Rashtrakavi Kuwempu Ki Kavitayen
Author:
TippeswamiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 64
₹
80
Unavailable
‘ओ मेरे चेतन, बन तू अनिकेतन', कहकर सारे जहाँ में कहीं भी निकेतनिवासी बनने की इच्छा न रखनेवाले कुवेंपु ने अपने विश्वमानव सन्देश के द्वारा मनुष्य को जाति, वर्ण और अन्यान्य उपाधि-विशेषणों से बाहर आकर मात्र मनुष्य की हैसियत से ‘जीने और जीने दो’ के सिद्धान्त पर डटे रहने को कहा है। उनके पंचमंत्रों और सप्तसूत्रों में विश्व मानव की परिकल्पना है।</p>
<p>कुवेंपु के जीवन में आध्यात्मिकता का पुट उनके बचपन के दिनों से विकसित होता गया। उनके ‘दर्शन’ के मूल में प्रकृति का महत्त्वपूर्ण योगदान है, प्रकृति उनके काव्य का अविभाज्य अंग है। उनके काव्य में अभिव्यक्त आध्यात्मिकता ने उनके अध्ययन-चिन्तन-मन्थन एवं अनुभव से उद्भूत होकर धीरे-धीरे साकार रूप प्राप्त किया है। यह आध्यात्मिकता उनके लिए बाहरी वेश न होकर अन्तरंग विकास के अविभाज्य अंग के रूप में है। मतलब यह कि कुवेंपु में जो आध्यात्मिकता पाई जाती है, उसके लिए उस परिवेश का भी योगदान है, जिसके अन्तर्गत वे पाले-पोसे गए थे।
ISBN: 9788180310782
Pages: 201
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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