Neend Ka Rang
Author:
Sara ShaguftaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
<span style="font-weight: 400;">मैंने आसमान से एक तारा टूटते हुए देखा है। बहुत तेज़ी से आसमान के ज़हन में एक जलती हुई लकीर खींचता हुआ... जो तारा मैंने टूटता हुआ देखा उसका भी एक नाम था : सारा शगुफ़्ता। उस तारे के टूटते वक़्त आसमान के ज़हन में जो लम्बी और जलती हुई लकीर खिंच गई थी वह लकीर सारा शगुफ़्ता की नज़्म थी।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">—अमृता प्रीतम, ‘एक थी सारा’ से</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जहाँ तक सारा शगुफ़्ता के अनुभवों की बात है, तो मेरे नज़दीक उनमें सब से ऊँचा उसका प्रतिरोध का स्वर है। यह वह औरत है जिसे बचपन में भावनात्मक और शारीरिक स्तर पर प्रताड़ित किया गया, चार मर्दों ने तलाक़ दी, बच्चों ने छोड़ दिया, मुशायरा सर्किल ने बहिष्कृत किया, लेकिन यही वह औरत भी है जिसने इन हालात के सामने चुप रहने से इंकार कर दिया। अगर उसकी काव्य-शैली की बात की जाए, तो वह उर्दू-फ़ॉर्मलिज़्म के बर्तन को उठाकर खिड़की के बाहर फेंक देती है—शगुफ़्ता आज़ाद नज़्म के स्वरूप को तोड़ती-फोड़ती है, तहस-नहस कर डालती है, और नए सिरे से नए साँचे में ढालती है।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">—असद अलवी, अनुवादक और समालोचक</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">सारा शगुफ़्ता की पहुँच उन हक़ीक़तों तक है जिन तक हमारे नस्री शायरी (गद्य कविता) लिखने वाले शायर कभी नहीं पहुँच सके। वह आला सतह की प्रतिभा की मालिक है। इन्सान के ज़हन का जैसा बोध उसे हासिल हुआ है वह हम में से किसी को हासिल नहीं। </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">—क़मर जमील, मशहूर शायर</span>
ISBN: 9789390971428
Pages: 158
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Yeh Prithvi Tumhein Deta Hoon
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Markandey
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मार्कण्डेय की ख्याति एक कथाकार के रूप में विशेष है। लेकिन उन्होंने कविता और कहानी साथ-साथ लिखना शुरू किया था। सन् 1954 में उनका पहला कहानी-संग्रह ‘पान-फूल’ और सन् 1956 में पहला कविता-संग्रह—‘सपने तुम्हारे थे’ नाम से आया था।
‘सपने तुम्हारे थे’ के बाद उनका फिर कोई दूसरा काव्य-संग्रह नहीं आया। लेकिन फिर सन् 2006 की जनवरी में सतीश जमाली द्वारा सम्पादित पत्रिका ‘नई कहानी’ का अंक एकाएक हाथ लगा। देखा, उसमें मार्कण्डेय की भी छह कविताएँ थीं। मार्कण्डेय जी से पूछा तो पता चला कि ये कविताएँ 1980 के दशक में लिखी गई कविताओं में से छाँटकर ‘नई कहानी’ में छपने को दी गई थीं। इस तरह यह भेद खुला कि मार्कण्डेय ने अपने कवि को ‘सपने तुम्हारे थे’ के साथ कोई अन्तिम विदाई नहीं दे दी थी। अलबत्ता काव्य-रचना के क्षेत्र में एक लम्बा मौन ज़रूर उन्होंने साध रखा था, जो शायद सन् 1980 के दशक में टूटा—भले ही बहुत थोड़े समय के लिए ही सही।
बहरहाल, प्रस्तुत संग्रह में मार्कण्डेय के पहले काव्य-संकलन ‘सपने तुम्हारे थे’ की कविताओं के साथ सन् 1980 के दशक में लिखी गई उनकी कविताओं को भी सम्मिलित किया गया है।
मार्कण्डेय कविता की ‘कला’ सीखने से ज़्यादा चाव रखते हैं यह सीखने में कि कविता में शब्दों को किसी सार्थक उद्देश्य से कैसे जोड़ा जाए। ‘अभी तो मैं सीख रहा हूँ’ शीर्षक कविता की ये पंक्तियाँ देखिए—‘‘अगर सम्भव हुआ तो निहाई ले आऊँगा/हथौड़े से पीटूँगा, हँसिया बनाऊँगा/फिर मैं सीखूँगा शब्दों को गर्म करना/नाबदानों और वेश्यालयों में पड़े-पड़े/वे घिनौने, बदकार और चापलूस हो गए हैं...’’
सीखने की कोई उम्र नहीं होती। मगर यह सब सीखने में मार्कण्डेय के कवि-रूप को कितनी सफलता मिली या यह सब सीखने में कविता का क्या-क्या दाँव पर लगा—इसकी जाँच–परख इन कविताओं के पाठक अपने विवेक से करेंगे, ऐसी आशा है।
—राजेन्द्र कुमार
Pratinidhi Kavitayen : Vishwanath Prasad Tiwari-Paperback
- Author Name:
Vishwanath Prasad Tiwari
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विश्वनाथप्रसाद तिवारी के वर्षों के सक्रिय कवि-कर्म के सफ़र को देखते हुए आज यह बात कही जा सकती है कि अपने समकालीनों के बीच रहते हुए भी उन्होंने अपने समकालीनों का अतिक्रमण किया। वे अपनी पीढ़ी के उन कवियों में शुमार हैं जिनके मितकथन और मितभाषा के प्रयोग सघन और ताक़तवर हैं, जो आज उनकी काव्योपलब्धि के रूप में रेखांकित किए जा सकते हैं।
विश्वनाथप्रसाद तिवारी के कवि-कर्म के सरोकारों की गहरी छानबीन की जाए तो उसकी मुख्य थीम में तीन प्रस्थान-बिन्दु चिह्नित होते हैं—स्वाधीनता, स्त्री-मुक्ति और मृत्यु-बोध। ग़ौर से देखें तो उनकी समूची काव्य-यात्रा इन तीन प्रस्थान-बिन्दुओं को लेकर गहन अनुसन्धान करती हैं। इन तीनों जीवन-दृष्टियों का बोध वे भारतीय अन्त:करण से करते हैं। स्त्री-अस्मिता की खोज उनके कवि-कर्म के बुनियादी सरोकारों में सबसे अहम है। उनकी कविता के घर में स्त्री के लिए जगह ही जगह है। उनकी दृष्टि में स्त्री के जितने विविध रूप हैं, वे सब सृष्टि के सृजनसंसार हैं।
उनके कवि की समूची संरचना देशज और स्थानीयता के भाव-बोध के साथ रची-बसी है, काव्यानुभूति से लेकर काव्य की बनावट तक। भोजपुरी अंचल में पले-पुसे और सयाने हुए विश्वनाथ के मनोलोक की पूरी संरचना भोजपुरी समाज के देशज आदमी की है। उनकी कविताओं में इस समाज का आदमी प्राय: विपत्ति में लाठी की तरह दन्न से तनकर निकल आता है।
Pratinidhi kavitayen : Kedarnath Singh
- Author Name:
Kedarnath Singh
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केदारनाथ सिंह शायद हिन्दी के समकालीन काव्य-परिदृश्य में अकेले ऐसे कवि हैं, जो एक ही साथ गाँव के भी कवि हैं और शहर के भी। अनुभव के ये दोनों छोर कई बार उनकी कविता में एक ही साथ और एक ही समय दिखाई पड़ते हैं। शायद भारतीय अनुभव की यह अपनी एक विशेष बनावट है जिसे नकारकर सच्ची भारतीय कविता नहीं लिखी जा सकती। केदार की कविता जो पहली बार रूप या तंत्र के धरातल पर एक आकर्षक विस्मय पैदा करती है क्रमश: बिम्ब और विचार के संगठन में मूर्त होती है और एक तीखी बेलौस सच्चाई की तरह पूरे सामाजिक दृश्य पर अंकित होती चली जाती है।
केदारनाथ सिंह की कविताएँ समय में देर तक टिकनेवाली कविताएँ हैं। केदार की कविताओं की दुनिया एक ऐसी दुनिया है जिसमें रंग, रोशनी, रूप, गन्ध, दृश्य एक-दूसरे में खो जाते हैं। पर यही दुनिया है, जिसमें कविता का 'कमिटमेंट' खो नहीं जाता; वहाँ हमें कविता के मूल सरोकार, कविता की बुनियादी चिन्ता, कविता का कथ्य या सन्देश (बेशक स्थूल अर्थ में नहीं) पूरी तीव्रता के साथ ध्वनित या स्पन्दित रहता है।
केदार की कविता किसी अर्थ में एकालाप नहीं, वह हर हालत में एक सार्थक संवाद है। वह एक पूरे समय की व्यवस्था और उसकी क्रूर जड़ता या स्तब्धता को विचलित करती है। चुप्पी और शब्द के रिश्ते को वह बख़ूबी पहचानती है और उसे एक ऐसी काव्यात्मक चरितार्थता या विश्वसनीयता देती है, जिसके उदाहरण कम मिलते हैं।
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