Siyalkot Ki Sarhad
Author:
Madan Mohan SamarPublisher:
Shivna PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 144
₹
180
Available
Book
ISBN: 9789381520635
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
'घनमाला' महाकवि कुँवर चन्द्रप्रकाश सिंह की काव्य-साधना का अन्तिम गीत-संग्रह है। इस गीत-संग्रह का प्रकाशन भारत की स्वतन्त्रता के अमृत महोत्सव वर्ष में किया जा रहा है। इसमें कुल 150 गीत संकलित हैं। इन 150 गीतों में 75 गीत प्रायः सन् 1978 ई. के बाद रचे गए हैं। इन गीतों में छायावाद युग के गीतों के वही भाव मिलेंगे जो छायावाद के उत्कर्ष काल में रचे गए गीतों में मिलते हैं। इसीलिए कुँवर जी को छायावाद का अन्तिम कवि माना है और उनके शताब्दी न्यासी कवि व्यक्तित्व में जीवन के अन्तिम क्षणों तक छायावादी भाव-भूमि को सन्निहित देखकर उन्हें छायावाद के उन्नायक कवि की उपाधि से अलंकृत किया है।
इस गीत-संग्रह को दो खंडों में विभक्त किया गया है। पहले खंड में सन् 1978 ई. के बाद रचे गीत संकलित हैं और दूसरे खंड में छायावाद के उत्कर्ष काल में रचे गए गीत हैं। इस संकलन के दूसरे खंड में छायावाद के उत्कर्षकाल के गीत इसलिए संकलित किए गए हैं, जिससे पाठक पहले खंड तथा दूसरे खंड के गीतों को पढ़कर यह समझ सकें कि कुँवर जी की काव्य-साधना में छायावाद की अनुभूति तथा अभिव्यक्ति का सम्पूर्ण काव्य-वैभव आदि से अन्त तक समान रूप से विद्यमान है।
Taak Dhinadhin Bacche Nache
- Author Name:
Rameshraaj
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- Book Type:

- Description: मन को लुभाते बालगीत - ताक धिना धिन बच्चे नाचें प्रख्यात कवि रमेशराज बहुआयामी प्रतिभा के धनी है। आपने ग़ज़ल के समानांतर 'तेवरी' आंदोलन चलाया। 'तेवरी' की सार्थकता को सिद्ध करने के लिए 'तेवरीपक्ष' त्रैमासिक पत्रिका के साथ-साथ अनेक तेवरी संग्रहों का संपादन किया। आपने रसपरंपरा में एक नए रस 'विरोध' की स्थापना की। यही नहीं 'साधारणीकरण' जैसे सर्वमान्य सिद्धांत को चुनौती देते हुए एक नए सिद्धांत 'आत्मीयकरण' को प्रतिपादित किया। कवि रमेशराज एक अच्छे बालगीतकार भी हैं। आपके विगत एक वर्ष के भीतर दो बालगीत संग्रह प्रकाशित होने के उपरांत सद्यः प्रकाशित बालगीत संग्रह 'ताक धिनाधिन बच्चे नाचे' में विविध मौसमों के ऐसे बालगीत हैं जिनमें जाड़े के प्रकोप में स्वेटर अलाव, अंगीठी, गर्म चाय का जिक्र है तो वसंत के आते ही फूल भंवरों, तितलियों की बच्चों के मन को लुभाती मोहक छटाओं के दृश्य हैं।कोयल की प्यारी प्यारी कुहू कुहू की बोली है। होली के वे मदमाते पल हैं जिनमें बच्चे नकली मूछें लगाकर, पिचकारी हाथ में लेकर हुरियारे बने हुए धमाचौकड़ी मचाते हैं। रंग गुलाल उड़ाते है। बच्चों के मन को हर्षित करने वाले प्राकृतिक दृश्यों जैसे बर्फ के पहाड़, नदी, झरनों, विविध त्योहारों पर लिखे गए इन बालगीतों में मिठास है, उल्लास है। इनमें चलते हुए पटाखे है, फुलझडियां हैं। रंगबिरंगी अनारों से फूटती आतिशबाजी है। पतंगें हैं, छक्के लगाता बल्ला है। गेंद है। टिकटिक करती घड़ी है। नाचते मोर हैं। टर्र टर्र करते मेढक हैं। इन गीतों की शब्दावली सरस और रोचक है। विश्वास है इस संग्रह का स्वागत बच्चे ही नहीं साहित्य जगत के रसिक पूरे मनोयोग से करेंगे। आपकी 30 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।अलीगढ़ के ग्रन्थायन प्रकाशन की ओर से आपको *साहित्यश्री* पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
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