ANDHERE SE ADAWAT
Author:
Deepak KumarPublisher:
Antika Prakashan Pvt. Ltd.Language:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 246
₹
300
Available
Poems
ISBN: 9789385013928
Pages: 112
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Sonasha
- Author Name:
Bittu Sandhu
- Book Type:

-
Description:
ये ज़िन्दगी!
सिर्फ़ एक कहानी कहाँ है?
हादसों की, मुस्कुराहटों की,
कितनी शाखाएँ हैं...
कितने खुले और बन्द दरवाज़े हैं
कुछ भूले बिसरे से, पुराने मखमल में लिपटे,
उम्रों से बन्द पड़े, दराज़ों में मिले गहने हैं।
ये कभी-कभी कुछ ख़ुशबुएँ भी हैं,
जो जाने कौन-सी दिशा से किस सरहद के पार,
किस ज़हन में घुलीं, एक बेपरवाह बादल पर सवार हम तक पहुँच जाती हैं।
सिर्फ़ एक कहानी कहाँ है?
ये लम्हों की झालर है और इस बार
बिट्टु सफ़ीना संधू की इस झालर को नाम मिला है—‘सोनाशा’।
सोनाशा एक अहसास है ज़रा धीमे
ये उतरना इसके पन्नों की दहलीज़ पर
सोनाशा मुस्कुराहट तो ओढ़ती है
ज़रा सा कुरेदो तो ख़ामोश कुछ चीख़ें भी हैं
जो रूह की गुफा से ज़ुबान तक का सफ़र
तय नहीं कर पाती आँखों में तैर ज़रूर जाती है
कुछ अहसास हैं जो मुहब्बत को इश्क़ और इश्क़
को ख़ुदा बना देने का जिगर रखते हैं पर क्या हो
जब कोई ख़ुदा बनने से डर जाये?
जहाँ ख़ुदा से सजदा भी है, शिकवा भी है
सब कुछ समेट कर कुछ कविताएँ हैं
ये बिट्टु सफ़ीना संधू से जन्मी है भी और नहीं भी...क्योंकि अब जो इसे पाल पोसकर बड़ा किया है, क्या पता कौन सी ‘सोनाशा’ आप में से किस में समा जाए।
—बलप्रीत
Pratinidhi Kavitayen : Jaishankar Prasad
- Author Name:
Jaishankar Prasad
- Book Type:

-
Description:
प्रसाद का कवि-कर्म 'आन्तर हेतु' की ओर अग्रसर होता है, क्योंकि वे मूलत: सूक्ष्म अनुभूतियों के कवि हैं। इनकी अभिव्यक्ति के लिए वे रूप, रस, स्पर्श, शब्द और गंध को पकड़ते हैं—कहीं एक की प्रमुखता है तो कहीं सभी का रासायनिक घोल। ...वे अनेक विधियों से संवेगों को आहूत करते हैं। ...प्रसाद ने करुणा का आह्वान अनेक स्थलों पर किया है। मूल्य रूप में इसकी महत्ता को आज भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता। बल्कि आज तो इसकी आवश्यकता और बढ़ गई है। ...'ले चल मुझे भुलावा देकर' में पलायन का मूड है तो 'अपलक जागती हो एक रात' में रहस्य का। किन्तु इन क्षणों को प्रसाद की मूल चेतना नहीं कहा जा सकता। वे समग्रत: जागरण के कवि हैं और उनकी प्रतिनिधि कविता है—'बीती विभावरी जाग री।'
इस संग्रह में प्रसाद की उपरिवर्णित कविताओं के साथ 'लहर' से कुछ और कविताएँ, तथा इसके अलावा 'राज्यश्री', 'अजातशत्रु', 'स्कन्दगुप्त', 'चन्द्रगुप्त' व 'ध्रुवस्वामिनी' नाटकों में प्रयुक्त कविताओं को भी संकलित किया गया है।
Bakhtiyarpur
- Author Name:
Vinay Saurabh
- Book Type:

-
Description:
कुछ चीज़ें होती हैं जो हम से छूट जाती हैं, कभी हमारे हाथ से फिसल जाती हैं, कभी उन्हें हमसे छीन लिया जाता है; कुछ चीज़ें होती हैं जो हमारे पास रह जाती हैं और छूटी हुई, जा चुकी चीज़ों, लोगों, जगहों की याद हमें दिलाती रहती हैं। कुछ सपने होते हैं हमारे, कुछ इच्छाएँ होती हैं, कुछ नहीं किए जा सके काम होते हैं, जो हमें अकसर बुलाते रहते हैं। प्रेम होता है, जिसके दोनों तरफ़ पीड़ा होती है—पा लेने की अपनी, न पाने की अपनी।
ऐसी ही चीज़ों से हम बनते हैं, हमारी दुनिया बनती है। विनय सौरभ का कवि जैसे इस दुनिया की हर खुली-अधखुली खिड़की में झाँकता-देखता फिरता रहता है। हर किसी के अनुभवों का उदास-सा विस्तार मालूम होतीं इस संग्रह की कविताएँ जीवन के अधूरेपन की तरफ़ इतने अनायास ढंग से इशारा करती हैं कि हम अपनी तथाकथित पूर्णताओं को लेकर सन्देह से भर उठते हैं।
स्मृतियों, विडम्बनाओं और मध्यवर्गीय जीवन की साँवली उदासियों में अपनी कविता को आकार देनेवाले विनय सौरभ के इस संग्रह में वे कविताएँ भी हैं जो राजनीति, सत्ता और बाजार की आक्रामकताओं की आलोचना करती हैं; और उनके जादू को समझने, उनके तिलिस्म को तोड़ने की कोशिश भी करती हैं।
कविता-प्रेमी पाठक को इस किताब में ऐसे अनेक स्थल मिलते हैं जहाँ वह ठहरकर अपने आप और अपनी दुनिया को दुबारा से देखना चाहता है।
Ishwar Aur Bazar
- Author Name:
Jacinta Kerketta
- Book Type:

-
Description:
आदिवासी जन-जीवन पर मँडराते सभ्यता-प्रेषित ख़तरों को पहचानना, सीधे-सरल ढंग से उन्हें शब्दों में अंकित करना और नागर केन्द्रों से जंगलों-पहाड़ों की तरफ़ बढ़ते विकास की आक्रामक मुद्राओं का सशक्त प्रतिवाद गढ़ना जसिंता केरकेट्टा की कविताओं की विशेषताएँ रही हैं। उनकी कविताएँ अपनी सहज और संवादपरक मुद्रा में आदिवासी समाज की पीड़ाओं को समग्रता के साथ हम तक पहुँचाती रही हैं।
इन कविताओं में उनके इस मूल स्वर के साथ कुछ और भी जुड़ा है। संग्रह में संकलित कई कविताएँ ऐसी हैं जो शोषण के चालाक षड्यंत्रों में ईश्वर की अवधारणा और असहाय जन-मानस में उसके भय की भूमिका को चीन्हती हैं। भीतर और बाहर की कई जकड़नों में धर्म, ईश्वर और आस्था ने जिस तरह मनुष्य-विरोधी ताक़त के रूप में काम किया है, वह बृहत् भारतीय समाज की विडम्बना है; लेकिन आदिवासी साधनहीनता पर उनका प्रभाव और भी घातक होता है। ‘मज़दूर जब अपने अधिकार के लिए उठे/तो कुछ ईश्वर भक्तों ने उनसे/हाथ जोड़कर प्रार्थना करने को कहा।’ और ‘धीरे-धीरे हर हिंसा हमारे लिए/ईश्वर द्वारा ली जा रही परीक्षा बन गई।’ इस विडम्बना को ये कविताएँ हर संभव कोण से पकड़ने का प्रयास करती हैं।
आधुनिक शहरी सभ्यता के सम्पर्क से आदिवासी जीवन शैली में दिखाई देनेवाली विरूपताओं की तरफ़ भी जसिंता की नज़र गई है जिससे पता चलता है कि विकास का हमला सिर्फ़ जंगल के संसाधनों और वहाँ के निवासियों के दोहन तक ही सीमित नहीं है, वह उनके सांस्कृतिक बोध को भी विकृत कर रहा है।
जल, जंगल और आदिवासी जीवन से बाहर देश के सामान्य हालात भी इस संग्रह की कविताओं में जगह-जगह झाँकते दिखाई देते हैं। सत्ता का तानाशाही मिज़ाज हो या अपने ही देश की सैनिक ताक़त को अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति, कुछ भी कवि की निगाह से नहीं चूकता। यह संकलन निश्चय ही जसिंता की रचना-यात्रा का अगला चरण है।
Kavita Laut Padi
- Author Name:
Kailash Gautam
- Book Type:

-
Description:
कैलाश गौतम एकदम नए ढंग की भाषा लेकर आए हैं। ऐसी भाषा हिन्दी के इस दौर में कहीं नहीं दिखती। धूमिल के पास भी ऐसी भाषा नहीं थी।
—नामवर सिंह
कैलाश गौतम की कहानियों का प्रशंसक रहा हूँ। इनकी अनेक रचनाओं का लोकधर्मी रंग और ग्राम्य संस्कृति का टटकापन इन्हें एक ऐसी भंगिमा देता है, जो आसानी से इस विधा के दूसरे रचनाकारों में नहीं मिलती?
—श्रीलाल शुक्ल
कैलाश गौतम जैसे प्रथम कोटि के गीतकार निर्भय होकर अपने जीवन परिवेश, पारिवारिकता सबको अपने काव्य में मूर्त करने में लगे हैं। कैलाश गौतम जैसे वास्तविक कवि अपनी संस्कृति से एक क्षण को भी पृथक् नहीं होते। जयदेव, विद्यापति, निराला के बाद ये कविताएँ ऐसी रचनात्मक बयार हैं, जिनका स्वागत किया ही जाना चाहिए।
—श्रीनरेश मेहता
कैलाश गौतम की रचनाओं का रंग बिलकुल अनोखा है, कितनी सादगी से तन-मन की बारीक संवेदनाओं को उकेर देते हैं। इतनी मीठी पारदर्शी संवेदनाएँ ऐसी सौन्दर्य चेतना जाने क्या-क्या लौटा जाती हैं, वह सब जो तीस-पैंतीस बरस से हिन्दी कविता में खोया हुआ था।
—धर्मवीर भारती
कैलाश गौतम जमात से बाहर के कवि हैं। इनकी कविताओं में ताज़गी है, उबाऊपन नहीं। वे लोकमन के कवि हैं।
—दूधनाथ सिंह
Mrityu Se Agey
- Author Name:
Rajneesh
- Book Type:

- Description: राजशाही के भ्रष्टाचार, कर्तव्यों के निर्वहन में उसकी विफलता, बढ़ती वासना से उत्पन्न नारी असुरक्षा, सामान्य व्यक्ति का जीवन संघर्ष, भगवान के प्रति उसकी आस्था और निराशा की उथल पुथल के बीच जीवन का यथार्थ खोजती कविताओं का संग्रह है "मृत्यु से आगे" मानव जीवन की संवेदनाओं एवं सामाजिक बदलाव को गहराई से समझने वाले कवि रजनीश के लिए कवितायें मात्र काल्पनिक दस्तावेज़ नही अपितु काव्यात्मकता एक बोध है जो ना केवल मानव की सोच बल्कि उसकी आत्मा को भी प्रभावित करता है I
Main Ek Pheriwala
- Author Name:
Rahi Masoom Raza
- Book Type:

- Description: राही मासूम रज़ा मूलतः कवि हैं और उनकी आन्तरिक अनुभूतियों को कविताओं में ही तीव्रतम अभिव्यक्ति मिली है। ‘मैं एक फेरीवाला’ की कविताओं में ज़िन्दगी की कटुताओं से जूझने की ज़िद है और उसी ज़िन्दगी को गरम-गरम पीने की प्यास भी! संग्रह में लगभग 18 वर्षों के लम्बे अन्तराल में लिखी गई कविताएँ संगृहीत हैं। ‘मैं एक फेरीवाला’ की कविताएँ ‘हिज्र’, ‘प्यास’ और ‘तनहाई’ की कविताएँ है। स्वयं कवि के शब्दों में, “मेरी शायरी की बुनियादी लय उदासी की है। यह उदासी हमारे युग की सबसे बड़ी और जीवित वास्तविकता है।” इन भावनाओं को विभिन्न कविताओं में प्रतिबिम्वित होते देखा जा सकता है। इतनी लम्बी अवधि की कविताओं का संग्रह होने की वजह से काव्यरूप और विषयवस्तु के स्तर पर इसमें बड़ा वैविध्य है। रूमानियत से भरपूर गीतों से लेकर एक सामान्य आदमी की लाचारी और आकांक्षा का चित्रण करनेवाली छोटी-छोटी कविताएँ भी इस संग्रह में मिलेंगी । यह संग्रह राही मासूम रज़ा के कवि-व्यक्तित्व का वैविध्य पाठकों के सामने प्रस्तुत करता है ।
Bagh Upaakhyaan
- Author Name:
Gayatribala Panda
- Book Type:

-
Description:
बाघ को नहीं मालूम/इनसानों की दुनिया में/उसे लेकर कितनी घटनाएँ घटित होती हैं। कितनी कहानियाँ, कितनी किंवदंतियाँ/कितनी कल्पनाएँ...।
‘बाघ उपाख्यान’ शीर्षक के तहत ये पचपन कविताएँ सिर्फ़ बाघ की नहीं मनुष्यों के भीतर और उसके समाज में मौजूद बाघ-पन की कविताएँ हैं; उस हिंसा और अमानवीयता के अन्वेषण की कविताएँ जिनके सामने सचमुच के बाघ की प्राकृतिक भयावहता निरीह मालूम होने लगती है। उसे यह भी पता नहीं होता कि मनुष्य का समाज उसे कितने अच्छे ढंग से जान चुका है, और अपनी पूरी ताकत के बावजूद वह इतना कमज़ोर हो चला है कि अब मनुष्य ही उसके जीवन का संरक्षण चाहने लगा है। लुप्त होते उस जीव के लिए मनुष्य-समाज नारे लगा रहा है; योजनाएँ बना रहा है।
लेकिन उस बाघ का क्या, जो हमारे भीतर है जिसके पंजों के निशान हर जगह हैं, हर जगह जिसके ख़ौफ़ का अँधेरा पसरा हुआ है! वह बाघ जो हमारे पापों, दुष्कर्मों और छलों से बना है; हमारी महत्त्वाकांक्षाओं से, लालच से, लिप्सा और अबुझ वासना से, वह जो हमारे आसपास हर कहीं, हर समय उपस्थित है।
स्वयं रचनाकार के शब्दों में, ‘बाघ का बाघ-भाव और मनुष्य का बाघ-भाव—ये दोनों मुझे आलोड़ित, आन्दोलित...और आहत करते रहे लगातार।’ इसी मनस्थिति में उन्होंने बाघ को जानना शुरू किया जो उन्हें हर कहीं दिखा—मंचों पर, मंत्रणा-कक्षों में, सड़कों पर और घरों में। बाघ को पहचानने की इसी प्रक्रिया में ये कविताएँ जन्मीं हैं जो हमें अपने आसपास की दुनिया को एक नई और चकित निगाह से देखने को प्रेरित करती हैं।
Jab Aadivasi Gata Hai
- Author Name:
Jamuna Bini
- Book Type:

- Description: जब आदिवासी गाता है की कविताओं में आदिम और आधुनिक, परम्परा और परिवर्तन, प्यार और प्रतिरोध तथा संगीत और सिसकी एक साथ उपस्थित हैं। पूर्वोत्तर के अरुणाचली-आदिवासी समाज और संस्कृति की नैसर्गिक धड़कन इन कविताओं में आसानी से महसूस की जा सकती है, साथ ही वह सोच भी जो कथित मुख्यधारा से परे, अब तक अलक्षित-उपेक्षित पड़े हाशिये के समाजों में अस्मिता की बढ़ती चेतना के साथ मुखर होती गई है। इन कविताओं का एक छोर प्रकृति से सुदीर्घ साहचर्य, और सहस्राब्दियों के अनुभव और यत्न से निर्मित संस्कृति के प्रति कवि के सहज गौरवबोध से बना है, जबकि दूसरा छोर उन सवालों से जो पूरी दुनिया को केवल मुनाफ़े की नज़र से देखने वाली शक्तियों को सम्बोधित हैं। जमुना बीनी की रचनात्मकता का यह वितान, वस्तुतः समकालीन हिन्दी कविता का एक नया प्रस्थान है।
Cooker Ki Seeti
- Author Name:
Yogita Warde
- Book Type:

- Description: जब हमने हँसते-मुस्कुराते हमेशा की तरह 2020 में प्रवेश किया, तब कहाँ पता था कि हमारी आने वाली ज़िंदगी में हमें एक बीमारी के चलते 'लॉकडाउन' में रहना पड़ेगा। लॉकडाउन हम सभी के लिए कठिन दौर रहा, जहां हमारे ऊपर क्या-क्या गुजरा, हमें किन-किन चीजों का नया अनुभव हुआ। किस तरह हम कहीं आ-जा नहीं सकते थे। किस तरह हम घरों में रहने पर मजबूर हुए। किस तरह हँसना-रोना, बिछड़ना, तकलीफें, स्कूल बंद रहे, वर्क फ्रॉम होम किया। किस तरह मजदूरों की घर वापसी हुई, वहीं बच्चे अपनी नानियों के घर नहीं जा सके। किस तरह हम डिज़िटल दुनिया में बीस साल आगे हो गए। किस तरह हमारी ज़िन्दगी में सोशल मीडिया ने अहम रोल निभाया। किस तरह हमने अपने परिवार के साथ समय बिताया। कहीं किसी की शादी का टूटना, कहीं किसी का साथ हमेशा के लिए छूटना। इन सभी अनुभवों का लेखा-झोखा है यह किताब.... 'कुकर की सीटी' में छह नाटकों का संकलन है, जो कि लॉकडाउन पर आधारित हैं।
Pratinidhi Kavitayein : Gagan Gill
- Author Name:
Gagan Gill
- Book Type:

- Description: गगन गिल की कविताओं की एक यात्रा स्पष्ट दिखाई देती है—बाहर से भीतर की ओर की। ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ शीर्षक उनका संग्रह अपने समय की एक घटना थी। हिन्दी के कविता-संसार ने उसे ख़ूब ही उत्साह से ग्रहण किया था। इस संग्रह की कविताओं ने भीतर से उदास लेकिन फिर भी संसार में अपनी जगह को लेकर पर्याप्त सजग एक लड़की की छवि को प्रकाशित किया। भीतर की वह उदासी, अकेलापन, अपने ‘होने’ और अपने एक ‘स्त्री होने’ का वह अहसास जैसे बड़ा होता गया; संसार का बाहरी शोर और दिल की थपक-थपक जैसे आमने-सामने खड़ी इकाइयाँ हो गईं। इस दौर में उन्होंने जो लिखा वह सृष्टि के पवित्रतम की खोज थी, जो मनुष्य के आत्म की कंदराओं में स्थित होता है। आकांक्षाओं से मुक्त, अपने होने की कील से बिंधा हुआ, सम्पूर्ण और व्यथित। इस चयन में उनकी पूरी चेतना-यात्रा को सुविचारित ढंग से सँजोया गया है—‘मैं जब तक आई बाहर’ संग्रह तक, जिसमें पीड़ा का संचार भीतर और बाहर दोनों तरफ़ होता है। देश और काल की पौरुषपूर्ण व्यवस्था के बीच स्त्री की सूक्ष्म असहमति और अपने दुःख को देखने का साक्षी भाव उनके संवेदनशील और सटीक शब्द-संयोजन में एक अविस्मरणीय अनुभव की तरह अंकित होता है।
Riturain
- Author Name:
P.N. Singh
- Book Type:

-
Description:
जीवन-राग, दुःखानुभव और सम्वेदना की सजल छवियों से फूटता रुलाई का गीत; जो इक्कीसवीं सदी के हमारे आज में भी कील की तरह बिंधा है। किसी ख़ास ऋतु में फूटनेवाली रुलाई का गाना; बिछोह में कूकती आत्मा की आँखों से गिरते अदृश्य आँसू!
ये कविताएँ उन्हीं आँसुओं का शब्दानुवाद हैं। शिरीष कुमार मौर्य अपनी स्थानिकता और लोक की परिष्कृत संवेदना के सुपरिचित कवि हैं। ‘रितुरैण’ में उन्होंने गीतात्मक लय में बँधी अपनी गहन संवेदनापरक कविताओं को संकलित किया है।
‘मैं हिन्दी का एक लगभग कवि/लिखता हूँ/हर ऋतु में/हर आस/हर याद...’ जहाँ इस ‘कठकरेजों की दुनिया में/यों ही/बेमतलब हुआ जाता है/मनुष्य होने तक का/हर इन्तजार।’ ये कविताएँ मनुष्य के अपने परिवेश से एकमेक होकर मनुष्यता के आह्वान की कविताएँ हैं और उस दुःख की जो बार-बार हो रहे मनुष्यता के हनन और उपेक्षा से उपजता है।
भूखे मनुष्य, ऋतुओं के बदलाव के साथ और-और असहाय होते मनुष्य और पूनो का चाँद जो जवाब नहीं देता ‘सवाल भर उठाता है/लोकतंत्र के रितुरैण में।’ और ‘पूनो की ही रात में राजा हमारा/बजाता है/राग जनसम्मोहिनी।’
ये कविताएँ इस राग के लिए एक सान्द्र, शान्त चुनौती की तरह खुलती हैं एक-एक कर। कहती हुई कि ‘हत्या के बाद/ज़िम्मेदार व्यक्तियों के चेहरे पर/जो मुस्कान आती है/सब ऋतुओं को उजाड़ जाती है।’ ये उजड़ी हुई उन ऋतुओं की रुलाई की कविताएँ हैं।
Indraprasth Ke Kash-Pushp
- Author Name:
Kantesh Mishra
- Book Type:

- Description: भले हम किसी की आशाओं में न हों। हम हों हर प्रकार से बहिष्कृत विकल्प। हमारी प्रार्थना में किसी एक का भी होना, पृथ्वी पर प्रेम की सम्भावना, प्रबल बनाता है। -इसी पुस्तक से
Rocks of Hampi
- Author Name:
Chandrasekhar Kambar +1
- Rating:
- Book Type:

- Description: Chandrasekhar Kambar draws his strength deeply from folklore as well as contemporary life and his poems are embodied in an earthyly, sensual language. His poetry works at a different altogether from what logical and analytical prose does. Profound insights into life get expressed metaphorically in him. English translation by O.L. Nagabhushan Swamy of Chandrasekhar Kambar's Kannada poems. Sahitya Akademi 2004.
Aaj Ri Kavitavan
- Author Name:
Hiralal Maheshwari +1
- Rating:
- Book Type:

- Description: आज री राजस्थानी कवितावाँ एक कानी तो आपरी धरती री परंपरावा सूं कट्योडी है अर दूजै कानी वा हाल आपरी न्यारी पीछाण भी नीं बना पाई है। इण पोथी में गेली करयोड़ी आज री कवितावाँ इण साचनै तो उजागर करसी ही पण आपरै विसय अर बरवाण री विविधता नै भी सामरत करसी।
Ujar Mein Sangrahalaya
- Author Name:
Chandrakant Devtale
- Book Type:

-
Description:
चन्द्रकान्त देवताले की कविताएँ भवानीप्रसाद मिश्र के इस स्वर्णाक्षरों में उत्कीर्ण किए जाने योग्य वक्तव्य का अप्रतिम उदाहरण बनती नज़र आती हैं कि जो अभी की कविता नहीं है वह कभी की कविता नहीं हो पाएगी। चन्द्रकान्त देवताले जिस तरह हमारे समाज, देश और राजनीति ही नहीं, सारे वैश्विक परिदृश्य पर अपलक तथा पैनी निगाह रखे हुए कवि हैं, वह सिर्फ़ एक अद्वितीय जागरूकता ही नहीं, मुक्तिबोध, नागार्जुन और रघुवीर सहाय जैसी मानव–केन्द्रित नैतिकता से युक्त और ग़ैर–बराबरी तथा अन्याय से मुक्त दुनिया बनाने की आस्था और उसे पाने के संघर्ष की ईमानदार तथा साहसिक मिसाल भी है। कवि जानता है कि समय तारीख़ों से नहीं बदला करता हम एक ऐसी ‘सभ्यता’ में हैं जो उजाड़ में उस संग्रहालय की तरह है जिसकी प्रेक्षक–पुस्तिका में दर्ज़ टिप्पणियों से आप कभी यथार्थ को जान नहीं सकते, जहाँ चीज़ों पर वैधानिक चेतावनियाँ लिखकर सारी ज़िम्मेदारियों से मुक्ति पा ली गई है और अन्त में हर अज्ञात व्यक्ति से सावधान रहने की हिदायत देकर आदमी को आदमी के ख़िलाफ़ तैनात कर दिया गया है।
इस कविता का केन्द्रीय शब्द है ‘हिंसा’ जैसी रचना हमें दो टूक आगाह करती है कि चन्द्रकान्त का कवि–कर्म क्या है, कवि कविता से कितना–क्या चाहता है और कविता तथा जीवन में काहे से गुरेज़ नहीं करता। ‘कवियों की छुट्टी’, ‘क्षमाप्रार्थी हों कविगण’, ‘तुका और नामदेव’ तथा ‘कविता पर रहम करो’ काव्य–कला पर कविताएँ नहीं हैं बल्कि चन्द्रकान्त के आत्मालोचन और व्यापक रचनाधर्मिता को लेकर उसकी अदम्य प्रतिबद्धता को अभिव्यक्ति देती हैं। जीवन–भर पढ़ने–पढ़ाने तथा साक्षरता एवं पुस्तकालय आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी का असर उसकी करिश्मे भी दिखा सकती हैं अब किताबें और किताबों की दुकान में जैसी रचनाओं में देखा जा सकता है जो पुस्तकों की मात्र उपस्थिति से हर्षित होनेवाली हिन्दी की शायद पहली अशाले कविताएँ हैं वे पुस्तकें जिन्हें आज़ादी के बाद से उत्तरोत्तर हमारे समाज से ग़ायब करने का राष्ट्रीय षड्यंत्र अब भी जारी है। इसी तरह शिक्षकों को लेकर लिखी गई नोटबुक से (एक) तथा (दो) कविताएँ हिन्दी में कदाचित् अपने ढंग की पहली ही होंगी। ये सब चन्द्रकान्त की कविता के नए आयाम हैं।
इस पर पहले भी ध्यान गया है कि चन्द्रकान्त देवताले ने स्त्रियों को लेकर हिन्दी में शायद सबसे ज़्यादा और सबसे अच्छी कविताएँ लिखी हैं लेकिन यहाँ उनकी कुछ ऐसी रचनाएँ हैं जो माँ और आजी की दुनियाओं और स्मृतियों में जाती हैं, किन्तु वहीं तक सीमित नहीं रहतीं—वहाँ एक कैंसर–पीड़ित ज़िलाबदर औरत है, बलात्कार के बाद तीन टुकड़ों में काटकर फेंकी गई युवती है, और चन्द्रकान्त अचानक एक विलक्षण परिहास–भावना का परिचय देते हुए मध्यवर्गीय ‘बहनजी–आंटीजी’ छाप प्यारी–प्यारी महिलाओं पर औसतपन और बुद्धिमत्ता के बीच, हिदायतें देने और निगरानी रखनेवाली बीवियाँ, कन्या महाविद्यालय की मैडमों से एक प्राचार्य की बातचीत, ‘मैं आपके काम का आदमी नहीं’ और ‘नींबू माँगकर’ जैसी अनूठी कविताएँ भी लिख डालते हैं—कवयित्रियों में सिर्फ़ निर्मला गर्ग ने ऐसा किया है। देवी–वध में चन्द्रकान्त ने दुस्साहसिकता से देवी–प्रतिमाओं को डायनों और बाज़ार में बैठनेवाली औरतों में बदलते देखा है जबकि ‘बाई! दरद ले’ जैसी मार्मिक कविता में मानो कवि स्वयं उन औरतों में शामिल हो गया है जो अपनी एक सहकर्मी श्रमजीवी आसन्नप्रसवा बहन से प्रसूति–पीड़ा उपजाने को कह रही हैं।
समाज की हर करवट, उसकी तमाम क्रूरताओं और विडम्बनाओं को पहचानने वाली चन्द्रकान्त देवताले की यह प्रतिबद्ध कविताएँ दरअसल भारतीय इनसान और भारतीय राष्ट्र के प्रति बहुत गहरे, यदि स्वयं विक्षिप्त नहीं तो विक्षिप्त कर देनेवाले प्रेम से विस्फोटित कविताएँ हैं। दरअसल कबीर से लेकर आज के युवतम उल्लेख्य हिन्दी कवि–कवयित्रियों की सर्जना के केन्द्र में यह समाज और यह देश ही रहा है। यह देश को खोकर प्राप्त की गई नकली आधुनिक या उत्तर–आधुनिक कविता नहीं है, एक सार्थक देश को पाने की कोशिश की तकलीफ़देह सच्ची कविता है। चन्द्रकान्त देवताले जैसे सर्जक अपनी कविताओं के ज़रिए वही काम करते नज़र आते हैं जो 1857–1947 के बीच और उसके बाद भी सारे असली वतनपरस्तों ने किया है।
यदि चन्द्रकान्त देवताले अपनी जन्मतिथि प्रकट न करें तो उनके किसी भी नए या पुराने पाठक को उनकी यह कविताएँ पढ़कर ऐसा लगेगा कि वे अधिकतम किसी चालीस–पैंतालीस की उम्र के सर्जक की रचनाएँ हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि (हमारे कुछ दूसरे कथित वरिष्ठ कवियों की तरह) उनका विकास अवरुद्ध हो गया है या वे अपनी श्लथ रचनात्मकता के एक लम्बे हाँफते हुए पठार पर पहुँच गए हैं, बल्कि यह कि अभी भी उनकी दृष्टि, अनुभूति तथा ऊर्जा में कोई कमी या छीजन आना तो दूर, उलटे उनके तज्रिबों और निगाह का दायरा और विस्तार पाता जा रहा है। कई कवि एक ख़ास आयु तक आते–आते सहिष्णु, समझौतावादी और परलोकोन्मुख हो जाते हैं क्योंकि हमारे यहाँ एक समन्वय एवं आशीर्वाद वाली सिद्ध मुद्रा प्रौढ़ता की पराकाष्ठा मानी गई है लेकिन चन्द्रकान्त के पास यह कहने की हिम्मत है : “मैं जानता हूँ कि मर रहा हूँ/फिर भी मुझे ईश्वर की ज़रूरत नहीं/क्योंकि धरती की गन्ध और समुद्र का नमक/हमेशा मेरे साथ हैं.../जब सीढ़ियाँ चढ़ता हूँ सबके सुख–दु:ख में शामिल/तो जीवन का संग्राम मेरी धड़कनों में झपट्टे मारने लगता है/पत्थरों के इसी संगीत में मुझे/कुछ भविष्यवाणियाँ सुनाई दे रही हैं...
—विष्णु खरे
Kavita Se Lambi Kavita
- Author Name:
Vinod Kumar Shukla
- Book Type:

-
Description:
अपने असाधारण मितकथन के लिए विनोद कुमार शुक्ल समकालीन साहित्यिक परिदृश्य में इतने विख्यात हैं कि कइयों को उनकी इतनी सारी लम्बी कविताएँ देखकर थोड़ा अचरज हो सकता है। अपेक्षाकृत अधिक व्यापक फलक को समेटती हुई ये कविताएँ, फिर भी, उनके संयम और काव्य–कौशल की ही उपज हैं। उनका भूगोल किसी भी तरह से स्फीति नहीं, विस्तार है। एक तरह से यह कहा जा सकता है कि अपने प्रथम प्रस्तोता गजानन माधव मुक्तिबोध के शिल्प का विनोद कुमार शुक्ल अपने ढंग से पुनराविष्कार कर रहे हैं।
वहीं खड़े–खड़े मेरी जगह निश्चित हुई
थोड़ी हुई
ज़्यादा नहीं हुई।
एक ऐसे संसार और समय में जहाँ प्राय: सभी अपने लिए ज़्यादा से ज़्यादा की चाह करते और न पाकर दुखी होते रहते हैं, विनोद ‘थोड़े–से’ को ही टटोलने और उसी को अपनी निश्चित जगह मानकर उससे अपने समय को ज़्यादा से ज़्यादा पकड़ते–समझते रहते हैं। उनकी कविता हमारी समझ और संवेदना, जो होता है उसके लिए हमारी ज़िम्मेदारी के अहसास को बढ़ानेवाली कविता है। वह हम पर अपना बोझ नहीं डालती और न ही किसी नैतिक ऊँचाई से हमें आतंकित करने की चेष्टा करती है। उसमें आत्मदया नहीं, बेबाकी है : दोषारोपण नहीं, आत्मालोचन है। वह हमारी सहचारी कविता है और हर समय उसे पढ़ते हुए हम इस विस्मय से भर जाते हैं कि वह हमसे हमारी तकलीफ़, संघर्ष, बेचारगी और ज़िम्मेदारी की कथा कहती है और ऐसे कि कवि और हम दोनों का ही वह जैसे शामिलात खाता है। लम्बी कविताओं का यह संकलन हिन्दी कविता की निश्चय ही शताब्दी के अन्त पर एक नई उपलब्धि है।
—अशोक वाजपेयी।
Sulagti Huyi Chingari
- Author Name:
Dilip Kumar Chauhan 'Baaghi'
- Book Type:

- Description: लोकप्रिय कवि दिलीप कुमार चौहान 'बाग़ी' की कृति 'चाँद में भी दाग़ है' को पाठकों का असीम प्यार मिला । इस कृति में जीवन के उल्लास, उमंग एवं रोमानिया का ऐसा संयोजन था कि वह कृति सबके मन को स्पंदित कर गई। ' सुलगती हुई चिंगारी ' उसी श्रृंखला की अगली कड़ी है , जो अपने कहन एवं शिल्प में अपनी पहली कृत से सर्वथा भिन्न एवं नवीन है। इसमें पाठक को जीवन के विभिन्न अनुभवों, प्रश्नों एवं चुनौतियों से जुड़ी कविताएं पढ़ने को मिलेंगी। सुलगली हुई चिंगारी संकलन की कविताएं जितना खुद से प्रश्न करती हैं उतना ही वह पाठकों के समक्ष भी प्रश्न खड़ी करती हैं। भाषा के प्रवाह एवं शैली की सहजता में कवि ने इस जीवन और जीवन से परे के सत्य को बहुत ही स्वाभाविक ढंग से प्रस्तुत किया है । यह एक ही भाव एवं शैली में लिखी गई कवि दिलीप कुमार चौहान की अनूठी कृति है। इस संकलन का हर छंद एक दूसरे से जुड़ते हुए भी अपना स्वतंत्र अर्थ लिए हुए हैं। कवि दिलीप कुमार चौहान की संवेदनाएं, विचारों, भावों एवं कल्पनाओं की चिंगारी किस हद तक ज्ञान की लौ के रूप में प्रस्फुटित होकर समाज को प्रकाशमान करती है इसको परखने के लिए पाठकों को यह कृति अवश्य पढ़नी चाहिए।
Neend Mein Ek Gharelu Stri
- Author Name:
Ram Kumar Aatrey
- Book Type:

- Description: Poems
Pahali Barish
- Author Name:
Aziz Nabeel
- Book Type:

- Description: दू में दुनिया की अहम तरीन शायरी मौजूद है, मैंने बहुत सारी ज़बानों की शायरी पढ़ी है लेकिन उर्दू शायरी की ख़ूबसूरती और दिलकशी सबसे अलग है। नई उर्दू शायरी की मोतबर और तवाना आवाज़ों में अज़ीज़ नबील का नाम बहुत अहम है। उनकी शायरी में नाज़ुक ख़्यालात की ख़ुशबू, नए एहसासात की रोशनी और ज़िन्दगी के मुख़्तलिफ़ इन्किशाफ़ात के रंग बख़ूबी देखे और महसूस किए जा सकते हैं। अज़ीज़ नबील की शायरी में जो बात सबसे ज़्यादा अपील करती है, वो ये है कि वह अपनी बातें सीधे-सीधे ना करते हुए अलामतों और तशबीहात के बहुत ख़ूबसूरत इस्तिमाल से करते हैं, जिसकी वजह से उनके एक शे’र से ब-यक-वक़्त कई-कई मतलब निकाले जा सकते हैं। एक और ख़ास बात ये है कि अज़ीज़ नबील की शायरी का डिक्शन और उस्लूब उनका अपना है। उन्होंने इस्तिमाल-शुदा रास्तों से बचते हुए अपने लिए कुछ इस तरह एक अलग राह निकाली है कि ज़िन्दगी को शायरी और शायरी को ज़िन्दगी में शामिल करके पेश कर दिया है। —जस्टिस मार्कंडेय काटजू इक्कीसवीं सदी तेज़ी से बदलते हुए अक़दार की सदी है, इस सदी में उर्दू शायरी की जो आवाज़ें बुलन्द हुई हैं, उनमें अज़ीज़ नबील का नाम तवज्जो का हामिल है। क्लासिकी अदब से वाबस्तगी और इस अहद की हिस्सियत की आमेज़िश ने उनकी शायरी को पुरकशिश बना दिया है। मुझे पूरी उम्मीद है कि सादा ज़बान और ख़ूबसूरत अलामतों के फ़नकाराना इस्तिमाल से पुर इस शायरी को क़ारईन पसन्द फ़रमाएँगे। —जावेद अख़्त
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Hurry! Limited-Time Coupon Code
Logout to Rachnaye
Offers
Best Deal
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat.
Enter OTP
OTP sent on
OTP expires in 02:00 Resend OTP
Awesome.
You are ready to proceed
Hello,
Complete Your Profile on The App For a Seamless Journey.