Santalia Aur Santal
Author:
E.G. ManPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
‘सन्तालिया और सन्ताल’ पश्चिमी कैनन के बाहर की संस्कृतियों और समाजों के प्रति एक पाश्चात्य लेखक के आकर्षण का अनूठा परिणाम है। ई. जी. मन ने राजमहल पहाड़ियों की तलहटी से लेकर बीरभूम, बर्दवान, मिदनापुर और कटक में अवस्थित विन्ध्य की दक्षिण-पूर्वी पर्वतमाला तक फैले क्षेत्र को ‘सन्तालिया’ अर्थात सन्ताल-भूमि कहा है, जिसे तब सन्ताल परगना के नाम से जाना जाता था, जहाँ वे सहायक आयुक्त के रूप में कार्यरत रहे थे। उनकी बौद्धिक जिज्ञासा, भारत के स्वदेशी समुदायों खासकर आदिवासी सन्ताल-समूह से सहानुभूतिपूर्ण जुड़ाव ने उन्हें सन्ताल-जीवन की पेचीदगियों, उनके रीति-रिवाजों, विश्वासों, कथा-किंवदन्तियों, गीत-संगीत और जमीन से उनके सहजीवी सम्बन्धों को गहराई से समझने का अवसर दिया।</p>
<p>मन ने इस पुस्तक में सन्तालों के जन्म से लेकर मृत्यु तक उनके जीवन के तमाम पक्षों का वर्णन किया है। उन्होंने इन आदिम लोगों को सहज, सरल, ईमानदार और सच बोलने वाला पाया, जिनका जीवन इन गुणों के बावजूद नशे और अन्धविश्वास की दोहरी बुराइयों से पीड़ित था। उन्होंने सन्तालों द्वारा घने जंगलों को साफ कर खेती के लिए जमीन निकालने और उनकी जमीनों को हड़प लेने वाले बंगाली महाजनों के प्रति उनकी सतर्कता का विवरण भी दिया है। ऐतिहासिक सन्ताल-विद्रोह और सन्तालों के बीच ईसाई मिशनरियों के कार्यों का पर्याप्त उल्लेख भी इस पुस्तक में किया गया है।</p>
<p>इन विवरणों में सचाई के प्रति लेखक का आग्रह इस हद तक स्पष्ट है कि वह विद्रोह के लिए सन्तालों पर उंगली उठाने के बजाय महाजनों की लोलुपता और धूर्तता तथा व्यवस्था में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को रेखंकित करता है।</p>
<p>वस्तुतः सिर्फ मानववैज्ञानिक ब्योरों से परे, यह पुस्तक परम्परा और आधुनिकता के दोराहे पर खड़े लोगों की आकांक्षाओं और उनके आगे बढ़ने की राह के अवरोधों को दर्शाती है। साथ ही परिवर्तन के मुहाने पर पहुँच चुकी एक संस्कृति की सूक्ष्म समझ प्रदान करती है। सन्देह नहीं कि अपने एन्साइक्लोपीडिक विस्तार और दुर्लभ प्रामाणिकता के कारण यह पुस्तक स्थायी महत्त्व प्राप्त कर चुकी है।
ISBN: 9789360863845
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: रज़ा के लिए गाँधी सम्भवत: सबसे प्रेरणादायी विभूति थे। 8 वर्ष की कच्ची उम्र में मंडला में गाँधी जी को पहली बार देखने का उन पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा था कि 1948 में अपने भाइयों-बहनों और पहली पत्नी के साथ पाकिस्तान नहीं गए थे और अपने वतन—भारत—में ही बने रहे। उन्होंने अपने जीवन का लगभग दो तिहाई हिस्सा फ़्रांस में बिताया, पर अपनी भारतीय नागरिकता कभी नहीं छोड़ी, न ही फ़्रेंच नागरिकता स्वीकार की। अपनी कला के अन्तिम चरण में उन्होंने गाँधी से प्रेरित चित्रों की एक शृंखला भी बनाई। रज़ा पुस्तक माला के अन्तर्गत हम गाँधी से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। गाँधी के 150वें वर्ष में हमारी कोशिश यह भी है कि इस पुस्तक माला में गाँधी पर और उनकी विचार-दृष्टि से प्रेरित नई सामग्री भी प्रकाशित हो। इसी सिलसिले में विचारक बनवारी द्वारा लिखित यह पुस्तक प्रकाशित हो रही है। गाँधी किसी रूढ़ि से बँधे नहीं थे और उनकी अवधारणाओं और उनके आलोक में इतिहास तथा संस्कृति पर विचार भी किसी एक लीक पर नहीं चल सकता। अपने कठिन और उलझाऊ समय में हम आश्वस्त हैं कि यह पुस्तक गाँधी-विचार को नए ढंग से उद्बुद्ध करेगी। रज़ा की इच्छा थी कि गाँधी, विचार के निरन्तर विपन्न होते जा रहे परिसर में, एक महत्त्वपूर्ण और उत्तेजक उपस्थिति बने रहें। —अशोक वाजपेयी
Pauranik Parampara Me Striyon Ka Sampattik Adhikar
- Author Name:
Harsh Kumar
- Book Type:

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Description:
हिन्दी साहित्य के इतिहास का आदिकाल उसका स्वरूय-विकास एवं नामकरण विवादास्पद रहा है। इसका आरम्भ छठी शती से बारहवीं शती तक सिद्ध किया गया है। इसे अनेक नाम दिए गए हैं. जैसे- वीरगाथा काल, उदूभवकाल, उत्पत्तिकाल बीज बपन काल, सन्धिकाल, सिद्ध सामन्त काल, चारणकाल आदि। किन्तु अब 'आदिकाल' नाम ही बहुमान्य हो गया है।
प्राचीन हिन्दी भाषा के भी कई नाम सुझाए गए हैं, जैसे—परवर्ती अपभ्रंश प्रकृताभास भाषा, संघाभाषा, हिन्दवी, पुरानी हिन्दी, अवहट्ट अवहंस, देसिलबयनर, डिंगल, पुरानी राजस्थानी गूजरी, पिंगल, भाखा, कोसली, दक्खिनी हिन्दी, देशभाषा आदि। किन्तु अब राहुलजी और गुलेरीजी के द्वारा स्थापित 'पुरानी हिन्दी संज्ञा ही तर्क संगत लगती है।
आदिकाल में सिद्धनाथ, जैन, सन्त, सूफी रामकृष्णाश्रयी भक्त, चारण, लोककवि, नीतिकार वीरकाव्य परम्परा के प्रशस्तिकार, जीवनीकार, शृंगारी कवि, वैयाकरण गद्यकार सभी का योगदान रहा है।
आदि हिन्दी कवि के रूप में पुष्य, पुण्ड, पुष्पदंत, विमलसूरि आदि की अपेक्षा सरहपाद- सरह (स्थितिकाल-750-769) को मागधी-सौरसेनी अपभ्रंश से विकसित 'पुरानी हिन्दी' के सर्वाधिक सन्निकट होने के कारण यह श्रेय देना ज्यादा तथ्याश्रित होगा।
यह उल्लेखनीय है कि साहित्य की प्रायः प्रत्येक प्रवृत्ति के बीज इस अवधि में अंकुरित हुए हैं। इतिहास लेखन करते हुए जिन्हें पहले मध्यकालीन माना गया था, अब उनमें से कुछ आदिकाल में गणनीय हैं।
Nagarikta Sanshodhan Adhiniyam (Tathya Evam Satya : Ek Bauddhik Vimarsh)
- Author Name:
Geeta Singh
- Book Type:

- Description: "भारत सदैव विश्व के सभी सताए हुए लोगों की शरणस्थली रहा, उसी के नागरिकों को उसी की भूमि पर अवसरवाद के इस खेल ने शरणार्थी बना दिया। आज हमें एक मजबूत इच्छाशक्ति वाली मानवतावादी सरकार मिली है, जो इन पीडि़तों एवं शोषितों को सहारा देने के लिए सर्वसम्मति से ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ को पारित करवाकर लाई, तो अवसरवादी तुच्छ राजनीति करने वाले लोग फिर देश को गुमराह करने में लग गए हैं। समाज में हर तबके के अंदर देश के कोने-कोने में आज सी.ए.ए., एन.पी.आर. एवं एन.आर.सी. पर लोगों के मन में जहर घोलकर तरह-तरह की भ्रांतियाँ बैठा दी गई हैं। उन्हीं भ्रमों के निवारण के लिए तथा इन सभी अधिनियमों के सत्य को सामने लाने के लिए सी.पी.डी.एच.ई. (यू.जी.सी.एच. आर.डी.सी) दिल्ली विश्वविद्यालय के तत्त्वावधान में एक विचार गोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसमें राष्ट्र के अग्रणी चिंतक डॉ. इंद्रेश कुमारजी के सान्निध्य एवं संरक्षण में बौद्धिक विमर्श हुआ, जिसमें देश भर के विविध विश्वविद्यालयों से आए विभिन्न चिंतकों, प्राध्यापकों एवं शिक्षाविदों ने गंभीर विचार-विमर्श किया। उस वैचारिक मंथन से प्राप्त ज्ञान-सुधा को जन-जन तक पहुँंचाने के लिए यह पुस्तक प्रकाशित की गई है। केरल के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान की प्रस्तावना ने इस विषय के महत्त्व को दृढ़ता और प्रामाणिकता से रेखांकित किया है। "
The Gandhian Statesman of Bihar Nitish Kumar
- Author Name:
Ashok Choudhary +1
- Book Type:

- Description: "In the eyes of those who had lost all hopes in Bihar, Nitish Kumar has acquired the status of a miracle man. After all, how did he work for the revival of the state? Nitish Kumar is not a professional manager, he is a politician. When he took over as the Chief Minister of Bihar in November 2005, he frequently reminded the officials that the performance of the government was at stake in his ministry and not in the bureaucracy. If the government succeeds, then all the credit will be given his ministry. If it fails, his ministry will have to own the responsibility. Bureaucrats would not lose their jobs, but he (the Chief Minister) will have to go. Inspite of all this, Nitish Kumar earned a permanent place in the hearts of the people by working towards solving the issues related to the basic needs of the people and he emerged as the pioneer of social revolution. This process of improvement continues unabated. A readable and collectable saga that introduces you to the untold, inspiring, interesting, and adventurous campaigns of the social revolution of Nitish Kumar."
Bharatvarsh ka Brihat Itihas : Vols. 1- 2
- Author Name:
Shrinetra Pandey
- Book Type:

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Description:
भारतवर्ष का बृहत् इतिहास बड़ा ही लोकप्रिय ग्रन्थ बन गया है। इसकी रचना दशकों पूर्व की गई थी किन्तु इसकी मान्यता तथा लोकप्रियता आज भी पूर्ववत् बनी है। इस नवीन संस्करण का संशोधन तथा परिवर्द्धन उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार कर दिया गया है जिसके फलस्वरूप कुछ नए प्रकरणों का समावेश हो गया है।
पुस्तक के अन्त में कुछ परिशिष्टियाँ भी जोड़ दी गई हैं। जिससे पुस्तक की अनुकूलता तथा उपयोगिता में वृद्धि हो गई है। आशा है, यह नवीन संस्करण विद्यार्थियों तथा अध्यापकों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में सक्षम होगा।
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