Kaushambi : Prachin Bharat Ka Ek Gauravshali Nagar
Author:
Kumar NirmalenduPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
प्राचीन भारत का एक गौरवशाली नगर कौशाम्बी ऐतिहासिक दृष्टि से अशोक, कनिष्क, समुद्रगुप्त, हर्षवर्द्धन आदि प्रतापी शासकों की महत्वाकांक्षा का एक प्रमुख केन्द्र था। उत्तर वैदिक काल से मुग़लकाल तक कौशाम्बी का पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक महत्त्व भारतीय ग्रन्थों में प्रतिबिम्बित है।
कौशाम्बी के उत्खनन के दौरान प्रथम सहस्राब्दी ई.पू. की आरम्भिक शताब्दियों में नगरीकरण और नगर के दुर्गीकरण के स्पष्ट संकेत मिले हैं। यहाँ यमुना नदी के बाएँ तट पर उदयिन का बनवाया हुआ एक क़िला था, जिसके भग्नावशेष एक विशाल टीले के रूप में कोसम और गढ़वा नामक ग्रामों के बीच में स्थित है।
गुप्त-साम्राज्य के विघटन के साथ ही कौशाम्बी नगर भी पतनोन्मुख हो गया। गुप्त-साम्राज्य के बाद छोटे-बड़े कई राजवंशों का प्रादुर्भाव हुआ। नए राजधानी नगरों के उदय के कारण कौशाम्बी का महत्त्व स्वाभाविक रूप से कम हो गया। इसी बीच हूण हमलावरों के आक्रमण के कारण कौशाम्बी नगर तहस-नहस हो गया।
इतिहास की एक समृद्ध थाती को अपने सीने में सँजोए यह पुरातन नगर अपने गौरवशाली अतीत को पुनर्जीवित करने के लिए मानो आकुल है। यह पुस्तक कौशाम्बी की उसी अकुलाहट से उपजा एक क्षीण-मन्द राग है। इसमें इतिहास के तमाम आरोहों-अवरोहों को यथासम्भव स्वर देने का प्रयास किया गया ह
ISBN: 9789388211888
Pages: 212
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Aaku Shrivastava
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- Description: प्रसिद्ध पत्रकार अकु श्रीवास्तव की यह पुस्तक आजाद भारत की राजनीति के इतिहास में केंद्र के बरक्स राज्यों के बीच अंतर्विरोधों और द्वंद्वो के साथ उपजे क्षेत्रीय दलों के उतार-चढ़ाव का समग्र अध्ययन करती है। ये अंतर्विरोध सबसे पहले पिछली सदी के सत्तर के दशक में तब प्रकट हुए थे, जब सात-आठ राज्यों में स्थानीय राजनीतिक स्पृहाओं ने अपनी संयुक्त सरकारें बनाकर केंद्रवादी कांग्रेस की नीतियों की जगह स्थानीयतावादी विकल्प पेश किए। भाषागत व स्थानीय सांस्कृतिक अस्मिताओं ने इस परिवर्तन को संभव किया केंद्र में भी दो बार गैर कांग्रेसी दलों व स्थानीय स्पृहमाओं ने सरकारें बनाईं। ग्लोबलाइजेशन के दौर में विकेंद्रीकरण की यह वृत्ति और भी ताकतवर हुई। शायद इसीलिए अब जब कांग्रेस के केंद्रवाद की जगह भाजपा ले चुकी है, तब भी बहुत सी स्थानीयतावादी अस्मिताएँ भाजपा के केंद्रवाद से भी टकराती रहती हैं। जम्मू- कश्मीर, तमिलनाड, केरल, बंगाल, ओडिशा, केरल आदि तो केंद्रवाद को अरसे से टक्कर देते ही रहे हैं, महाराष्ट्र पंजाब और दिल्ली भी इसी लाइन में है और सत्ता से बाहर होकर भी बिहार, यू.पी. आदि के स्थानीय दल केंद्रवाद से टकराते रहते हैं । अकु श्रीवास्तव भारतीय राजनीति के इस बुनियादी अंतर्विरोध के विविध आयामों को गहराई में जाकर पकड़ते हैं और बताते हैं कि यह अंतर्विरोध हमारी समकालीन राजनीति का वह अतरंग अंतर्विरोध है, जो प्रत्यक्षतः जनतंत्र के लिए अभिशाप नजर आता है, लेकिन परोक्षतः वही जनतंत्र को जीवित रखनेवाला मालूम होता है । मेरी नजर में यह पुस्तक समकालीन और भावी राजनीति की नब्ज को समझने के लिए एक एकदम पठनीय है। --सुधीश पचौरी
Bogi Number 2003
- Author Name:
Harish Naval
- Book Type:

- Description: "‘बोगी नंबर 2003’ इतिहास का वह हिस्सा है जहाँ संस्कृति, शिक्षा, जन सेवाएँ, राजनीति और समाज केविभिन्न वर्गों के कालापन से उपजी विसंगतियाँ, विडंबनाएँ और विद्रूपताएँ इस उपन्यास में रोचकतापूर्ण मनोरंजन सहित ढली हैं। इस व्यंग्य-उपन्यास में की पीढ़ी उस राजनीतिक काल की पीढ़ी है, जब देश के नियामक रक्षक से भक्षक बनने लगे थे। बहुत से राजनेता धन जमा करने की होड़ में जुटने लगे थे और भ्रष्टाचार जीवन का मूलमंत्र बनने लगा था। ‘काले धन की बैसाखी’ शासन-कर्ताओं को अनिवार्य लगने लगी थी। इन्हीं भ्रष्ट जन का अनुकरण जीवन का व्यवहार बनने लगा था, जिससे बेईमानी का कद बढ़ रहा था। इसके अतिरिक्त इस पीढ़ी पर फिल्मों का प्रभाव बेहद रहा। विवेकानंद, स्वामी दयानंद, सुभाष, भगतसिंह, चंद्रशेखर से कहीं अधिक यह पीढ़ी फिल्मी सितारों को चाहने लगी। महात्मा गांधी तो केवल दो अक्तूबर तक सीमित रह गए, गांधी के नाम पर लूट-खसोट करनेवालों को देख यह पीढ़ी उनकी तरह तुरंत अमीर होना और अय्याशी परस्ती पसंद करने लगी थी। प्रस्तुत कृति में इसका विशद चित्रण आप प्रत्यक्ष भी और परोक्ष भी पाएँगे। "
Gandhi Aur Akathaniya : Satya Ke Sath Unka Antim Prayog
- Author Name:
James W. Douglass
- Book Type:

- Description: “इतिहास जब-तब जीवन की शक्तियों और मृत्यु की शक्तियों के बीच ऐसे संघर्षों का साक्षी बनता है जहाँ एक ओर, मृत्यु की शक्ति की हर पराजय असत्य पर सत्य की विजय में आस्था को बल प्रदान करती है तो दूसरी ओर, असत्य की हर कामयाबी में मनुष्यता के सम्पूर्ण विनाश की सम्भावना निहित होती है। अहिंसा में गाँधी की आस्था और उनके हत्यारों की पथभ्रष्ट विचारधारा पर आधारित जेम्स डॅगलॅस की यह गहन शोधपरक, छोटी-सी अद्भुत कृति उन दो परस्पर विरोधी फ़लसफ़ों की एक वाग्मितापूर्ण कहानी है जिनका सामना आज मानव-जाति कर रही है—एक ऐसी कहानी जो हमें ठहरकर सोचने के लिए विवश करती है।” —नारायण देसाई
Sindhu Sabhyata
- Author Name:
Irfan Habib
- Book Type:

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Description:
‘भारत का लोक इतिहास’ शृंख्ला की यह दूसरी पुस्तक सिन्धु सभ्यता के बारे में है। इसे इस शृंखला की पहली पुस्तक ‘प्रागैतिहास’ की अगली कड़ी के रूप में भी पढ़ा जा सकता है। सिन्धु सभ्यता के और विस्तृत विवरण के अलावा इसमें अन्य समकालीन और उसके बाद की संस्कृतियों का सर्वेक्षण भी किया गया है। साथ ही भारत के मुख्य भाषा परिवारों के उद्भव पर विमर्श भी इसमें शामिल है।
सिन्धु घाटी और सीमावर्ती क्षेत्रों में आरम्भिक कांस्य युग और उसके सांस्कृतिक पहलू तथा सिन्धु सभ्यता की व्यापकता, जनसंख्या, कृषि, हस्तशिल्प, व्यापार, क़स्बों और शहरों की बनावट के साथ इसमें जनता, समाज और राज्यसत्ता आदि का भी प्रमाण-आधारित विश्लेषण किया गया है।
तालिकाओं, चित्रों और विस्तृत सन्दर्भ-ग्रन्थ सूचियों के साथ यह पुस्तक शृंखला की अन्य पुस्तकों की ही तरह संग्रहणीय और पठनीय सिद्ध होगी।
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