Raidas Bani
Author:
Shukdev SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
‘रैदास-बानी’ का सम्पादन मध्यकालीन साहित्य की ग्रन्थ-विधा की सारी जटिलताओं को समेटते हुए पहली बार किया गया है। यह ग्रन्थावली नहीं ग्रन्थ है। निर्गुण साहित्य को ग्रन्थ करने के लिए ग्रन्थ जैसे—साखी, सबद, रमैनी सबदी, अंगु, उनसठ से चौरासी तक जैसे गुरुदेव को अंग; राग जैसे सोरठ, आसावरी प्राय सोलह, महला, घरु, बीजक, बानी, गुरु ग्रन्थ सर्वंगी, गुणगंजनामा, पद-संग्रह की विधाओं को समझते हुए जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, आमेर, उदयपुर, नागरी प्रचारिणी सभा, साहित्य सम्मेलन, इंडिया ऑफ़िस लाइब्रेरी, तमाम जगह के हस्तलेखों और उनके फ़ोटो-चित्रों की सहायता ली गई है। इस क्रम में प्रो. डेविड लोरंजन, पीटर फ़्राइलैंडर, जोजेफ़ सोलर से सहयोग लिया गया है। सबसे सहमति/असहमति लेकिन निष्कर्ष केवल अपने।</p>
<p>रैदास, दादू ग्रन्थों, सर्वंगी पोथियों, बानी, पंचबानी संग्रहों गुरुग्रन्थ यहाँ तक कि सूर पद संग्रह में सात पदों के साथ उपस्थित हैं। कबीर के बराबर। इस सामग्री के साथ रैदासी डेरों में भी उनसे जुड़े पद मिल जाते हैं। पदों की संख्या में हेर-फेर, पंक्तियों को बढ़ाना-घटाना-हटाना लेकिन यह अज्ञान और आलस्य के कारण नहीं, सिद्धान्त और सम्प्रदाय के हठ और मठ के कारण है। इसे समझने के लिए भी एक परम्परा है जो भक्तमालों, जनमसाख, परिचयी गोष्ठी, तिलक, बोध, सागर, नामक सैकड़ों पोथियों में प्राप्त है। इस पुस्तक में इस पूरी परम्परा का समझ-बूझ कर प्रयोग किया गया है।</p>
<p>साखी, सबदी, हरिजस, आरती जैसे रूपों के पीछे दर्शन क्या है? किसी राग में किसी पद के होने का मतलब क्या है? इस विज्ञान को समझे बिना यह सम्पादन सम्भव नहीं था। भक्तमालों और नागरी दासों के पद-प्रसंगों में यह सामग्री मिलती है। इन सबकी छान करते हुए इस पुस्तक की बीन तय की गई है।
ISBN: 9788183614580
Pages: 304
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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आसियान के देशों तथा भारतवर्ष की मैत्री पुरानी है। कितनी पुरानी? काफ़ी पुरानी है, कम-अज-कम चार हज़ार वर्षों का इतिहास तो बता ही सकते हैं। संस्कृति के स्तर पर। कलाकृतियों एवं व्यापार में भँजाई हुई चीज़ों के स्तर पर। क्या इन देशों के पुराने इतिहास से नए सम्बन्ध गहरा करने में मदद मिलेगी? तो हिन्द महासागर की इस इकाई को केवल भौगोलिक एकरूपता के लिए जानेंगे। अन्तर्सम्बन्धों की जाँच-पड़ताल में अनेकानेक बिन्दु उभरते हैं।
इस पुस्तक में नई किताबों नए शोधों को आत्मसात् किया गया है। नेचर, साइंस एवं साइंटिफ़िक अमेरिकन में परिपक्व शोधों के आधार पर, भाषाओं के अन्तर्द्वन्द्व को ठोस वस्तुओं, लेखों-शिलालेखों एवं प्रशस्तियों को इतिहास के परिप्रेक्ष्य में रखा गया है। भारतीय इतिहास लेखन में भी स्वतंत्रता आन्दोलन के ‘भारतीयपन’ को पिछली सीट दी जाने लगी है। मार्क्सीय लेखन में वस्तुपरकता एवं चीज़ों के आधार पर सम्बन्धों की परख शुरू हुई है। नए इतिहासकार ‘लोकल’ तथा ‘सब आल्टर्न’ को समझते हैं। इन सबकी ब्योरेवार तो नहीं किन्तु पूरी नई समीक्षा की गई है।
हीगेल, वाल्तेयर ‘इतिहास के दर्शन’ को समझाते हैं तथा इसे धर्म तथा धार्मिक मान्यताओं से अलग भी करते हैं। वे दोनों ‘इतिहास का दर्शन’ एवं ‘दर्शन का इतिहास’ में दिलचस्पी रखते हैं तथा इतिहास को रीजन से संचालित मानते हैं। उसी परम्परा में एक वैज्ञानिक ईमानदार प्रयास।
—भूमिका से
Vansha : Mahabharat Kavita
- Author Name:
Harprasad Das
- Book Type:

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Description:
हरप्रसाद दास अपनी आधुनिक दृष्टि, गहन परम्परा-बोध और अपने विशिष्ट ओड़िया स्वर के लिए पहचाने जाते हैं। ‘वंश’ में संकलित कविताएँ उनकी सुदीर्घ काव्य-साधना का एक अद्वितीय उदाहरण हैं।
वास्तव में यह ‘महाभारत’ के प्राय: सभी चरित्रों के गम्भीर अन्तर्मन्थन की एक सुघड़ काव्य-शृंखला है। सत्तर कविताओं के माध्यम से कवि ने ‘महाभारत’ की जो पुनर्रचना की है, उसका प्रयोजन कथा का तकनीकी आधुनिकीकरण भर नहीं है। ‘महाभारत’ की कथा-वस्तु या उसके चरित्रों की अन्त:प्रकृति में सतही बदलाव लाने की कोई चेष्टा यहाँ नहीं है। यह पुनर्पाठ आधुनिक और आत्मसजग कवि के द्वारा, ‘महाभारत’ के साथ सृजनात्मक अन्तर्पाठीयता का एक रिश्ता बनाने की कोशिश है। उस समय में इस समय को जोड़ देने के जोड़-तोड़ से क़तई अलग, यह साभ्यतिक संकट की त्रासदी के अनुभव और अवबोध की कविता है, जिसे वे कथा के प्राचीन रूपाकार में कुछ इस तरह रचते हैं कि हम पूरे ‘महाभारत’ को अपने सामयिक अनुभव की विडम्बनाओं और व्यर्थ हताशाओं की तरह घटता देखते हैं।
अपने लोक-जीवन के दैनिक समय में जीते-मरते लोगों के बीच, परिवेश की पास-पड़ोस की छवियों के रूबरू होते हुए, हम पाते हैं कि ‘महाभारत’ हमारे लिए महज़ किसी दूरस्थ क्लासिकी ऊँचाई या गहराई का प्रतीक या रूपक-भर नहीं है। लोक-जीवन की साधारण साम्प्रतिकता में, परिवार के संस्कारों में, क़िस्सों की तरह रचा-बसा ‘महाभारत’, हरप्रसाद की सर्जना के माध्यम से, हमारी आन्तरिकता का एक मार्मिक दस्तावेज़ बन जाता है। साथ ही यह भी महत्त्वपूर्ण है कि ‘वंश’ की रचना में क्लासिकी और लोक का ऐसा अनूठा समन्वय है जो मनुष्य के आस्तित्विक संकट को सहज लोक-वाणी में सम्प्रेषित करता है।
Sapno Ka Dhuan
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

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Description:
‘सपनों का धुआँ’ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की आज़ादी के बाद लिखी गई कविताओं का संग्रह है। इस संग्रह में दिनकर जी की उन कविताओं को संकलित किया गया है, जिनमें समकालीन स्थितियों के प्रति उनकी भावनात्मक प्रतिक्रिया सशक्त रूप में प्रस्फुटित हुई है। इस पुस्तक में जहाँ एक तरफ़ स्वराज से फूटनेवाली आशा की धूप और उसके विरुद्ध जन्मे हुए असन्तोष का धुआँ कविताओं में प्रतिबिम्बित होता है, वहीं दूसरी ओर एक विदुषी को लिखा गया कवि का गीत-पुंज भी है, जो कवि के गहन चिन्तन की दस्तावेज़ के रूप में हमारे सामने आता है।
मन-मस्तिष्क को उद्वेलित करनेवाली ये कविताएँ सभी पाठकों के लिए उपादेय हैं।
The Darkness is Vanishing
- Author Name:
Ramesh Pokhriyal 'Nishank'
- Rating:
- Book Type:

- Description: The poems of Ramesh Pokhriyal "Nishank" represent innate, passionate ramifications and poetic mystification for readers. While they may include hymns and religious instructions, what stands out is the sentimental piety in the poems offered within this collection. As a poet, Nishank surveys possibilities, comparing them to actualities, facts, theories, alternatives, and ideals, weighing them together. Thus, his work is both insightful and foresightful, providing a sense of life’s worth. Remarkably, these poems are not complex; they are simple and pliable. The doctrines and practices they endorse are not new or recent but align with established norms. The poems that emerge from darkness invigorate the spirit, making our hearts dance and enveloping us in a mystical softness, enchanting enough to soothe distressed feelings while instilling a sense of truth, clarity, and refinement. Nishank conjures images of everyday, affable life, depicting socially intellectual and passionate men who dance, croon, and fall yet rise again—shortly devastated but soon resilient. His poems are both popular and distinctly contemplative. Hidden behind his voice lies every man; if you wish to understand his character, let the doors of the heart open and allow them to speak. *** The ardor for humankind may pulse in every throb of my heart; let there be a beautiful person within me. My only desire in this life is to die for my country, with my life as an emblem for humanity. *** Like worms clothing the wheat, jealousy, like termites, hollow out the preposterous. *** To erase darkness, those who burn like torches do so even in adverse torrents; they never extinguish. *** Happiness resides in the present, not in the future; it rests in the depths of the mind. —From this collection.
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