Raks Jaari Hai
Author:
Zilani BanoPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
अब्बास ताबिश की ग़ज़लों में एक साधा हुआ रूमान है, जिसकी हदें इंसानी रूह और इंसानों की दूर-दूर तक फैली हुई दुनिया के तमामतर मसलों पर निगाह डालती हैं। वे पाकिस्तान से हैं और उर्दू शायरी की उस रवायत में हैं जिससे पाकिस्तान के साथ-साथ हिन्दुस्तान के लोग भी बख़ूबी परिचित हैं, और जिसके दीवाने दोनों मुल्कों में बराबर पाए जाते हैं।
अहसास के उनके यहाँ कई रंग हैं, यानी ये नहीं कहा जा सकता कि वे सिर्फ़ इश्क़ के शायर हैं, या सिर्फ़, फ़लसफ़े की गुत्थियों को ही अपने अशआर में खोलते हैं, या सिर्फ़ दुनियावी समझ और ज़िन्दगी को ही अपना विषय बनाते हैं। उनके यहाँ यह सब भी है—मसलन यह शेर, ‘हम हैं सूखे हुए तालाब पे बैठे हुए हंस, जो तआल्लुक़ को निभाते हुए मर जाते हैं।’ इस शे’र में निहाँ विराग और लगाव हैरान कर देनेवाला है, उसको कहने का अन्दाज़ तो लाजवाब है ही। अपनी बात को कहने के लिए वे अपने अहसास को एक तस्वीर की शक्ल में हम तक पहुँचाते हैं जो पढ़ने-सुनने वाले के ज़ेहन में नक़्श हो जाता है।
‘मैं कैसे अपने तवाज़ुन को बरकरार रक्खूँ, क़दम जमाऊँ तो साँसें उखड़ने लगती हैं’। इस शे’र में क्या एक भरा-पूरा आदमी अपने वजूद की चुनौतियों को सँभालने की जद्दोजहद में हलकान हमारे सामने साकार नहीं हो जाता? अब्बास ताबिश की विशेषताओं में यह चित्रात्मकता सबसे ज़्यादा ध्यान आकर्षित करती है। मिसाल के लिए एक और शे’र, ‘ये जो मैं भागता हूँ वक़्त से आगे-आगे, मेरी वहशत के मुताबिक़ ये रवानी कम है’।
अब्बास ताबिश की चुनिन्दा ग़ज़लों का यह संग्रह उनकी अब तक प्रकाशित सभी किताबों की नुमायंदगी करता है। उम्मीद है हिन्दी के शायरी-प्रेमी पाठक इस किताब से उर्दू ग़ज़ल के एक और ताक़तवर पहलू से परिचित होंगे।
ISBN: 9788183619233
Pages: 135
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Faiz Ahmed 'Faiz'
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- Description: नज़्मों, ग़ज़लों, क़तआत और कुछ अन्य रचनाओं के इस संकलन में फ़ैज़ की बेहद मशहूर नज़्मों में से एक ‘आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो’ भी शामिल है। इस नज़्म को उन्होंने 1959 में लिखा था। लाहौर की गलियों से उन्हें मय ज़ंजीरों के घोड़ागाड़ी से क़िला लाहौर की टॉर्चर सेल ले जाया गया था। इस नज़्म के पीछे उनका वही अनुभव है। हर हाल में आज़ादी के शैदाई फ़ैज़ की यह नज़्म उनकी शख़्सियत और शायरी दोनों की ऊँचाई को बयान करती है। 1960 के दशक के शुरुआती सालों में प्रकाशित ‘दस्ते-तहे-संग’ में उस दौर में लिखी हुई अन्य नज़्में, ग़ज़लें और क़तआत भी संकलित हैं जिनमें से कुछ मास्को, बम्बई और लन्दन में भी लिखी गईं। कविताओं के अलावा इस संकलन का ख़ास आकर्षण फ़ैज़ की एक तक़रीर है जो उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय लेनिन शांति पुरस्कार ग्रहण करते हुए उर्दू में दी थी। ‘फ़ैज़... अज़ फ़ैज़’ शीर्षक से उन्हीं का लिखा हुआ एक और आलेख भी यहाँ आप पाएँगे जिसमें वे अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताते हैं और उस दौरान लिखी गई कविताओं की पृष्ठभूमि से भी हमें अवगत कराते हैं।
Samay Ke Pass Samay
- Author Name:
Ashok Vajpeyi
- Book Type:

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Description:
प्रेम, मृत्यु और आसक्ति के कवि अशोक वाजपेयी ने इधर अपनी जिजीविषा का भूगोल एकबारगी बदल दिया है : वे कहेंगे बदला नहीं, सिर्फ़ उसमें शामिल कुछ ऐसे अहाते रौशन भर कर दिए हैं जो पहले भी थे पर लोगों को नज़र नहीं आते थे। अपनी निजता को छोड़े बिना उनकी कविता की दुनिया अब कुछ अधिक पारदर्शी और सार्वजनिक है। उसमें अब एक नए क़िस्म की बेचैनी और प्रश्नाकुलता विन्यस्त हो रही है।
समय, इतिहास, सच्चाई आदि को लेकर बीसवीं शताब्दी के अन्त में जो दृश्य हाशिये पर से दीखता है, उसे अशोक वाजपेयी अपनी कविता के केन्द्र में ले आए हैं। जुड़ाव-उलझाव के कुछ बिलकुल अछूते प्रसंग उनकी पहली लम्बी कविता में कुम्हार, लुहार, बढ़ई, मछुआरा, कबाड़ी और कुंजड़े जैसे चरित्रों के मर्मकथनों से अपनी पूरी ऐन्द्रियता और चारित्रिकता के साथ प्रगट हुए हैं। उनका पुराना पारिवारिक सरोकार अपने पोते के लिए लिखी गई दो कविताओं में दृष्टि और अनुभव के अनूठे रसायन में चरितार्थ होता है।
एक बार फिर अशोक वाजपेयी की आवाज़ नए प्रश्न पूछती, नई बेचैनी व्यक्त करती और कविता को वहाँ ले जाने की कोशिश करती है जहाँ वह अक्सर नहीं जाती है। अब उनका काव्यदृश्य सयानी समझ और उदासी से, सयानी आत्मालोचना से आलोकित है, उसमें किसी तरह अपसरण नहीं है—कवि अपनी दुनिया में अपनी सारी अपर्याप्तताओं और निष्ठा के साथ शामिल है। कविता उसके इस अटूट उलझाव का साक्ष्य है।
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