Yugantar Ke Phool
Author:
Kumar Mithilesh Prasad SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Unavailable
<strong>‘</strong>युगान्तर के फूल’ में युग-युग का अन्तर जतलाने की तहज़ीब है। व्यक्तित्व की प्रधानता के कारण ख़ास कालखंड को उस व्यक्तित्व का नाम देकर युग को सम्बोधित करने की परिपाटी है कि वह अमुक युग था या यह अमुक युग चल रहा है।</p>
<p>‘युगान्तर के फूल’ में दस लम्बी कविताएँ हैं। सभी कविताएँ अलग-अलग भावभूमि की हैं, जिनमें देखी-समझी-भोगी अनुभूतियों के अलावा वर्तमान विसंगतियों और ज़रूरतों का समावेश भी हैं।</p>
<p>‘युगान्तर के फूल’ ऐसे विषय से सम्बन्धित है, जो काव्य-रचना की परम्परा में सर्वस्वीकृत नहीं माने जा सकते। इसकी स्वीकार्यता के ख़तरे को जानते हुए भी मैंने जोखिम उठाया है। मैं साहित्य की समृद्धि के लिए ऐसे जोखिम को आवश्यक मानता हूँ। यदि पाठक ऐसे विषयों पर लिखी कविताओं को साहित्य की समृद्धि एवं दीन-दुखियों की सेवा के लिए अपरिहार्य मानें तो मैं उन्हें भरोसा दे सकता हूँ कि इस दिशा में अभिनवपन की ख़ुराक उन्हें भविष्य में भी मिलेगी।</p>
<p>यों भी विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने लेखकों को चुनौती दे रखी है कि अब नई पीढ़ी को अद्यतन जानकारी से सहज-सरल तरीक़ों से अवगत कराओ। ग्राह्य और विषयगत बनाने की जवाबदेही लेखक बिरादरियों की है। पुरातन परम्पराएँ बदलाव के साथ अपना विकास चाहती हैं।
ISBN: 9788126725618
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Do Sharan
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

-
Description:
निराला की सम्पूर्ण गीत-रचना का एक बहुत बड़ा भाग शरणागति या प्रपत्ति-भाव के गीतों से सम्बद्ध है। भक्ति, प्रार्थना और शरणागति के गीत ‘परिमल’ संग्रह से ही हमें मिलने लगते हैं। इसकी क्षीण ध्वनि उनके पहले संग्रह ‘अनामिका’ की ‘माया’ कविता में हमें सुनाई देती है। ‘या कि ले कर सिद्धि तू आगे खड़ी, त्यागियों के त्याग की आराधना’—कहकर कवि अपनी रचनात्मकता की उस विशेष दिशा की ओर संकेतित करता है, जो आगे चलकर उसके अवसाद, उसकी उदासी, खिन्नता, मृत्यु-भय और आत्म-जर्जरता से होती हुई, अन्ततः शरणागति की प्रार्थना-भूमि पर उसे उतारती है।
‘आराधना’ और ‘अर्चना’ में उसकी संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है। अकेले ‘अर्चना’ में शरणागति के लगभग 34-35 गीत संगृहीत हैं। ‘गीत-गुंज’ और उनके अन्तिम संग्रह ‘सांध्य काकली’ में भी यह प्रार्थना-क्रम तिरोहित नहीं हुआ है। यद्यपि अपने जीवन के अन्तिम दिनों में निराला ‘प्रार्थना की व्यर्थता’ की बात भी करते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन यह उत्कट नैराश्य के क्षणों की ही अभिव्यक्ति लगती है, अन्यथा वे अपनी कारुणिक आत्म-जर्जरता में लगातार ‘प्रभु’ की अमर फ़ैंटेसी में शरण लेते हुए दिखाई देते हैं। उनके सारे संग्रहों को मिलाकर शरणागति और प्रार्थना-क्रम के इन गीतों की संख्या लगभग 90 के आस-पास पहुँचती है। इस तरह निराला के अन्तःसंगीत का एक बहुत महत्त्वपूर्ण भाग ‘प्रभु’ के इसी साक्षात्कार से सम्बद्ध है।
वरिष्ठ लेखक दूधनाथ सिंह ने निराला की प्रपत्ति भाव की कविताओं को संकलित किया है। इन कविताओं में मनुष्य की उस आत्मिक मुक्ति की जद्दोजहद को सहज ही परिलक्षित किया जा सकता है, जो दरअसल सम्पूर्ण मानवमुक्ति का एक महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य हिस्सा है।
Pratinidhi kavitayein : Badri Narayan
- Author Name:
Badri Narayan
- Book Type:

-
Description:
छोटे शहरों के रचनाकारों के बड़े केन्द्रों में उत्प्रवास और उनके मनोजगत में केन्द्र के सर्वग्रासी प्रसार और आधिपत्य के इस भयावह दौर में बद्री नारायण की कविता गुलाब के बरक्स कुकुरमुत्ते के बिम्ब को रचने वाली काव्य-परम्परा का विस्तार है। यह एक ऐसा समय है जब केन्द्र अपने अभिमत का उत्पादन ही नहीं कर रहा है, उसका प्रसार भी कर रहा है। वह कुछ हद तक अपनी मान्यताओं से अलग दिखती धारणाओं और काव्य-भंगिमाओं को भी लील जाने को आतुर है। इसलिए कोई भी अन्य काव्य-भंगिमा उसके लिए असहनीय हो गई है। वह तर्क से या कुतर्क से उसे ख़ारिज कर देने पर आमादा है। यह समय कविता-परिदृश्य के आन्तरिक जनतंत्र को बचाने के कठिन संघर्ष का समय है। बद्री की कविता वस्तुतः जनतांत्रिक समय में एक संवादी नागरिक होने की इच्छा की कविता है।
उनकी कविता भारतीय समाज के निम्नवर्ग के ऐसे मिथकों, आख्यानों और इतिहास के अलक्षित सन्दर्भों के पास जाती है जिनमें उनकी पीड़ाएँ, अवसाद और संघर्ष की अदीठ रह गई गाथाएँ छिपी हैं। बद्री की कविता में वर्चस्वशाली शक्तियों द्वारा स्वीकृति प्राप्त कर चुके प्रचलित मिथक लगभग नहीं हैं। अप्रचलित मिथकीय आख्यानों का पुनर्पाठ करने की कोशिश भी यहाँ नहीं है। इन कविताओं में तो ऐसी जातियों और मानव समूहों के अपने आख्यानों और जन-इतिहासों के चरित्र और गाथाएँ हैं जो उत्पादन की गतिविधियों से जुड़े होने के बावजूद समाज की परिधि पर नारकीय जीवन जीने को अभिशप्त हैं। बद्री की कविता उन बहुसंख्य मानव समूहों के सपनों, आकांक्षाओं, उनकी कमज़ोरियों और उनकी शक्ति का भाष्य तैयार करती है। वस्तुतः कवि का काव्य-व्यवहार ही इस कविता की राजनीति का साक्ष्य है ।
—राजेश जोशी
Tao-Te-Chhing
- Author Name:
Laotse
- Book Type:

-
Description:
‘ताओ जिसे परिभाषित किया जा सके, शाश्वत ताओ नहीं।’ यह शब्द संसार के धार्मिक साहित्य में सर्वाधिक लोकप्रिय है। ताओ-ते-छिङ के इक्यासी अध्याय ढाई हज़ार वर्ष पूर्व हमारे समीपवर्ती राष्ट्र, चीनी जनसमूह को सम्बोधित थे। ये इक्यासी अध्याय बाइबल, भागवत गीता, क़ुरान आदि की तरह बहुत-सी भाषाओं में अनूदित हुए हैं। ताओ का मार्ग हमें दिखाता है कि ब्रह्मांड और हमारे अन्तरलोक की ऊर्जाएँ परस्पर कैसे प्रतिबिम्बित होती हैं। धूलिकण के समान तुच्छ होते हुए भी हम उस विराट का भाग हैं। दर्शन के अभाव में जीवनयापन करते हुए हम स्वयं सरल मूल्यों को जटिल बनाकर जीवन-प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करते हैं।
‘ताओ-ते-छिङ’ मनुष्य की आध्यात्मिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, दैनिक-दैहिक स्थिति-परिस्थितियों का सूक्ष्म अध्ययन है। यह मनुष्य की योग्यता के उन स्तरों का आग्रह करता है जो सामान्यतः हमारे बोध का हिस्सा नहीं हैं। यह पुस्तक धार्मिक व सामाजिक कर्मकांडी विलक्षणताओं से उपजी समस्याओं के सरलीकरण की अद्भुत सूक्तियाँ उपलब्ध कराती है, साथ ही वर्तमान में पश्चिमी संस्कृति की देन तर्कमूलक चिन्तन के औचित्य को प्रश्नचिह्नित करते हुए मनुष्य के जीवन की सार्थकता का आह्वान करती है।
Khudai Mein Hinsa
- Author Name:
Badri Narayan
- Book Type:

-
Description:
छोटे शहरों के रचनाकारों के बड़े केन्द्रों में उत्प्रवास और उनके मनोजगत में केन्द्र के सर्वग्रासी प्रसार और आधिपत्य के इस भयावह दौर में बद्री नारायण की कविता गुलाब के बरक्स कुकुरमुत्ते के बिम्ब को रचनेवाली काव्य-परम्परा का विस्तार है। यह एक ऐसा समय है जब केन्द्र अपने अभिमत का उत्पादन ही नहीं कर रहा है, उसका प्रसार भी कर रहा है। वह कुछ हद तक अपनी मान्यताओं से अलग दिखती धारणाओं और काव्य-भंगिमाओं को भी लील जाने को आतुर है। इसलिए कोई भी अन्य काव्य-भंगिमा उसके लिए असहनीय हो गई है। वह तर्क से या कुतर्क से उसे ख़ारिज कर देने पर आमादा है। यह समय कविता-परिदृश्य के आन्तरिक जनतंत्र को बचाने के कठिन संघर्ष का समय है। बद्री नारायण की कविता वस्तुतः जनतांत्रिक समय में एक संवादी नागरिक होने की इच्छा की कविता है। वह सीमान्त पर खड़े समुद्र से बात करने की इच्छा और कोशिश की कविता है। वह अपेक्षाओं और उसकी सीमा को जानती है। उसमें सपनों और आकांक्षाओं के पूरा न हो पाने की उदासी है लेकिन यह कविता अपने को उस कवि की वंश परम्परा से जोड़ना चाहती है जिसका गीत मछुआरों की बस्ती के बाहर गोल बनाकर बैठी स्त्रियाँ गाती हैं।
बद्री नारायण की कविता भारतीय समाज के निम्न वर्ग के ऐसे मिथकों, आख्यानों और इतिहास के अलक्षित सन्दर्भों के पास जाती है जिनमें उनकी पीड़ाएँ, अवसाद और संघर्ष की अदीठ रह गई गाथाएँ छिपी हैं। बद्री नारायण की कविता में वर्चस्वशाली शक्तियों द्वारा स्वीकृति प्राप्त कर चुके प्रचलित मिथक लगभग नहीं हैं। अप्रचलित मिथकीय आख्यानों का पुनर्पाठ करने की कोशिश भी यहाँ नहीं है। इन कविताओं में तो ऐसी जातियों और मानव-समूहों के अपने आख्यानों और जन-इतिहासों के चरित्र और गाथाएँ हैं जो उत्पादन की गतिविधियों से जुड़े होने के बावजूद समाज की परिधि पर नारकीय जीवन जीने को अभिशप्त हैं। बद्री नारायण की कविता उन बहुसंख्य मानव समूहों के सपनों, आकांक्षाओं, उनकी कमज़ोरियों और उनकी शक्ति का भाष्य तैयार करती है। वस्तुतः कवि का काव्य-व्यवहार ही इस कविता की राजनीति का साक्ष्य है।
ये कविताएँ, कहा जा सकता है कि हमारे समाज के बहुजन की थेरी गाथाएँ हैं।
Padmavaat : Mool Evam Sanjeev Vyakhya
- Author Name:
Malik Mohd. Jayasi
- Book Type:

- Description: भारत के प्रसिद्ध विद्वान और इतिहासकार डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल की यह केवल संजीवनी व्याख्या टीका ही नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति के विकास का इतिहास भी है। अनेक शब्दों की इतनी मार्मिक व्याख्या की गई है कि उनके द्वारा नए सांस्कृतिक सन्दर्भ और प्रसंग व्याख्यायित होते हैं। किसी भी मध्यकालीन ग्रन्थ की ऐसी टीका हिन्दी में नहीं है। इस पुस्तक के द्वारा न केवल जायसी को बल्कि पूरे मध्यकालीन सूफ़ी काव्य को गहराई से समझा जा सकता है।
Pratinidhi Kavitayein : Gagan Gill
- Author Name:
Gagan Gill
- Book Type:

- Description: गगन गिल की कविताओं की एक यात्रा स्पष्ट दिखाई देती है—बाहर से भीतर की ओर की। ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ शीर्षक उनका संग्रह अपने समय की एक घटना थी। हिन्दी के कविता-संसार ने उसे ख़ूब ही उत्साह से ग्रहण किया था। इस संग्रह की कविताओं ने भीतर से उदास लेकिन फिर भी संसार में अपनी जगह को लेकर पर्याप्त सजग एक लड़की की छवि को प्रकाशित किया। भीतर की वह उदासी, अकेलापन, अपने ‘होने’ और अपने एक ‘स्त्री होने’ का वह अहसास जैसे बड़ा होता गया; संसार का बाहरी शोर और दिल की थपक-थपक जैसे आमने-सामने खड़ी इकाइयाँ हो गईं। इस दौर में उन्होंने जो लिखा वह सृष्टि के पवित्रतम की खोज थी, जो मनुष्य के आत्म की कंदराओं में स्थित होता है। आकांक्षाओं से मुक्त, अपने होने की कील से बिंधा हुआ, सम्पूर्ण और व्यथित। इस चयन में उनकी पूरी चेतना-यात्रा को सुविचारित ढंग से सँजोया गया है—‘मैं जब तक आई बाहर’ संग्रह तक, जिसमें पीड़ा का संचार भीतर और बाहर दोनों तरफ़ होता है। देश और काल की पौरुषपूर्ण व्यवस्था के बीच स्त्री की सूक्ष्म असहमति और अपने दुःख को देखने का साक्षी भाव उनके संवेदनशील और सटीक शब्द-संयोजन में एक अविस्मरणीय अनुभव की तरह अंकित होता है।
Mera Dawa Hai
- Author Name:
Sudha Om Dhingra
- Book Type:

- Description: Book
Patthar par Buvai
- Author Name:
Vijay Singh Chauhan
- Book Type:

- Description: विजय सिंह चौहान द्वारा लिखित एक आकर्षक हिंदी कविता संग्रह 'पत्थर पर बुकाई' के गहन छंदों में डूब जाएँ। यह विचारपूर्ण संकलन हिंदी छंदों के माध्यम से गहरी भावनाओं और दार्शनिक चिंतन की खोज करता है। पुस्तक के कवर पर काई से ढके पत्थर की संरचना का एक कलात्मक जल रंग चित्रण है, जो प्रतीकात्मक रूप से कच्चे, प्राकृतिक तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है जो अक्सर काव्यात्मक अभिव्यक्ति को प्रेरित करते हैं। कविता के शौकीनों और हिंदी साहित्य के प्रेमियों के लिए बिल्कुल सही, यह संग्रह समकालीन हिंदी कविता के लेंस के माध्यम से जीवन की जटिलताओं पर एक अनूठा दृष्टिकोण प्रदान करता है। सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति इसे किसी भी साहित्यिक संग्रह के लिए एक उत्कृष्ट जोड़ या हिंदी छंद की गहराई और सुंदरता की सराहना करने वालों के लिए एक सार्थक उपहार बनाती है।
Prem Mein Ped Hona
- Author Name:
Jacinta Kerketta
- Book Type:

-
Description:
जसिंता केरकेट्टा की ये कविताएँ, जैसा कि स्वाभाविक है, उस प्रेम की कविताएँ नहीं हैं, जो केवल दो व्यक्तियों के बीच होता है, ये कविताएँ उस प्रेम पर केन्द्रित हैं जिससे समग्र सृष्टि को संबल मिलता है। वह प्रेम जो मनुष्य का प्रकृति से है, वह प्रेम जो प्रकृति बिना किसी प्रतिसाद की कामना के समूची मानवता को देती है! ये कविताएँ उस क्षुद्रता को भी सम्बोधित हैं, जिसका प्रदर्शन हम प्रकृति के उस प्रेम का अन्यायपूर्ण बँटवारा करके करते हैं।
जसिंता ने बहैसियत कवि और बहैसियत व्यक्ति इस प्रेम के वैभव को बहुत नज़दीक से देखा और आत्मसात किया है; इसी प्रेम के चलते उन्होंने आदिवासी जन की पीड़ा और प्रकृति के आर्तनाद को अपनी कविता में लगातार जगह दी है। प्रेम क्यों नहीं बहुतों से हो सकता है? बहुत सारे लोगों, बहुत सारे बच्चों, स्त्रियों, पेड़-पौधों, नदी, झरनों, पहाड़ों और पूरी धरती से? वे सही ही पूछती हैं।
इस संग्रह में निसन्देह कुछ कविताओं में हमें वह प्रेम भी मिलता है; जो दो व्यक्तियों के बीच होता है। लेकिन इसे भी देखने का उनका नज़रिया वही नहीं है, जो सबके लिए सामान्य है। इसीलिए वे ये पंक्तियाँ लिख पाती हैं : प्रेम में आदमी/क्यों एक हो जाना चाहता है?/अपनी भिन्नता के साथ/क्यों दो नहीं रह पाता?—और इस प्रश्न का समाहार वे वर्तमान के एक बड़े फलक पर ले जाकर करती हैं : इधर देश के प्रेम में कुछ लोग/सबको ‘एक’ कर देना चाहते हैं/जो ‘एक’ न हो पाए, वे मारे जाते हैं।
प्रेम का अर्थ ‘क़ब्ज़ा’ नहीं होता/न किसी की देह, न ख़ुशियों, न सपनों पर—इन पंक्तियों को हम इस कविता-संग्रह का एकाग्र मंतव्य कह सकते हैं, जिसका विस्तार एक व्यक्ति से लेकर प्रकृति के विराट तक है।
Awaz-Beawaz
- Author Name:
Ashok Kumar Pandey
- Book Type:

- Description: ‘आवाज़-बेआवाज़’ की कविताएँ मानवीय और राजनीतिक सरोकारों का एक विशाल वितान रचती हैं। ये एक ऐसे हस्सास मन का प्रतिबिम्ब हैं, जिसकी चिन्ताएँ अपने अध्ययन-कक्ष से लेकर संसार के हर उस कोने तक व्यापती हैं जहाँ मनुष्यता संकट में है, जहाँ सर्वसत्तावादी राजनीति मानव-जीवन को अपना चारा बनाने को उद्यत है। ये एक चिन्तनशील और सजग मस्तिष्क के वे हार्दिक उद्गार हैं जो केवल कविता में ही व्यक्त हो सकते थे। कश्मीर से लेकर फ़लस्तीन और प्रेम की सान्द्र अनुभूतियों से लेकर व्यक्ति के तीक्ष्ण व्यर्थताबोध तक ये कविताएँ अपने सघन शिल्प में एक लम्बी सड़क बनाती हैं जिस पर आप वर्तमान समय की वास्तविकताओं के एक बहुरूपदर्शी सफ़र पर निकलते हैं। राजनीति की मौजूदा भंगिमाओं को ये कविताएँ अकसर ही अचूक ढंग से निडरतापूर्वक रेखांकित करती हैं, और उनके फलितार्थों के प्रति हमें आगाह करती हैं। ‘आवाज़ें पहले से रिकॉर्ड हैं’—यह एक वाक्य ही हमारे इस काल की सर्वाधिक भयावह परिस्थिति को समझने के लिए पर्याप्त है, जहाँ वे तमाम चीज़ें जिनसे जनतंत्र को उम्मीद थी, भीतर से ख़ाली हो गई प्रतीत होती हैं। इन कविताओं के असंख्य बिम्ब और उनका आन्तरिक तनाव देर तक आपके साथ रहता है।
Sandhya Kakli
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

-
Description:
निराला की ये अन्तिम कविताएँ अनेक दृष्टियों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। उनके विचारों, आस्थाओं ही के सम्बन्ध में नहीं, उनके मानसिक असन्तुलन की उग्रता के सम्बन्ध में भी लोगों में बड़ा मतभेद है। उनकी इन अन्तिम कविताओं से इन विवादग्रस्त विषयों पर विचार करने में सहायता मिलेगी।
निराला जी के असंख्य भक्तों, प्रशंसकों, उनकी कविता के अगणित प्रेमियों को यह जानने की उत्सुकता होगी कि उनकी अन्तिम कविताएँ कौन-सी हैं और कैसी हैं। यह ‘संग्रह' उनके कुतूहल को भी शान्त कर सकेगा।
Mrityu Se Agey
- Author Name:
Rajneesh
- Book Type:

- Description: राजशाही के भ्रष्टाचार, कर्तव्यों के निर्वहन में उसकी विफलता, बढ़ती वासना से उत्पन्न नारी असुरक्षा, सामान्य व्यक्ति का जीवन संघर्ष, भगवान के प्रति उसकी आस्था और निराशा की उथल पुथल के बीच जीवन का यथार्थ खोजती कविताओं का संग्रह है "मृत्यु से आगे" मानव जीवन की संवेदनाओं एवं सामाजिक बदलाव को गहराई से समझने वाले कवि रजनीश के लिए कवितायें मात्र काल्पनिक दस्तावेज़ नही अपितु काव्यात्मकता एक बोध है जो ना केवल मानव की सोच बल्कि उसकी आत्मा को भी प्रभावित करता है I
Bhramargeet Saar
- Author Name:
Acharya Ramchandra Shukla
- Book Type:

-
Description:
सूर के कृष्ण-प्रेम तथा भक्ति के सागर ‘सूरसागर’ का सबसे मूल्यवान मोती है ‘भ्रमरगीत’ जिसमें सूरदास के हृदय से निकली अपूर्व रसधारा बही है। ‘भ्रमरगीत सार’ के संकलन-सम्पादन का कार्य आचार्य शुक्ल ने 1920 में शुरू किया था, लेकिन ठीक से पूरा होने में इसे कुछ समय लगा। लगभग चार सौ पदों के इस संचयन में उस समय कुछ पुनरुक्ति दोष भी रह गया था जिसे पुस्तक की लोकप्रियता और लगातार बढ़ती माँग के चलते, ठीक करने का समय आचार्य नहीं जुटा पाए थे।
प्रस्तुत संस्करण वरिष्ठ आलोचक और आचार्य शुक्ल के समीप रहे विश्वनाथ प्रसाद मिश्र द्वारा सम्पादित है। सो इसमें नए पाठकों की सुविधा के लिए कुछ और टिप्पणियाँ भी जोड़ दी गई हैं, जिन्हें हम ‘चूर्णिका’ शीर्षक से पुस्तक के अन्त में पाएँगे।
आचार्य शुक्ल के शब्दों में सूरदास का प्रेम-पथ ‘लोक से न्यारा’ है। गोपियों के प्रेम-भाव की गम्भीरता उद्धव के ज्ञान-गर्व को मिटाती हुई दिखाई पड़ती है। वह भक्ति की एकान्त साधना का आदर्श प्रतिष्ठित करती जान पड़ती है, लोकधर्म के किसी अंग का नहीं। सूरदास सच्चे प्रेम-मार्ग के त्याग और पवित्रता को ज्ञान-मार्ग के त्याग और पवित्रता के समकक्ष खड़ा करने में सफल रहे हैं। साथ ही, उन्होंने उस त्याग को रागात्मिका वृत्ति द्वारा प्रेरित दिखाकर भक्ति या प्रेम-मार्ग की सुगमता भी प्रतिपादित की है।
पदों के प्रामाणिक पाठ के साथ आचार्य शुक्ल की सुदीर्घ व्याख्या इस पुस्तक को सूर के प्रेम-पक्ष की मूल्यवान विवेचना का रूप देती है, जो मध्यकालीन काव्य, विशेषकर भक्तिधारा के अध्येताओं के साथ ही भाव-प्रेमी पाठकों के लिए भी आनन्द का स्रोत सिद्ध होती है।
YOON DARD KA AHSAS HOTA HAI
- Author Name:
Dr. Sanjeev Kumar Verma
- Book Type:

- Description: collection of ghazals
Dinkar Ki Sooktiyan
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
सूक्तियों की भूमिका अक्सर प्रेरक होती है। वे हमारी संवेदना और विचारों को स्पर्श कर परिष्कृत करने का काम करती हैं। वे किसी भी भाषा में लिखी गई हों, बोलचाल में इस तरह घुलमिल जाती हैं कि उद्देश्य हो या उपदेश उसकी पूर्व पीठिका की तैयारी में सहज ही उदाहरण बन व्यक्त हो जाती हैं, और बात की प्रामाणिकता तनिक बढ़ जाती है।
सूक्ति-संग्रह का रिवाज उर्दू में रहा है, मगर हिन्दी में यह यदा-कदा ही देखने को मिलता है। संस्कृत में भी एक समय सुभाषित-संचय की प्रथा ख़ूब बढ़ी थी। ऐसे शब्द-समूह, वाक्य या अनुच्छेदों को सुभाषित कहते हैं जिसमें कोई बात सुन्दर ढंग से या बुद्धिमत्तापूर्ण तरीक़े से कही गई हो। शायद इसी से प्रेरित हो कभी दिनकर जी ने भी कई सुभाषित रचे थे जो उनके ‘नये सुभाषित’ संग्रह में शामिल हैं। और दिनकर जी की मानें तो ‘वर्तमान संग्रह में नए सुभाषित से एक पंक्ति भी नहीं ली गई है। इस संग्रह की सभी सूक्तियाँ मेरे नाना काव्य-संग्रहों में से चुनी गई हैं।’ निस्सन्देह, ‘दिनकर की सूक्तियाँ’ एक राष्ट्रकवि की एक ऐसी कृति है जो विचारोत्तेजक और मार्गदर्शक तो है ही, प्रखर चिन्तन और मानवतावादी दर्शन का एक अनुपम संग्रह भी है।
Yun To Sab Kuchh Purvavat Hai
- Author Name:
Hema Dikshit
- Book Type:

-
Description:
हेमा दीक्षित ने कठिन काव्य-क्षेत्र में एक सहमा विकम्पित-सा क़दम रखा है। लेकिन जल्दी ही यह साफ़ हो जाता है कि जीवन-संघर्ष में वह कविता को अपना सम्बल और लड़ने का आयुध बनाना चाहती हैं। यह आग्रह उन्हें काव्य व्यक्तित्व देता है और उनके उपक्रम को जेनुइन बनाता है। कविता की अपनी पहली किताब में वह अपने स्वत्व और उसे कह पाने वाली भाषा के आविष्कार में सन्नद्ध दिखती हैं। काव्यशास्त्र में कविता के प्रयोजन के बारे में प्रायः पूछा जाता है कि कविता लिखने का उद्देश्य क्या है? हेमा के लिए इसका उत्तर यह है कि वह अपनी विकलताओं को कविता में लाना चाहती हैं। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जीवन की निजता को कविता में लाते हुए वह बहुत नैसर्गिक तरीक़े से निर्वैयक्तिकता को कविता में अनुस्यूत होने देती हैं। इस तरह निजी दुख सार्वजनीन दुख का प्रतिनिधि बन जाता है, अपना सन्ताप दुनिया का सन्ताप और न्याय को न पाने की निजी त्रासदी तमाम लोगों के न्याय को न पाने की अवस्थिति में बदल जाती है। इस तरह आत्म-सजगता के बावजूद आत्म-गरिमा का क्षरण नहीं होता जो आत्म-विस्तार में बदलकर किसी भी आत्म-ग्रस्तता का निषेध बन जाता है। उनकी कविता का पाठ किसी साँचे में ढले ऐस्थेटिक्स से न तो अनुकूलित है और न उसमें विद्रोह की कोई चौंकाने वाली अनावश्यक भंगिमा ही है। ऐसा भी नहीं कि उनकी सहज साहसिकता कविताओं में अव्यक्त रह जाए। अन्तर्वस्तु को न खोने का हठ यदि कविता का आत्मिक गुण माना जाता हो तो हेमा की कविता में उसकी ख़ला नहीं।
—देवी प्रसाद मिश्र
Awaaz Mein Jhar KAR
- Author Name:
Prakash
- Book Type:

-
Description:
“प्रकाश एक युवा-कवि आलोचक थे जिन्होंने इस कविता-संग्रह की पाण्डुलिपि स्वयं तैयार की थी और उसे प्रकाशित करने की चेष्टा कर रहे थे। दुर्भाग्य से उन्होंने जनवरी 2016 में आत्महत्या कर ली। यह मरणोपरान्त प्रकाशन इस बात का साक्ष्य है कि प्रकाश एक भाषा-सजग, शिल्प-निपुण कवि थे जिनके लिए भाषा स्वयं खोजने-पाने का एक अनुभव थी, निरा माध्यम भर नहीं। उसमें सूक्ष्म संवेदना है जो आजकल की अधिकतर युवा कविता की तरह सामान्यीकृत अनुभवों से काम नहीं चलाती बल्कि उसे संवेदना को ऐसे अनेक बिम्बों और छवियों से चरितार्थ करती है जो प्राय: परिणति में नहीं प्रक्रिया में होती
है : उसे कहीं पहुँचने की जल्दी नहीं होती और वह धीरज से रास्ता खोजती, तय करती या ज़रूरी लगे तो उसमें भटकती है। मर्म, दृष्टि और ब्योरों के बीच प्रकाश के यहाँ दूरी नहीं है, न ही अलगाव। वे दरअसल उन सभी के बीच गहरे लगाव के शिल्पकार थे। उनका यह दूसरा संग्रह प्रकाशित हो रहा है जिसे इस पुस्तक माला में स्थान देकर हमें सन्तोष है कि एक अच्छे युवा कवि की कुल रचनाएँ हमें सामने लाने का सुयोग मिल रहा है।”—अशोक वाजपेयी
—‘आमुख’ से
Pushpanjali
- Author Name:
Arunima Sharma
- Book Type:

- Description: "साधारण भाषा में कहें तो पाँच वि, यानी विरह, विछोह, विराग, विद्रोह या वियोगावस्था में मन की भावनाएँ जब लयबद्ध होकर प्रस्फुटित होती हैं तो कविता अवतरित होती है। प्रतिदिन के ऊहापोह वाली दिनचर्या में मुझे इतनी फुरसत तो नहीं मिलती कि मैं कुछ लिखूँ या पढ़ूँ, पर जब भी ज्यादा एकाकीपन महसूस होता है या मन खुश होता है तो उन भावनाओं को मैं अवश्य ही शब्दों का जामा पहना देती हूँ। तब ‘वक्त के आईने में जिंदगी’, ‘कौन आया था’, ‘आत्मचिंतन’ जैसी गूढ़ एवं दार्शनिकता से भरी कविताओं की रचना होती है। मेरी कुछ कविताएँ, जैसे ‘पेड़ लगाओ, शहर बचाओ’, ‘पनिहारिन’, ‘छात्र या बेटियाँ’ किसी के आग्रह पर लिखी गई हैं। इसी तरह ‘गरमी का मौसम’, ‘समय’, ‘कुछ लिखने को है’, ‘घना कोहरा’, ‘तुम आ जाओ’, ‘फेसबुक’, ‘कश्मीर’, ‘वक्त नहीं है’, ‘सहयात्री एवं झाँसी की रानी’ इत्यादि की रचना भी परिस्थितिजन्य हुई है। ‘गंगा’ तो गंगा की उद्दाम और शांत लहरों को देखकर लिखी गई है। यह छोटी सी भूमिका है मेरी पुष्पांजलि की विभिन्न कडि़यों की, लेकिन मेरी अपने सुधी पाठकों से विनम्र आग्रह है कि वे मेरे एक-एक पुष्प के मकरंद का रसास्वादन यह जानते हुए करें कि लेखिका न तो साहित्य की प्राध्यापिका है और न ही उसमें पी-एच.डी.। मैं मूलतः विज्ञान की छात्रा रही हूँ, लेकिन कला एवं साहित्य से अपने विशेष जुड़ाव को छिपा भी नहीं पाती हूँ। —अरुणिमा शर्मा
Mitti Ka Chand
- Author Name:
Dr.Abrar Multani
- Rating:
- Book Type:

- Description: क्या अन्याय तब शुरू हुआ होगा जब मनुष्यों ने अपना घर बनाने के लिए किया होगा गुफ़ाओं पर अतिक्रमण या फिर शुरू हुआ होगा तब जब उसने घर बनाने के लिए काटे होंगे पेड़ क्या अन्याय तब शुरू हुआ होगा जब मनुष्यों ने बाँटे होंगे स्त्री-पुरुष के काम या फिर शुरू हुआ होगा तब जब उसने खुद को शासक और शासित में बाँटा होगा क्या अन्याय तब शुरू हुआ होगा जब जनता को अपना शासक चुनने का मौक़ा मिला या फिर शुरू हुआ होगा तब जब शासक अपनी जनता चुनने लगे
Dil Duniya Dastoor
- Author Name:
Rajan Verma
- Book Type:

- Description: दिल दुनिया दस्तूर छोटी कविताओं का एक संग्रह है जो एक ऐसे व्यक्ति के दिन-प्रतिदिन के जीवन से प्राप्त होता है, जिसने दिल टूटने, अस्वीकृति और एकाकीपन को देखा है फिर भी उसे प्यार मिला है। यह पुस्तक एक ऐसे व्यक्ति की जीवन यात्रा का प्रदर्शन है जो कई वर्षों से कॉर्पोरेट जीवन से जूझने के संघर्ष के समानांतर वह जीवन जीने की कोशिश कर रहा है जो वह हमेशा चाहता था, अपनी कविताओं के माध्यम से। वह मानव जीवन के मूल तत्वों पर सवाल उठाते हैं – प्यार, दिल टूटना, एकांत तथा एक व्यस्त कामकाजी किंतु यांत्रिक जीवन के रहते भी कहीं खोया एक अकेला व्यक्ति। यह संस्करण एक प्रयास है पाठकों के बीच आत्म-प्रतिबिंब की चिंगारी जलाने में, आधुनिक जीवन की अनियमितताओं से जूझने में और उम्मीद है मददगार होगा समाज के ऐसे मानदंडों से निपटने में जो अक्सर नकली, समझौता न करने वाले, दोहरे मानकों से लिप्त और मजबूर करने वाले होते हैं।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...