Indraprasth Ke Kash-Pushp
Author:
Kantesh MishraPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
भले हम किसी की आशाओं में न हों।
हम हों हर प्रकार से बहिष्कृत विकल्प।
हमारी प्रार्थना में किसी एक का भी होना,
पृथ्वी पर प्रेम की सम्भावना, प्रबल बनाता है।
-इसी पुस्तक से
ISBN: 9789390372331
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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आदमी को लेकर एक निस्संकोच अपनापन और करुणा भगवत रावत की कविता के केन्द्र में है, इसीलिए जब वे याद दिलाते हैं कि इस समय दुनिया को ढेर सारी करुणा चाहिए तो वे भावुक नहीं हो रहे होते हैं, बल्कि निर्वैयक्तिकता, तटस्थता आदि के मूलत: मानव-विरोधी मूल्यों के ख़िलाफ़ एक अमोघ नकार दर्ज करते हैं।
भारतीय साहित्य की एक महान् परम्परा पर कभी भी ध्यान नहीं दिया गया है और वह है मित्रता के चित्रण की। ‘महाभारत’ और ‘रामायण’ की मैत्रियाँ भी भारतीय मानवीयता का एक अनिवार्य तत्त्व हैं और बीसवीं शताब्दी में जिस वैश्विक मानवीय प्रतिबद्धता की बात की जाती है, उसके मूल में यही वह स्वाभाविक दोस्ताना है जो इनसानों में हमेशा मौजूद रहता है। मुक्तिबोध के बाद भगवत रावत आज के पहले हिन्दी कवि हैं जिनके यहाँ दोस्ती का जज़्बा, किसी मित्र की प्रतीक्षा, सखा के आने की ख़ुशी, बल्कि किसी भी राह चलते को दोस्त बनाने की चाहत इतनी शिद्दत से मौजूद है। जब हर अपने जैसा इनसान दोस्त है तो बेशक वसुधा भी कुटुम्ब है। यह आकस्मिक नहीं है कि भगवत रावत ने कुछ कविताएँ अपने कवि-कलाका र मित्रों पर भी लिखी हैं। दोस्ती का यह जज़्बा उस समय और भी सम्पूर्ण तथा सार्थक हो जाता है, जब भगवत रावत उसकी ज़द में प्रकृति और पर्यावरण को भी ले आते हैं।
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- Description: अपने बारे में क्या बताऊँ! दस सितंबर चौसठ के दिन केसली ज़िला सागर म.प्र. में पैदा हुआ। पिताजी सरकारी नौकरी में थे, उनकी देखा-देखी पढ़ने में दिलचस्पी जगी। बचपन की हर शाम खंडवा में माणिक्य वाचनालय में गुज़री। किताबें पढ़ने के अलावा कुछ किया ही नहीं मैंने। कॉलेज की पढ़ाई नरसिंहपुर में हुई। इक्कीस का होने पर बैठे-ठाले पीएससी दी और तेईस साल में सरकारी अफ़सर हो गया और फिर एक बेहद सुंदर, शिष्ट और भद्र लड़की मेरे जीवन में आई, राजेश्वरी। दो बच्चे हैं, रोहित और राधा। आजकल एडिशनल कमिश्नर एक्साइज़ मध्यप्रदेश हूँ और जीवन ठीक-ठीक बीत रहा है। अपनी लिखी कविताओं के बारे में क्या कहूँ... इनमें से अधिकांश प्रेम के आसपास रक़्स करती हैं और वह इसलिये कि प्रेम मेरे जीवन का सबसे चमकदार रंग है। ये कविताएँ सप्रयास लिखी गई रचनायें नहीं, बस मेरे अंदर ये बह निकली हैं। आप इनमें बौद्धिकता तलाशेंगे तो शायद निराश हों। ये बस प्रेम जानती हैं और उसी का प्रशस्ति गान करती हैं। मेरी कविताओं में मेरा सुंदर परिवार है, भरोसेमंद रिश्ते हैं, बचपन के दोस्त हैं, आकाश अपने नीले रंग के साथ मौजूद है और साफ़-सुथरी नदियाँ भी बहती हैं। ये उम्मीदों से भरी हैं और रोने-पीटने में भरोसा नहीं करतीं। ये ऐसी इसलिये हैं क्योंकि, ये वही कहती हैं, जो मैंने जिया है। मैं आशा करता हूँ, ये आपको भी अच्छी लगेंगी... मुकेश नेमा
Khatam Nahin Hote Baat
- Author Name:
Bodhisatwa
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Description:
जीने का सहजबोध और उसको सहारती–सँभालती दुधमुँही कोंपलों–सी कुछ यादें, कुछ कचोटें, कुछ लालसाएँ और कुछ शिकायतें। बोधिसत्व की ये कविताएँ समष्टि–मानस की इन्हीं साझी ज़मीनों से शुरू होती हैं, और बहुत शोर न मचाते हुए, बेकली का एक मासूम–सा बीज हमारे भीतर अँकुराने के लिए छोड़ जाती हैं। इन कविताओं की हरकतों से जो दुनिया बनती है, वह समाज के उस छोटे आदमी की दुनिया है जिसके बारे में ये पंक्तियाँ हैं : ‘‘माफ़ी माँगने पर भी/माफ़ नहीं कर पाता हूँ/छोटे–छोटे दु:खों से/उबर नहीं पाता हूँ/पावभर दूध बिगड़ने पर/कई दिन फटा रहता है मन/कमीज़ पर नन्ही–सी खरोंच/देह के घाव से ज़्यादा देती है दु:ख।’’ (छोटा आदमी)
छोटे आदमी की यह दुनिया जिस पर आज क़िस्म–क़िस्म की बड़ी चीज़ें और दुनियाएँ निशाना साध रही हैं, अगर सुरक्षित है, और रहेगी, तो उन्हीं कुछ छोटी चीज़ों के सहारे जिन्हें बोधिसत्व की ये कविताएँ रेखांकित कर रही हैं। मसलन साथ पढ़ी मुहल्ले की उन लड़कियों की याद जिनके बारे में अब कोई ख़बर नहीं (‘हाल–चाल’); गाँव के वे बेनाम–बेचेहरा लोग जिनके सुरक्षित साये में बचपन बीता, और आज महानगर की भूल–भुलैया में जिनकी फिर से ज़रूरत है (‘मैं खो गया हूँ’); अपने घावों में सबको पनाह देनेवाली उस आवारा लड़की का प्यार जिसके अपने पास कोई जगह कहीं नहीं (‘कोई जगह’)। और ऐसी ही अन्य तमाम चीज़ें जो हम साधारण जनों के संसार को हरा–भरा रखती हैं, इन कविताओं के माध्यम से हम तक पहुँच रही हैं।
‘लालच’ शीर्षक कविता में व्यक्त इस छोटे आदमी की नग्न लालसा हिन्दी कविता को एक नया प्रस्थान बिन्दु देती प्रतीत होती है। लग रहा है कि थोड़ी हिचक के साथ ही, लेकिन अब वह उन सुखों में अपनी भी हिस्सेदारी चाहता है, जिनका उपभोग बाक़ी पूरा समाज इतने निर्लज्ज अधिकारबोध के साथ कर रहा है। ‘ख़त्म नहीं होती बात’ के रूप में कविता–प्रेमियों के सम्मुख यह ऐसी कविता–पुस्तक है जो काव्य–प्रयोगों के लिए नहीं अपने भाव–सातत्य और वैचारिक नैरन्तर्य के लिए महत्त्वपूर्ण है।
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