Matdan Kendra Par Jhapaki
Author:
Kedarnath SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 100
₹
125
Available
ये कविताएँ एक कवि का पक्ष रखती हैं जिसे केदार जी इक्कीसवीं सदी की दूसरी दहाई में आकर पक्षहीन हो चुके हम लोगों को सौंप रहे हैं। ये कविताएँ हिंसा के विशाल परदे के आगे एक मनुष्य का हिंसक होने से इनकार हैं—देखने में बहुत विनम्र, विनीत, लेकिन चट्टान-सा सख़्त, दृढ़ और निर्णायक।</p>
<p>ज़रूरी नहीं कि उनकी सूची में हमारा नाम हो ही, जिनका नाम किसी सूची में नहीं, उनकी भी एक दुनिया है, जिसका नेतृत्व पेड़ करते हैं, और आपस में टकराते सत्ता के काले-पीले-सफ़ेद नारों के बरक्स जिसके पास पृथ्वी के सबसे सटीक और सबसे सुन्दर नारे हैं। वे नारे जो नदियों को उनका पानी, चींटियों को उनके बिल और आँखों को उनकी झपकी लौटा देने की पैरवी कर रहे हैं। इस संग्रह को पढ़ते हुए हमें इन रवहीन नारों की ताक़त का अहसास होता है।</p>
<p>केदार जी अब हमारे बीच नहीं हैं, उनकी कविताओं का यह संकलन एक वसीयत की तरह हमारे पास रहेगा जिसमें संसार की सबसे मूल्यवान वस्तु, मनुष्यता की देखरेख की ज़िम्मेदारी वे हमें सौंप रहे हैं।</p>
<p>‘‘पृथ्वी के सारे ख़ून एक हैं/एक ही यात्रा में/एक ही पृथ्वी-भर लम्बी देह में/दौड़ रहे हैं वे/...अरबों धड़कनें एक ही लय में/घुमा रही हैं दुनिया को/ हर ख़ून हर ख़ून से बतियाता है।''</p>
<p>ये कविताएँ अपने सहज, निरायास आग्रह के साथ हमें ख़ून से बातें करते ख़ून की आवाज़ सुनने को कहती हैं। ''क्षमा करें भद्रजन/यदि फिर पूछ रहा हूँ/...मेरे देश के एक हाथ को/एक खुले हुए भूखे मुँह तक पहुँचने में/कितने बरस लगते हैं?’’ यह एक निर्दलीय प्रश्न है, लेकिन निरपेक्ष नहीं, यह मनुष्यता की आहत कोख में चीख़ता प्रश्न है; उम्मीद है हम इसका जवाब ढूँढ़ने का प्रयास करेंगे!
ISBN: 9789387462885
Pages: 71
Avg Reading Time: 2 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Chhatha Beta
- Author Name:
Upendra Nath Ashk
- Book Type:

- Description: उपेन्द्रनाथ अश्क के नाटकों में ‘छठा बेटा’ का विशेष स्थान है। नाटक मुख्य रूप से देखने की वस्तु है। नाटककार के सामने जितनी चुनौती दृश्य को साकार करने की होती है उतनी ही चुनौती पाठ को प्रभावी बनाने की भी होती है, ताकि उसका नाटक अभिनेय और पठनीय, दोनों हो। पठनीयता को नाटक की श्रेष्ठता का अनिवार्य गुण भले न माना जाए लेकिन उसके अभाव में वह एक साहित्यिक कृति के रूप में पूर्णता प्राप्त करने से वंचित रह जाता है। ‘छठा बेटा’ इन दोनों कसौटियों पर पूरी तरह खरा उतरता है। इसमें नाटकीय रचना की तीनों आवश्यक इकाइयों—समय, स्थान और अभिनय का सुसंगत संयोजन है। इसका नाटकीय कौशल यानी स्टेज क्राफ्ट देखें तो आरम्भ, गति, संघर्ष, क्लाइमेक्स आदि नाटकीय कार्य-व्यापार की सभी अवस्थाओं का इसमें अनूठा सन्तुलन है। और इस नाटक का पाठ, मंचन-अभिनय के लिए निर्देश-संवाद मात्र तक सीमित नहीं न रहकर एक मुकम्मल पाठ है जिसको सिर्फ पढ़ कर भी कोई पाठक इसके मर्म तक पहुँच सकता है। हास्य-व्यंग्य की एक धारा शुरू से अन्त तक इस नाटक में प्रवाहित होती रहती है जो इसकी पठनीयता को और प्रभावी बना देती है। लेकिन हास्य-व्यंग्य के इस प्रवाह से नाटक की गम्भीरता कहीं बाधित नहीं होती। मनुष्य की सुख-शान्ति की स्वाभाविक आकांक्षा उस समय दारुण हो उठती है जब वह इसके लिए दूसरों से अपेक्षा करता है। हमारे सामाजिक जीवन की इस सचाई को अश्क इस नाटक में बखूबी उजागर करते हैं लेकिन निराशा की ओर धकेलते हुए नहीं, बल्कि जीवन की इस विडम्बना पर हँसने का हौसला देते हुए।
Ullanghan
- Author Name:
Rajesh Joshi
- Book Type:

-
Description:
उल्लंघन संग्रह में कवि हुक्म-उदूली की अपनी प्राकृतिक इच्छा से आरम्भ करते हुए मौजूदा दौर की उन विवशताओं से अपनी असहमति और विरोध जताता है, जिन्हें सत्ता हमारी दिनचर्या का स्वाभाविक हिस्सा बनाने पर आमादा है।
एक ऐसे समय में ‘जिसमें न स्मृतियाँ बची हैं/न स्वप्न और जहाँ लोकतंत्र एक प्रहसन में बदल रहा है/एक विदूषक किसी तानाशाह की मिमिक्री कर रहा है’—ये कविताएँ हमें निर्प्रश्न अनुकरणीयता के मायाजाल से निकलने का रास्ता भी देती हैं, और तर्क भी।
कवि देख पा रहा है कि ‘सिकुड़ते हुए इस जनतंत्र में सिर्फ़ सन्देह बचा है’, ताक़त के शिखरों पर बैठे लोग नागरिकों को शक की निगाह से देखते हैं, तरह-तरह के हुक्मों से अपने को मापते हैं; कहते हैं कि साबित करो, तुम जहाँ हो वहाँ होने के लिए कितने वैध हो, और तब कविता जवाब देती है–‘ओ हुक्मरानो/मैं स्वर्ग को भूलकर ही आया हूँ इस धरती पर/तुम अगर मुझे नागरिक मानने से इनकार करते हो/तो मैं भी इनकार करता हूँ /इनकार करता हूँ तुम्हें सरकार मानने से!’
लगातार गहरे होते राजनीतिक-सामाजिक घटाटोप के विरुद्ध पिछले चार-पाँच सालों में जो स्वर मुखर रहते आए हैं, राजेश जोशी उनमें सबसे आगे की पाँत में रहे हैं। इस संग्रह की ज़्यादातर कविताएँ इसी दौर में लिखी गई हैं। कुछ कविताएँ महामारी के जारी दौर को भी सम्बोधित हैं जिसने सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने के सरकारी उद्यम पर जैसे एक औपचारिक मुहर ही लगा दी–‘सारी सड़कों पर पसरा है सन्नाटा/बन्द हैं सारे घरों के दरवाज़े/एक भयानक पागलपन पल रहा है दरवाज़ों के पीछे/दीवार फोड़कर निकल आएगा जो/किसी भी समय बाहर/और फैल जाएगा सारी सड़कों पर!’
Via Nayi Sadi
- Author Name:
Shriprakash Shukla
- Book Type:

-
Description:
‘वाया नई सदी’ दस्तावेज़ है समय की असहजताओं और अस्वाभाविकताओं का जिन्हें हमने जीवन की स्वाभाविक मुद्राओं की तरह स्वीकार कर लिया है। ये कविताएँ इस स्वीकृति के विरुद्ध उठी मुट्ठियों की तरह हैं। यह समय जहाँ बोलने, चीखने और विरोध करने पर लगातार कठोर होती पाबन्दियाँ हमारी चुप्पियों पर हँसने लगी हैं, और हम प्यार को, जनतन्त्र को, मानवीयता को धीरे-धीरे छीजते देख रहे हैं, और ख़ामोश हैं।
‘हमारे समय के करुण इतिहास पर/हिंसा की तरह दर्ज अभिलाषाओं में/महामौन की तरह खड़ी है एक गाय/जो अभी-अभी खूँटे पर आई है/लहूलुहान’—‘गाय’ शीर्षक कविता की ये पंक्तियाँ भारत की नयी सदी की उस महाविडम्बना की ओर संकेत करती है जहाँ करुणा में रसे-बसे सांस्कृतिक प्रतीकों को हिंसक बिम्बों में बदलने की कोशिश बाक़ायदा सत्ता के इशारों पर हो रही है और समाज, जैसे कि उसे इसी का इंतज़ार था, इस प्रक्रिया को पूरा करने में जुटा हुआ है : ‘उनमें ग़ज़ब की सामूहिक सहमति है’, और ‘एक सीधी सरल गाय/हिंसक पशु में बदल जाती है।’
श्रीप्रकाश शुक्ल भारतीयता के इस क्षरण के प्रति अपनी असहमति, अपना प्रतिरोध दर्ज कराना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि हम बोलें, 'चुप्पी के काइएँपन से दूसरे की हत्या करने से बेहतर है/बोल-बोलकर ख़ुद के भीतर जमी काइयों का वध करना।’ वे कहते हैं कि ‘बोलता आदमी जब चुप हो जाए/तो समझिए कि इस व्यवस्था में एक तानाशाह का जन्म हो चुका है/जो हमारे मुँह से प्रवेश करता है और जीभ को चीरता हुआ/अंतड़ियों में उतर जाता है।’ इसीलिए वे एक मुखर आदमी के पक्ष में अपना बयान देते हैं, ‘मनुष्यों के मुद्दे राजनीति से बड़े होते हैं/और अर्थनीति से ज़्यादा उलझे हुए/...कि लोकतंत्र के मुद्दे भुजा से नहीं/भाषा से तय होते हैं।’
श्रीप्रकाश शुक्ल के इस नए संग्रह में कई कविताएँ ऐसी हैं जो इस विचित्र सदी को सीधे-सीधे सम्बोधित हैं और कई ऐसी जो समय के शोर में बिला रही मनुष्यता की सरस, सहज, सकारात्मक भंगिमाओं को आवाज़ देती हैं। उनके ‘नहीं होने’ को रेखांकित करती हैं ताकि हम उन्हें लौटा लाएँ। कोरोना काल के भीषण विद्रूप भी इन कविताओं में अंकित हुए हैं, और प्रकृति के साहचर्य से पल्लवित संवेदनाएँ भी। लेकिन ‘वाया’ की ओट से समय की लय को भंग करनेवाली ताक़तों को लेकर चेतावनी कहीं धूमिल नहीं पड़ती : ‘बादल होंगे लेकिन नमी नहीं होगी/...रक्षक होंगे लेकिन रक्षार्थ कुछ नहीं होगा.../और तब वे अपने वर्तमान से मुक्त होकर/एक शानदार विरासत का जश्न मनाएँगे/...मानव-मुक्त विकास का जश्न!’
Chakravayuh
- Author Name:
Kunwar Narain
- Book Type:

-
Description:
समकालीन हिन्दी कविता में जब भी नई कविता दौर की चर्चा होती है, कुँवर नारायण कुछ-कुछ अलग खड़ा नज़र आते हैं। इसका कारण है उनकी काव्य-संवेदना का निर्बन्ध होना। अपने दौर के कविता-आग्रहों को अपनी कविता में उन्होंने अपनी ही तरह स्वीकार किया; अपने कवि-स्वभाव और भारतीय काव्य-परम्परा को अस्वीकार कर कविता करना उन्होंने कभी नहीं ‘सीखा’।
‘चक्रव्यूह’ की कविताएँ इस नाते आज दस्तावेज़ी महत्त्व रखती हैं। उनमें एक अलग ही तरह का ‘कवि समय’ मौजूद है।
कुँवर नारायण के इस संग्रह का पहला संस्करण 1956 में प्रकाशित हुआ था। आकस्मिक नहीं कि ये कविताएँ आज भी हमारे संवेदन को गहरे तक छूती हैं। संगृहीत कविताओं में जो एक व्यवस्था है, चार खंडों में उन्हें जिन उपशीर्षकों (‘लिपटी परछाइयाँ’, ‘चिटके स्वप्न’, ‘शीशे का कवच’ और ‘चक्रव्यूह’) के अन्तर्गत रखा गया है; उसका वैयक्तिक नहीं, वैश्विक सन्दर्भ है लेकिन जिसे समझने के लिए स्वाधीनोत्तर भारतीय मन को ही नहीं, भारतीय राज्य-व्यवस्था के चरित्र को भी ध्यान में रखना होगा। कुँवर यदि यह जानते हैं कि कल का (या आज का) अभिमन्यु ‘ज़िन्दगी के नाम पर/हारा हुआ तर्क’ है तो यह कहने का साहस भी रखते हैं कि ‘छल के लिए उद्यत/व्यूह-रक्षक वीर कायर हैं’। अनुष्ठानपूर्वक, पूजकर मारे जानेवाले जीव की पीड़ा कवि-संवेदना से एकमेक होकर समष्टि की पीड़ा बन जाती है; और ऐसे में ईश्वर उसका अन्तिम भय।
संक्षेप में कहा जाए तो कुँवर नारायण की समग्र काव्य-चेतना और उसकी विकास-यात्रा में उनके इस कविता-संग्रह का मूल्य-महत्त्व बार-बार उल्लेखनीय है।
Udte Hain Ababeel
- Author Name:
Sushma Naithani
- Book Type:

- Description: Poems
Lipika
- Author Name:
Rabindranath Thakur
- Book Type:

- Description: ‘लिपिका’ रवीन्द्रनाथ ठाकुर का सबसे पहला गद्य-काव्य संग्रह है। किन्तु इसकी केवल एक को छोड़कर और कोई रचना कविता के तौर पर, यानी कविता आवृत्ति के छन्द के हिसाब से कभी प्रस्तुत नहीं की गई। ‘प्रश्न’ नाम की रचना को सन् 1911 में, पुस्तक प्रकाशित होने के तीन साल पहले, ‘भारती’ पत्रिका में कविता के छन्द के अनुसार छापा गया था। तो भी अगस्त, 1922 में पुस्तक प्रकाशित करने के समय कविगुरु ‘लिपिका’ को कविता-संग्रह के तौर पर छापने का साहस नहीं कर पाए। उन्होंने स्वयं ही लिखा है : ‘छापने के समय वाक्यों को पद्य की तरह तोड़ना नहीं हुआ—मैं तो मानता हूँ कि इसका कारण मेरी कायरता ही था।’ जो भी हो, ‘लिपिका’ वह कृति है जो मनुष्य के हृदय और बुद्धि की गहरी परतों को सर्वश्रेष्ठ कला के माध्यम से ऊपर उभारकर पाठक के सामने रख देती है। हर रूपक को पढ़कर एक दर्शन होता है और साथ-साथ अपने-आपको टटोलने की तरफ़ एक इशारा भी मिलता है। इस कृति की तरफ़ हिन्दी साहित्य जगत का ध्यान उतना नहीं गया है, जितना, मैं मानता हूँ, जाना चाहिए। मेरे लिए तो इसका अनुवाद करना आनन्द का एक बड़ा स्रोत रहा है। इसके कारण गुरुदेव का जो सामीप्य मिला, वह अपूर्व और बड़ा महत्त्वपूर्ण है। पाठकों के साथ इसमें भागीदारी करने का मौक़ा मिला है, उसके लिए कृतज्ञ हूँ। —भूमिका से
Mere Desh Mein Kahte Hain Dhanyavad
- Author Name:
Sharad Chandra
- Book Type:

-
Description:
रने एमिल शार्, जिन्हें अल्बैर् कामू अपने समय का महानतम कवि मानते थे, का जन्म दक्षिणी फ्रांस के प्रोवॉन्स प्रदेश के एक नामी और ख़ूबसूरत क़स्बे, ईल-सुर-सोर्ग में, 7 जून, 1907 को हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का ज़्यादातर समय पेरिस और प्रोवान्स में बिताया।
शार् ने अपने बिम्ब और प्रतिमाएँ दक्षिण फ्रांस में बीते अपने बचपन से और वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों से ली हैं। वो कोई देहाती कवि नहीं थे, लेकिन देहात के दृश्यों का प्रभाव उनकी कविताओं में भरपूर मिलता है। प्रकृति के प्रति शार् की आस्था उतनी ही दृढ़ थी जितनी अपनी कविताओं के शिल्प के प्रति। उन्होंने सोर्ग नदी के प्रदूषण, वान्तू—जिस पर प्रैटार्क ने 1336 में विजय प्राप्त की थी—और मौं मिराइल पहाड़ों की चोटियों पर न्यूक्लियर रिएक्टरों के लगाने पर शहरी आपत्ति जताई थी।
शार् की सृजनात्मक दृष्टि पर, उनके कविता लिखने के उद्देश्य और शिल्प पर जिन लोगों का प्रभाव रहा, उनमें ग्रीक दार्शनिक हेरा क्लाइटस, फ़्रैंच कलाकार जॉर्ज दि लातूर और कवि आर्थर रैम्बो को प्रमुख माना जाता है। रैम्बो का साया उनके बिम्बों पर स्पष्ट दिखता है, ख़ास तौर से उनकी सूक्ष्म, घनीभूत गद्य कविताओं में। शार् पर एक और प्रभाव रहा अति यथार्थवाद का।
शार् एक ही विधा में लिखना पसन्द नहीं करते। उन्होंने मुख्य रूप से तीन विधाओं (forms) में कविताएँ लिखी हैं : मुक्त छन्द, गद्य कविता, और सूक्ति। वो अपनी पद्य कविताओं (Verse Poems) और गद्य कविताओं में उन्हीं विषयों को परिवर्द्धित करते हैं जिन्हें उन्होंने अपनी सूक्तियों में उठाया।
अपनी आख़िरी किताब के प्रकाशन तक शार् इस धारणा के समर्थक रहे कि कला, साहित्य और संगीत पारस्परिक रूप से प्रतिरोध की आवश्यक अभिव्यक्ति में जुड़े हुए हैं।
Koyla Aur Kavitwa
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

- Description: ला और कवित्व' में रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की सन् साठ के बाद रची गई ऐसी कविताएँ हैं जो अपने आधुनिकता-बोध में पारदर्शी तो हैं ही, कला-विन्यास का श्रेष्ठ उदाहरण भी हैं। इस संग्रह में संकलित है एक विदुषी को लिखा गया कवि का गीत-पत्र–'कला फलाशा से युक्त होती है या वियुक्त और कोयले का उत्पादन बढ़ाने को यदि गीत लिखे जाएँ तो कैसा रहे?' यह गीत-पत्र मात्र पत्र नहीं, कवि के गहन चिन्तन का दस्तावेज़ भी है। और यह चिन्तन-ज़मीन अपनी सम्पूर्णता में इस संग्रह को विशिष्ट भी बनाती है, हमें अपने वर्तमान से जोड़ती भी है। 'कोयला और कवित्व' में संकलित कविताएँ अपने आकार में बहुत बड़ी न होकर भी अपनी प्रकृति में बहुत बड़ी हैं। एक बड़े कालखंड से जुड़ी ये कविताएँ परम्परा और अन्तर्विरोधों से गुज़रते हुए जिस संवाद का निर्वाह करती हैं, वह बहुत बड़ी सृजनात्मकता का प्रतीक है। हमारे मन और मस्तिष्क को उद्वेलित करनेवाली ये कविताएँ संग्रहणीय भी हैं, और अविस्मरणीय भ
Pratinidhi Kavitayen : Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

-
Description:
दुर्धर्ष भाग्य और क्षुद्र समय से आजीवन घिरे रहे महा-कवि और महा-प्राण मनुष्य निराला ने हिन्दी कविता को अपने ही हाथों वह दे दिया जिसे अर्जित करने में युगों की प्रतिभा और शक्ति व्यय हो जाती है। छायावाद के दौर में ही उन्होंने एक कदम बढ़कर मुक्त छन्द में यथार्थवादी कविता को सम्भव किया तो स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान और आजादी के बाद भारतीय राजनीति तथा समाज की स्थितियों को लक्षित कर कविताएँ और उपन्यासों की रचना भी की। ‘सरोज स्मृति’ और ‘राम की शक्तिपूजा’ जैसी कविताओं से उन्होंने कविता की सामर्थ्य के नए मानक गढ़े, तो गीतों में परम्परा, प्रयोग और लोकचेतना के असंख्य अर्थसघन बिम्ब अगली पीढ़ियों के लिए छोड़े। लेकिन यह नवीनता और प्रयोगधर्मिता किसी मामूली चमत्कार-प्रियता का परिणाम नहीं थी, यह निश्चय ही दुख के ताप से नित नूतन होते उनके मन का स्वाभाविक प्रवाह रहा होगा जो क्षणों की अवधि में वर्षों-दशकों को लाँघता चलता है।
उनकी प्रतिनिधि कविताओं के इस संकलन में प्रयास किया गया है कि पाठक निराला के विराट कृतित्व के कुछ सबसे दीप्तिमान शिखरों का साक्षात्कार कर सके।
Silent Uproar
- Author Name:
Surbhi Islam
- Book Type:

- Description: Step into a world where Surbhi Islam skillfully simmers life’s ingredients in the pot of her soul, creating a poetic feast that resonates deeply. With culinary art as her palette and flavors as her strokes, she creates vibrant dishes that evoke a symphony of emotions on the palate. Ta da! A new tadka of poetry collection is ready!!
Geetanjali
- Author Name:
Rabindranath Thakur
- Book Type:

- Description: ‘गीतांजलि’ गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर (1861-1941) की सर्वाधिक प्रशंसित और पठित पुस्तक है । इसी पर उन्हें 1913 में विश्वप्रसिद्द नोबेल पुरस्कार भी मिला । इसके बाद अपने पुरे जीवनकाल में वे भारतीय साहित्याकाश पर छाए रहे । साहित्य की विभिन्न विधाओं, संगीत और चित्रकला में सतत सृजनरत रहते हुए उन्होंने अंतिम साँस तक सरस्वती की साधना की और भारतवासियों के लिए ‘गुरुदेव’ के रूप में प्रतिष्ठित हुए । प्रकृति, प्रेम, इश्वर के प्रति निष्ठा, आस्था और मानवतावादी मूल्यों के प्रति समर्पण भाव से संपन्न ‘गीतांजलि’ के गीत पिछली एक सदी से बांग्लाभाषी जनों की आत्मा में बसे हुए हैं । विभिन्न भाषाओँ में हुए इसके अनुवादों के माध्यम से विश्व-भर के सहृदय पाठक इसका रसास्वादन कर चुके हैं । प्रतुत अनुवाद हिंदी में अब तक उपलब्ध अन्य अनुवादों से इस अर्थ में भिन्न है कि इसमें मूल बांग्ला रचनाओं की गीतात्मकता को बरक़रार रखा गया है, जो इन गीतों का अभिन्न हिस्सा है । इस गेयता के कारण आप इन गीतों को याद रख सकते हैं, गा सकते हैं ।
Dhoomil Ki Shreshth Kavitayan
- Author Name:
Brahma Dev Mishra +1
- Book Type:

- Description: ‘धूमिल की श्रेष्ठ कविताएँ’ अत्यन्त प्रखर और हिन्दी काव्य-जगत में नई हलचल पैदा करनेवाले सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’ की कविताओं का प्रथम सम्पादन है। एक लम्बी भूमिका के साथ सम्पादकों ने उनकी श्रेष्ठ कविताओं का चयन किया है, साथ ही भाषा के माध्यम से गाँव को शहर की होड़ में लानेवाले कवि की कविताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी भी प्रस्तुत की है। लक्ष्य, धूमिल की अनगढ़ भाषा और नए मुहावरे को पाठकों तक सहजता से पहुँचाना है। सम्पादकों की दृष्टि में धूमिल का सर्जनात्मक व्यक्तित्व उनकी कविता में सक्रियता से मुखर है। ‘धूमिल को उनके कथ्य और भाषा के स्वीकृत स्वरूप के लिए जानना चाहिए, न कि प्रयोगात्मक शैलीकार के रूप में।’
Pratinidhi Shairy : Mirza Shauq Lakhnawi
- Author Name:
Mirza Shauq Lakhnawi
- Book Type:

- Description: मौलाना अब्दुल माजिद दरियावादी ने नवाब मिर्ज़ा ‘शौक़’ लखनवी को ‘उर्दू का एक बदनाम शायर’ तो कहा ही, साथ ही यह फ़ैसला भी सुना दिया कि ‘आज उर्दू की तारीख़ में कहीं उसके लिए जगह नहीं।’ यह और बात है कि सच्चाई आख़िर सिर चढ़कर बोलती है, और अपने इसी लेख में मौलाना ने आख़िर यह बात मानी कि ‘शौक़’ की डायरी की ख़ूबियों ने उनके नाम को गुमनाम नहीं होने दिया; उन्हें बदनाम करके सही, ज़िन्दा रखा। अलावा इसके, आख़िर में वे ख़ुद को यह भी कहने के लिए मजबूर पाते हैं कि ‘मशरिक़ के बेहया सुख़नगी, उर्दू के बदनाम शायर, रुख़सत! तू दर्द भरा दिल रखता था; तेरी याद भी दर्दवालों के दिलों में ज़िन्दा रहेगी। तूने मौत को याद रखा; तेरी याद पर, इंशाअल्लाह, मौत न आने पाएगी।’ इस सिलसिले में स्वर्गीय प्रो. ‘मजनूँ’ गोरखपुरी की बात भी याद रखने योग्य है। लिखते हैं कि उनके एक अंग्रेज़ प्रोफ़ेसर ‘शौक़’ की ‘ज़ह्रे इश्क़’ से बेहद प्रभावित हुए और बोले, ‘तुम लोग हो बड़े कमबख़्त। यह मस्नवी और इस क़समपुर्सी की हालत में! आज यूरोप में यह लिखी गई होती तो शायर की क़ब्र सोने से लेप दी गई होती और अब तक इस मस्नवी के न जाने कितने नुस्ख़े, रंग-बिरंगे एडिशन निकल चुके होते।’ प्रो. ‘मजनूँ’ गोरखपुरी ने तो बल्कि इस मस्नवी का शुमार जनवादी साहित्य में किया है—“ख़वास के लिए यह ऐब है; मगर इसकी क़द्र अवाम से पूछिए।” मुहावरेदार ज़बान और दिलकश तर्ज़े-बयान, देसज और अरबी-फ़ारसी शब्दों पर एक समान अधिकार और उन्हें आपस में दूध-शक्कर कर देने की क्षमता, पात्रों का जीवन्त चरित्र-चित्रण और उनकी भावनाओं का मर्मस्पर्शी वर्णन, इश्क़े-मजाज़ी से इश्क़े-हक़ीक़ी तक की दास्तान—ये तमाम ऐसी ख़ूबियाँ हैं जो ‘शौक़’ को शायरों की पहली क़तार में ला खड़ी करती हैं। और एक मस्नवी जब रंगमंच पर पेश की जाए, फिर पूरा हॉल मातमघर बन जाए, चारों तरफ़ से सिसकियों और हिचकियों की आवाज़ें आनी लगें, कुछ लोग ग़श खाकर लुढ़क पड़ें, घर जाकर एक लड़की आत्महत्या कर ले, कुछ और लोग आत्महत्या की कोशिश करें, और फिर सरकार इस मस्नवी पर पाबन्दी लगा दे, तो आप इसे क्या कहेंगे? ‘शौक़’ को अश्लील कहनेवालों से यह बात ज़रूर पूछी जानी चाहिए कि अश्लीलता थोड़ी देर का मज़ा भले दे ले, क्या वह भावनाओं में इस तरह का तूफ़ान उठाने की क्षमता रखती है।
Etiyadi Jan
- Author Name:
Puran Chandra Joshi
- Book Type:

-
Description:
अभिजन’ और ‘इत्यादि जन’ के बीच का अलगाव, उनके बीच की दरार नई सभ्यता की संरचना में ही निहित है। लगता है, इस अलगाव और दरार की चेतना से ही ‘अभिजन’ और ‘इत्यादि जन’ को दूर रखना इस सभ्यता की मूल प्रकृति है ताकि अभिजन के अन्दर ऐसे प्रबुद्ध तत्त्वों की निर्मिति न हो सके जो अपनी जन-विमुख ही नहीं, जन-विरोधी जीवनशैली के प्रति आत्म-पीड़ा और उत्ताप महसूस कर सकें और जन के प्रति अपने दायित्व का भी उन्हें अहसास हो सके।
सबसे अधिक चिन्ताजनक बात यह है कि उच्च और निम्न वर्गों के बीच की इस दरार के बारे में चेतना प्रसार के बदले मिथ्या चेतना प्रसार में राज्य पर दबाव डालने वाली स्थापित स्वार्थी संरचनाएँ ही नहीं, बौद्धिक और सर्जनात्मक तत्त्व भी जो समाज की आत्मा या अन्तःकरण माने जाते हैं, वे भी भागीदार नज़र आते हैं।
मिथ्या चेतना प्रसार के इस बड़े व्यापार में बहुत बड़ी भूमिका संख्या शास्त्र की है या संख्या शास्त्र की मूल प्रेरणाओं के विपरीत व्यवहार में उसे पूर्व स्थापित और नव स्थापित स्वार्थों के साँचे में ढालने की है। संख्या शास्त्र के क्रियाकलाप में बड़ी भूमिका आँकड़ों की है। आँकड़े ही वह ‘ब्रह्मास्त्र’ हैं जिनके द्वारा विपन्नों की वास्तविक स्थिति का मिथकीकरण कर उनके बुनियादी हितों पर सबसे बड़ा आघात होता है। आँकड़ों का भ्रमजाल ज़मीनी स्तर पर समर्थ अभिजन और असमर्थ ‘इत्यादि जन’ की दरार को सामने नहीं आने देता।
आँकड़ों द्वारा अँधेरे में रखे गए विकास के मूल्य-विमुख, समता-विरोधी, अमानुष और नकारात्मक पक्ष को ज़मीनी दृष्टि और अनुभव के आधार पर ये कविताएँ उजागर करती हैं। ये कविताएँ अध्ययन कक्ष के ‘एकान्त और प्रशान्त माहौल में स्मरण किए गए विचार मात्र नहीं हैं।’ न ये कवि के ‘संवेदी मन के स्वत:प्रसूत भावोद्गार मात्र हैं।’
अधिकांश कविताएँ ग्रामीण जगत् के कठोर और भयावह यथार्थ से जूझते ‘इत्यादि जनों’ से ज़मीनी स्तर पर आमने-सामने के ट्रौमा से उपजी रचनाएँ हैं। विकास (या अपविकास) का अमानुष चेहरा महज़ एक बुद्धिजीवी के दिमाग़ से उपजी अवधारणा नहीं है, यह ‘इत्यादि जनों’ की वास्तविक जीवन-स्थिति है, इसी सच्चाई पर ये रचनाएँ प्रकाश डालती हैं।
Yeh Kaisa Majak Hai Va Anya Kavitayein
- Author Name:
Madan Daga
- Book Type:

-
Description:
हर चन्द वर्ष बाद/हमें इन दरिन्दों को/समझाना पड़ता है कि इन्कलाब—मरी खाल की आह नहीं है/दुनिया—कोई क़त्लगाह नहीं है/आज़ादी—कोई गुनाह नहीं है!
व्यवस्था की आँख में आँख डालकर संवाद करने वाली ये कविताएँ, कोई आश्चर्य नहीं कि उस कवि की क़लम से ही उतरी होंगी जिसने सिद्धान्त, सच, मनुष्यता और अवाम को पहले, और सुख-सुविधाओं के आकर्षण को बहुत-बहुत पीछे रखा।
मदनलाल डागा ऐसे ही कवि थे। वे विचार के लिए जिए। साहित्यिक कौशल के सहारे आर्थिक सफलताओं का रास्ता भी उन्होंने नहीं पकड़ा। वे मानते थे कि साहित्य का काम सिर्फ़ यह दिखाना नहीं है कि समाज कैसा है, उसका काम अपने समय और अपने संसार का विश्लेषण और उनकी आलोचना करना है, अपने समय के नियंताओं को यह बताते रहना है कि वे कहाँ ग़लत हैं। उनकी कविताएँ यही करती रहीं। राजनीतिक सत्ता-केन्द्रों की संवेदनहीनता, स्वार्थ और नौकरशाही के निर्लज्ज भ्रष्टाचार के सामने अवाम की असहायता उन्हें लगातार व्यथित करती रही। न सिर्फ़ भावना के स्तर पर, बल्कि स्वास्थ्य और शरीर के स्तर तक।
सीधे-साफ़ शब्दों, तीखे व्यंग्य और स्पष्ट पक्षधरता से चमकती इन कविताओं में कई कविताएँ ऐसी रहीं जो हड़तालों-आन्दोलनों में नारों की तरह पढ़ी गईं, उनके पोस्टर बने, पर्चे छपे, संघर्षरत मज़दूरों, कर्मचारियों और छात्रों ने उन्हें अपने आक्रोश का स्वर बनाया।
इस संग्रह में शामिल कविताएँ, कुछ ग़ज़लें, हाइकू और मुक्तक हमें अपने समय से संवाद करने में भी निश्चय ही मदद करेंगी।
Meri Zameen Mera Aasman
- Author Name:
Lovlin
- Book Type:

- Description: षों पुरानी बात है, ऑल इंडिया रेडियो के परिसर में, वहाँ के मटमैले वातावरण में एक नवयुवती, कसी हुई जींस और लम्बे बूट पहने खट-खट करती गहरे आत्मविश्वास का दुशाला ओढ़े आती-जाती दिखाई पड़ती थी। पता चला, वह रूसी भाषा, तोल्स्तोय-दोस्तोयेवस्की जैसे महान लेखकों की भाषा जानती है और रेडियो में रूसी भाषा की विभागाध्यक्षा थी। यही नहीं, वह बड़े-बड़े समारोहों और विचार-गोष्ठियों में रूसी अतिथियों और भारत के मंत्रिगण, जैसे कि भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी, श्री नरसिंह राव, श्री इन्द्र कुमार गुजराल, श्री अटल बिहारी वाजपेयी, के मध्य दुभाषिए के रूप में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। वहीं पता चला, उसका नाम लवलीन है और वह रेडियो ही नहीं, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी रूसी भाषा पढ़ाती है। उसे निकट से देखा—सुन्दर मुखाकृति, बड़ी-बड़ी आँखें जिनमें मुझे ढेर सारे सपने झिलमिलाते नज़र आए थे। उसके बेपरवाह घुँघराले बाल और कर्मठ कसावट वाला व्यक्तित्व मुझे बड़ा प्रभावशाली लगा था। तब परिचय हो नहीं पाया और बीच से बहुत से वर्ष फिसल गए। परन्तु उसके चेहरे का, व्यक्तित्व का प्रभाव मेरी ‘इमोशनल मेमोरी’ में सदा बना रहा। जब मिली तो वह लवलीन, लवलीन थदानी बन चुकी थी, वेदान्त और कर्मण्य की माँ भी, परन्तु आश्चर्य हुआ मुझे, उम्र के परिवर्तन ने उसके शरीर को अनछुआ छोड़ दिया था, वह पहले जैसी ही थी—सौम्य और मधुर। इंडिया इंटरनेशनल सेन्टर के किसी कार्यक्रम में उसकी अंग्रेज़ी की कविताएँ सुनीं, उसकी कविताएँ मेरे मन के भीतर उतर गईं, जाने-अनजाने भावनाओं के गर्भगृह में हमारा एक जुड़ाव पनप गया। तब से हम जितना बन पड़ा, मिलते रहे। मेरी फ़िल्म ‘पंचवटी’ पर एक कार्यक्रम का संचालन लवलीन को करना था तो एक पूरा दिन हम एक सूने कमरे में साथ-साथ बैठे रहे एक-दूसरे को जानने के तहत...मैं उसकी दीदी हो गई। कुछ भावनाओं की केमिस्ट्री पता नहीं कैसे एक दूसरे जैसी हो जाती है। मुड़कर देखती हूँ तो याद पड़ता है, मैंने लवलीन का कोई भी कार्यक्रम, कविताएँ हों या उसकी बनाई फ़िल्में, कुछ नहीं छोड़ा...तो, उसका व्यक्तित्व हर प्रस्तुति में, जैसा वह कहती है, ‘थकती नहीं मैं जीने से’ बड़ा सार्थक लगा था, उसका अन्दाज़-ए-बयाँ उसका अपना था। अपनी कविताओं के सभी रूपों में वह स्वयं सम्मोहित थी और अब भी है, आकारों में, धरती के उन कणों में जहाँ वह गुलाब भी रखती है और चिराग़ भी जलाती है। ज़मीं से आसमाँ तक वह ख़ुद को तलाशती नज़र आती है। वह मानती भी है ֹ‘हमें ख़ुद ही देना होगा अपना साथ।’ अपनी लेखन यात्रा में उसने कोई तंत्र-मंत्र नहीं जपा, बिना किसी औपचारिकता में उलझे, वह चलती चली गई—सांसारिक होकर भी तपस्विनी। जब भी मैं उसे देखती, मुझे लगता, कृष्ण भक्त मीरा की तरह लवलीन सन्त-महात्माओं के बताए निर्गुण शब्द से अलग, सगुण प्रेम में लीन है। यह भी सच था कि अपनी दीवानगी की रहगुज़र बनीं वे पगडंडियाँ, जो उसे उन पुराने अन्धविश्वास को जीनेवाले, गली-कूचों और गाँव में ले गईं, जहाँ गुमराह करनेवाला अँधेरा पसरा हुआ था। लवलीन ने अपनी नाजुक उँगलियों से कुरेद-कुरेदकर उन सभी कुरीतियों की दास्तानें जमा कीं जो मनुष्यत्व के नाम पर एक-एक कालिख जैसी थीं। उसकी फ़िल्में मैंने देखी हैं...वह फ़ॉर्मूलाबद्ध फ़िल्में नहीं थीं, उनमें सामाजिक कुरीतियों (विशेष रूप से स्त्री के प्रति समाज का दृष्टिकोण, विसंगतियाँ) के प्रति गहरा आक्रोश है, एक विषाद और हताशा जिसकी चोट से विकृत रूप को बड़ी नाटकीयता से सबके सामने रखती है और साथ ही दर्शक को एक तर्कयुक्त निर्णय तक पहुँचाती है। उसकी फ़िल्में आत्मा को झकझोरतीं...भीतरी मानसिकता को भी, जहाँ क़ानून, पुलिस या अदालत नहीं होते, होता है एक आत्मिक दंड। वह कोई दावा नहीं करती, केवल समाज को उसका असली चेहरा दिखाती है। वह घुल जाती है अपने कथानक में, घुमड़ते दु:ख में...कष्ट में, पाप में—तब न पाप बचता है, न सारे के सारे द्वैत भाव जो मिट जाते हैं—वह अकेले बचती है, पार उतर जाती है और आनन्द ही तो होता है, सुख-दु:ख दोनों के पार। लवलीन के भावचित्र कविता हो या फ़िल्म, अपनी तरह से पुराने विश्वासों, संकल्पों, भावनाओं को नए-नए शब्द देते हैं। सत्य को वह भिन्न-भिन्न रूप से परिभाषित करती है...नहीं तो उसका अपनापन, सनातन सत्य, पुराने ढाँचों में आबद्ध दम तोड़ देता। उसे लगता है, सत्य को नई उद्भावना चाहिए, नई तरंग—“इनसानियत को मुस्कुराहट के तोहफ़ों से सजाएँगे अपने बुज़ुर्गों की ग़लतियों को, हरगिज़ नहीं दोहराएँगे?” अद्भुत है लवलीन की आत्मिक ऊर्जा, उसका व्यापक चैतन्य, जब वह अमृता प्रीतम के जीवन पर आधारित नाटक में अमृता प्रीतम की भूमिका निभा रही थी। पूरी की पूरी मानसिकता में अमृता प्रीतम को वह हर पल जी रही थी—मंच पर और मंच के बाद भी। नाटक में, उर्दू के प्रसिद्ध शायर साहिर लुधियानवी की मृत्यु पर फूट-फूटकर रोती लवलीन, लवलीन नहीं बची थी, पूरी अमृता हो गई थी। मैं हैरानी से सोचती कहाँ से ले आती है वह इतनी ऊर्जा? इतने सारे काम एक साथ कर डालती है बिना थके, बिना हार माने। कितना जोखिम-भरा रहा होगा उसके लिए कारागार में जाकर अपनी फ़िल्म 'बलात्कार' या 'रेप' की शूटिंग करना—औरत पर हुए ज़ुल्मों को बयान करना। परन्तु वह मगन है अपनी तपश्चर्या में, दीवानगी में, फक्कड़पन में, बिना मेहनत-मशक्कत किए जी नहीं पाती...अपना बहुमूल्य ज्ञान बाँटने में जुटी है। और उसके लिए वह जाने कहाँ-कहाँ से जाती है, बेझिझक यह कविता संग्रह ‘मेरी ज़मीन मेरा आसमान’ ही आख़िरी मंज़िल नहीं है उसकी, लवलीन के पास अभी भी ढेर सारे अनगाए गीत हैं…नज़्में हैं। प्रेम में पागल होकर पद्य गाए जाते हैं और दीवानगी में जिया जाता है—उसकी बेचैन रूह उसे जीने कहाँ देती है! चाहे वह जितना कहे—“मैं पौधे को पानी देती गई और प्यास मेरी बुझती गई।” वैसा होता कहाँ है! अभी यहाँ है, कल उसकी प्यासी आत्मा किसी पहाड़ की अँधेरी गुफ़ा में कुछ नया तलाशती मिल जाएगी आपको। परन्तु एक उसी क्षण उसका चेहरा आत्मसन्तुष्टि से भरा चमचमाता है, जब वह अपने बच्चों का नाम लेती है—वेदान्त और कर्मण्ये, जैसे नाम नहीं ले रही, मंत्रोच्चारण कर रही है। ज़िन्दगी के हर पहलू को लवलीन भरपूर जीती है—पूरी सच्चाई और शिद्दत के साथ। –डॉ. कुसुम अं
Tumhen Saunpta Hun
- Author Name:
Trilochan
- Book Type:

-
Description:
पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी कविता के परिदृश्य में त्रिलोचन की कविता का महत्त्व असाधारण रूप से बढ़ा है। यह एक दिलचस्प तथ्य है कि इस महत्ता की स्वीकृति में पेशेवर साहित्य मर्मज्ञों और तथाकथित अकादमियों का योगदान न के बराबर रहा है। अगर पिछले कुछ वर्षों की लघु-पत्रिकाएँ उठाकर देखा जाए तो यह स्पष्ट लगेगा कि युवा कवियों ने अपने समय की सांस्कृतिक जड़ता के ख़िलाफ़ त्रिलोचन की रचनाशीलता में एक नई ताज़गी और ऊर्जा का अनुभव किया है, अपने समय की रचनात्मक चुनौतियों से निपटने के लिए उनकी रचनाएँ एक योद्धा के रूप में उनके सामने उभरीं। ‘तुम्हें सौंपता हूँ’ उनकी कविताओं का एक विशिष्ट संग्रह है, जिसमें उनकी सन् 1935 से 83 तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कविताएँ शामिल हैं। इतने लम्बे कालक्रम में बिखरी इन कविताओं में आप कवि के रचनात्मक विकास की अनेक मंज़िलों से साक्षात्कार करेंगे। वास्तव में त्रिलोचन की कविताएँ दु:खों और विपदाओं के अपार समुद्र में मानवीय सौन्दर्य, प्रेम, आशा और स्वप्न का एक ऐसा घनीभूत पुंज हैं जो हमारे भीतर जीवन के प्रति अगाध विश्वास जगाता है। छोटी-
बड़ी इक्यासी कविताओं का यह संग्रह कवि के व्यक्तित्व के कुछ ऐसे आयामों को भी सामने लाता है, जिनसे हिन्दी जगत प्राय: अपरिचित ही रहा है।
इस संग्रह के शान्ति पर्व वाले खंड में त्रिलोचन के चार काव्य रूपक भी शामिल किए गए हैं जो उन्होंने दूसरे महायुद्ध के नरसंहार की पृष्ठभूमि में लिखे थे। जीवन को विध्वंस की आग में झोंकनेवाली शक्तियों के ख़िलाफ़ त्रिलोचन की कविताएँ किसी गुरिल्ला सैनिक की तरह हमारे भीतर प्रवेश करती हैं। यह उनकी कविताओं का ऐसा प्रतिनिधि संग्रह है जिसमें पूर्व संकलनों की कोई कविता भरसक नहीं आने पाई है।
Betarteeb - Weekend Wali Kavita
- Author Name:
Vinod Dubey
- Book Type:

- Description: सुबह का वक़्त कपालभांति में गुज़ारा, तो चाय पर पत्नी के विचार छूट गए। कॉर्नफ़्लेक्स और फ़्रूट प्लेट में रखे, तो आलू के परांठे और नींबू के अचार छूट गए। न ज़िन्दगी की ये छोटी-बड़ी उलझने बदलती हैं, ना हम बदलते है। कविताएँ बस इन्हें देखने का नज़रियाँ बदल देती हैं। लाख योजनाओं के बावज़ूद जैसे हम अस्त-व्यस्त-सी ज़िन्दगी जीते हैं, ठीक उसी तरह इस संग्रह की कविताएँ भी बेतरतीब विषयों पर लिखी गयी हैं। कई बार हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी बिलकुल नीरस हो जाती है, जैसे जेठ की दुपहरी में सड़क पर लावारिस पड़ा टीन का डिब्बा। इसी ज़िन्दगी से निकली इन कविताओं को फुर्सत के पलों में पढ़ियेगा, क्या पता उस जेठ की नीरसता को बसंत की नज़र लग जाए।
Kroorata
- Author Name:
Kumar Ambuj
- Book Type:

-
Description:
‘क्रूरता’ संग्रह की कविताएँ अपने प्रकाशन के साथ ही ध्यानाकर्षण का केन्द्र बन गई थीं। ये कविताएँ हमारे समय में नागरिक होने के संघर्ष, चेतना और व्यथा को गहरे काव्यात्मक आशयों के साथ विमर्श का विषय बनाती हैं। इसी क्रम में कुमार अंबुज, हिन्दी कविता में पहली बार, ‘क्रूरता’ पद को व्यापक सामाजिक एवं राजनैतिक अर्थों में, ऐतिहासिक समझ के साथ व्याख्यायित और परिभाषित करते हैं। यहीं वे काव्य-विषयों की कोमल और सकारात्मक समझी जानेवाली पदावली की परिधियों को भी तोड़ते हैं।
उचित ही प्रबुद्ध आलोचकों-पाठकों ने इन कविताओं को ‘विडम्बना के नए आख्यान’ तथा ‘विचारधारा के सर्जनात्मक उपयोग’ का उदाहरण माना है। ये कविताएँ भाषा के सम्प्रेषणीय प्रखर मुहावरों, अभिव्यक्ति के संयम और वर्णन की चुम्बकीय शक्ति के लिए भी पहचानी गई हैं। कवि-कर्म की नई चुनौतियों का स्वीकार यहाँ स्पष्ट है। ये कविताएँ हमारे समय में उपस्थित तमाम क्रूरताओं की शिनाख़्त करने का गम्भीर दायित्व उठाती हैं। यही कारण है कि वे पाठक की चेतना में प्रवेश कर वैचारिक स्तर पर उद्विग्न करती हैं। सांस्कृतिक प्रतिरोध की दृष्टि से सम्पृक्त ये कविताएँ अनुभवों के वैविध्य और विस्तार में जाकर एकदम अछूते काव्यात्मक वृत्तान्तों को सम्भव करती हैं।
जो कुछ न्यायपूर्ण है, सुन्दर है, सभ्य सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है, उसे पाने की आकांक्षी और पक्षधर ये कविताएँ सहज ही साम्राज्यवादी, औपनिवेशिक, उपभोक्तावादी, साम्प्रदायिक और पूँजीवादी शक्तियों को अपने सूक्ष्म रूप में भी उजागर करती हैं। ‘क्रूरता की संस्कृति’ को चिह्नित करते हुए वे संवेदना, मनुष्यता, लौकिकता और करुणा का विशाल फलक रचती हैं, अपने काव्यात्मक अभीष्ट तक पहुँचती हैं।
मनुष्य समाज के साथ रागात्मक सम्बन्धों के ठोस आधार कुमार अंबुज की निगाह से कभी ओझल नहीं होते हैं, इसलिए उनकी ये कविताएँ सर्जना के नए पड़ावों तक यात्रा करती हैं। इन कविताओं की प्रासंगिकता और प्रतिबद्धता इन्हें नए सिरे से विचारणीय बनाती है। वे इस पक्ष के लिए भी रेखांकित की जाती रही हैं कि हिन्दी कविता का यह नया विकास है, विशेष अर्थ में एक नया प्रस्थान।
You Me and Love
- Author Name:
Kashish Lewis
- Rating:
- Book Type:

- Description: You Me and Love is a collection of poems that will take you on a journey to explore the definition of love in all forms. From falling in love with someone to healing after a heartbreak and embracing oneself, we hope these poems will make you believe in love despite the dark side.
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...