PVTGs In Jharkhand: An Anthropological Perspective (Particularly Vulnerable Tribal Groups)
Publisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
EnglishCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 520
₹
650
Available
"India is home to hundreds of tribal communities, each with their own unique cultures, traditions and ways of life. Among these are the Particularly Vulnerable Tribal Groups (PVTGs), who are identified as being at risk of losing their distinct identities, livelihoods and traditional practices. This book takes an in-depth look at the PVTGs residing in the state of Jharkhand through the analytical lens of anthropology. It consists of untold stories on its indigenous people as a tribute to their reliance, wisdom and unwavering Spirit.
Through a chronological exploration, the book aims to understand the pivotal role played in shaping regional identity with political historicity, livelihood practices, indigenous knowledge, dynamic interest with local life and to investigate the indigenous’ contribution. The authors evaluate current policies related to the preservation and empowerment of PVTGs. The book highlights the urgent need to protect and uplift these ancient but vulnerable communities before their irreplaceable cultures are lost forever."
ISBN: 9789355623775
Pages: 448
Avg Reading Time: 15 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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यह पुस्तक इतिहास, सामाजिक विज्ञान, लोक-संस्कृति के अध्येताओं के छात्रों के लिए उपयोगी तो है ही, साथ ही साथ आम पाठकों के लिए भी बेहद महत्त्वपूर्ण है।
Supreme Court Mein Ramlala
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Pawan Kumar
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- Description: Awating description for this book
Smriti Sakshya
- Author Name:
Ganga Prasad
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- Description: बिहार में 1974 में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, तानाशाही, संविधान एवं न्यायालय विरोधी सरकार के कार्य जैसे मुद्दों को लेकर छात्र आंदोलन शुरू हुआ और इसने प्रचंड रूप धारण कर लिया था। बाद में जयप्रकाश नारायणजी भी आंदोलन के समर्थन में आ गए थे। उस आंदोलन में मैं भी छात्रों का समर्थन कर रहा था, इस कारण मुझे आपातकाल के पूर्व दो बार जेल जाना पड़ा । फिर कुछ ही दिन बाद हम जेल से बाहर आए देशव्यापी आंदोलन से असहज होकर तत्कालीन केंद्र सरकार ने आपातकाल की घोषणा कर दी। आपातकाल के दौरान पटना शहर से कुछ दूर खाजपुरा गाँव स्थित मेरा पैतृक निवास 'आर्य भवन' आंदोलन संबंधी गतिविधियों के संचालन का गुप्त केंद्र बन गया था, इस बीच संघ एवं जनसंघ की आंतरिक गुप्त बैठकें 'आर्य भवन' में ही होती थीं। जिसमें संघ के अखिल भारतीय अधिकारी, जनसंघ एवं दूसरे दलों के भूमिगत शीर्षस्थ नेता भी शामिल होते थे। इस दृष्टि से 'आर्य भवन' आंदोलन संचालन का मुख्यालय बन गया था।
Marang Gomke Jaipal Singh Munda
- Author Name:
Ashwani Kumar 'Pankaj'
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- Description: कौन थे जयपाल सिंह मुंडा? इनका भारतीय स्वतंत्रता और नए भारत के निर्माण में राजनीतिक-बौद्धिक योगदान क्या था? वे जिस आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, उसकी आकांक्षाएँ क्या थीं? इस बारे में आजादी के सत्तर साल बाद भी इतिहास चुप है। एक तरफ गांधी-नेहरू, जिन्ना, अंबेडकर सहित अनेक राजनीतिज्ञों पर सैंकड़ों पुस्तकें हैं, पर जयपाल सिंह मुंडा पर एक भी नहीं है। यह कितनी हैरत की बात है कि झारखंड आंदोलन में कूदने से पहले और देश के संविधान निर्माण सभा में लाखों आदिवासियों के लिए निडरता से दहाड़नेवाले जिस आदिवासी ने देश के लिए आई.सी.एस. छोड़ी, जिसकी कप्तानी में भारत ने पहला हॉकी का ओलंपिक स्वर्ण जीता, जिसने अफ्रीका और भारत के कॉलेजों में अध्यापन के दौरान अपनी शिक्षकीय योग्यता से प्रभु वर्ग को प्रभावित किया, जो गुलाम भारत में किसी ब्रिटिश कंपनी में सर्वोच्च पद पर काम करनेवाला पहला भारतीय (वह भी आदिवासी) था, जिससे पढ़ने के लिए भारत के राजा-रजवाड़े लालायित रहते थे, जो ऑक्सफोर्ड से अर्थशास्त्र में गोल्डमेडलिस्ट था, हॉकी में एकमात्र भारतीय ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ खिलाड़ी था और जो कॉलेज के दिनों में विभिन्न सभा-सोसायटियों का नेतृत्वकर्ता संयोजक-अध्यक्ष था, उसे इस लायक भी नहीं समझा गया कि उसकी चर्चा हो। —इसी पुस्तक से
Aadhunik Kala Aandolan : Vishva Kala Ki Aadhunik Yatra : 1400-1965
- Author Name:
Jyotish Joshi
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Description:
आधुनिक कला आन्दोलन विश्व कला को आधुनिक बनाने के क्रम में हुए पश्चिमी कला आन्दोलनों पर आधारित पुस्तक है जिसमें सन् 1400 से 1965 तक, लगभग छह सौ वर्षों का कला-इतिहास है। दो खंडों में विन्यस्त इस पुस्तक का पहला खंड है—पश्चिमी कला आन्दोलन’ जिसमें पुनर्जागरणकालीन कला से लेकर अतियथार्थवादी कला आन्दोलन तक—सभी कला आन्दोलनों के जन्म की पृष्ठभूमि, प्रवृत्तिगत और शैलीगत वैशिष्ट्य की विवेचना है, साथ ही, लियोनार्दो दा विंची और माइकेल एंजेलो से वान गॉग, फ्रिदा काहलो, पिकासो और डाली तक, उन सभी प्रतिनिधि कलाकारों के अवदान का मूल्यांकन है जो उन आन्दोलनों में शामिल थे और जिनके प्रयत्नों से कला ने वैश्विकता पाई और आधुनिक दृष्टियों से उसका नवाचार हुआ।
पुस्तक के दूसरे खंड—आधुनिक भारतीय कला में बंगाल कला आन्दोलन जैसे पहले और एकमात्र भारतीय कला आन्दोलन सहित बाद में बने प्रभावी कला-समूहों का परिचयात्मक इतिवृत्त है। इसके साथ रवि वर्मा, अवनीन्द्रनाथ ठाकुर, नन्दलाल बोस और अमृता शेरगिल से हुसेन, रज़ा, सूज़ा और जगदीश स्वामीनाथन तक। उन सभी महत्त्वपूर्ण कलाकारों के वैशिष्ट्य का परिचय भी है जिन्होंने भारतीय कला को आधुनिक रूप दिया है। इस खंड में कला अकादमियों के गठन और प्रभाव का आकलन करने के साथ-साथ पुस्तक के उपसंहार में आधुनिक भारतीय कला में उपलब्धि के मानक बने उन कलाकारों की भी चर्चा है जो किसी समूह का हिस्सा नहीं रहे।
वस्तुत: यह पुस्तक हिन्दी में लिखित कला-इतिहास और आलोचना का वह जरूरी काम है जिसका लम्बे समय से अभाव था। निश्चय ही यह पुस्तक कला के साथ-साथ उन सभी अनुशासनों में रुचि रखनेवालों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी जो उन्हें उनके वैश्विक परिदृश्य के साथ समझना चाहते हैं।
Kaushambi : Prachin Bharat Ka Ek Gauravshali Nagar
- Author Name:
Kumar Nirmalendu
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- Description: प्राचीन भारत का एक गौरवशाली नगर कौशाम्बी ऐतिहासिक दृष्टि से अशोक, कनिष्क, समुद्रगुप्त, हर्षवर्द्धन आदि प्रतापी शासकों की महत्वाकांक्षा का एक प्रमुख केन्द्र था। उत्तर वैदिक काल से मुग़लकाल तक कौशाम्बी का पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक महत्त्व भारतीय ग्रन्थों में प्रतिबिम्बित है। कौशाम्बी के उत्खनन के दौरान प्रथम सहस्राब्दी ई.पू. की आरम्भिक शताब्दियों में नगरीकरण और नगर के दुर्गीकरण के स्पष्ट संकेत मिले हैं। यहाँ यमुना नदी के बाएँ तट पर उदयिन का बनवाया हुआ एक क़िला था, जिसके भग्नावशेष एक विशाल टीले के रूप में कोसम और गढ़वा नामक ग्रामों के बीच में स्थित है। गुप्त-साम्राज्य के विघटन के साथ ही कौशाम्बी नगर भी पतनोन्मुख हो गया। गुप्त-साम्राज्य के बाद छोटे-बड़े कई राजवंशों का प्रादुर्भाव हुआ। नए राजधानी नगरों के उदय के कारण कौशाम्बी का महत्त्व स्वाभाविक रूप से कम हो गया। इसी बीच हूण हमलावरों के आक्रमण के कारण कौशाम्बी नगर तहस-नहस हो गया। इतिहास की एक समृद्ध थाती को अपने सीने में सँजोए यह पुरातन नगर अपने गौरवशाली अतीत को पुनर्जीवित करने के लिए मानो आकुल है। यह पुस्तक कौशाम्बी की उसी अकुलाहट से उपजा एक क्षीण-मन्द राग है। इसमें इतिहास के तमाम आरोहों-अवरोहों को यथासम्भव स्वर देने का प्रयास किया गया ह
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