, जो अच्छाइयों को ही नहीं बुराइयों को भी प्यार कर सके। मेरा व्यक्तित्व भी अच्छाइयों और बुराइयों का नमूना है और राहत का भी। इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि फ़रिश्तों के टूटे हुए ख़्वाब का एक नाम राहत है। राहत ने जीवन और जगत के विभिन्न पहलुओं पर जो ग़ज़लें कही हैं, वो हिन्दी-उर्दू की शायरी के लिए एक नया दरवाज़ा खोलती हैं। वर्तमान परिवेश पर जो टिप्पणी उन्होंने अपनी ग़ज़लों में की है वो आज की राजनीति, आज की साम्प्रदायिकता, धार्मिक पाखंड और पर्यावरण पर बड़े ही मार्मिक भाव से की है। छोटी-बड़ी बहर की ग़ज़ल में उनका प्रतीक और बिम्ब विद्यमान है, जो नितान्त मौलिक और अद्वितीय है। उनके कितने ही शे’र ऐसे हैं जो ज़ुबान पर बरबस बैठे जाते हैं। नए रदीफ़, नई बहर, नए मज़मून, नया शिल्प उनकी ग़ज़लों में जादू की तरह बिखरा है और पढ़ने व सुननेवाले सभी के दिलों पर छा जाता है। राहत की शायरी तसव्वुफ़ की उच्चतम ऊँचाइयों तक पहुँचती है। उनका ये शे’र मेरे ज़ेहन में अक्सर कौंधता रहता है—
किसने दस्तक दी है दिल पर, कौन है?
आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन है...?
भाई राहत की सोच एक सच्चे इनसान की सोच है। वो यद्यपि अपनी उम्र से अधेड़ दिखाई पड़ते हैं लेकिन आज भी उनके दिल में एक मासूम-सा बच्चा है जो बिना किसी भय के सच बोलना जानता है। मुझे विश्वास है कि पाठक उनके इस ग़ज़ल-संग्रह ‘मौजूद’ को भी बड़े प्यार और सम्मान से ग्रहण करेंगे।
—गोपालदास नीरज
Kavita Mein Sab Kuchh Sambhav
- Author Name:
Shailendra Shail
- Book Type:

- Description: collection of poems
Sare-Wadiye-Seena
- Author Name:
Faiz Ahmed 'Faiz'
- Book Type:

- Description: ग़मे-ज़माना के गहरे अहसास से पगी नज़्मों-ग़ज़लों और क़तआत के इस संग्रह में फ़ैज़ की 1965 से 1971 के दौरान लिखी रचनाएँ शामिल हैं। ‘लहू का सुराग़’ और ‘ज़िन्दाँ-ज़िन्दाँ शोरे-अनल-हक़’ शीर्षक वे नज़्में भी इसी संकलन में शामिल हैं जिन्हें फ़ैज़ ने कराची में विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हुई फायरिंग के बाद लिखा था। युद्ध की पृष्ठभूमि में लिखी गई दो प्रसिद्ध नज़्में भी इस किताब का हिस्सा हैं—‘ब्लैक आउट’ और ‘सिपाही का मर्सिया’। शीर्षक कविता ‘सरे-वादिए-सीना’ का विषय तो है ही अरब-इसरायली युद्ध। साल 1967 में पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर लिखी गई उनकी बेहद चर्चित नज़्म ‘दुआ’ इस संकलन को ख़ासतौर पर आकर्षक बनाती है जिसमें फ़ैज़ ने मुल्क के अवाम की पीड़ा और स्वप्नों को शब्द दिए थे—‘जिनके सर मुंतज़िरे-तेग़े-जफ़ा हैं उनको/दस्ते-क़ातिल को झटक देने की तौफ़ीक़ मिले।’ हार्ट अटैक शीर्षक कविता उन्होंने 1967 में पड़े दिन के दौरे के बाद लिखी थी। रसूल हम्ज़ातोव की कुछ कविताओं के उनके द्वारा किए गए अनुवाद भी इसी संकलन में आप पढ़ेंगे। उनके व्यक्तित्व और रचनाधर्मिता पर लिख गए दो आलेख भी आप यहाँ पाएँगे जिन्हें उनके नज़दीक रहे विदेशी आलिमों ने लिखा है। इनमें से एक आलेख अलेक्जेंडर सरकोफ़ का भी है जो 1962 में फ़ैज़ की कविताओं के रूसी अनुवाद की भूमिका के रूप में छपा था।
Jaldhaar
- Author Name:
Ushakiran Khan
- Book Type:

- Description: Book
Taseer
- Author Name:
Sulabha Kore
- Book Type:

- Description: A Collection Of Hindi Poems by Sulabha Kore
Dhoomil Samagra : Vols. 1-3
- Author Name:
Sudama Pandey Dhoomil
- Book Type:

- Description: धूमिल की कविता वह कहती है जो गद्यकारों के स्पष्ट निष्कर्ष नहीं कह पाते। जिस चीज को वे वक्तव्य कहते हैं, वह सच जान चुके भाषणबाजों का कोई दो टूक फैसला नहीं है, वह चीजों के उस चेहरे को पकड़ने का उद्यम है जो देखने की सिद्ध और आत्मसम्पूर्ण परिपाटियों से छूट-छूट जाता है। उनकी कविता कवि से ज्यादा एक सतत चिन्तित व्यक्ति की कविता है। इसीलिए हमें भी वह वहाँ जाकर छूती है जहाँ काव्य के शिल्पकारों की सुमुख रचनाएँ नहीं पहुँच पातीं। उनका रचना-संघर्ष उन शब्द-योजनाओं और अर्थ-बिम्बों तक जाता है जिन्हें बौद्धिक और भावात्मक काहिली को संस्कृति-सभ्यता माननेवाला समाज अपशब्द, गाली आदि कहा करता है। इसीलिए शायद अपने कवि-जीवन में वे इतने व्यवस्थित कवि नहीं थे। उनकी चिन्ता का विस्तार बहुत ऊबड़-खाबड़ और बीहड़ था जो अपने बहुत भीतर से, जहाँ भाषा और शब्द अंकुरित होते हैं, वहाँ से लेकर बहुत बाहर, दूर तक एक सही शब्द देने की बेचैनी में जैसे परिदृश्य को रौंदता रहता है। शायद यही वजह है कि ऊपरी तौर पर सीमित दिखनेवाले इनके रचना-संसार को समेटने में हमारी समझ, हमारी चेतना बार-बार कुछ कम-सी पड़ जाती है। बार-बार लगता है कि असल में जो धूमिल हैं, वे फिर पूरी तरह पकड़ में नहीं आ सके। उनकी रचनाओं की यह समग्र प्रस्तुति एक प्रस्ताव है कि शुरू से आखिर तक के धूमिल को हम एक साथ रखकर फिर से समझने का प्रयास करें। अभी भी हो सकता है कि बहुत कुछ इधर-उधर बिखरा रह गया हो जो भविष्य में सामने आए लेकिन जो इन तीन खंडों में है, वह हमें धूमिल के सभी कोनों की तरफ ले जाने के लिए काफी है। इस पहले खंड में उनकी कविताओं को रखा गया है जिनमें उनके तीन प्रकाशित संग्रहों के अलावा वे सब कविताएँ भी ले ली गई हैं जो किताब की शक्ल में पाठकों तक नहीं पहुँच सकीं। और जो संख्या में उन कविताओं से कम नहीं हैं जो ‘संसद से सड़क तक’, ‘कल सुनना मुझे’ और ‘सुदामा पाँड़े का प्रजातंत्र’ में आ चुकी हैं। खंड - 2 धूमिल समग्र के इस दूसरे खंड में उनके गीतों, कहानियों, लघुकथाओं, नाटक, निबन्ध, समीक्षात्मक टिप्पणियों, अनुवाद आदि को लिया गया है। ‘दस्तक’ शीर्षक से उनके कागजों में मिले काव्यात्मक वाक्यों को भी इसमें शामिल कर लिया गया है जिनसे विचार, रचना और अपने परिवेश, समाज, समय के प्रति उनकी प्रतिक्रिया के तरीके को समझा जा सकता है। उन्होंने कहीं लिखा था कि ‘जब मैं साइकिल पर सवार होता हूँ, मेरा दिमाग साइकिल की तीलियों की तरह चलता है’। सड़कों-फुटपाथों, चाय-पान की दुकानों पर, खेतों खलिहानों में कहीं भी वे मूलतः एक व्यग्र कवि थे। हर जगह उन्हें किसी बड़े सच की तरफ इशारा करती हुई पंक्तियाँ मिल जाती थीं जिन्हें वे उस समय उपलब्ध किसी भी कागज के टुकड़े पर लिख लिया करते थे। यह बताता है कि उनका अपना होना कितनी गहराई से एक नैतिक उत्तरदायित्व से जकड़े रचनाकार का होना है। एक टटकी कविता बाजार में उतारकर फारिग हो जानेवाले कवि वे नहीं थे। यह जीवन और समय के बहुआयामी सच से उनका नाता था जो लगातार उन्हें अपनी कुंडली में कसे रहता था। हर सच्चे रचनाकार के साथ यह होता है। इसीलिए वे अपनी छप चुकी, प्रशंसित हो चुकी कविताओं में रद्दोबदल कर लेते थे। उनकी पांडुलिपियों में कहीं-कहीं कागज के किसी टुकड़े पर एक-एक दो-दो पंक्तियाँ लिखी हैं तो कहीं तीन-चार पंक्तियाँ ऐसी हैं जो अपने आप में पूरी कविता प्रतीत होती हैं लेकिन जिन पर वे आगे काम करना चाहते होंगे पर नहीं कर पाए। लेखन का उनका जीवन गीत से शुरू हुआ था और गीत लिखने का क्रम 1960-61 तक चला। प्रकाशित रूप में कुछ ही गीत मिले हैं लेकिन लिखे गए गीतों की संख्या इतनी है कि उनका भी एक संग्रह निकल सकता था। इस खंड में उनके गीतों को भी रखा गया है। शुरू से लेकर आखिर तक के उनके निबन्धों और समीक्षात्मक टिप्पणियों को भी काल-क्रम से इसमें रखने की कोशिश की गई है। उनमें से कुछ तो बाकायदा प्रकाशित रहे हैं, कुछ नहीं। बांग्ला के लोकप्रिय कवि सुकान्त भट्टाचार्य के कविता-संग्रह ‘छाड़पत्र’ का ‘पारपत्र’ नाम से उनका सह-अनुवाद भी इसमें शामिल है। खंड – 3 धूमिल समग्र के इस तीसरे खंड में संकलित सामग्री को पढ़ना धूमिल को समझने के लिए सबसे जरूरी है। इसमें उनकी डायरी और पत्रों को रखा गया है। डायरी से उनकी राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संलग्नता प्रकट होती है। कहीं-कहीं दीखता है कि एक ही तरह की दिनचर्या कई दिनों तक चल रही है, लेकिन उसी के भीतर से उनकी सघन सक्रियता का भी बोध होता है। फरवरी 1969 का एक पन्ना है : ‘मैं महसूस करने लगा हूँ कि कविता आदमी को कुछ नहीं देगी, सिवा उस तनाव के जो बातचीत के दौरान दो चेहरों के बीच तन जाता है। इन दिनों एक खतरा और बढ़ गया है कि ज्यादातर लोग कविता को चमत्कार के आगे समझने लगे हैं। इस स्थिति में सहज होना जितना कठिन है, सामान्य होने का खतरा उतना ही, बल्कि उससे कहीं ज्यादा है।’ उसके थोड़ा आगे कविता की तरह की कुछ पंक्तियाँ हैं : ‘आलोचक/वह तुम्हारी कविता का/एक शब्द सूँघता है/और/नाक की सीध में/तिजोरियों की ओर दौड़ा चला जाता है।’ वे अपनी डायरी में इसी तरह कहीं अपनी प्रतिक्रियाएँ और कहीं विचार टाँकते रहते थे। जाहिर है कि यह डायरी उन्होंने साहित्यिक विधा के तौर पर नहीं, अपनी भावनात्मक और वैचारिक बेचैनियों को व्यक्त करने के लिए लिखी थी। इससे पता चलता है कि कहीं-कहीं उनकी विचार-प्रक्रिया निबन्ध की तरह चलने लगती थी और कहीं सिर्फ एक-दो वाक्यों में अपनी पूरी बात कह देते थे। अपनी कविताओं और छपी हुई चीजों की तरह पत्र भी उन्होंने बहुत सँभालकर नहीं रखे। पांडुलिपियों में कुल 61 पत्र प्राप्त हुए जिन्हें यहाँ दिया गया है। डायरी की तरह इनमें भी सम-सामयिक विषयों पर स्फुट विचार हैं।
Danuphak Phool Jakan
- Author Name:
Vidyanand Jha
- Book Type:

- Description: देसक इतिहास आइ अपन निर्दयतम दौर सँ गुजरि रहल अछि जखन भाषा मे अपन अन्त:करणक रक्षा क' सकब एक कठिन चुनौती बनल अछि। मैथिलीक बहुलांश कवि-समुदाय केँ हमरा लोकनि आइ जत' रौरव के उत्सव मनबैत देखबा लेल अभिशप्त छी, विद्यानंद ने तँ अपन जनानुभव सँ एकात भेला अछि आ ने अभिव्यक्तिक जरब उठेबा मे कनियो थकमकाइत छथि। देसवासीक नियति केँ प्रभावित केनिहार हरेक प्रपंच पर हुनका लग अपन कविता छनि। नाना प्रकारक मानवीय आ प्राकृतिक उत्पातक बीच ओ साधारण जन पर पड़ैत एकर प्रभावे केँ उचित-अनुचितक दिशानिर्देशक मानैत रहला अछि। स्मृति सेहो कोना उपस्थित होइत छैक, से हम सब एत' बारंबार देखि सकै छी। हुनक काव्यानुभवक अनुरूपे हुनकर ई संग्रह सेहो विविधता आ व्यापकता सँ भरल अछि। समकालीन कविताक लेल अवश्ये ई एक महत्त्वपूर्ण बात थिक जे हमर ई कवि अपन हरेक नव संग्रह मे पछिला संग्रह सँ आगू बढ़ल देखाइत छथि। हुनकर पाठक लोकनि से एहू संग्रह मे देखि सकता। —तारानंद वियोगी # विद्यानंदक कविता मे आत्म निरीक्षणक एक टा अद्भुत पद्धति छनि। अस्तित्ववादक आधुनिक परम्पराक देशज आ लौकिक सहज विमर्श सँ जेना बियाह होइत हो। जतबे भावोत्तेजित ततबे निरीह, शांत, आ प्रतीतिकर। खेतिहर, गामक लोक, ऑरवेल, अम्बेडकर आ महात्मा गांधी—एहन अनेक पात्र हिनक काव्य मे सजीव भ'क' संवाद करैत अछि। कवि केँ धन्यवाद जे ओ अपन काव्य रचना मे सतत सत्यपरक, तथ्यपरक आ साहित्यिक सौन्दर्यपरक संतुलनक संग समुचित संसार गढ़ैत रहलाह अछि। —देव नाथ पाठक
Rekhta Ke Aatish
- Author Name:
Haider Ali 'Aatish'
- Book Type:

- Description: "रेख़्ता क्लासिक्स" सीरीज़ उर्दू के क्लासिकी शायरों के प्रतिनिधि शायरी को नए पाठकों तक पहुँचाने के एक अनूठा प्रयास है। प्रस्तुत किताब में हैदर अली आतिश की प्रतिनिधि शायरी है जिसका संकलन फ़रहत एहसास साहब ने किया है।
Preet Vedi-Niharika
- Author Name:
Radhika Shaha
- Book Type:

- Description: It's masterpiece poetry collection
Jag Me Noor Badha Kar Dekh
- Author Name:
Rameshraaj
- Rating:
- Book Type:

- Description: 1974 से 1990 के बीच लिखी गयीं चतुष्पदियाँ
Sirf Kavi Nahi
- Author Name:
Bodhisatwa
- Book Type:

- Description: समकालीन हिन्दी कविता के उपादान आज कुछ इतने सरल हो गये हैं कि ‘कोई कवि बन जाय, सहज सम्भाव्य है।’ कविता के इस संकट में ऊपरी तौर पर अच्छी कविताएँ लिख लेना कठिन नहीं है। लेकिन ऐसी कविता जो एक ‘नयी शुरुआत’ करे, जो अचानक ‘ताज़गी के एक अनहोनेपन’ से पाठक को अपने अनुरूप ढाल ले, ऐसी कविता कहीं नहीं दिखती। ‘ताज़गी (वस्तु और शिल्प) के इसी अनहोनेपन’ के अनुभव को व्यक्त करती हैं बोधिसत्व की कविताएँ। बोधिसत्व की कविताएँ कविता की एक नयी भाषा की खोज में पैदा हुई हैं। गढ़ी हुई, उपलब्ध काव्य-भाषा के नकार और गैरपहचान से बोधिसत्व की काव्य-भाषा का निर्माण हुआ है। नये ढंग की अछूती बिम्ब-मालाओं के माध्यम से यह कवि अपनी बात कहता है। ऐसे शब्दों का प्रयोग कवि करता है जो हमारी संस्कृति के अछूते कोनों से आकर सहसा कविता में एक बिल्कुल नये सांस्कृतिक व्यक्तित्व की रचना करते हैं। इस तरह बोधिसत्व की कविताएँ ‘कविता के एक नये संसार को जन्म देती हैं। निपट भोलेपन के बीच एक तार्किक और जनोन्मुखी अन्तर्दृष्टि सम्पन्न ये कविताएँ अपनी विविधता में एक अद्भुत ‘कोलाज़’ की रचना करती हैं।
Tokri Mein Digant
- Author Name:
Anamika
- Book Type:

-
Description:
अनामिका के नए संग्रह ‘टोकरी में दिगन्त—थेरी गाथा : 2014’ को पूरा पढ़ जाने के बाद मेरे मन पर जो पहला प्रभाव पड़ा, वो यह कि यह पूरी काव्य-कृति एक लम्बी कविता है, जिसमें अनेक छोटे-छोटे दृश्य, प्रसंग और थेरियों के रूपक में लिपटी हुई हमारे समय की सामान्य स्त्रियाँ आती हैं। संग्रह के नाम में 2014 का जो तिथि-संकेत दिया गया है, मुझे लगता है कि पूरे संग्रह का बलाघात थेरी गाथा के बजाय इस समय-सन्दर्भ पर ही है। संग्रह के शुरू में एक छोटी-सी भूमिका है, जिसे कविताओं के साथ जोड़कर देखना चाहिए। बुद्ध अनेक कविताओं के केन्द्र में हैं, जो बार-बार प्रश्नांकित भी होते हैं और बेशक एक रोशनी के रूप में स्वीकार्य भी। इस नए संकलन में अनेक उद्धरणीय काव्यांश या पंक्तियाँ मिल सकती हैं, जो पाठक के मन में टिकी रह जाती हैं।
बिना किसी तार्किक संयोजन के यह पूरा संग्रह एक ऐसे काव्य-फलक की तरह है, जिसके अन्त को खुला छोड़ दिया गया है। स्वयं इसकी रचयिता के अनुसार “वर्तमान और अतीत, इतिहास और किंवदन्तियाँ, कल्पना और यथार्थ यहाँ साथ-साथ घुमरी परैया-सा नाचते दीख सकते हैं।” आज के स्त्री-लेखन की सुपरिचित धारा से अलग यह एक नई कल्पनात्मक सृष्टि है, जो अपनी पंक्तियों को पाठक पर बलात् थोपने के बजाय उससे बोलती-बतियाती है, और ऐसा करते हुए वह चुपके से अपना आशय भी उसकी स्मृति में दर्ज करा देती है। शायद यह एक नई काव्य-विधा है, जिसकी ओर काव्य-प्रेमियों का ध्यान जाएगा। समकालीन कविता के एक पाठक के रूप में मुझे लगा कि यह काव्य-कृति एक नई काव्य-भाषा की प्रस्तावना है, जो व्यंजना के कई बन्द पड़े दरवाज़ों को खोलती है और यह सब कुछ घटित होता है एक स्थानीय केन्द्र के चारों ओर। कविता की जानी-पहचानी दुनिया में यह सबाल्टर्न भावबोध का हस्तक्षेप है, जो अलक्षित नहीं जाएगा।
—केदारनाथ सिंह
Proof Reader
- Author Name:
Hemant Dwivedi
- Book Type:

- Description: समय का चक्र पूरे संसार में जनसामान्य के हितों के विरुद्ध घूम रहा है। ऐसे में मुक्ति की सांस्कृतिक कार्यवाही का सबसे मुखर अस्त्र, दीनों की साथी और आन्दोलनों का प्राण कविताएँ बनी हैं। दुख और तनावों से घिरा कवि मायूस नहीं है बल्कि अपनी सबसे शक्तिशाली भूमिका में है। ऐसा ही चुप्पा किस्म का अलग-थलग दिखने वाला एक कवि बरबस अपनी कविताओं के कारण हमारा ध्यान खींचता है—हेमंत देवलेकर। हेमंत की कविताएँ सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक सन्दर्भों के साथ बिना ‘कवितापन’ खोये संवाद करती हैं। वे संवेदनाओं को आकार में ढालते हैं। उनकी कविताओं के टटके बिम्ब, भाषिक ताज़गी, हरियारी महक बार-बार पढ़े जाने की ज़िद्द लिए सगेपन के साथ हमारे भीतर उतरती है। हेमंत के यहाँ पीड़ा और शक्ति के ज़िन्दा बिम्ब चमत्कार बनकर नहीं बल्कि अन्तर्मन को बेधने आते हैं। उनका कविमन और कविकर्म ‘सामूहिकता’ और ‘सहअस्तित्व’ से बँधा है। कवि जानता है कि इन दो शब्दों में ही वैश्विक सांस्कृतिक विरासत और दुनिया को बचा लेने का शऊर है। हेमंत अदबी नहीं प्रकृति भाषा के पक्षधर हैं। इनकी कविताएँ सामान्य प्रसंगों से जुड़ी हुई होकर भी हमें गहरी मनोवैज्ञानिक सच्चाइयों तक लेकर जाती हैं, हमें हमारे समय के पतझड़िया मौसम और भूरे रंग से रूबरू कराती हैं, परन्तु अवसाद में नहीं ढकेलती। बकौल कवि ‘मेरी कलम की स्याही में... खून भी उपलब्ध होता है और दवाएँ भी’। मौजूदा दौर में हेमंत की इतनी बेधक और मारक, ज़िन्दगी से भरी, धूप के टुकड़े को आँसुओं से नम रखने वाली कविताएँ, विसंगति और त्रासदी के बीच एक ‘भरोसे’ की तरह अपने सघनतम रूप में संगी-साथी की तरह पाठकों के बीच उतरेंगी। इसी विश्वास और इसी आस के साथ पुनः ‘हर पेड़ कहीं दूर फिर अपना पेड़ बसाना चाहता है। —शशिकला राय
Yahan Se Dekho
- Author Name:
Kedarnath Singh
- Book Type:

-
Description:
केदारनाथ सिंह की कविताओं का संसार क़रीब-क़रीब समूचा भारतीय संसार है—वह इस अर्थ में कि उन्हें उन तमाम स्रोतों का पता है जहाँ से जीवन मिलता है—भले ही आज की सर्वव्यापी मानव-विरोधी मुहिम में वह जीवन कुछ कम हो चला हो और कभी-कभी उसके लुप्त हो जाने का भी ख़तरा हो—और केदारनाथ सिंह की इस आस्था को उनसे छीन लेना असम्भव है कि मानवीय अस्तित्व को—आज के भारत में आदमी बनकर रहने की इच्छा को, अर्थ तथा बल देने के लिए उन्हीं स्रोतों पर पहुँचना होगा और जिस ज़मीन से वे निकल रहे हैं, उसे ही और गहरा खोदना होगा।...इस प्रक्रिया में केदारनाथ सिंह की भाषा और नम्य और पारदर्शक हुई है और उसमें एक नई ऋजुता और बेलौसी दिखाई पड़ती है।
—विष्णु खरे
जीवन तो हर अच्छे कवि की कविताओं में होता है। लेकिन जीवन की स्थापना बहुत कम कवि कर पाते हैं। टूटा हुआ ट्रक भी पूरी तरह निराश नहीं है। बिलकुल मशीनी चीज़ टूटने के बाद भी यात्रा पर चल देने को तैयार है। वनस्पति इसकी मरम्मत कर रही है...जो क्षुद्र है, नष्टप्राय है उसे देखकर भी केदार जी को लगता है कि जीवन रहेगा, पृथ्वी रहेगी—‘‘सिर्फ़ इस धूल का लगातार उड़ना है जो मेरे यकीन को अब भी बचाए हुए है—नमक में, पानी में और पृथ्वी के भविष्य में।’’ जो नष्ट हो जाता है वह कितना ही क्षुद्र क्यों न हो, उन्हें दुखी करता है (कीड़े की मृत्यु)। जीवन के प्रति यह सम्मान ही केदार जी के इस संग्रह की मुख्य अन्तर्वस्तु है।
—अरुण कमल
Vansha : Mahabharat Kavita
- Author Name:
Harprasad Das
- Book Type:

-
Description:
हरप्रसाद दास अपनी आधुनिक दृष्टि, गहन परम्परा-बोध और अपने विशिष्ट ओड़िया स्वर के लिए पहचाने जाते हैं। ‘वंश’ में संकलित कविताएँ उनकी सुदीर्घ काव्य-साधना का एक अद्वितीय उदाहरण हैं।
वास्तव में यह ‘महाभारत’ के प्राय: सभी चरित्रों के गम्भीर अन्तर्मन्थन की एक सुघड़ काव्य-शृंखला है। सत्तर कविताओं के माध्यम से कवि ने ‘महाभारत’ की जो पुनर्रचना की है, उसका प्रयोजन कथा का तकनीकी आधुनिकीकरण भर नहीं है। ‘महाभारत’ की कथा-वस्तु या उसके चरित्रों की अन्त:प्रकृति में सतही बदलाव लाने की कोई चेष्टा यहाँ नहीं है। यह पुनर्पाठ आधुनिक और आत्मसजग कवि के द्वारा, ‘महाभारत’ के साथ सृजनात्मक अन्तर्पाठीयता का एक रिश्ता बनाने की कोशिश है। उस समय में इस समय को जोड़ देने के जोड़-तोड़ से क़तई अलग, यह साभ्यतिक संकट की त्रासदी के अनुभव और अवबोध की कविता है, जिसे वे कथा के प्राचीन रूपाकार में कुछ इस तरह रचते हैं कि हम पूरे ‘महाभारत’ को अपने सामयिक अनुभव की विडम्बनाओं और व्यर्थ हताशाओं की तरह घटता देखते हैं।
अपने लोक-जीवन के दैनिक समय में जीते-मरते लोगों के बीच, परिवेश की पास-पड़ोस की छवियों के रूबरू होते हुए, हम पाते हैं कि ‘महाभारत’ हमारे लिए महज़ किसी दूरस्थ क्लासिकी ऊँचाई या गहराई का प्रतीक या रूपक-भर नहीं है। लोक-जीवन की साधारण साम्प्रतिकता में, परिवार के संस्कारों में, क़िस्सों की तरह रचा-बसा ‘महाभारत’, हरप्रसाद की सर्जना के माध्यम से, हमारी आन्तरिकता का एक मार्मिक दस्तावेज़ बन जाता है। साथ ही यह भी महत्त्वपूर्ण है कि ‘वंश’ की रचना में क्लासिकी और लोक का ऐसा अनूठा समन्वय है जो मनुष्य के आस्तित्विक संकट को सहज लोक-वाणी में सम्प्रेषित करता है।
Wah Aadami Naya Garam Coat Pahinkar Chala Gaya Vichar Ki Tarah
- Author Name:
Vinod Kumar Shukla
- Book Type:

-
Description:
विनोद कुमार शुक्ल की कविता, उस पूरे काव्यानुभव को एक विकल्प देती है जिसके हम अभ्यस्त हैं। हम जैसे सिर्फ़ एक क़दम उठाकर एक ऐसी दुनिया में आ जाते हैं जो बहुत बड़ी है, जहाँ चाहें तो उड़ा भी जा सकता है। यह कविता आपको बदल देती है। आपके पढ़ने और आपके जीने, दोनों की आदत को।
वह पहले आपको एक अलग भाषा देती है, फिर देखने का, महसूस करने का एक अलग तरीक़ा। एक सामर्थ्य जो हमें अपने आसपास मौजूद तमाम चीज़ों के प्रति नए सिरे से जीवित कर देती है। विनोद कुमार शुक्ल न आपको विचार देते हैं, न सन्देश, बस दुनिया में होने का एक हल्का, सरल और मानवीय ढंग देते हैं, एक विज़न, जहाँ वह सब ख़ुद चला आता है, जिसे मनुष्यों, पेड़ों, हवाओं, आसमानों, आदिवासियों, समुद्रों, नदियों, मिट्टियों, पत्तियों, चिड़ियाओं, लड़कियों, बादलों और मज़दूरों की इस दुनिया में होना चाहिए।
‘वह आदमी नया गरम कोट पहिनकर चला गया विचार की तरह’ विनोद कुमार शुक्ल का दूसरा कविता संकलन है जो 1981 में प्रकाशित हुआ था। काफ़ी समय से यह अनुपलब्ध था।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...